यह ब्लॉग खोजें

स्टोरी मिरर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
स्टोरी मिरर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2020

अंतरराष्ट्रीय लघुकथा प्रतियोगिता अपडेट





✍️शब्दों की कोई सीमा नहीं है।
👌एक लघुकथाकार कितनी भी रचनाएं प्रेषित कर सकता है
🤗२४ फरवरी से ४ मार्च तक लगातार भाग लेने वाले प्रतिभागियों को विशेष पुरस्कार।
🙌सभी प्रतिभागियों को रचना प्रेषित करने पर पार्टीसिपेट करने का सर्टिफिकेट दिया जाएगा।
👍रचनाओं को लिंक पर जाकर ही प्रेषित करना है ताकि रचना प्रतियोगिता में शामिल हो सके।
🤝विषय: सामाजिक, सांसारिक, पर्यावरण, देशभक्ति, प्रेरणादायक, शिक्षाप्रद आदि विषयों पर लिख सकते हैं।
✍️भाग लेने के लिए लिंक पर आपका स्वागत है
http://sm-s.in/v8TidJc

मंगलवार, 2 जुलाई 2019

लघुकथा "अन्नदाता" को मिला स्टोरी मिरर द्वारा Winner of Writing Prompt का सम्मान

Image may contain: text


अन्नदाता / डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

फसल कटाई के बाद उसके चेहरे और खेत की ज़मीन में कोई खास फर्क नहीं दिखाई दे रहा था। दोनों पर गड्ढे और रेशे। घर की चौखट पर बैठा धंसी हुई आंखों से वह कटी हुई फसल और काटने वाली ज़िन्दगी के अनुपात को मापने का प्रयास कर रहा था कि एक चमचमाती कार उसके घर के सामने आ खड़ी हुई। उसमें से एक सफेद कुर्ता-पजामा धारी हाथ जोड़ता हुआ बाहर निकला और उसके पास आकर बोला, "राम-राम काका।" और अपने कुर्ते की जेब से केसरिया सरीखा रंग निकाल कर उसके ललाट पर लगा दिया। उसने अचंभित होकर पूछा, "आज होली..."

उस व्यक्ति ने हँसते हुए उत्तर दिया, "नहीं काका। यह रंग हमारे धर्म का हैइसे सिर पर लगाये रखिये। दूसरे लोग हमारे धर्म को बेचना चाहते हैंइसलिए आप वोट हमें देना ताकि हमारा धर्म सुरक्षित रहें और हां! हम और सिर्फ हम ही आपके साथ हैं और कोई नहीं।"

सुनकर उसने हाँ की मुद्रा में गर्दन हिलाकर कहा, "जी अन्नदाता।"

उस चमचमाती कार के जाते ही एक दूसरी चमचमाती कार उसके घर के सामने आई। उसमें से भी पहले व्यक्ति जैसे कपड़े पहने एक आदमी निकला। हाथ दिखाते हुए उस आदमी ने उसके पास आकर उसकी आँखों और नाक पर सफेद रंग लगाया और बोला, "देश को धर्म के आधार पर तोड़ने की साजिश की जा रही है। आप अपनी आंखें खुली रखें और देश की इज्जत बचाये रखने के लिये हमें वोट दें और हाँ! हम और सिर्फ हम ही आपके साथ हैं और कोई नहीं।"

उसे भी अपने साथ पा वह मुस्कुरा कर बोला, "जी अन्नदाता।"

उस व्यक्ति के जाते ही एक तीसरा आदमी अंदर आ गया। उसके चेहरे के रंगों को देखकर वह आदमी घृणायुक्त स्वर में बोला, "तुम खुद अन्नदाता होकर गलत रंगों में रंगे हो! अपने लिए खुद आवाज़ उठाओऔर हाँ! सिर्फ हम ही हैं जो तुम्हारे साथ हैं।" कहकर उस आदमी ने उसके मुंह पर लाल रंग मल दिया।

वह प्रफुल्लित हो उठा। सभी तो उसके साथ थे।

उसने अपने बायीं तरफ देखावहां वह खुद ही खड़ा था और दाएं तरफ भी वही। अपने सभी ओर उसने खुदको ही खड़ा पाया। अलग-अलग रंगों से पुता हुआ उसका हर रूप अलग-अलग कुर्ता-पजामा धारियों के नाम के ढोल बजाता हुआ चल दिया, इस बात से अनभिज्ञ कि घर की चौखट पर एक रंगीन फंदे में लुढ़की हुई गर्दन लिए उसका जिस्म सड़ने लगा है।

- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

शनिवार, 1 जून 2019

विजेता लघुकथा : गूंगा कुछ तो करता है | स्टोरी मिरर में "लघुकथा के परिंदे" प्रतियोगिता के तहत | डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

कुछ व्यक्तियों की तरह उसने मुस्कुराने के लिए अपना फेसबुक खोला। पहली पोस्ट देखी, उसमें एक कार्टून बना था कि एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल का प्रमुख दूसरे दल के प्रमुख की हँसी उड़ा रहा था। यह देखकर उसका चेहरा बिगड़ने लगा।

फिर उसने उसी पोस्ट की टिप्पणियाँ पढ़ीं।

पहली टिप्पणी ‘अ’ की थी जिसमें लिखा था, "मूर्ख तो मूर्ख ही रहेगा।" और उसे महसूस हुआ कि वह स्वयं एक मूर्ख व्यक्ति है।

दूसरी टिप्पणी ‘ब’ ने की, "गधों को सब मूर्ख ही दिखाई देते हैं।" यह पढ़कर उसे स्वयं में एक गधा दिखाई देने लगा।

तीसरी टिप्पणी फिर ‘अ’ ने की, "जिसे गधा कह रहे हो उसने देश की लोकतांत्रिक परंपरा को बढ़ाने के लिए बहुत कार्यक्रम चला रखे हैं।"

चौथी टिप्पणी फिर ‘ब’ की थी, "तो तुम भी जिसे मूर्ख कह रहे हो उसने और उसके दल ने भी कई वर्षों देश की भलाई के लिए बहुत कार्यक्रम चलाए हैं।"

पाँचवी टिप्पणी ‘स’ ने की, "एक-दूसरे को कोसना छोड़िये, यह बताइये आप दोनों ने किन-किन कार्यक्रमों या परियोजनाओं में भाग लिया है ?"

छठी टिप्पणी ‘अ’ ने की, "लो आज गूंगे भी बोल रहे हैं, देशद्रोही ! तुमने क्या किया है देश के लिए ? "इस टिप्पणी को ‘ब’ ने पसंद किया हुआ था, लेकिन पढ़कर उसकी भवें तन गयीं।

सातवीं टिप्पणी दस मिनट बाद की थी, जो ‘स’ ने की थी, "मैनें फेसबुक पर अपना प्रचार नहीं किया लेकिन हर दल की सरकार के विकास के कार्यों में हर संभव भाग लिया है..."

उसने और टिप्पणियाँ नहीं पढ़ीं, उसकी आँखों में चमक आ गयी थी और उसने ‘स’ को मित्रता अनुरोध भेज दिया।

- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी