एक सैनिक की पत्नी जंग छिड़ने पर क्या सोच सकती है, उसका एक उदाहरण है यह लघुकथा। दीपक मशाल ने इस रचना के जरिये न केवल सैनिक की पत्नी बल्कि सेना के एक ड्राईवर तक की सोच बताई है कि ड्राईवर को जंग की फिक्र नहीं, क्योंकि जंग तो सैनिक के जीवन का हिस्सा है, उसे फिक्र है अपने जीवन के उस हिस्से की जहां जीवन खुदकों जीता है। एक सैनिक अपने नागरिकों के लिए लड़ता है तो ऐसी फिक्र होना स्वाभाविक है। हालांकि इस रचना में एक सत्य है लेकिन फिर भी मेरा मानना यह है कि इस रचना सैनिक की पत्नी को यदि थोड़ा बहादुर दर्शाया जाता तो यह अच्छी रचना बेहतर हो सकती थी। मधु चौरसिया जी के स्वर में सुनते हैं दीपक मशाल जी की लघुकथा - खबर।
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सोमवार, 1 जुलाई 2019
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