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गुरुवार, 28 मार्च 2019

लघुकथा : ख़ामोशी बोलती है | कामिनी गोलवलकर

निमिता माता-पिता की एकलौती सन्तान थी। देखने में भी सुन्दर और पढ़ी लिखी थी, उसके साथ मुकुल भी पढ़ता था जो उसे मन ही मन चाहता था। पिता ने निमिता के लिए बहुत रिश्ते देखे और निमिता की शादी अच्छे घर में कर दी। पर नियति को तो कुछ और ही मंजूर था, पति ने एक दिन बीमारी से दम तोड़ दिया। निमिता बिलकुल एकाकी पड़ गई।
निमिता जब मायके आई तो उसके साथ उसका 2 साल का बेटा और वह खुद सफेद वस्त्रो में थी।
यह देख मुकुल का दिल दहल गया और न जाने कितने बुरे-बुरे ख्याल आने लगे।
रात भर सोचता रहा की क्या करूँ, कैसे करूँ जिससे उसका दुःख  बाट सकूँ।
अपने प्यार का इज़हार और निमिता को नया जीवन देने के लिए चल पड़ा। सुबह उठते ही मुकुल बाजार से एक सुन्दर साड़ी, सजावट का समान और एक पत्र रख कर निमिता से मिलने चल दिया।
दरबाजे पर दस्तक दी।
निमिता ने दरवाजा खोला और अंदर आने को कहा। मुकुल मौन होकर देखता रहा, माँ जी ने मौन भंग किया।
मुकुल निमिता के हाथ में उपहार वाला थाल थमा कर चल दिया।
छत पर इंतजार करता रहा, साझ होने को आई पर कोई उत्तर नही मिला, मन उदास होने लगा।
अचानक निमिता उसकी दी हुई साड़ी गहने पहने हुए छत पर आई।
उसे उसका उत्तर मिल गया

- कामिनी गोलवलकर

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