यह ब्लॉग खोजें

क्षितिज लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
क्षितिज लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 9 नवंबर 2021

क्षितिज संवादात्मक लघुकथा अंक

सतीश राठी जी और दीपक गिरकर जी के सम्पादन में क्षितिज का संवादात्मक लघुकथा अंक प्राप्त हुआ। पढ़ना प्रारम्भ किया है। मेरी एक लघुकथा भी इसमें सम्मिलित है।



एक औरत / लघुकथा / डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

"काजल लगाने के बाद तुम्हारी आँखें कितनी सुंदर हो जाती हैं?"
"जी, मेरे बॉस भी यही कहते हैं।"
"अच्छा, तुम्हारे कपड़ों का चयन भी बहुत अच्छा है, तुम पर एकदम फिट!"
"बॉस को भी यही लगता है"
"ओह, तुम जो मेकअप करती हो उससे तुम्हारा रूप कितना खिल उठता है।"
"बॉस भी बिलकुल यही शब्द कहते हैं..."
"उफ़.... तुम्हारा पति मैं हूँ या बॉस?"
"आपकी नज़रें पति जैसी नहीं, बॉस जैसी हैं। वर्ना इस सुंदरता के पीछे एक औरत भी है।"
-0-



सोमवार, 27 अप्रैल 2020

लघुकथा समाचार: क्षितिज की ऑनलाइन सार्थक लघुकथा ऑडियो गोष्ठी

लॉकडाऊन में रचनाधर्मिता को नवीन आयामलघुकथा प्रवासी और टेक दुनिया के अंतरंग का हिस्सा- श्री बीएल आच्छा

तकनीक के इस युग में कुछ भी असम्भव नहीं है। कोरोना वायरस के कारण लाकडाउन के मध्य  क्षितिज साहित्य मंच, इंदौर द्वारा शनिवार 25 अप्रैल 2020 सांय 4:00 बजे एक ऑनलाइन ऑडियो सार्थक लघुकथा गोष्ठी का आयोजन किया गया । क्षितिज साहित्य मंच द्वारा आयोजित ऑनलाइन सार्थक लघुकथा ऑडियो गोष्ठी सचमुच प्रशंसनीय थी। बलराम अग्रवाल अध्यक्ष और विशेष अतिथि बी.एल.आच्छा थे। संचालन किया वरिष्ठ लघुकथाकार अंतरा करवड़े और वसुधा गाडगिल ने। 

कोरोना वायरस के कारण किए गए लॉकडाऊन को देखते हुए क्षितिज साहित्य मंच, इंदौर द्वारा दिनांक 25 अप्रैल 2020 शनिवार शाम 4:00 बजे एक ऑनलाइन ऑडियो सार्थक लघुकथा गोष्ठी का क्षितिज साहित्य मंच के पटल पर आयोजन किया गया। इस गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार, लघुकथाकार, कथाकार, आलोचक श्री बलराम अग्रवाल (दिल्ली) ने की और इस समारोह के प्रमुख अतिथि थे मूर्धन्य साहित्यकार, समीक्षक, आलोचक श्री बी. एल. आच्छा (चैन्नई)। गोष्ठी के आरम्भ में क्षितिज संस्था के अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार, लघुकथाकार, समीक्षक श्री सतीश राठी द्वारा स्वागत भाषण दिया गया और अतिथियों का स्वागत करते हुए श्री राठी ने कहा कि आज हमारे लिए बड़ी ख़ुशी कि बात है कि इस ऑनलाइन कार्यक्रम में आदरणीय श्री बलराम अग्रवाल (दिल्ली) और श्री बी. एल. आच्छा (चैन्नई) के साथ देश के वरिष्ठ साहित्यकार और लघुकथाकार आदरणीय सर्वश्री अशोक भाटिया (चंडीगढ़), सुभाष नीरव (दिल्ली), भागीरथ (रावतभाटा), माधव नागदा (नाथद्वारा), रामकुमार घोटड़ (चूरू, राजस्थान), अशोक जैन, मुकेश शर्मा, (गुरुग्राम), ओम मिश्रा (बीकानेर), योगराज प्रभाकर, जगदीश कुलारिया (पंजाब), हीरालाल मिश्रा (कोलकाता) लता चौहान चौहान (बेंगलुरु) पवन शर्मा (छत्तीसगढ़), पवन जैन (जबलपुर), संध्या तिवारी (पीलीभीत), अरूण धूत, संतोष श्रीवास्तव, अशोक गुजराती (भोपाल), मनीष वैद्य (देवास), राजेंद्र काटदारे (मुम्बई), अंजना अनिल (अलवर), देवेन्द्र सोनी (इटारसी), पवित्रा अग्रवाल (हैदराबाद), गोविन्द गुंजन (खंडवा), कुलदीप दासोत (जयपुर), धर्मपाल महेंद्र जैन (टोरंटो), सत्यनारायण व्यास सूत्रधार, व्यंग्यकार कांतिलाल ठाकरे, राकेश शर्मा संपादक वीणा, अश्विनी कुमार दुबे, पुरुषोत्तम दुबे, ब्रजेश कानूनगो, चंद्रा सायता, वन्दना पुणताम्बेकर, पदमा राजेंद्र, संगीता भारूका, रजनी रमण शर्मा, जगदीश जोशी, सुषमा व्यास, राजनारायण बोहरे, अर्जुन गौड़, नंदकिशोर बर्वे, सुभाष शर्मा, उमेश नीमा, ललित समतानी, सीमा व्यास, चेतना भाटी, मंजुला भूतड़ा, निधि जैन, राममूरत राही, (इंदौर), नई दुनिया के हमारे साथी श्री अनिल त्रिवेदी, दैनिक भास्कर के हमारे साथी श्री रविंद्र व्यास, पत्रिका से रूख़साना जी, बैंक के साथी गोपाल शास्त्री, गोपाल कृष्ण निगम (उज्जैन) भी उपस्थित हैं, मैं इन सभी का स्वागत करता हूँ और ह्रदय से अभिनन्दन करता हूँ।

इसके पश्चात लघुकथा विधा को लेकर वर्ष 1983 से क्षितिज संस्था द्वारा किए गए कार्यों की जानकारी एवं क्षितिज के विभिन्न प्रकाशनों की जानकारी श्री सतीश राठी द्वारा दी गई। इस गोष्ठी में हमारे इंदौर शहर से बाहर के क्षितिज के सदस्य लघुकथाकारों सर्वश्री संतोष सुपेकर, दिलीप जैन, कोमल वाधवानी, आशा गंगा शिरढोनकर (उज्जैन), सीमा जैन (ग्वालियर), कांता राय (भोपाल ), अनघा जोगलेकर, विभा रश्मि (गुरुग्राम), अंजू निगम, सावित्री कुमार( देहरादून), कनक हरलालका (धुबरी, आसाम), हनुमान प्रसाद मिश्रा (अयोध्या) ने लघुकथाओं का पाठ किया गया, स्व पारस दासोत की लघुकथा का पाठ उनकी बहू द्वारा किया गया। इन रचनाओं पर श्री बलराम अग्रवाल ने अपने उद्बोधन में कहा दिलीप जैन की लघुकथा 'गिनती की रोटी' में पात्र का चरित्र उसके दादाजी से प्राप्त संस्कार के रूप में आकार ग्रहण करता है और एक विशेष प्रकार का मनोविकार बन जाता है। कुल मिलाकर यह लघुकथा पद प्रतिष्ठा और स्थिति के अनुरूप भारतीय स्त्री भारतीय स्त्री के संस्कार पूर्ण मनोविज्ञान को सफलतापूर्वक हमारे सामने प्रस्तुत करती है। अंजू निगम की लघुकथा 'मां' के केंद्र में सौतेली मां की प्रचलित छवि को बदलने का प्रयास नजर आता है। विषय नया न होकर भी अच्छा है, लेकिन इस लघुकथा का शिल्प अभी कमजोर है। इस सदी में लघुकथा लेखन में कुछ सधी हुई कलम भी आई हैं। उनमें सीमा जैन ऐसा नाम है जिनका जो व्यक्ति जीवन के संवेदनशील क्ष‌‌णों को पकड़ने और प्रस्तुत करने के प्रति बहुत सचेत रहती हैं। उनकी प्रस्तुति जाने पहचाने विषय को भी नयापन दे देती है। उनकी लघुकथा 'उड़ान' सकारात्मक सरोकारों से लबालब है।

कांता राय की लघुकथा 'मां की नजर'! इस पूरी लघुकथा में पात्रों के चरित्र के साथ न्याय होता मुझे नजर नहीं आता है! कोमल वाधवानी लघुकथा 'गुहार'! यह संस्मरणात्मक शैली में लिखी कथा है। कथा का अंत इस अर्थ में अति नाटकीय हो गया है कि दीवारें अपने गिरने का पूर्वाभास नहीं देती हैं। वे गिर ही जाती हैं, बूढ़ी काकी की तरह किसी को बचा लेने का अवसर भी वे नहीं देतीं। सावित्री कुमार की लघुकथा 'भ्रम का संबल' कथ्य की दृष्टि से एक सुंदर लघुकथा है। इसका आधार एक मनोवैज्ञानिक सत्य है। इस लघुकथा में, मुझे लगता है कि अनु का डॉक्टर के पास हर बार पहले जाना जरूरी नहीं है। आशा गंगा प्रमोद शिरढोणकर की लघुकथा 'उसके बाद'। बढी उम्र में जीवनसाथी से बिछोह के बाद त्रस्त जीवन की भावपूर्ण झांकी इस लघुकथा में बड़ी सहजता से सफलतापूर्वक प्रस्तुत की गई है। अनघा जोगलेकर की लघुकथा 'जुगनू'। उन्होंने किसान के जीवन में आशा की एक किरण को 'जुगनू' की संज्ञा दी है! लघुकथा के इस कथानक में कई बातें अस्पष्ट सी छूट गई हैं। 'वेरी गुड' संतोष सुपेकर की लघुकथा है। मेरा विश्वास है कि बालमन को समझना और बालक का मान रखना हंसी खेल नहीं है। विपरीत परिस्थिति में भी इस लघुकथा का मुख्य पात्र जिस तरह अपने बेटे का मान रखता है वह हमें दूर तक फैले खुशियों के उपवन में ले जाता है। विभा रश्मि की एंटीवायरस स्त्री मनोविज्ञान की बेहतरीन लघुकथा है! हनुमान प्रसाद मिश्र अपेक्षाकृत कम लिखने वाले वरिष्ठ लेखक हैं। क्षितिज के इस ऑनलाइन लघुकथा गोष्ठी कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति उत्साह बढ़ाने वाली है। दृष्टांत शैली की यह रचना प्रभावित करती है। कनक हरलालका की 'इनसोर' लघु कथा में एक मजदूर की पीड़ा को उभारने की भरपूर कोशिश है। शिल्प की दृष्टि से इसे अभी और कसा जा सकता था फिर भी इस भाव संप्रेषण के कारण कि मजदूर की पहली जरूरत उसके आज की पूर्ति होना है, यह एक प्रभावशाली लघुकथा कही जा सकती है।

कुल मिलाकर देखा जाए तो वर्तमान लघु कथा लेखन नवीन विषयों को लेकर तो कुछ नवीन प्रस्तुतियों को लेकर साहित्य मार्ग पर अग्रसर है और उसकी यह अग्रसारिता संतुष्ट करती है।

श्री बी. एल. आच्छा ने ऑनलाइन सार्थक लघुकथा ऑडियो गोष्ठी पर अपनी प्रतिक्रया देते हुए कहा “हिंदी लघुकथा नई विधा है, पर अल्पकाल में इस विधा ने जितने संघर्षों को समेटा है, विमर्शों को अंतरंग बनाया है, मानव मन के अंतर्जाल को उकेरा है, उससे लगता है कि अन्य विधाओं की लंबी काल यात्रा लघुकथा में उतर आई है। यही नहीं लघुकथा ने आज की टेक दुनिया के साथ प्रवासी दुनिया तक विस्तार किया है। बड़ी बात यह इसका एक सिरा चूल्हे- चौके या मजदूर किसान जीवन से सिरजा है, उतना ही बुर्जुआ और बोल्ड संस्कृति से भी। प्रयोग के लिए न केवल अनेक नई पुरानी शैलियों को आजमाया है, बल्कि अन्य विधाओं से इसे संवादी नाट्यपरक और विजुअल बनाया है। आज की लघुकथा यद्यपि मोटे तौर पर मध्यमवर्गीय जीवन के घेरे में ज्यादा है, पर प्रवासी और टेक दुनिया भी उसका अंतरंग हिस्सा बनी है। आज की संगोष्ठी में इसकी झलक देखी जा सकती है।

अनघा जोगलेकर की लघुकथा किसानी व्यथाओं में पत्नी के जीवट में जुगनू की चमक दिखाती है, तो विभा रश्मि की 'एंटीवायरस 'आँखों के स्क्रीन में एंटीवायरस प्रोग्राम से हमउम्र के मनोविकारों को धोकर रख देती है। दिलीप जैन की लघुकथा 'गिनती की रोटी 'में पीढ़ियों की समझ का फेर भले ही हो पर ह्रदय कल्मश नहीं है। सावित्री कुमार की लघुकथा 'भ्रम का संबल' में नारी की उदात्त पारिवारिक भूमिका मन को छू लेती है। कोमल वाधवानी की 'गुहार' और आशा गंगा शिरढोणकर की 'उसके बाद 'लघुकथा में पारिवारिक रिश्तो में वृद्धावस्था की बेचैनियों के नुकीले सिरे चुभनदार बन जाते हैं ।अंजू निगम की 'मां' लघुकथा अपने उद्देश्य में बिखरती हुई भी समझ को विकसित करती है। सीमा जैन की 'उड़ान 'में जेंडर असमानता के बीच लड़की की उड़ान नारी चेतना के पंखों में गति ला देती है। संतोष सुपेकर दो मनोभूमियों के कंट्रास्ट को 'व्हेरी गुड 'में बखूबी मुखर कर देते हैं। हनुमानप्रसाद मिश्र दायित्व बोध लघुकथा में मानवेतर के माध्यम से सांस्कारिकता का संदेश देते हैं। कनक हरलालका की लघुकथा 'इनसोर 'में कारपोरेट बचत की बाजारवादी सोच में भूख की पीड़ा असरदार है। कांता राय की 'माँ की नजर में' लघुकथा पतित्व की स्वामी- सत्ता का घुलता हुआ अंदाज है। स्व.पारस दासोत की लघुकथा 'भारत 'में तमाम फटेहाली के बावजूद गरीब की जीत का जज्बा है। पठित रचनाओं में कथाभूमियाँ विविधता के क्षेत्रफल में बुनी हुई है। वे सामाजिक -पारिवारिक सरोकारों को जितनी वास्तविकताओं के साथ बुनती हैं,उतना ही बदलती दुनिया से भी।नरेटिव से संवादी बनती हैं और अंतर्वृत्तियों को सामने लाती हैं।

इस गोष्ठी की एक प्रमुख विशेषता रही है कि 1 घंटे के इस कार्यक्रम में देश के वरिष्ठ साहित्यकार और लघुकथाकार श्रोताओं के रूप में उपस्थित रहकर प्रथम ऑनलाइन लघुकथा संगोष्ठी के सहभागी और साक्षी बने। क्षितिज ऑनलाईन सार्थक लघुकथा ऑडियो गोष्ठी जो कि क्षितिज संस्था का एक महत्वपूर्ण आयोजन था, ऐतिहासिक रूप से सफल रही। क्षितिज संस्था ने इस अनूठे साहित्यिक समारोह द्वारा लघुकथा विधा में नये आयाम स्थापित किए। इस गोष्ठी का संचालन जानी मानी मंच संचालक अंतरा करवड़े और डॉ. वसुधा गाडगिल ने किया। कार्यक्रम के अंतिम चरण में ऑनलाइन उपस्थित सहभागियों ने अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएं पोस्ट की और क्षितिज संस्था के सचिव श्री दीपक गिरकर द्वारा आभार व्यक्त किया गया।

नई दुनिया में इसका समाचारः




शुक्रवार, 29 नवंबर 2019

रिपोर्ट: क्षितिज अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन 2019,इंदौर | सतीश राठी

कोई भी कला संयम और समय के साथ ही विकसित होती है--- सुकेश साहनी


‘क्षितिज’ संस्था,इंदौर द्वारा द्वितीय ‘अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन 2019’ का आयोजन दिनांक 24 नवम्बर 2019, रविवार को श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति, इन्दौर में किया गया। यह कार्यक्रम चार विभिन्न सत्रों में आयोजित हुआ। प्रथम उद्घाटन, लोकार्पण एवम सम्मान सत्र रहा। इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार, कला मर्मज्ञ श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने की। मंच पर क्षितिज साहित्य संस्था के अध्यक्ष श्री सतीश राठी, श्री सूर्यकांत नागर, श्री सुकेश साहनी, श्री श्याम सुंदर अग्रवाल, श्री माधव नागदा एवमश्री कुणाल शर्मा उपस्थित थे। 

संस्था परिचय एवं अतिथियों के लिए स्वागत भाषण श्री सतीश राठी ने दिया। लघुकथा विधा को लेकर वर्ष 1983 से संस्था द्वारा किए गए कार्यों की उन्होंने जानकारी दी एवं संस्था के विभिन्न प्रकाशनों पर जानकारी देते हुए लघुकथा विधा के पिछले 35 वर्ष के इतिहास पर एक दृष्टि डाली। उन्होंने संस्था के इतिहास व कार्यों से सभी को परिचित करवाया। अतिथियों का परिचय देते हुए लघुकथा विधा के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों की जानकारी प्रस्तुत की तथा लघुकथा विधा के लिए दिए जाने वाले सम्मानो की चयन प्रक्रिया वहां पर प्रस्तुत की।

इस सत्र में सत्र अध्यक्ष श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय को कला साहित्य सृजन सम्मान 2019, श्री सुकेश साहनी को क्षितिज लघुकथा शिखर सम्मान 2019, श्री श्याम सुंदर अग्रवाल को क्षितिज लघुकथा सेतु शिखर सम्मान 2019, श्री माधव नागदा को क्षितिज लघुकथा समालोचना सम्मान 2019, श्री कुणाल शर्मा को क्षितिज लघुकथा नवलेखन सम्मान 2019 एवं श्री हीरालाल नागर को, लघुकथा शिखर सम्मान 2019 से सम्मानित किया गया। इस सत्र में पुस्तकों का विमोचन भी किया गया। 

क्षितिज पत्रिका के सार्थक लघुकथा अंक का विमोचन सर्वप्रथम हुआ। पुस्तक सार्थक लघुकथाएँ, इंदौर के 10 लघुकथा कारों के लघुकथा संकलन शिखर पर बैठ कर श्री सुकेश साहनी के लघुकथा संग्रह सायबर मैन, श्री भागीरथ परिहार की पुस्तक कथा शिल्पी सुकेश साहनी की सृजन चेतना, ज्योति जैन के लघुकथा संग्रह जलतरंग का अंग्रेजी अनुवाद, डॉ अश्विनी कुमार दुबे के गजल संग्रह कुछ अशहार हमारे भी, श्री चरण सिंह अमी की पुस्तक हिंदी सिनेमा के अग्रज, श्री बृजेश कानूनगो की दो पुस्तके रात नौ बजे का इंद्रधनुष व अनुगमन का विमोचन इस कार्यक्रम के लोकार्पण सत्र में हुआ। उद्घाटन के पश्चात इस तरह कुल 11 पुस्तकों का विमोचन हुआ।

अतिथियों का स्वागत पुरुषोत्तम दुबे, अरविंद ओझा, सतीश राठी, अश्विनी कुमार दुबे, योगेन्द्र नाथ शुक्ल, आशा गंगा शिरढोनकर एवं प्रदीप नवीन ने किया। प्रथम सत्र का संचालन अंतरा करबड़े ने किया। मां सरस्वती के पूजन एवं दीप प्रज्वलन के वक्त सरस्वती वंदना विनीता शर्मा ने प्रस्तुत की।

व्याख्यान सत्र में कुणाल शर्मा ने लघुकथा के आधुनिक स्वरूप पर बात की। श्री माधव नागदा ने शैक्षणिक पाठ्यक्रम में लघुकथा की उपादेयता विषय पर अपने विचार रखे। किशोर और युवा को लघुकथा पाठ्यक्रम में शामिल करवा कर ही साहित्य से परिचित करवाया जा सकता है, उससे उनमें साहित्यिक अभिरुचि का विकास होता है। इतिहास भले ही पुराना हो किंतु यह एक नई विधा है। विधार्थी इससे अंजान हैं इसलिए यदि विधिवत पाठ्यक्रम के द्वारा उन्हें विधा से परिचित करवाया जाए तो आगे शोध के रास्ते खुलते हैं।पंचतंत्र भी लघुकथा का ही रूप है, बुद्ध महावीर भी लघुकथा के माध्यम से अपनी बात कहते थे। समय का अभाव व भाव की तीव्रता के कारण यह विधा अधिक ग्राहय है।

हिंदी और पंजाबी भाषा में समान रूप से लघुकथा लिख रहे श्री जगदीश कुलारिया सम्मेलन में एक सत्र में अतिथि के रूप में मंच पर विराजमान रहे।

कहानी उपन्यास की तरह यह भी सभी विषयों पर अपनी उपयोगिता सिद्ध करेगी।

सुकेश साहनी ने अपने भाषण में लघुकथा के विचार पक्ष एवम विभिन्न विषयों पर रची जा रही लघुकथाओं के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि, लघुकथा विषय पर अपने विचार लेखक को व्यक्त करते हुए विषय के साथ न्याय करना प्राथमिकता में होना चाहिए। घटना व विषय विविध हैं। लिखते वक़्त समय देते हुए लिखा जाए। कोई भी कला संयम और समय के साथ विकसित होती है इसलिए किसी भी विषय के साथ समय देकर ही न्याय किया जा सकता है।विचार वह धुरी है जिस पर कल्पना घुमती है। सीप में मोती बनने वाली प्रक्रिया की तरह लघुकथा का सृजन हो सकता है लेकिन शीघ्र मोती पाने के चक्कर में लघुकथा को नोच कर नहीं परोसा जा सकता उसका पूरी तरह से परिपक्व होना जरूरी है।

श्री श्याम सुंदर अग्रवाल ने अपने वक्तव्य में कहा कि पंजाबी लघुकथा से आगे अब हिंदी लघुकथा विकास की बात हो। इंदौर शहर के योगदान को याद करते हुए उन्होंने विविध भाषाओं में लिखने वाली लघुकथा के विकास की बात की। निरंतरता सबसे बड़ा गुण है वह सफलता की और ले जाती है। लघुकथा में भी यह बात उल्लेखनीय है कि तमाम आलोचना के बाद भी लेखकों ने लिखना जारी रखा और आज लघुकथा एक विधा के रूप में स्थापित हो चुकी है। पंजाबी भाषा एवं हिंदी भाषा के आपसी जुड़ाव की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि क्षितिज पत्रिका ने कभी पंजाबी लघुकथाओं पर भी अंक निकाला और मिनी पत्रिका में भी हिंदी के लघुकथाकारों की लघुकथाओं के अनुवाद प्रकाशित किए गए।

विशेष योगदान हेतु, सर्वश्री उमेश नीमा, चरण सिंह अमी, नई दुनिया के अनिल त्रिवेदी, पत्रिका अखबार की संपादक क रुखसाना, दैनिक भास्कर के श्री रविंद्र व्यास श्री प्रदीप नवीन आदि को सम्मानित किया गया। कला सहयोग के लिए वरिष्ठ कलाकार श्री संदीप राशिनकर को भी सम्मानित किया गया।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने अपने वक्तव्य में कहा कि, साहित्य का यात्री सृजन से एकाकर हो जाता है। जो बुद्धि न समझ सके वह चमत्कार कहा जाता है, लघुकथा भी एक सहज चमत्कार है, कहने को लघु किंतु प्रभाव में विराट है। यह विधा, वामन के विराट पग की तरह अपने प्रभाव क्षेत्र में व्यापक रूप से लोकप्रिय है। एक स्वतंत्र विधा के रूप में इसका बड़ा सम्मान है।

लघुकथा की यात्रा की तुलना उन्होंने गंगा की यात्रा से कर कहा कि, अब यह संगम की तरह महत्वपूर्ण हो गई है। संस्कृत आख्यायिका यह नहीं है, उपन्यास का साररूप भी यह नहीं है। लघुकथा भिन्न विधा है एडगर एलान पो अंग्रेजी में इसे पुरोधा रहे। लघुकथा संवेदना का सार रूप है जिसकी तेजस्विता अपूर्व है। प्राचीन ग्रंथों में हर जगह यह विधा भिन्न-भिन्न स्वरूप में उपस्थित रही है।सार्थक संदेश, विसंगति पर चोट व व्यंग्य भी लघुकथा के तत्व माने जाते हैं।

विधाओं के अंतर अवगमन पर उन्होंने कहा विधाओं का आपस में संवाद होना आवश्यक है, अधिक से अधिक अध्ययन यह विवाद समाप्त किया जा सकता है।

श्री नरेंद्र जैन, श्री राजेंद्र मूंदड़ा, श्री नितिन पंजाबी, को भी सम्मानित किया गया। इस सत्र का आभार प्रदर्शन पुरुषोत्तम दुबे ने किया।

कार्यक्रम का द्वितीय सत्र लघुकथा पाठ का था जिसमें 35 से अधिक लघुकथाकारों ने अपनी प्रतिनिधि रचनाओं का पाठ किया। इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ लघुकथाकार श्री भागीरथ परिहार ने की। मंच पर अतिथि थे सर्वश्री योगेन्द्र नाथ शुक्ल, पवन जैन, संतोष सुपेकर।

श्रीमती जया आर्य, सुषमा दुबे, सुषमा व्यास, पुष्परानी गर्ग, स्नेहलता, कोमल वाधवानी प्रेरणा, राम मुरत राही, कपिल शास्त्री, दीपा व्यास, आदि ने लघुकथा पाठ किया।

अपने उद्बोधन में श्री योगेंद्रनाथ शुक्ल, श्री पवन जैन, श्री भागीरथ परिहार ने पढ़ी गई लघुकथाओं के कथ्य शिल्प की समीक्षा की। इस सत्र का संचालन निधि जैन ने किया।

तृतीय सत्र नारी अस्मिता व लघुकथा लेखन पर मूल रूप से केंद्रित था। मुख्य अतिथि श्री सूर्यकांत नागर थे। सत्र अध्यक्षता श्री बलराम अग्रवाल ने की। डॉ पुरुषोत्तम दुबे, हीरालाल नागर, ज्योति जैन व वसुधा गाडगिल सत्र में अतिथि के रूप में मौजूद थे। इस सत्र का संचालन श्रीमती सीमा व्यास एवं वत्सला त्रिवेदी ने किया।

श्री सूर्यकांत नागर ने स्त्री पुरुष की संवेदना में भेद बताते हुए स्त्री विमर्श को आवश्यकता पर बल दिया।

श्री बलराम अग्रवाल ने कहा - साहस के साथ स्त्री अस्मिता व अधिकार की बात करने के लिए लेखन से बेहतर कोई माध्यम नहीं है, वेदो से लेकर अब तक स्त्री के विमर्श में गिरावट आई है और अब धीरे-धीरे स्थितियाँ बदली है, भारतीय साहित्य भाषा की मर्यादा के साथ आधुनिक विषय को विस्तार द्वारा सकते हैं।

श्री हीरालाल नागर ने अपने वक्तव्य में स्त्री विर्मश में लघुकथा की उपयोगिता व उसकी यात्रा पर प्रकाश डाला। डॉ पुरुषोत्तम दुबे ने लघुकथा के कालखंड व शिल्प पर चर्चा की। ज्योति जैन ने स्त्री अस्मिता पर कुछ लघुकथाओं के माध्यम से अपनी बात प्रभावी ढंग से प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि स्त्री और पुरुष की तुलना नहीं की जा सकती।

वसुधा गाडगिल ने अपने वक्तव्य में स्त्री के विविध स्वरूप पर लिखे जाने वाले साहित्य पर प्रकाश डाला। नवीन प्रतिमान नवीन विचार आज की आवश्यकता है।

आखिरी महत्वपूर्ण सत्र प्रश्न उत्तर सत्र व मुक्त संवाद व परिचर्चा का था जिसमें लघुकथा विधा से जुड़ी विभिन्न जिज्ञासा, दुविधा उसके कथा शिल्प व प्रभाव पर चर्चा हुई। सत्र की अध्यक्षता श्रीमध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के श्री राकेश शर्मा, संपादक वीणा पत्रिका ने की। मंच पर विभिन्न प्रश्नों का जवाब देने के लिए देश भर में लघुकथा की अलख जगाने के लिए निरंतर सक्रिय श्री सुकेश साहनी, श्री बलराम अग्रवाल, श्री श्याम सुंदर अग्रवाल व श्री ब्रजेश कानूनगो ने विभिन्न प्रश्नों का उचित समाधान करते हुए जवाब दिये। 

लघुकथा में शब्द सीमा क्या हो? लघुकथा व अंग्रेजी की शॉर्ट स्टोरी में क्या भेद है? लघुकथा में संवाद की भूमिका कितनी है? एक चरित्र पर आधारित लघुकथा को मान्य किया जायेगा? लघुकथा व कथा में क्या भेद है? लघुकथा के मापदंड क्या हैं? लघुकथा में व्यंग्य की भूमिका पर प्रश्न क्यों उठाये जाते हैं? लघुकथा में कथ्य का विकास कैसा हो? जैसे और कई प्रश्नों के जवाब देकर नव लेखकों, शोधर्थियों की जिज्ञासाओं का समाधान किया गया। सत्र का संचालन डॉ गरिमा संजय दुबे ने किया।

समूचे आयोजन के संदर्भ में, आयोजन में पधारे अतिथियों का उपस्थित लघुकथाकारों का एवं स्थानीय अतिथियों का, क्षितिज संस्था के सचिव श्री अशोक शर्मा भारती ने आभार व्यक्त किया।

इस आयोजन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि लघुकथा की रचना प्रक्रिया एवं विभिन्न विषयों पर लिखी जाने वाली लघुकथा पर चर्चा करने के साथ-साथ सार्थक लघुकथा पर चर्चा विशेष रुप से की गई। क्षितिज संस्था का प्रथम सम्मेलन लघुकथा की सजगता पर केंद्रित था और यह द्वितीय सम्मेलन लघुकथा की सार्थकता पर केंद्रित था।

श्री सतीश राठी 





सोमवार, 25 नवंबर 2019

लघुकथा समाचार | क्षितिज मंच द्वारा इंदौर में आयोजित अ. भा. लघुकथा सम्मेलन

दैनिक भास्कर | Nov 25, 2019.

कहानियां दवा पर लघुकथा इंजेक्शन हैं, फौरन असर करेंगी, बच्चों के पाठ्यक्रम में इन्हें शामिल कर हम जागरूक पीढ़ी तैयार कर सकेंगे


"लघुकथा जातीय भेदभाव, लिंगभेद, स्त्री पर अत्याचारों और साम्प्रदायिक हिंसा के खिलाफ किशोरों-युवाओं को प्रभावी ढंग से जागरूक कर सकती है। इसलिए देश के तमाम स्कूल-काॅलेज के पाठ्यक्रमों में श्रेष्ठ लघुकथाओं को शामिल किया जाना चाहिए। कहानी के मुकाबले लघुकथा इंजेक्शन की तरह फौरन असर करती है। आकार में लघु होने और बेहतर संप्रेषण के कारण ये ज्यादा असरदार साबित हुई हैं।' शुक्रवार को क्षितिज के अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन में साहित्यकार माधव नागदा संबोधित कर रहे थे। मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति में हुए सम्मेलन में कई सत्रों में वक्ताओं ने विचार रखे। 


सीप में मोती बनने की प्रक्रिया पीड़ादायक होती है, लघुकथाकार के मन में हो यह पीड़ा 

सुकेश साहनी ने कहा कि सीप में मोती बनने की प्रक्रिया बहुत पीड़ादायक होती है इसी तरह मन में लघुकथा बनने की प्रक्रिया भी पीड़ादायक होना चाहिए। जैसे मोती को निकालने के लिए नाज़ुक शल्य क्रिया होती है, उसी तरह लघुकथा को भी संवारना होता है। रचनायात्रा तपती रेत पर चलने के समान है और पुरस्कार मिलना शीतल छाया है। साहित्यकार श्यामसुंदर अग्रवाल ने कहा कि क्षितिज लघुकथा पत्रिका में पंजाबी लघुकथा पर एक लेख पढ़कर मैंने लघुकथा रचने को चुनौती की तरह लिया और खूब लिखा। आज पंजाब में 25 लघुकथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। नर्मदाप्रसाद उपाध्याय ने कहा कि लघुकथाकार दूसरे अनुशासनों में झांककर ही बेहतर लिख सकता है। दृष्टिसम्पन्न होकर ही पुनरावृत्ति के दोष और शिल्पगत वैविध्य के अभाव से मुक्त हुआ जा सकता है। कुणाल शर्मा ने भी संबोधित किया। दूसरे सत्र में 35 लघुकथाकारों ने पाठ किया। 

तीसरे सत्र में नारी अस्मिता और लघुकथा पर सूरीकांत नागर बलराम अग्रवाल, ज्योति जैन और वसुधा गाडगिल ने बातचीत की। आखरी सत्र कथा शिल्प और प्रभाव पर साहित्यकार राकेश शर्मा, सुकेश साहनी, बलराम अग्रवाल, श्याम सुंदर अग्रवाल और ब्रजेश कानूनगो ने सवालों के जवाब दिए। संचालन अंतरा करवेड़े, सीमा व्यास, निधि जैन और डॉ. गरिमा संजय दुबे ने किया। आभार सतीश राठी, पुरुषोत्तम दुबे ने माना। 

श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय को कला साहित्य सृजन सम्मान, श्री हीरालाल नागर को लघुकथा सम्मान, श्री श्याम सुंदर अग्रवाल को क्षितिज लघुकथा शिखर सेतु सम्मान 2019 हिंदी और पंजाबी भाषा में मिनी पत्रिका के माध्यम से सेतु का काम करने के संदर्भ में दिया गया है जबकि श्री सुकेश साहनी को क्षितिज लघुकथा शिखर सम्मान 2019 प्रदान किया गया है जो गत वर्ष श्री बलराम अग्रवाल को दिया गया था श्री माधव नागदा को क्षितिज लघुकथा समालोचना सम्मान 2019 प्रदान किया गया है गत वर्ष यह सम्मान श्री बीएल आच्छा को दिया गया था। श्री कुणाल शर्मा को क्षितिज लघुकथा नवलेखन सम्मान 2019 से सम्मानित किया गया है गत वर्ष यह सम्मान श्री कपिल शास्त्री को दिया गया था



Sources:
1. https://www.bhaskar.com/news/mp-news-stories-are-short-lived-injections-on-medicine-they-will-make-an-immediate-impact-by-including-them-in-the-curriculum-of-children-we-will-be-able-to-create-a-conscious-generation-075624-6019212.html

2. Shri Satish Rathi

Event in print media










Event Photographs









गुरुवार, 23 अगस्त 2018

लघुकथा समाचार

शहर में आज : दिल की आवाज़ भी सुन / लघुकथा संगोष्ठी
Dainik Bhaskar | Aug 23, 2018 | Indore

लघुकथा संगोष्ठी

समय : शाम 4 बजे से
कहां : लोकमान्य नगर
प्रवेश : सभी के लिए

डिटेल : लघुकथा संगोष्ठी में लघुकथाओं का पाठ होगा। क्षितिज की इस गोष्ठी में डॉ. वसुधा गाडगिल ,सतीश राठी, अंतरा करवडे, विनीता शर्मा, डॉ लीला मोरे, नयना कानिटकर, राममूरत राही, जितेंद्र गुप्ता, बी आर रामटेके, सुरेश बजाज, अखिलेश शर्मा, शारदा गुप्ता, ज्योति जैन, पदमा राजेंद्र, दीपा व्यास, अश्विनी कुमार दुबे, गरिमा दुबे, रश्मि वागले पाठ करेंगे। इसकी अध्यक्षता भोपाल की कथा लेखिका डॉ. मालती बसंत करेंगी।

News Source:
https://www.bhaskar.com/mp/indore/news/city-event-23-august-mp-5943386.html

सोमवार, 13 अगस्त 2018

लघुकथा समाचार (अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन की रिपोर्ट)

लघुकथा का महाकुंभ
क्षितिज द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन 
Lokayat | August 12, 2018 | Indore

कोई भी आयोजन अपने आप में एक सृजन होता है या कहें कि मंच पर दी जा रही किसी शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुति से इसकी बखूबी तुलना हो सकती है। कंठ कितना सुरीला था से लेकर वाद्यों के तार कितने सुरों में कसे थे, तबला या मृदंग की संगति हो या पाश्र्व से आती तानपूरे की तान, जब तक सब कुछ सही स्वर-लय में न हो, शुद्ध बेला का राग न चुना गया हो, कलाकारों में रियाज़ का तपा सोना न हो, तब तक मंच धन्य नही होता। इसमें बराबरी से सहयोग चाहिए होता है, गुणी श्रोताओं के हर तिहाई पर ताली बजा देने की बजाय क्लिष्ट और साधनापूर्वक प्राप्त की गई कला की बारीकियों को समझ सकंे। इसी के साथ जब बात साहित्य सम्मेलनों की होती है, तब अमूमन समानांतर सत्र, प्रसिद्ध लेखकों का सेलिब्रिटी अंदाज और कुछ पाने वालों की ओर तारीफें और चूक जाने वालों की ओर से इसे धन फूंकने जैसी उपमाओं का लंबा दौर चलता है। अंग्रेजी से परे जाकर सम्मेलन की बात सोचना, उसमें भी हिन्दी की किसी विधा विशेष पर केन्द्रित सम्मेलन की संकल्पना, तिस पर लघुकथा विधा को लेकर भारत भर के विद्वान, मनीषी, शब्द साधक, लेखक और विद्यार्थियों को जोड़कर उस पर मंथन, चिंतन और पोषण जैसे सुर लगाना वास्तव में किसी अप्रचलित राग को नामचीन मंच पर प्रस्तुत करने का जोखिम उठाने जैसा है , लेकिन वास्तविकता यह है कि इंदौर की प्रसिद्ध संस्था ‘क्षितिज ने न केवल यह अप्रचलित राग गाया-बजाया, इस पर संगति की, अपने साथ पाश्र्व स्वर के रूप में लेखकों, विद्वानों, विचारकों, आलोचकों की पूरी बिरादरी को मंच पर अपनी साधना प्रस्तुति के लिए आमंत्रित किया और सबने श्रवणीय, मधुर, अविस्मरणीय और अभूतपूर्व प्रस्तुतियां दीं। पिछले दिनों क्षितिज द्वारा अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन आयोजित किया गया। आयोजन की पाश्र्वभूमि में स्पष्ट उद्देश्य था-लघुकथा विधा को लेकर किये जा रहे संस्था के प्रयासों का रेखांकन, लघुकथा बिरादरी को एक छत के नीचे लाकर सार्थक चिंतन करना, जिससे विधा का विकास और पोषण सुनिश्चित किया जा सके, स्थापित रचनाकारों, आलोचकों और चिंतक के प्रति आदर भाव के साथ उनसे मार्गदर्शन पाकर इस विधा के साथ चल रहे लेखकों की नई पौध में ऊर्जा का संचार करना।

लघुकथा स्थापना के लिए भगीरथ के अनथक प्रयास और श्यामसुंदर दीप्ति की आभा काम करती रही
लघुकथा विधा पर इससे पहले भी अनेकानेक आयोजन होते रहे हैं। पंजाबी की पत्रिका ‘मिन्नी द्वारा छब्बीस वर्षों से गरिमामय रूप में किये गये कामों का इस विधा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसके अलावा अनेक संस्थान, समूह और व्यक्तिगत प्रयत्नों का आधार इस विधा की मजबूत इमारत को अपना स्वरूप दे पाने के लिए मौजूद रहा है।

क्षितिज के लघुकथा सम्मेलन को लेकर प्रारंभिक चर्चाओं के दौरान इसे कसावट भरा, अनुशासित, एकरसता से परे और सकारात्मक बनाने का लक्ष्य रहा। इसी के आधार पर पूर्व में सम्मेलनों के साक्षी और आयोजन में सहभागी रहे वरिष्ठों के मार्गदशर्न से यह यात्रा प्रारंभ हो सकी। तय समय में सुनिश्चित कामों को पूरा करते हुए जब आयोजन आकार लेने लगा, तब स्वाभाविक था कि कुछ यक्ष प्रश्न उभरे। इसमें उपस्थिति की सुनिश्चितता से लेकर अर्थ प्रबन्धन और आयोजन पर कूटनीति की आशंकाओं को लेकर भी सुगबुगाहटों का सामना संस्था ने किया, पर जब आप उदार सत्य के साथ होते हैं, तब हवा में छूटने वाले तीर भी आपसे बचकर निकलते हैं। इसी भाव पर ‘क्षितिज लघुकथा लेखकों को परिवार के रूप में मंच पर लाने में सफल रहा।

वरिष्ठ साहित्यकार सतीश राठी और 'मिन्नीÓ के संपादक श्यामसुंदर अग्रवाल की भूमिका भी महत्वपूर्ण
अनेक भावनात्मक, संवेदनशील और विचारात्मक मंथनों से गुणवत्ता जांच करने के बाद इस आयोजन के रूप को अंतिम आकार दिया गया। मेहमानों के साथ प्रतिभागियों को भी बेहतर सुविधा, सम्मान और अपनापन मिल सके, इस पर संस्था के सभी सदस्य एकमत रहे। इस तरह इन्दौर शहर की सांस्कृतिक विरासत को साक्षी मानते हुए अपने ही कुटुंब के किसी मांगलिक कार्य को पूरा करने का जिम्मा अपने-अपने मन में रखते हुए क्षितिज के सदस्य इस आयोजन के लिए तैयार थे।

प्रारंभिक स्वागत, निवास व्यवस्था, आहार आदि के आवश्यक पायदानों को पार करने के बाद माहेश्वरी भवन के मंच से मां सरस्वती के समक्ष जो दीप प्रज्वलित हुआ, उसका उजास दूर-दूर तक फैल गया। आयोजन का शुभारंभ ‘क्षितिज के स्तंभ पुरुष सतीश राठी द्वारा सभी के मध्य सम्मेलन की घोषणा, स्वागत और डॉ. पुरुषोत्तम दुबे को समारोह की कमान थमाकर किया गया। मंच पर श्रीमध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति, इन्दौर के प्रधानमंत्री प्रो. सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी की अध्यक्षता एवं वरिष्ठ कथाकार बलराम के मुख्य आतिथ्य में बलराम अग्रवाल, बी.एल. आच्छा, सतीशराज पुष्करणा, श्यामसुंदर दीप्ति और सूर्यकांत नागर की उपस्थिति में अत्यंत गरिमामय वातावरण निर्मित हुआ। मंचासीन अतिथियों द्वारा मां सरस्वती की मूर्ति पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन के साथ वर्षा टावरी द्वारा कर्णप्रिय सरस्वती वंदना की गई।

मंचासीन अतिथियों के यथोचित स्वागत के पश्चात मंच पर आयी प्रतिनिधि सृजन स्वरूप पुस्तकें, जिनकी उपस्थिति से उद्घाटन की बेला के भाल पर चटकीला कुमकुम और अक्षत लगाने जैसा सुखद दृश्य सामने आया। इस प्रतिष्ठित मंच से सर्वप्रथम विमोचित की गई स्मारिका ‘क्षितिज सफर पैंतीस बरस का, जिसमें ‘क्षितिज के पैंतीस बरस की यात्रा को संजोया गया है। इस सम्मेलन के प्रभावी और सफल हो जाने से अब यह स्मारिका अधिक उल्लेखनीय जान पड़ती है। इसके पश्चात ‘क्षितिज का ताजा अंक सभी लघुकथा प्रेमियों के समक्ष लोकार्पित किया गया। ‘क्षितिज के इस अंक में सन् 2011 से 2017 के बीच की लघुकथाओं को स्थान मिला है।

इसके पश्चात बलराम अग्रवाल की बहुचर्चित पुस्तक ‘परिंदों के दरमियां के विमोचन का साक्षी यह सभागार बना। उल्लेखनीय है कि इस पुस्तक में शामिल अनेक परिंदे सशरीर कार्यक्रम की शोभा बढ़ा रहे थे। इसके आगे मंच को समृद्ध किया रामकुमार घोटड़ की पुस्तक ‘स्मृति शेष लघुकथाकार ने। यह पुस्तक लघुकथा विधा को समृद्ध कर चुके, लेकिन अब हमारे बीच न रहने वाले लघुकथा लेखकों पर केन्द्रित है। इसके बाद मंच पर आया सभी के कौतुहल का विषय बन चुका लघुकथा टाइम्स। लघुकथा विधा के लिए एक मासिक अखबार का होना अपने आप में गौरव की बात है। कान्ताराय और मालती बसंत इसके संपादन में लंबी पारी खेलें, यह शुभकामना है। अपना प्रकाशन, भोपाल द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘ठहराव में सुख कहां(विजय जोशी), जो विमोचन की कड़ी में अगला मोती रहा। इसके बाद विमोचन हुआ अपनी कृति से सम्मेलन में उपस्थिति दर्ज कराने वाले लेखक जॉन मार्टिन की ‘सब खैरियत है (लघुकथा संग्रह) का। अगली कृति थी बांगला में लघुकथा अनुवाद का एक प्रयोग बनी ‘शिप्रा से गंगा तक (बांग्ला लघुकथा संकलन : संपादक- हीरालाल मिश्र)।

लघुकथा विधा को इन सभी कृतियों से संपन्न करने के पश्चात अब मौका था इस विधा को एक नया स्वरूप देने का, जिसके चलते मंचासीन अतिथियों को आयोजन स्थल के उस विशेष स्थान पर ले जाया गया, जहां पर कलाकार किशोर बागरे एवं युवा लघुकथाकार और कलाकर्मी अनघा जोगलेकर द्वारा सृजित किये गये लघुकथा पोस्टरों की प्रदर्शनी उद्घाटन की बाट जोह रही थी। दीप प्रज्ज्वलन, कलाकारों के स्वागत-सम्मान और बारीकी से पोस्टर प्रदर्शनी का अवलोकन करने और विधा को एक नया आयाम देने के लिए सभी उपस्थित जनों द्वारा कलाकार द्वय का अभिनंदन किया गया। महीनों की मेहनत, लंबी दूरी से इस स्थान तक की पोस्टर यात्रा, सृजन का अलहदा अन्दाज और विधा को लेकर समर्पण बरबस सभी का ध्यान खींच रहे थे।
इसके पश्चात पुस्तक प्रदर्शनी एवं बिक्री का स्टॉल सुसज्जित होकर अपने उद्घाटित होने की प्रतीक्षा में था। इसमें उपस्थित लघुकथा लेखकों और भारत भर के अनेक रचनाकारों की रचनाएं, पुरानी पत्रिकाएं, आयोजन में विमोचित होने वाली कृतियों समेत अनेकानेक पुस्तकें शामिल थीं। अतिथियों द्वारा यहां भी दीप प्रज्ज्वलन करने के साथ इस रचना संसार को अपने प्रिय पाठकों तक पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त किया गया।

इस उद्घाटन फेरी के पश्चात जब अतिथियों को मंच की ओर मोड़ा गया, तब वहां पर दृश्य कुछ और ही था। प्रोजेक्टर के साथ एक प्रशस्त स्क्रीन मंच की शोभा बढ़ा रही थी। यह समय था ‘क्षितिज और अनुध्वनि स्टूडियो की साझा दृश्य-श्रव्य प्रस्तुति ‘इन्दौर के क्षितिज पर लघुकथा वृत्तचित्र के प्रदर्शन का। तैंतीस मिनट के इस वृत्तचित्र में इन्दौर शहर, यहां की सांस्कृतिक विरासत, खान-पान व पोशाक संबंधी चलन के साथ ही परंपरा और सामाजिक रीति-रिवाज़ों, आतिथ्य तथा सौम्य स्नेह के माहौल का प्रभाव। लघुकथा विधा और इसके पोषण में शहर की भूमिका को साथ जोड़कर दिखाया गया था। ‘क्षितिज के लगभग सभी मील के पत्थर इसमें शामिल रहे। संस्था की लघुकथा यात्रा और सम्मेलन को लेकर उत्साह इस वृत्तचित्र के द्वारा सभी रचनाकारों तक आसानी से पहुंच रहा था। सदस्यों के अलावा अंतरा करवड़े द्वारा इसके निर्माण, लेखन और पाश्र्व स्वर के रूप में विशेष सहयोग दिया गया, जिसे उचित सराहना मिली।

इसके बाद सम्मेलन के मुख्य अतिथि लोकायत के प्रधान संपादक कथाकार बलराम ने उद्घाटन भाषण में खुशी जाहिर की कि साहित्य अकादेमी और दिल्ली की हिंदी अकादमी द्वारा लघुकथा को विधा की मान्यता देकर कथाकारों से लघुकथा पाठ की शुरुआत कर दी गई है। लघुकथा पाठ हेतु देश भर से प्रमुख लघुकथा लेखकों को आमंत्रित किया जा रहा है, जो लघुकथा की स्वीकार्यता के लिए मील के एक और पत्थर के समान है।
आगे उन्होंने कहा कि प्रेमचंद द्वारा इसे गद्य काव्य और कहानी के बीच की विधा कहा गया तो अज्ञेय ने इसे छोटी कहानी कहा। कुछ लोगों ने लघुकहानी और लघुव्यंग्य का राग भी अलापा, लेकिन अंत में लघुकथा नाम ही बचा। काव्यात्मक और कथात्मक लघुकथा लिखने वाले रचनाकारों की महत्वपूर्ण लघुकथाओं का उल्लेख करते हुए एक ओर बलराम ने चैतन्य त्रिवेदी के लघुकथा संग्रह ‘उल्लास का जिक्र किया तो दूसरी ओर यह भी कहा कि लघुकथा में गद्य और काव्य दोनों का समावेश स्वीकार्य है। लघुकथा लिखने के लिए भी परकाया प्रवेश आवश्यक है। लघुकथा यदि लघुकहानी-छोटी कहानी के रूप में भी आती है, तब भी कोई समस्या नहीं है।

बी.एल. आच्छा, बलराम अग्रवाल और अशोक भाटिया की लघुकथा आलोचना ने बड़ी जिम्मेदारी से खर-पतवार साफ किए तो विचार के महत्वपूर्ण मुद्दे भी उठाए।

नई पीढ़ी में दीपक मशाल, संध्या तिवारी, संतोष सुपेकर, अनघा जोगलेकर और शोभना श्याम की लघुकथा को दूर तक ले जाने की क्षमता पर बलराम ने आश्वस्ति व्यक्त की। साथ ही रमेश बतरा, सतीश दुबे, सुरेश शर्मा, जगदीप कश्यप और कुलदीप जैन आदि की लघुकथाएं पढ़े जाने की आवश्यकता पर जोर दिया। बलराम ने कहा कि लघुकथा को स्थापित किए जाने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वह तो पहले से ही स्थापित है। प्रेमचंद और परसाई जैसे सर्जक इसे पहले ही स्थापित कर चुके हैं। माधवराव सप्रे की ‘एक टोकरी भर मिटटी पहली लघुकथा है, जिसे कुछ लोग हिंदी की पहली कहानी कहते हैं।

बलराम ने बताया कि राजेंद्र यादव लघुकथा को विधा ही नहीं मानते थे, लेकिन उन्होंने भी अंतत: खाकसार के ‘भारतीय लघुकथा कोश की भूमिका लिखी और ‘हंस में लघुकथाओं को स्थान देने लगे। उन्होंनेे लघुकथा लेखकों को अन्य विधाओं की महत्वपूर्ण लेखकों की किताबें पढऩे और उन विधाओं में भी लिखने पर जोर दिया। अन्य विधाओं में स्थापित लेखकों-नरेंद्र कोहली, विष्णु नागर, चित्रा मुद्गल, सतीश दुबे, सुभाष नीरव, असगर वजाहत, सुरेश उनियाल, हरीश नवल, रामेरश्वर काम्बोज हिमांशु, नासिरा शर्मा और दामोदरदत्त दीक्षित आदि ने अन्य विधाओं में भी बहुत कुछ लिखने के साथ अनेक अच्छी लघुकथाएं भी हिंदी पाठकों को दी हैं।

इस अवसर पर अपने अध्यक्षीय संबोधन में श्रीमध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के प्रधानमंत्री सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी ने कहा कि कोई भी विधा छोटी नहीं होती। इसके रचनाकार ही इसे ऊंचाई तक ले जाते हैं। उन्होंने लघुकथा पर हो रहे अखिल भारतीय सम्मेलन के लिए अपनी शुभकामनाएं देते हुए इसे इंदौर शहर के लिए एक बड़ी उपलब्धि बताया।

प्रसिद्ध आलोचक बी.एल. आच्छा ने कहा कि लम्बे समय से लघुकथा विधा के लिए आवश्यक हो चुका इस प्रकार का आयोजन करने में ‘क्षितिज सफल हुआ है। इस सत्र के दौरान ही इन्दौर से संबद्ध और वर्तमान में अंबाला शहर में कहानी लेखन महाविद्यालय और शुभ तारिका पत्रिका का संपादन कर रही वरिष्ठ लेखिका उर्मि कृष्ण का सन्देश वाचन भी किया गया। इस सफल सत्र के समापन पर सभी मंचासीन अतिथियों को स्मृति चिन्ह से सम्मानित किया गया। आभार वसुधा गाडगिल ने ब्यक्त किया।

इस समय तक सभी आगंतुक लगभग घराती बन चुके थे। सभी लेखक, विद्वान, अतिथि और विचारक आपस में चर्चा करते हुए सहज ही आयोजन का एक भाग हो चले थे। अपनी निवास व्यवस्था से आश्वस्त होकर अब सभी प्रतिभागी वास्तविक तौर पर सम्मेलन से लघुकथा विधा को लेकर सारतत्व ग्रहण करने की स्थिति में आ चुके थे। भोजनावकाश के तुरंत बाद प्रारंभ हुआ नियत प्रथम चर्चा सत्र, जिसका विषय था, लघुकथा, कितनी पारम्परिक, कितनी आधुनिक (भाषा शिल्प, विषयवस्तु और शैली)। सारगर्भित विषय पर उतना ही समृद्ध बीज वक्तव्य प्रस्तुत किया प्रसिद्ध लघुकथा लेखक बलराम अग्रवाल ने।

उनके वक्तव्य का सार यह रहा कि साहित्य में हर विधा का अपना महत्व है। लघुकथा की यात्रा जारी रहनी
चाहिए। लघुकथा एक मजबूत विधा है। वर्तमान समय में लघुकथा विधा का महत्व बढ़ता जा रहा है। लघुकथा तो पूर्व से ही अस्तित्व में थी, लेकिन एक विधा के रूप में इसका विकास 20 वीं सदी में अधिक हुआ। प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, माखनलाल चतुर्वेदी, हरिशंकर परसाई, राजेंद्र यादव जैसे साहित्यकारों ने इस विधा में काम किया। लघुकथा में शीर्षक का बहुत महत्व है। शीर्षक ऐसा होना चाहिए, जो लघुकथा के अंत तक जिज्ञासा बनाए रखे। लघुकथा में शीर्षक एक खूंटी की तरह होता है, जिस पर पूरी लघुकथा लटकी रहती है। लघुकथा विधा हाथ मांजने की नहीं, मंजे हाथों की विधा है। लघुकथा का छोटा होना उसकी कमी नहीं है, बल्कि यह तो लघुकथा की ताकत है। जब तक आप कथाकार नहीं बनेंगे तब तक लघुकथाकार नहीं बन सकते हैं। प्रेमचंद का कहना था कि लघुकथा में कहानी और कथ्य दोनों ही होने चाहिए। कुछ साहित्यकारों का कहना है कि हमें लघुकथा को स्थापित करना है। मेरा मानना है कि लघुकथा तो पहले सेे स्थापित है।

इसके बाद चैतन्य त्रिवेदी ने मंच से अपने विचार साझा करते हुए कहा कि कोई भी विधा छोटी या बड़ी नहीं होती है। समकालीन सच्चाइयों के साथ चलते हुए लघुकथा लिखी जानी चाहिए। लघुकथा के अनेक विधान तय करने की वजह से लघुकथा पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पायी है। रचना की आलोचना किसी भी रचना को नकार नहीं सकती है। लघुकथा को नकारने या स्वीकारने का अधिकार सिर्फ पाठकों को है।

अगले वक्ता के रूप में पुरुषोत्तम दुबे द्वारा विचार व्यक्त किये गये। उनके मतानुसार वर्तमान समय में लघुकथा लेखन के क्षेत्र में लेखकों की संख्या में वृद्धि हुई है, लेकिन गिने-चुने लघुकथाकार ही सटीक और सार्थक लघुकथाएं लिख रहे हैं। परम्परा कभी मरती नहीं है, लेकिन परम्परा भी आधुनिकता के साथ कब तक खड़ी रहेगी? परिवर्तन की प्रक्रिया परम्परा की एक स्थिति है। आधुनिकता तो हर युग में रही है। इसके बाद इस सत्र में आमंत्रित लघुकथाकारों द्वारा लघुकथाओं का वाचन किया गया। कपिल शास्त्री ने ‘पंगत, नयना कानिटकर ने ‘बापू का भात, शोभना श्याम ने ‘इंसानियत का स्वाद, मधूलिका सक्सेना ने ‘अगली पीढ़ी, मधु जैन ने ‘अंतिम पंक्ति, डॉ. लीला मोरे धुलधोए ने ‘श्रवण कुमार, डॉ. मालती बसंत ने ‘भाग्यशाली, कविता वर्मा ने ‘नालायक और अंतरा करवड़े ने ‘शाश्वत का पाठ किया। इन लघुकथाओं की समीक्षा श्यामसुंदर दीप्ति एवं संतोष सुपेकर ने की। इस सत्र का संचालन ज्योति जैन ने किया।

इसके पश्चात आयोजन अपनी परिपक्वता को परिलक्षित कर चुका था और यह स्पष्ट रूप से महसूस किया जा रहा था कि जिस प्रकार से इसकी रूपरेखा तैयार की गई थी और अब तक जिस अनुशासनबद्ध तरीके से संचालन जारी है, इसमें सभी का बिना शर्त सहयोग मिलेगा और आगे चलकर यह तथ्य सत्य सिद्ध हुआ।

पोस्टर प्रदर्शनी और पुस्तक प्रदर्शनी के कार्यकर्ता एक बार फिर से थोड़े व्यस्त हो चले थे और फिर मंच पर वरिष्ठ साहित्यकार ब्रजेश कानूनगो ने समय पर कमान संभाल ली। अगले सत्र का विषय था ‘हिन्दी लघुकथा : बुनावट और प्रयोगशीलता। बीज वक्तव्य में प्रख्यात लघुकथाकार और समीक्षक अशोक भाटिया ने कहा कि लघुकथा के साथ पात्रों की वेशभूषा, चाल-ढाल, भाषा आदि देशकाल और वातावरण के अनुरूप होनी चाहिए। वातावरण और देशकाल का सीमित अंश लेकर ही लघुकथा में गहराई पैदा की जा सकती है। आगे उन्होंने कहा कि संकेतात्मक ढंग से लिखी गयी लघुकथा विशिष्ट प्रभाव उत्पन्न करती हैं। लघुकथाओं में विषय तो वही है आयाम अलग-अलग हो सकते हैं। एक विषय पर अनेक आयामों से लघुकथाएं लिखी जा सकती हैं। नये लघुकथाकारों को अपने अध्ययन का दायरा बढ़ाना होगा। अपने संकट को नहीं पहचान पाना ही सबसे बड़ा संकट हैं। हम घटनाओं की गुलामी करना कब छोड़ेंगे? अपने में सामथ्र्य पैदा करने की आवश्यकता है। लघुकथा में लघुकथा का प्रबंध ही लघुकथा की आत्मा है। कम शब्दों में अधिक कहने की प्रवृत्ति होनी चाहिए।

इसके बाद मंच पर पधारे योगराज प्रभाकर। उन्होंने अपने सारगर्भित वक्तव्य में कहा कि कथ्य व कथा का आपस में गहरा संबंध है। कथ्य के बिना कथा कोरी कल्पना है। कथा कथ्य से गुजऱती है। कथा लेखक का चिंतन होती है, जिसे वह कथ्य के माध्यम से अभिव्यक्त करता है। लघुकथा को नये विषयों और नये दृष्टिकोण की तलाश है। लघुकथा को विषयों की पुनरावृत्ति से बचना चाहिए। लघुकथा में रोचकता होनी चाहिए। इसके बाद सिद्धहस्त लघुकथाकार सीमा जैन ने मंच सम्हाला और विषय को आगे बढ़ाते हुए कहा कि हम मौलिक तो बने रहें, लेकिन साथ में नये-नये प्रयोग भी करते रहें, क्योंकि प्रयोग के बिना जीवन अधूरा है। प्रयोग से ही नदी की नई धारा बनेगी।

विद्वानों द्वारा अपने विचार साझा करने के पश्चात इस सत्र में आमंत्रित लघुकथाकारों द्वारा लघुकथाओं का वाचन किया गया। डॉ. रंजना शर्मा ने ‘ममत्व, सीमा भाटिया ने ‘आईना बोल उठा, कोमल वाधवानी ने ‘खाली थाल, उषा लाल मंगल ने ‘संस्कार, सविता मिश्रा ने ‘श्वास, वर्षा ढोबले ने ‘ढोल, संध्या तिवारी ने ‘चिडिय़ा उड़, मनोज सेवलकर ने ‘नियति और पवन जैन ने ‘वैवाहिक' लघुकथा का पाठ किया। इन लघुकथाओं की समीक्षा अश्विनीकुमार दुबे एवं राजेंद्र वामन द्वारा की गई। इस सत्र को बेहतरीन संचालन से ब्रजेश कानूनगो ने संवारा।
चाय के एक और सत्र के बाद जो आवश्यक था, क्योंकि मौसम करवट बदल रहा था और सत्रों के मध्य अनुशासन के चलते फेसबुक पर ही मित्र के रूप में चेहरा देखने वाले अनेक प्रतिभागी एक-दूसरे से रूबरू भी होना चाह रहे थे। तुरंत कविता वर्मा ने अनुशासनप्रिय लहजे में मंच पर आमद दर्ज की।

इस सत्र का विषय था-लघुकथा आलोचना, मापदंड और अपेक्षाएं। अपने बीज वक्तव्य में प्रसिद्ध लघुकथा आलोचक बी.एल.आच्छा ने विचार व्यक्त किये। उन्होंने ‘लघुकथा आलोचना, मापदंड और अपेक्षाएं विषय पर अपने विचार रखते हुए कहा कि वर्तमान समय में कई बेहतरीन कथाकार श्रेष्ठ लघुकथाएँ लिख रहे हैं। लघुकथा को लाउड होने से बचाने की जरूरत है। आज के समय में लघुकथाकार समाज में आए हर एक बदलाव को अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रहा है। वह संकटों को पहचान भी रहा है और अपनी प्रयोगशीलता से वैविध्यपूर्ण ढंग से लघुकथा में अभिव्यक्त कर रहा हैं। समकालीन लघुकथा अपनी लोकप्रियता के शीर्ष पर है।
उन्होंने अपने वक्तव्य में लघुकथाकारों से कहा कि नये विषयों की ओर जाएं और जासूसी करें। जिस शब्द को लघुकथा में लिख रहे हैं, उसकी ताकत क्या है यह पहचाने। वर्तमान समय में हर जगह बाजारीकरण आ गया है, बाजार मनोविज्ञान के रूप में भी सामने आता है, जिसे समझे जाने की आवश्यकता है। सूर्यकांत नागर ने कहा कि जब भी साहित्य का मूल्यांकन हो, उसे विश्वसनीय होना चाहिए। लघुकथा की समीक्षा में प्रशंसा अधिक और आलोचना कम होती है। आलोचना रचना का सफर तय करती है। आलोचक तभी न्याय कर सकता है, जब वह रचनाकार की पीर को समझे। काशीनाथ सिंह का कथन है कि आलोचना भी रचना है। कई लघुकथाएं सांकेतिक और बौद्धिक होती हैं, पर इनमें भी कथानक में प्रासंगिकता होनी चाहिए। कथानक में यथार्थ का होना आवश्यक है।

विषय को आगे बढ़ाते हुए मूर्धन्य लघुकथाकार भगीरथ परिहार ने कहा कि आलोचना अलग-अलग रूपों में होती है। पाठक आलोचना नहीं पढ़ता। रचना सार्थक या निरर्थक है, पाठक ही बता सकता है। आलोचना शोधार्थी के लिए सार्थक है और कुछ हद तक लेखक के आगे होने वाले सृजन के लिए मार्गदर्शन है। लघुकथा एक सुगठित विधा है, वह कसी हुई होनी चाहिए। उसमें अनावश्यक विस्तार नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह लघुकथा के सौंदर्य में रुकावट डालता है। लघुकथा में उपसंहार नहीं होना चाहिए और जो घटनाएं ले रहे हैं, वे संक्षिप्त होनी चाहिए। लघुकथा में छोटे वाक्य अधिक आकर्षक होते हैं। लघुकथा में कथ्य सशक्त होना चाहिए और वह अभिव्यंजनात्मक और सटीक हो। लघुकथा की वर्तमान स्थिति ठीक नहीं और आलोचना का अर्थ सबको खुश करना नहीं है।

यह सत्र अत्यंत सारगर्भित, विषयानुरूप और सफल रहा। मौसम की परिस्थिति और समय को देखते हुए तय किया गया कि इस सत्र के लघुकथा वाचन और समीक्षा सत्र को अगले दिन सुबह रखा जाए। इसके बाद मंच पर अवतरित हुआ रंगकर्म को समर्पित समूह ‘पथिक। प्रसिद्ध कथाकार एवं रंगकर्मी नंदकिशोर बर्वे के नेतृत्व में व निदेर्शक श्री सतीश श्रोती के कुशल मार्गदर्शन में कलाकारों द्वारा मंच पर लघुकथा विधा को अभिनय से साकार रूप दिया गया। इस दौरान कलाकारों की तैयारी, विषय चयन, अभिनय में कम से कम वस्तुओं के उपयोग से भी कलाकारों द्वारा आश्चर्यजनक सत्रह प्रस्तुतियां दी गईं। ‘मुखौटे शीर्षक से प्रस्तुत यह कला अभिव्यक्ति रंगकर्म और लघुकथा विधा के मध्य एक सेतु के समान प्रभाव छोड़ गई। व्यावसायिक रंगकर्म के प्रदर्शनों के समान न तो यहां पर नेपथ्य था, न प्रकाश व्यवस्था और न ही मूलभूत सुविधाएं। इसके आगे मौसम की मार के चलते बिजली भी नदारद, परंतु वीडियो कैमरा की बैटरी का प्रकाश भी इन कलाकारों के लिए किसी प्रकाश स्तंभ से कम न था। उन्होंने अपना प्रदर्शन जारी रखा और दर्शकों की वाहवाही लूट ले गये।

प्रथम दिवस अनेकानेक आयोजनों का सम्मिश्र प्रभाव प्रतिभागियों और विद्वानों पर छोडऩे में कामयाब रहा। नाटक प्रदर्शन के पश्चात आयोजन स्थल पर बिजली की आमद के चलते सभी सुस्वादु भोजन के साथ दिन भर के आयोजन, बीते समय के संपर्क और नवीन मित्रता के विविध झूलों पर झूलते, इन्दौर में मानसून की आमद दशार्ती आद्र्र हवाओं का आनंद ले रहे थे।

जहां पोस्टर प्रदर्शनी सभी के लिए बेहतर प्रकाश और रोचकता के कारण फोटो और सेल्फी का अधिकृत स्थान बन चुकी थी, वहीं सभी प्रतिभागी और आमंत्रितों के मध्य मंच सज्जा में उपयोग किये गये मालवी सजावट के मांडणा, सूप, पंखी और जूट के प्रभाव व इसके कारण उत्पन्न हो चुके गरिमामय उत्साह की भी खासी चर्चा रही। अस्सी फुट की जूट की दीवार को जहां पोस्टर प्रदर्शनी के लिये विशेष रूप से तैयार किया गया था, वहीं पुस्तक प्रदर्शनी भी जूट और मांडणा के खूबसूरत संयोजन से दर्शनीय थी। प्रवेश द्वार और मंच की सज्जा विशेष रूप से पर्यावरण मित्र प्रकार के सामान से की गई थी, जिसका पूरा जिम्मा संस्कृतिकर्मी भगिनी द्वय भारती-आरती सरवटे और उनके समूह द्वारा उठाया गया था। इस खुशनुमा वातावरण में, अगले दिन के लिए स्वयं को और बेहतर तरीके से तैयार करने का वादा करते कुछ प्रतिभागी अपने कमरों को चल दिये तो कुछ ने मित्रता सत्र पूरे किये, कहीं सुमधुर गीतों की बानगियां बिखरीं तो कहीं पहले की मित्रता और भी मजबूत हो गई।

सम्मेलन का दूसरा दिन तय कार्यक्रम और समय से पूर्व शुरू किया गया। पूर्व संध्या पर आखिरी सत्र के दौरान लघुकथा वाचन और समीक्षा के सत्र इस समय के लिए तय किये गये थे, प्रतिभागी अनुशासन के साथ मंच पर अपनी प्रस्तुतियां देने को तत्पर दिखे। इस सत्र में कल्पना भट्ट ने ‘धरती पुत्र, अनघा जोगलेकर ने ‘जज्बा, कुमकुम गुप्ता ने ‘फूलों का झरना, सेवा सदन प्रसाद ने ‘बेशर्मी, शेख शहजाद उस्मानी ने ‘भूख की सेल्फी, मधु सक्सेना ने ‘माँ ही तो हैं ना, नीना सोलंकी ने ‘पछतावा, आशा सिन्हा कपूर ने ‘प्रीत पराई, अनन्या गौड़ ने ‘शक्ति और गरिमा संजय दुबे ने ‘घर की मुर्गी लघुकथाओं का पाठ किया, जिनकी समीक्षा मालती बसंत और सतीश राठी ने की। संचालन कविता वर्मा ने किया।

सत्र के पूर्ण होने तक सम्मान सत्र हेतु आमंत्रित अतिथि सभागार में अपना स्थान ग्रहण कर चुके थे। यह वह प्रमुख सत्र था, जिसके इर्द-गिर्द लघुकथा सम्मेलन की संकल्पना को बुना गया था। समय था, लघुकथा को लेकर अपने समर्पण के चलते विधा को विस्तार और विकास देते चुनिंदा सर्जकों का सम्मान।

इस अवसर पर अध्यक्ष के रूप में मंचासीन रहे डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा (कुलानुशासक, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन), मुख्य अतिथि के रूप में बलराम (कथाकार और ‘लोकायत के संपादक), विशेष अतिथि के रूप में श्रीराम दवे (कार्यकारी संपादक ‘समावर्तन,उज्जैन) और राकेश शर्मा (संपादक वीणा, इंदौर)। सभी ने मां सरस्वती की मूर्ति पर माल्यार्पण और दीप प्रज्जवलन किया। मां शारदा की वंदना और संपूर्ण आयोजन के लिए शुभाशीर्वाद स्वरूप महेन्द्र पंडित द्वारा स्वस्ति वाचन करते हुए मंचासीन तथा उपस्थित जनों को आशीर्वाद दिया गया।

‘क्षितिज के विविध पदाधिकारियों द्वारा इस दौरान मंचासीन अतिथियों का स्वागत किया गया। इसके पश्चात प्रारंभ हुआ, लघुकथा लेखकों को सम्मानित करने का सिलसिला। प्रमुख सम्मानों से लेकर प्रतिभागी सम्मान तक कार्यक्रम में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहयोगियों से लेकर व्यवस्थापकों तक, सभी को ‘क्षितिज ने आतिथ्य की छांव में सहेजा।

शुरुआत हुई कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा द्वारा ‘क्षितिज लघुकथा शिखर सम्मान 2018 बलराम अग्रवाल, दिल्ली को लघुकथा के क्षेत्र में उनके समग्र अवदान के लिए प्रदान किया गया। तालियों की गडग़ड़ाहट के मध्य पुष्पगुच्छ, शाल, अंगवस्त्र, स्मृति चिन्ह, श्रीफल और नकद राशि जब बलराम अग्रवाल को अर्पित की जा रही थी, तब उनके मुखमंडल पर थी विधा की गरिमा और ‘क्षितिज के हर सदस्य के मुख पर थी सौजन्यशीलता। सभी मंचासीन अतिथि भी इस क्षण के साक्षी होकर धन्य हुए।

‘क्षितिज लघुकथा समालोचना सम्मान 2018 आलोचना के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए बी.एल. आच्छा, चेन्नई को प्रदान किया गया। मूलत: उज्जैन के निवासी आच्छा वर्तमान में चेन्नई में निवास करते हैं। उनके प्रत्येक शब्द, कृति और व्यवहार में आज भी यहीं का सोंधापन मिलता है। यही असर उनकी आलोचना और नवीन पीढ़ी को अपनेपन से आगे ले जाने के जज़्बे में दिखाई देता है। अपनी परिपक्वता का परिचय देते हुए अपने मार्गदर्शन का मुक्त हस्त से वितरण पूरे आयोजन के दौरान किया। इस सम्मान के दौरान जाने माने लघुकथाकार स्व. श्री सुरेश शर्मा के परिवार से वर्षा शर्मा द्वारा मंच पर उपस्थिति दर्ज करवाई गई। उल्लेखनीय है कि इस पुरस्कार की नकद राशि का सौजन्य ‘क्षितिज को इसी परिवार से प्राप्त हुआ।

इसके पश्चात तालियों की गडग़ड़ाहट के मध्य कथाकार बलराम (दिल्ली) को ‘क्षितिज लघुकथा विशिष्ट सम्मान और सतीश दुबे की स्मृति में ‘क्षितिज नवलेखन पुरस्कार 2018 भोपाल के युवा लघुकथाकार कपिल शास्त्री को प्रदान किया गया। मंच पर अपनी पत्नी आभा शास्त्री के साथ अपने अनोखे अंदाज में उपस्थित कपिल को नवलेखन पुरस्कार प्रदान किये जाने के दौरान लघुकथाकार स्व. सतीश दुबे के सुपुत्र परेश दुबे मंच पर उपस्थित थे। इस पुरस्कार की नकद राशि उनके परिवार द्वारा प्रदान की गई।

इसी के साथ ‘क्षितिज लघुकथा कला सम्मान संदीप राशिनकर और नंदकिशोर बर्वे को दिया गया। ‘दैनिक भास्कर के पत्रकार रवीन्द्र व्यास को उनके योगदान के लिए ‘क्षितिज साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान-2018 से नवाजा गया। शाल, श्रीफल, प्रशस्ति पत्र और स्मृति चिन्ह से इन विभूतियों को सम्मानित किया गया।
इसके साथ योगराज प्रभाकर, सतीशराज पुष्करणा, भगीरथ परिहार, सुभाष नीरव, अशोक भाटिया, कांता रॉय को ‘लघुकथा विशिष्ट सम्मान दिया गया। अनघा जोगलेकर और किशोर बागरे को उनके बनाये पोस्टर और चित्रकारी के लिए ‘क्षितिज कला सम्मान से सम्मानित किया गया। उल्लेखनीय है कि सम्मान के समय क्षितिज संस्था के सदस्यों द्वारा सम्मानित लघुकथाकारों का परिचय एवं उनके द्वारा साहित्य में किए गये योगदान के लिये अभिनंदन पत्र का वाचन किया गया। सम्मान के समय सभी सहभागियों ने अपने स्थान पर खड़े होकर करतल ध्वनि से सम्मानित अतिथियों का अभिनंदन किया।

इस दौरान सभी सम्मानित लघुकथाकारों और कलाकारों की ओर से प्रातिनिधिक उद्बोधन देते हुए बलराम अग्रवाल ने कहा कि साहित्य का मूल कर्म जिज्ञासा पैदा करना है। परकाया प्रवेश कर लेखक वह कर सकता है, जो वह करना चाहता है। लघुकथा की छोटी काया है, उसमें और संकोचन नहीं हो सकता। लेखन व्यवसाय नहीं, व्यसन है। अग्रवाल के भावुक उद्बोधन की सब लोगों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की। कार्यक्रम के दौरान कुछ और बेहतरीन कृतियां इस मंच से पाठकों के मध्य विमोचन के द्वारा पहुंचीं। इनमें सर्वप्रथम था अनघा जोगलेकर का उपन्यास ‘अश्वत्थामा। अनघा ने इस अवसर पर उपन्यास के पीछे अपनी सोच और अवधारणा को स्पष्ट किया।

श्याम सुन्दर दीप्ति के नेतृत्व वाली पंजाबी पत्रिका ‘मिन्नी का अंक भी पाठकों के मध्य प्रस्तुत किया गया। इसके साथ ही विविध भाषाओं में अपना सुवास फैलाती लघुकथा का एक लघु स्वरूप ‘भाषा सखी के रूप में विमोचित हुआ। इसमें अंतरा करवड़े और वसुधा गाडगिल द्वारा महत्वपूर्ण लघुकथा हस्ताक्षरों की चुनिंदा हिन्दी लघुकथाओं को मराठी अनुवाद के साथ प्रस्तुत किया गया है। इस प्रकार इस आयोजन में बांग्ला, पंजाबी और मराठी भाषा तक लघुकथा का जगमग प्रकाश फैल गया।

इसके पश्चात प्रारंभ हुआ लघुकथाकार प्रतिभागियों, ‘क्षितिज के कार्यकर्ताओं, मूर्धन्य साहित्यकारों और कार्यक्रम के लिए प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष मदद करने वाले विविध का सम्मान। उल्लेखनीय है कि सभी लघुकथाकारों द्वारा इस विशेष अवसर के लिए संक्षिप्त परिचय अग्रिम प्राप्त किये गए थे, ताकि वे भी इस गरिमामय समारोह के दौरान अपनी पहचान सभी के समक्ष बना सकें। इस सत्र में अनेक साहित्यकार और लघुकथाकार उपस्थित थे। इसके अलावा कार्यक्रम में सहयोग हेतु विविध व्यक्तियों का सम्मान इस दौरान किया गया, जिनमें प्रमुख हैं, ललित समतानी, दौलतराम आवतानी और राधेश्याम मन्डोवरा

शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि लघुकथा को आंदोलनधर्मिता से नव विमर्श तक ले जाने में ‘क्षितिज का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसके संस्थापक-अध्यक्ष वरिष्ठ कथाकार सतीश राठी ने कई वर्षों पहले खुली आंखों से लघुकथा सर्जकों के संगम का जो सपना देखा था, वह इस अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन के माध्यम से साकार हुआ। बयान दर्ज करते समय रचनाकार का संवेदनशील होना जरूरी है। जब हम घंटा बजाते हैं तो उसकी गूँज लंबे समय तक रहती है। इसी प्रकार हमारी रचना इस प्रकार की होनी चाहिए कि वह पाठकों के दिल को झिंझोड़कर रख दे और वह उन्हें लंबे समय तक याद रहे। अधिकांश लघुकथाकार मध्य वर्ग से आते हंै। इसलिए उन्हें अपनी सोच का दायरा बढ़ाना होगा। कथाकार भी ईश्वर के समांतर शिल्पी है। कुछ लघुकथाकारों ने प्रयोग किए हैं, पर अब कथाएँ खास पैटर्न पर लिखी जा रही हैं।

फार्मूलाबद्ध लेखन से मुक्त होने की जरूरत पर बल देते हुए शैलेंद्र ने कहा कि समाज में बदलते हुए यथार्थ लेखकों को अपनी प्रयोगधर्मिता में स्थान देना होगा। तभी लघुकथा एक मजबूत विधा के रूप में स्थापित हो सकेगी। लघुकथा में मशीनीकृत संवेदनाओं का चित्रण न हो, बल्कि मानवीय संवेदनाओं का यथार्थ चित्रण हो। लघुकथा में मानवीय संवेदनाओं से जुड़ाव न हो तो उसका प्रभाव ही खत्म हो जाता है।

इस अवसर पर विशेष अतिथि श्रीराम दवे (कार्यकारी संपादक ‘समावर्तन) ने अपने वक्तव्य में कहा कि लघुकथाओं का निष्पक्ष आकलन होना आवश्यक है। इस सदी में लघुकथा विधा और आगे विकास करेगी। इस विधा का भविष्य उज्जवल है।

विशेष अतिथि राकेश शर्मा (संपादक ‘वीणा, इंदौर) ने अपने वक्तव्य में कहा कि इंदौर लघुकथाकारों का शहर है। लिखना आसान काम नहीं है। आजकल नये लेखकों की पठनीयता समाप्त हो रही है। यदि उन्हें सार्थक लघुकथा लिखनी है तो उन्हें अधिक पढऩा होगा।

गरिमामय सम्मान के साथ संपन्न यह सत्र लघुकथा विधा के विकास में एक नवीन पृष्ठ जोड़ गया। विधा को लेकर सम्मान, अनुशासन और प्रबन्धन इस सत्र की खासियत रही। कहीं से भी बधाइयों में कंजूसी नही दिखी, वरिष्ठों द्वारा अपरिमित स्नेह लुटाया गया और उनकी आंखों में आने वाली पीढ़ी को लेकर विश्वास की जो चमक दिख रही थी, वह किसी भी सम्मान से परे है। अन्त में श्री ब्रजेश कानूनगो ने आभार प्रदर्शन किया। सत्र का संचालन अंतरा करवड़े ने किया।

एक बार फिर भोजन का स्नेहिल आमंत्रण सभी को एकत्र चर्चा का अवसर दे गया। अब तक आयोजन अपने चरम पर पहुंच चुका था और इसमें दो राय नहीं कि अब तक यदि सब कुछ अपेक्षित हुआ, तो आगे के सत्र भी इसी राह पर होंगे। एक दिन पहले के वृत्तचित्र का असर था या ‘क्षितिज की महिला मेजबानों द्वारा तय स्वरूप में धारण की गई माहेश्वरी साड़ी, अनेक महिला प्रतिभागी आने वाले सत्र से प्राप्त होने वाली विधा संबंधी जानकारी और इंदौर में खरीदारी, इन दोनो ंपलड़ों में झूल रहे थे। सम्मान प्राप्त शब्द साधकों के आसपास बधाइयां देते शुभचिन्तक और उनके साथ इस क्षण को कैमरे में कैद कर लेने की होड़ के कारण भोजन में हो रहा विलंब भी खला नहीं।

अगले सत्र की संचालिका गरिमा संजय दुबे मंच पर स्थान ग्रहण कर चुकी थीं। इस सत्र का विषय था- ‘लघुकथा लोकप्रियता और गुणवत्ता के बीच अन्तर्सम्बन्ध एवं पाठकों के मध्य सेतु निर्माण। बीज वक्तव्य देते हुए वरिष्ठ कथाकार बलराम ने लघुकथा के विविध आयामों पर अपने दृष्टिकोण से लघुकथाकारों को अवगत कराया कि पहली लघुकथा माधवराव सप्रे की ‘एक टोकरी भर मिट्टी मानी जाती है। हालांकि उस समय इसे लघुकथा का दर्जा नहीं दिया गया था। इसे छोटी कहानी कहा गया था। फिर धीरे-धीरे लघुकथा को मान्यता मिली। आज लघुकथा विधा को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।

उन्होंने आगे कहा कि नये लघुकथाकारों को बहुत पढऩा होगा। आपके पास भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों की किताबें होंगी तो उन्हें बस छू भर लेने से ही आप तर जाएंगे। कला की साधना से ही आप प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकते हैं। जब तक आपकी रचना कलात्मक ऊंचाइयों को नहीं छूती, तब तक आपको प्रतिष्ठा भले ही मिल जाए, लेकिन उसका कोई अर्थ नहीं है। वीणा के तार तो हमारे ह्रदय से ही निकलते हैं। लघुकथा में सौंदर्य होना चाहिए। सौंदर्य और कला से ही आपकी रचना में निखार आ सकता है। अपने आपमें अपना आलोचक पैदा करें। आलोचना से ही आपका विकास होगा। यदि आप लघुकथा लिखते हैं तो इसे स्वीकारने में शर्म कैसी? लघुकथा लेखन केवल शौक पूर्ति का माध्यम नहीं है। साहित्य पठन-लेखन व्यसन है।

संध्या तिवारी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि हमारे समकालीन लघुकथाकार बहुत अच्छा और विविध विषयों पर लिखते हुए संवेदनाओं के जरिये पाठकों से जुड़ रहे हैं। लघुकथाकारों को हीन भावना से ग्रस्त नहीं होना चाहिए। यह लघुकथा का विकास काल है और इन दिनों बेहतरीन लघुकथाएं लिखी जा रही हैं।

दूसरे वक्ता और समीक्षक सतीश राठी ने कहा कि यदि लघुकथा के संप्रेषण में भोथरापन है तो वह पाठकों से सेतु नहीं बना सकती। तुलसी की चौपाइयां अनपढ़ व्यक्ति भी सुनाता है और यही उसकी लोकप्रियता है, गुणवत्ता है, जो पाठकों से उसका संबंध स्थापित करता है। इसके पश्चात लघुकथाकारों द्वारा लघुकथा पाठ किया गया। विजय जोशी शीतांशु ने ‘बोलती खामोशी, सीमा जैन ने ‘इंद्रधनुष, श्यामसुंदर दीप्ति ने ‘ताजी हवा, राजेंद्र वामन काटदरे ने ‘अंधेरे के खिलाफ, जया आर्य ने ‘माँ है ये, ओजेंद्र तिवारी ने ‘श्रम की पुकार, पद्मा राजेंद्र ने ‘मातृधन, भीमराव रामटेके ने ‘नंबर वन, डॉ. अखिलेश शर्मा ने ‘आसमानी साजिश और वसुधा गाडगिल ने ‘फफाका लघुकथा का पाठ किया। इन लघुकथाओं की समीक्षा सतीशराज पुष्करणा एवं ज्योति जैन ने की। सत्र का संचालन गरिमा दुबे ने किया। इस समय तक लघुकथा का यह आयोजन स्थानीय मीडिया में भी अपनी छाप छोड़ चुका था। पहले दिन की रिपोर्ट और आज के दिन के लिये साक्षात्कार आदि के दौर चल रहे थे। चाय और नाश्ते के साथ ही सबकी चर्चाएं आयोजन की विविधता


News Source:
http://www.lokayatindia.com/%E0%A4%B2%E0%A4%98%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%AD/