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सोमवार, 25 फ़रवरी 2019

ईबुक - लघुकथा संग्रह - मैं सृष्टि हूं - लीला तिवानी



लघुकथा: शक : डॉ.सरला सिंह


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नेहा कॉलेज से घर आकर अपना बैग रखकर जैसे ही घूमती है, उसे ऐसा लगा उसके पिता की क्रोध से धधकती आँखें मानों उसे खा ही जायेंगी। वह कुछ समझ पाती कि चटाक-चटाक दो चाँटे उसके गाल पर पड़ गये। वह बदहवास सी खड़ी रह गयी।

शोर सुनकर माँ दौड़ी हुई वहाँ आयी,"अरे क्या हुआ,पागल तो नहीं हो गये हो! लड़की पढ़कर आ रही है और तुम उसे मारने लगे।"

"इसका दुपट्टा देखो, नया है, इसको कहाँ से मिला? जरूर किसी ने इसे ...।" पिता  अपने  शक की आग में झुलसे जा रहे थे।

"चुप रहो! मेरी लड़की ऐसी नहीं है, ना ही कभी होगी। मेरे खानदान में ऐसा कभी नहीं हुआ है।" नेहा की माँ उसके पिता को झिड़कते हुए बोली। 

"माँ मुझे ये दुपट्टा मेरी सहेली ने दिया है। चाहे तो उससे पूछ लो, उसके पास यह फालतू था और उसने मुझे दे दिया।" नेहा ने सारी बात माँ को बता दी। 

लेकिन फिर भी घर में पूरे दिन कलह जारी रहा। दूसरे दिन नेहा ने वह दुपट्टा अपनी सहेली को वापस कर दिया और वही पुराना सिला हुआ दुपट्टा ओढ़कर जाने लगी।

डॉ.सरला सिंह
दिल्ली

बुधवार, 20 फ़रवरी 2019

"लघुकथा कलश" के चौथे अंक (जुलाई-दिसम्बर 2019) हेतु रचनाएँ आमंत्रित

श्री योगराज प्रभाकर जी की फेसबुक वॉल से 

आदरणीय साथिओ
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"लघुकथा कलश" का चौथा अंक (जुलाई-दिसम्बर 2019) "रचना प्रक्रिया विशेषांक" होगा जिस हेतु रचनाएँ आमंत्रित हैंI आपसे सविनय निवेदन है कि आप अपनी दो चुनिंदा/पसंदीदा लघुकथाएँ भेजेंl इन लघुकथाओं के साथ ही इनकी रचना प्रक्रिया पर एक विस्तृत आलेख भी भेजेंl उस आलेख में इस बात का उल्लेख करें कि लघुकथा का कथानक कैसे सूझाl क्या यह कथानक किसी घटना को देखने/सुनने के बाद सूझा या कि कुछ पढ़ते हुए अथवा किसी विचार से इसकी उत्पत्ति हुईl इसके बाद रचना की प्रथम रूपरेखा क्या बनी तथा रचना पूर्ण होने तक उसमे क्या-क्या परिवर्तन किए गएl शीर्षक के चुनाव पर भी रौशनी डालेंl इसके अतिरिक्त रचना प्रक्रिया से सम्बंधित आलेख,साक्षात्कार, संस्मरण व परिचर्चा आदि का भी स्वागत हैl 
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- केवल ईमेल द्वारा प्रेषित रचनाएँ ही स्वीकार्य होंगीl
- केवल यूनिकोड फॉण्ट में टंकित रचनाएँ ही स्वीकार्य होंगीl 
- रचनाएँ yrprabhakar@gmail.com पर मेल करेंl
- रचनाएँ भेजने की अंतिम तिथि 31-03-2019 हैl 
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योगराज प्रभाकर 
संपादक: "लघुकथा कलश"
चलभाष 98725-68228

मंगलवार, 19 फ़रवरी 2019

पुस्तक समीक्षा | आस-पास से गुजरते हुए | खेमकरण 'सोमन'


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लघुकथा-संकलन: आस-पास से गुजरते हुए:
संपादक: सुश्री ज्योत्स्ना 'कपिल' एवं डॉ. उपमा शर्मा
समीक्षक: खेमकरण 'सोमन'

सहजता  एवं गंभीरतापूर्वक कुछ सोचना और उसे जमीनी आकार देना, निस्संदेह बहुत कठिन कार्य है।
यही अनुभूति व्यक्ति को पुनः सहज, गम्भीर और कर्तव्यनिष्ठ बनाती है।

चूंकि विमर्श मुझे साहित्य पर करना है, और साहित्य में भी विशेषकर लघुकथा विधा पर! अतः लघुकथा के संदर्भ में विमर्श को आगे बढ़ाऊँ तो... यही सहजता, गंभीरता और पारखी दृष्टि मुझे सुकेश साहनी, मधुदीप, बलराम, बलराम अग्रवाल, डॉ. सतीश दुबे, भगीरथ, रामेश्वर काम्बोज हिमांशु, डॉ.अशोक भाटिया, डॉ. सतीशराज पुष्करणा, कमलेश भारतीय, डॉ. उमेश महादोषी और कमल चोपड़ा इत्यादि मुख्यधारा के अन्य लघुकथा लेखकों में दिखती हैं।

इनके अतिरिक्त लघुकथा-वृत पर सैकड़ों लघुकथा लेखिकाओं का उभार भी गौरवान्वित प्रदान करता हैं! यह सुखद प्रतीति है कि वर्तमान में एक साथ सैकड़ों लेखिकाएँ लघुकथा लिख रही हैं। और...अपनी आलोचना से बेपरवाह, बेफिक्र और निश्चिंत होकर लिख रही हैं। यद्यपि कुछ, विशेषकर नए लघुकथा लेखक-लेखिकाएँ तो अपनी आलोचना से भयभीत व चिंतित भी हो उठते हैं तथापि वे लिख रहे हैं। उन्हें यह मिथक तोड़ना ही होगा कि आलोचना उनके लिए घातक है अथवा उनकी शत्रु है।

बहरहाल लघुकथा लेखन में स्त्री दृष्टि की निरंतर सक्रियता अत्यधिक सुखद है। वे लघुकथा लेखन के साथ कुशलतापूर्वक संपादन-कार्य भी कर रही हैं।कांता राय इसी प्रकार की डायनेमिक लघुकथा लेखिका हैं और संपादक भी। लघुकथा के उन्नयन हेतु उनमें सहजता, शालीनता, गंभीरता और उन्मुक्त उड़ान आदि सब कुछ का समावेश हैं।

उपरोक्त यही सब कुछ मुझे युवा लघुकथा लेखिका ज्योत्स्ना 'कपिल' और डॉ. उपमा शर्मा के लिए लगा, जब उनके संपादन में लघुकथा-संकलन 'आसपास से गुजरते हुए' मेरे हाथों में आया।

लघुकथा-संकलन को पढ़ते हुए लगा कि जब एक सौ चौबीस लेखक एक साथ आस-पास से गुजरेंगे तो 'आसपास से गुजरते हुए' वे बहुत कुछ ऐसा अवश्य ही रेखांकित करेंगे, जिसे सामान्यजन जीवनपर्यंत भी रेखांकित नहीं कर पाते।

इस संदर्भ में लघुकथा लेखकों ने निस्संदेह बड़ी सीमा तक सफलता भी प्राप्त की हैं। लघुकथाओं से गुजरते हुए विभिन्न आस्वाद की इन लघुकथाओं ने मेरा मनोरंजन ही नहीं किया अपितु मुझ अबोध को बहुत गहरे तक बोधित भी किया। तो साहित्य का यह कार्य भी है कि वह मनोरंजन के साथ-साथ पाठकों को बोधित भी करता है।

बोधित होने के पश्चात मैंने सोचा कि समय बदलने के साथ मध्यम वर्ग के लिए अब बासी खाने की महत्ता भी बदल गई है, लेकिन यह वर्ग भलीभांति जानता है कि निम्न वर्ग के लिए बासी खाने की महत्ता अभी भी वही है। इसके उदाहरण के रूप में अंजलि गुप्ता की लघुकथा 'उत्तर' प्रस्तुत है। उत्तर जैसा सामान्य शीर्षक छोड़ दिया जाए तो अंजलि गुप्ता अपने दोनों बाल पात्रों स्वीटी, मोहन और डिश कस्टर्ड (दूध,अंडा और चीनी मिलाकर बनी मीठी पीली खीर) के माध्यम से अपनी प्रस्तुति देने में पूर्णतः सफल हुई हैं।

लघुकथा-संकलन को पढ़ते हुए मुझे अमरीकी मनोवैज्ञानिक और शिक्षक स्टैनली हॉल की भी याद आई। उन्होंने किशोरों के विषय में कहा है कि किशोरावस्था बहुत द्वंदयुक्त, तनावयुक्त और संघर्षयुक्त होता है। ऐसे समय में घर में यदि किशोर है तो उसका विशेष ध्यान रखा जाए। दीपक मशाल की लघुकथा 'सयाना होने के दौरान' इसी द्वंद को बहुत व्यावहारिक रूप प्रदान करती है।

जब दीपक मशाल की चर्चा आ गई है तो यह चर्चा भी कर दी जाए कि वे भी बहुत सहजता और गंभीरता से लिखने वाले सदाबहार लघुकथाकार हैं। मुझे इसलिए भी मशाल की लघुकथाएँ बहुत पसंद हैं।

लघुकथा-संकलन 'आसपास से गुजरते हुए' की भूमिका 'संरचना' के सम्पादक डॉ. कमल चोपड़ा ने और लिखी है और फ्लैप रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ने। दोनों के संदर्भ में मुझे यही कहना है कि दोनों लघुकथाकार, समकालीन लघुकथा के परिदृश्य पर निरंतर सक्रिय हैं; और दोनों ने हिंदी लघुकथा को बेहतरीन लघुकथाएँ भी दी हैं।

ऐसे में नवोदित लघुकथा लेखकों की 124 लघुकथाओं की पोटली इनके पास ले जाने का व्यावहारिक प्रयास और साहस, संपादक द्वय ज्योत्स्ना 'कपिल' और डॉ. उपमा शर्मा को बधाई और शुभकामनाएँ देने के लिए बाध्य करते हैं। दोनों लघुकथाकारों ने भूमिका और फ्लैप पर जो भी लिखा, उनसे भी सहमत हुआ जा सकता है।

इसलिए भी वरिष्ठ लघुकथा लेखकों का हाथ और साथ गरिमापूर्ण स्थिति के निर्वहन तक नवोदितों के लिए बहुत आवश्यक है। ऐसा कहने के पीछे लघुकथा संबंधी मेरे कई आयाम हैं। तभी स्तरीय लघुकथा प्रकाशित होंगी और आलोचना पक्ष भी अपने पैरों पर खड़ा हो सकेगा। नए लेखक क्या-क्या लिख रहे हैं या पहल कर रहे हैं... ये सब पुराने लेखकों को भी ज्ञात-व्यात होता रहेगा।

फिलवक्त वैश्वीकरण के कारण साँस्कृतिक आदान-प्रदान की प्रक्रिया भी बहुत तीव्र हुई है। बहुत सारे क्षेत्रीय तीज-त्योहारों ने ध्यान आकर्षित किया है। संभवतः इसलिए भी ये सब लघुकथा की विषयवस्तु बन रहे हैं। इस क्रम में विरेंदर 'वीर' मेहता की लघुकथा 'मोह-जाल' लोक आस्था का महापर्व छठ पर केंद्रित है। यह बहुत अच्छी लघुकथा है। काश...वे इसके शीर्षक और पात्रों के नाम पर कुछ और चिंतन-मनन कर पाते! क्योंकि लघुकथा में जब तक बिप्ति, बन्नू, पन्नू, चुन्नू और मुन्नू आदि नाम के पात्र परिदृश्य पर रहेंगे, लघुकथा जगत को कालजयी पात्र मिलने से रहे। लघुकथा लेखक यदि गंभीरता से सोचें तो वे पाएँगे कि लघुकथा की प्रवृत्ति स्वयं ही बता देती है कि उसे किस-किस प्रकार के पात्र चाहिए।

फिर दूसरा यह कि या तो लघुकथा लेखक अपना प्रस्तुतीकरण ऐसा दें कि उपरोक्त पात्रगत संबंधी विचार मुझ सहित किसी अन्य के मन में कदापि उत्पन्न न हों।

इस लघुकथा-संकलन की अधिकांश सम्भावनाएँ मुझे यदा-कदा कई लघुकथा संकलन या विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में दिखती रही हैं। इनमें विभा रश्मि, नीलिमा शर्मा, कुणाल शर्मा, मार्टिन जॉन, रवि प्रभाकर, डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी, शोभा रस्तोगी,अर्चना तिवारी, डॉ. संध्या तिवारी, मुन्नूलाल और त्रिलोक सिंह ठकुरेला, दीपक मशाल, मुन्नूलाल, डॉ. लवकेश दत्त और कांता राय को तो निरंतर पढ़ता रहा हूँ।

इनके अतिरिक्त दूसरे कई नए लघुकथा लेखकों को पढ़कर भी मैं बहुत-बहुत अनुभूत हुआ कि इन्होंने भी लघुकथा की नसें लगभग पकड़ ही ली हैं।
इनमें नयना आरती कानिटकर की लघुकथा 'उमड़ते आँसू',
नरेंद्र सिंह 'आरव' की लघुकथा 'फ़र्ज',
डॉ. विनीता राहुरिकर की 'दोषी',
रश्मि तरीका की खूबसूरत प्रस्तुति 'घाव',
सुषमा गुप्ता की लघुकथा 'वर्तमान का दंश',
किरण पांचाल की लघुकथा 'हिस्सा',
कमल नारायण मेहरोत्रा की लघुकथा 'दृढ़ निश्चय',
संजीव आहूजा की लघुकथा 'झूठी खुशियाँ',
शब्द मसीहा की लघुकथा 'इंसानी बीमारी',
रेखा मोहन की लघुकथा 'कसूरवार' उल्लेखनीय हैं।

विदित हो कि 14 फरवरी 2019 को पुलवामा में आतंकी हमले से सेना के 45 से अधिक जवान शहीद हो गए। इस प्रकार यह क्षण तब से ही सम्पूर्ण देश के लिए बहुत दुखदायी है। शहीद सैनिकों के परिवार पर क्या बीत रही होगी? सोचता हूँ तो आंतरिक बेचैनी से भर उठता हूँ। इस संदर्भ में भारती सिंह की लघुकथा 'तीज' बहुत प्रासंगिक और विचारणीय है। लघुकथा का शिल्प भी प्रशंसनीय है।

इस संकलन में 'लघुकथा कलश' के सम्पादक योगराज प्रभाकर की लघुकथा भी है। यकीनन... वे लघुकथा की सम्पूर्ण और बहुत भारी-भरकम पत्रिका निकालकर कमाल किए जा रहे हैं। परंतु नवोदितों के बीच में उन्हें देखकर कुछ-कुछ विस्मय से भर उठा मैं, बहरहाल... उनकी लघुकथा 'पेट' गरीबी, विद्रूपता और इससे उपजी समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित करती हैं। पेट और सम्मान की चिंता सबको है। अच्छा होता समग्र आधुनिक मानव समाज इस मनोवैज्ञानिक को समझ पाता।

संपादक द्वय में एक डॉ. उपमा शर्मा प्रमुखतः दंत चिकित्सक है, परंतु दंत चिकित्सक होने के उपरांत भी यह प्रीतिकर है कि वे निरंतर लिख रही हैं।
इस लघुकथा-संकलन का हिस्सा बनी उनकी लघुकथा 'हिजड़ा' मुख्यतः थर्ड जेंडर/ ट्रांसजेंडर पर आधारित नहीं है। अपितु जब व्यक्ति सक्षम होकर भी अपनी अक्षमता का परिचय दे तो बहुधा वही कहा जाता है जो उपमा शर्मा की लघुकथा का शीर्षक है।
भारतीय समाज में यह शब्द गाली के रूप में भी बहुधा उपयोग किया जाता रहा है। आत्मकथा शैली में लिखी गई डॉ. उपमा की यह लघुकथा काम-पिपासुओं द्वारा एक पागल लड़की के शिकार बनाने की पृष्ठभूमि पर आधारित है, और नायक 'मैं' उसे न बचा पाने के अपराधबोध और द्वंद्व में स्वयं को धिक्कारता पाता है। लघुकथा का शीर्षक सांकेतिक हैं।

समाज में कामगार स्त्रियों की स्थिति सदैव चिंतनीय रही है। यद्यपि इसमें कोई संशय नहीं कि मुक्त अर्थव्यवस्था के फलस्वरूप सामाजिक-साँस्कृतिक परिवर्तन की गति तीव्र हुई है और स्त्रियों की आजादी में विस्तार भी, परंतु स्त्रियाँ घर, परिवार अथवा कार्यस्थल जहाँ भी हैं, वहाँ अभी भी सुरक्षित नहीं।
ज्योत्स्ना 'कपिल' की 'कब तक' इसी विमर्श को ऊँचाई प्रदान करती बहुत कसी हुई स्तरीय लघुकथा है।
यह लघुकथा पाठकों, सहृदयों और लेखकों, लघुकथाकारों और निष्ठुर समाज से यह अपेक्षा रखती है कि स्त्री को शारीरिक/मांसल/ देह की अपेक्षा उन्हें जीवविज्ञान एवं मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए। उन्हें इनसानी जीव माना जाए।
परंतु ऐसा न होने के कारण लघुकथा नायिका आशिमा, जो कि नर्स है, जिला अस्पताल के डॉक्टरों द्वारा फ्लर्ट, डबल मीनिंग वाले मजाक से इसलिए भी चिंतित रहती है। लघुकथा में भाषाई ताजगी और संवेदना, दोनों निहित हैं।

इस प्रकार ज्योत्स्ना 'कपिल' की लघुकथा यथार्थ की कई परतों को उघाड़ती है। लघुकथा का शिल्प, पूर्णतः लघुकथा का है, लेकिन मुझे प्रतीत होता रहा कि लघुकथा का परंपरागत शीर्षक लघुकथा के साथ अन्याय कर रहा है।

इस तरह 'आसपास से गुजरते हुए' अच्छा लघुकथा- संकलन बन पड़ा है। इसमें ऐसे कई लघुकथा लेखक और लघुकथाएँ हैं जिनका उल्लेख मैं चाहकर भी नहीं कर पाया। इसका कारण यह है कि एक तो संकलन में लघुकथाएँ अत्यधिक हैं, दूसरा यह कि मुझमें वह आलोचना कौशल नहीं, अतः सबको एकसूत्र में पिरोना अभी सीख नहीं पाया हूँ।

और अंत में यह कि लघुकथा-संकलन के फ्लैप पर रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' के लिखे शब्दों में कहूँ तो "ज्योत्स्ना 'कपिल' और डॉ. उपमा शर्मा ने संपादन का यह श्रमसाध्य कार्य ईमानदारी से पूरा किया है।" अयन प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित इस संकलन के लिए संपादक द्वय को पुनः बधाई।

(स्त्री विमर्शकार, आलोचक, कवयित्री, कथाकार और 'कथादेश' की परम सहयोगी अर्चना वर्मा जी अब हमारे बीच नहीं हैं। हिंदी समाज-साहित्य की यह बहुत बड़ी क्षति है। उन्हें नमन।)

संपर्क:-
द्वारा श्री बुलकी साहनी, प्रथम कुंज, अम्बिका विहार, ग्राम व पोस्ट-भूरारानी, रुद्रपुर, जिला- उधम सिंह नगर, उत्तराखंड-263153

सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

लघुकथा समाचार: साहित्य सभा कैथल एवं हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच की कैथल इकाई के संयुक्त तत्वावधान में लघुकथा गोष्ठी

Dainik Bhaskar | Feb 18, 2019

आरकेएसडी कॉलेज शिक्षण महाविद्यालय में आज साहित्य सभा कैथल एवं हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच की कैथल इकाई के संयुक्त तत्वावधान में एक कविता एवं लघुकथा गोष्ठी आयोजित की गई, जिसमें सिरसा से पधारे साहित्यकार रूप देवगुण ने बतौर मुख्य अतिथि, कुरुक्षेत्र से पधारे साहित्यकार रामकुमार अत्रे ने अध्यक्ष रूप में एवं डॉ कमलेश संधू ने विशिष्ट अतिथि की भूमिका निभाई। गोष्ठी का संचालन रिसाल जांगड़ा एवं डॉ प्रदुम्न भल्ला ने संयुक्त रूप से किया। साहित्य की सशक्त विधा लघुकथा एवं कविता को समर्पित इस गोष्ठी में 12 लघुकथा लेखकों ने अपनी लघुकथाओं का पाठ किया। जिन पर वरिष्ठ समीक्षक रूप देवगुण, रामकुमार आत्रेय, अमृत लाल मदान ने संक्षिप्त टिप्पणियां की। इनके अतिरिक्त रूप देवगुण की दो पुस्तकों का विमोचन भी हुआ। जिसमें एक पुस्तक उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित, रूप देवगुण को जैसा हमने जाना एवं दूसरी पुस्तक हरियाणा की प्रतिनिधि लघु कविता, संपादन रूप देवगुण शामिल थी। काव्य गोष्ठी का आरंभ राजेश भारती की कविता मां जादूगर से हुआ। रामफल गौड़ ने अपनी पंक्तियों के माध्यम से सबका ध्यान खींचा, चाल है हर दम नारी, फिर भी जीना से लाचारी जीना से लाचारी। शमशेर कैंदल ने कहा, राजनीति विकराल हो गई, जोड़-तोड़ का जंजाल हो गई। गुहला से पधारे चेतन चौहान ने कहा हमको यही सिला मिला है बातचीत का, ताबूत फिर आ गया है घर पे मीत का। डा. प्रदुम्न भल्ला ने कहा नहीं भूलती हैं तुम्हारी वफाएं, बख्शी हैं तुमने हमारी खताएं। रामकुमार अत्रे के शब्द कुछ यूं रहे, लड़कियां अंधेरे तहखानों में खुलती खिड़कियां होती हैं। डा. कमलेश संधू ने कहा सरहदों की आंधी, चिरागों को बुझा रही है।

News Source:
https://www.bhaskar.com/harayana/kaithal/news/haryana-news-39we-have-got-this-bag-the-coffin-of-the-conversation-has-come-again39-024053-3928610.html

रविवार, 17 फ़रवरी 2019

पुस्तक समीक्षा | माँ पर केंद्रित 101 लघुकथाएं | राजकुमार निजात | समीक्षा : कृष्णलता यादव



लघुकथाओं में ममता की हृदयस्पर्शी आभा

पुस्तक : माँ पर केंद्रित 101 लघुकथाएं
लेखक : राजकुमार निजात 
प्रकाशक : समर प्रकाशन, जयपुर 
पृष्ठ संख्या : 224 
मूल्य : रु.200
समीक्षा : कृष्णलता यादव 

समीक्ष्य कृति ‘मां पर केंद्रित 101 लघुकथाएं’, बहुचर्चित व्यक्तित्व राजकुमार निजात का सद्य प्रकाशित लघुकथा संग्रह है। इनमें मां, दादी और परदादी की गरिमामयी उपस्थिति दर्ज़ हुई है। स्वयं लेखक के शब्दों में– अनेकानेक विषयों को लेकर बेशक सैकड़ों लघुकथा-संग्रह व संकलन प्रकाश में आए हैं लेकिन मां को लेकर एक समग्र लघुकथा-संग्रह अभी तक प्रकाश में नहीं आया है।

इन लघुकथाओं में लेखक मां के हृदय की सूक्ष्म से सूक्ष्म तरंग को संवेदना की बांधनी से बांधने में सफल रहे हैं, कुछ इस प्रकार से कि कुपुत्र पढ़े तो उसके दिलो-दिमाग में भी बिजली-सी कौंधे कि क्या मेरी मां भी इतनी ही उदारदिल है? निश्चय ही, उसे उत्तर ‘हां’ में मिलेगा। फलस्वरूप एक चाह कुलबुलाएगी और उसे खींच ले जाएगी, भुला-बिसरा दी गई मां की गोद में। सामूहिक चिंतन-मनन के लिए चंद ज्वलंत प्रश्न उभरकर आए हैं यथा वात्सल्य से भरपूर मां के लिए संतान के पास समय क्यों नहीं होता? क्या संतान के लिए बिजनेस ही सब कुछ है? मूल स्वर यह कि मां के पवित्र रिश्ते के प्रति जो जीवन मूल्य कहीं खो गए हैं, उनकी पुनर्स्थापना हो।
मां के ममतालु सागर की उत्ताल तरंगों संग पाठक अठखेलियां करता है। अपनी संतान के लिए मां गर्भनाल से लेकर अपना वंश चलने तक अन्नपूर्णा की भूमिका निभाती रहती है। इसलिए कहा है– आज तक कौन चुका सका है, मां के अहसान। ‘मां के प्यार को कभी आंकना मत, हार जाओगे,’ उक्ति मर्म को छूती है। मां प्रत्याशा नहीं जानती। वह हर हाल में खुश है; उसकी खुशी बेमिसाल है। संतान को यह समझ आना बड़ी बात है कि मां के आशीषों में सर्वस्व समाया है। यदि इनसे झोली भर जाए तो दुनिया की सारी दौलत बेमानी हो जाती है।
भले ही लघुकथा विशेषज्ञ कुछ लघुकथाओं के शिल्प, कलेवर, शीर्षक चयन, वाक्य विन्यास, कथानक की गत्यात्मकता, काल दोष को लेकर नाक-भौं सिकोड़ें परन्तु भावों की रमणीयता इन पर भारी पड़ती है।

Source:
https://www.dainiktribuneonline.com/2019/02/%E0%A4%B2%E0%A4%98%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%93%E0%A4%82-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%AE%E0%A4%AE%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B9%E0%A5%83%E0%A4%A6%E0%A4%AF/
Posted On February - 17 - 2019

शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2019

गर्व (लघुकथा)

पुलवामा में शहीद हुए सैनिकों की स्मृति में

साथियों बहुत दुखी मन से लिख रहा हू, कल पुलवामा में जिस तरह हमारे जवानों पर हमला किया गया, वह कृत्य निंदनीय ही नहीं बल्कि बदला लेने के योग्य है। यह लघुकथा कहते हुए कितनी ही बार आँसू आए और कितनी ही बार सूख भी गए। शहीद जवानों को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि देते हुए समर्पित...

गर्व (लघुकथा)


पूरे देश की जनता के रक्त में उबाल आ रहा था। एक आतंकवादी ने 200 किलोग्राम विस्फोटक एक कार में रखकर सेना के जवानों से भरी बस से वह कार टकरा दी और देश के 40 सैनिक शहीद हो गए थे।

सेना के हस्पताल में भी हड़कंप सा मच गया था। अपने दूसरे साथियों की तरह एक मेजर जिसके जवान भी शहीद हुए थे, बदहवास सा अपने सैनिकों को देखने हस्पताल के कभी एक बेड पर तो कभी दूसरे बेड पर दौड़ रहा था, अधिकतर को जीवित ना पाकर वह व्याकुल भी था। दूर से एक बेड पर लेटे सैनिक की आँखें खुली देखकर वह भागता हुआ उसके पास डॉक्टर को लेकर पहुंचा। डॉक्टर उस सैनिक की जाँच ही रहा था कि वह सैनिक अपने मेजर को देखकर मुस्कुराया। मेजर उसके हाथ को सहलाते हुए बोला, "जल्दी ठीक हो जाओ, सेना को तुम्हारी जरूरत है, अभी हमें बहुत कामयाबियाँ साथ देखनी हैं।"

कुछ समय पहले से ही होश में आया वह सैनिक आसपास हो रही बातों को भी सुन चुका था, वह फिर मुस्कुराया और इस बार उसकी मुस्कुराहट में गर्व भरा था। उसी अंदाज़ में वह सैनिक बोला, "सर... हम तो कामयाब हो गए... हमें दुश्मन का 200 किलो आरडीएक्स... बर्बाद करने में... कामयाबी मिली है।"

और मेजर के आँखों में भी गर्व आ गया


- डॉ. चंद्रेश कुमार छ्तलानी

लघुकथा वीडियो: नितळ - :मराठी लघुकथा | लेखक: परशुराम माली, जलगांव | वाचन: गझलमित्र

"नितळ" मराठी लघुकथा  | लेखक: परशुराम माली, जलगांव | वाचन: गझलमित्र




गुरुवार, 14 फ़रवरी 2019

लघुकथा वीडियो | मुंशी प्रेमचंद की लघुकथा "देवी" | स्वर : निधिकांत पांडे

भिखारी को एक महिला ने कुछ दिया और फुसफुसाया। लेखक ने देखा कि वह महिला दस रुपये (उन दिनों दस रुपयों का मूल्य काफी अधिक था) देकर चली गयी। लेखक ने उस महिला को देवी सरीखी पाया... क्या सिर्फ अधिक रुपए देने की खातिर? चलिये सुनते हैं और जानते हैं देवी का रहस्य - मुंशी प्रेमचंद द्वारा सृजित और निधिकांत पांडे जी के स्वर में कही गयी लघुकथा - "देवी"।


बुधवार, 13 फ़रवरी 2019

लघुकथा वीडियो: दूसरी औरत | लेखक: दुर्गादत्त जोशी | वाचक: अर्जुन नैलवाल


दुर्गादत्त जोशी जी द्वारा सृजित "दूसरी औरत "अंतर्राष्ट्रीय लघुकथा प्रतियोगिता में चयनित पुरुस्कृत है। यह हैलो हल्द्वानी FM 91.2 रेडियो से प्रसारित हुई है। आइए श्री अर्जुन नैलवाल जी से यह रचना सुनते हैं।



लघुकथा वीडियो: श्री मदन पौडेल की दो नेपाली लघुकथाएं


नेपाली लघुकथा 1:  "नझरेको आँशु"



नेपाली लघुकथा 2: 'गुरुदत्तको डायरी'



सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

दृष्टि पत्रिका के मानवेतर लघुकथा अंक की समीक्षा

हिमाचल प्रदेश से प्रकाशित लोकप्रिय समाचार पत्र दिव्य हिमाचल के रविवार अंक में दृष्टि के मानवेतर लघुकथा अंक की समीक्षा। 



Source:

*"पुरुष उत्पीड़न" विषय पर कहानी और लघुकथा लेखन प्रतियोगिता

श्री विजय विभोर की फेसबुक वॉल से


"Write Now"
आपके लिए एक अनूठी कहानी और लघुकथा लेखन प्रतियोगिता*
अब तक आपने (पुरूष/महिला रचनाकारों ने) महिला उत्पीड़न पर बहुत क़लम चलाई है। अब आपके लिए
*"पुरुष उत्पीड़न"
-------------------
पर क़लम चलाने का चैलेन्ज है।
महिलाएं बातों को बेहतर तरीके से देख और समझ पाती हैं और अपने विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त कर सकती हैं। पुरुष भी महिलाओं के लिए बहुत मार्मिक व शानदार लिखते आ रहे हैं। अब देखे कितनी महिला/पुरूष रचनाकार "पुरुषों के उत्पीड़न" पर अपनी कलम का जादू बिखेरते हैं?
आपका अपना यूट्यूब चैनल "Vibhorविभोर" लेखकों के लिए यह अनूठी लेखन प्रतियोगिता ला रहा है। यह पुरुषों/महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा, प्यार और उनके ख्याल का उत्सव है।
इस कहानी और लघुकथा लेखन प्रतियोगिता के लिए देखें आप अपनी कितनी उर्जा, रचनात्मकता और उत्साह को दिखाते हैं।
इस प्रतियोगिता का उद्देश्य महिलाओं व पुरुषों को समान रूप से सम्मान और सहयोग के लिए प्रेरित करना है। तो आइए अपनी रचनात्मकता का उपयोग करते हुए प्रेरक कहानी / लघुकथा लिखें।
नियम
1. चैनल के सब्स्क्राइब सदस्य (प्रमाण के लिए स्क्रीन शॉट भेजें) ही भाग ले सकते हैं।
2. शैली पर कोई प्रतिबंध नहीं है। बस विवादास्पद को शामिल नहीं किया जाएगा।
3. विजेताओं का फैसला वीडियो पर लाइक स्कोर, उनकी कहानी/लघुकथा को कितना शेयर किया गया व उसको कितने समय तक देखा गया (व्यूज ड्यूरेशन) के आधार पर किया जायेगा।
4. सभी प्रतिभागियों के लिए चैनल "Vibhorविभोर" का निर्णय अंतिम और मान्य होगा।
5. प्रतिभागियों को अपनी स्वरचित कहानी / लघुकथा ही भेजनी हैं। प्रतिभागी अधिकतम दो कहानी / चार लघुकथा ही भेज सकते हैं। अपने अनुसार उत्कृष्टता क्रम से (कहानी और लघुकथा अलग-अलग) भेजें।
6. आपकी रचना पहले से किसी भी सोशल मीडिया पर पोस्ट / प्रकाशित नहीं होनी चाहिए।
7. हम ईमानदारी से अपना काम कर रहे हैं। आपसे भी यही अपेक्षा रखते हैं।
8. आपकी रचना पर आपका पूर्ण अधिकार है। बस प्रतियोगिता के बाद आप कहीं भी इस्तेमाल करें।
पुरस्कार
श्रेष्ठ 10 रचनाकारों को "Vibhor विभोर" यूट्यूब चैनल से उत्कृष्टता के प्रमाण-पत्र प्राप्त होंगे।
योग्यता
सबमिट करने की अवधि - 14 फरवरी 2019 से 15 मार्च 2019 तक
भाषाएँ - हिन्दी
कन्टेन्ट - कहानी और लघुकथा
प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए, आप नीचे दी हुई e-mail : vibhorvijayji@gmail.com पर अपनी रचनाओं को सबमिट करें। साथ में अपना फोटो व शहर का नाम व "पुरुष उत्पीड़न" प्रतियोगिता जरूर लिखें। व्हाट्सएप/मैसेंजर पर भेजी रचनाएँ शामिल नहीं कर सकेंगे। इसलिए ईमेल पर ही प्रसारण स्वीकृति के साथ भेजें।
आपकी रचनाओं का हृदय से स्वागत है, धन्यवाद !🙏🏻
नोट :- 24 फरवरी 2019 से आपकी आयी हुई रचनाओं की वीडियो अपलोड होना शुरू हो जाएंगी। एक दिन में एक ही वीडियो अपलोड होगी। जितनी भी रचनाएँ आएंगीं उनमें से प्रतियोगिता में चुनी गई रचनाओं के ही वीडियो अपलोड किया जाएगा। आपकी वीडियो की अपलोडिंग के बाद का दस दिन तक का समय नोट किया जाएगा।
सब्स्क्राइब करने के लिए चैनल "Vibhorविभोर" का लिंक -----
मित्रों!
अपने फ़ोटो और संक्षिप्त परिचय के साथ अपनी रचनाएँ (कहानी, लघुकथा) ईमेल vibhorvijayji@gmail.com पर ही भेजें।
- विजय 'विभोर'

लघुकथा वीडियो: दो संस्कृत लघुकथाएं


लघुकथा(१) शृगालस्य चतुरता


लघुकथा (२)अम्लानि द्राक्षाफलानि




लघुकथा(१) शृगालस्य चतुरता

एकदा एकः वायसः पिष्टकं चोरितवान्।
पिष्टकं चोरयित्वा सः एकस्यां वृक्षशाखायाम् उपविशती स्म।
वृक्षतले शृगालः एकः उपारतः आसीत्।
वायसमुखे पृष्टकं दृष्ट्वा तं लालसा अभवत्
तदा चतुरः सः शृगालः वायसं प्रति उद्देश्यं कृत्वा गायनासीत्...
अहो! अद्भुतसुंदरः विहगः एषः।
कण्ठस्वरः अपि मधुरः भवेत्...
न जाने कथं मधुरं नु गायति अयम्।
वायसः स्वीय प्रशंसा श्रुत्वा गदगद नंदित पुलकितः अभवत्।
अतः सः गीतं गायनाय यदा हि चंचु विस्फारितम अकरोत्
पिष्टकम अधः पतितवान्।
अतः किम्!
शृगालः पिष्टकं प्राप्य झटिति धावितवान्।

लघुकथा (२)अम्लानि द्राक्षाफलानि

एकदा एकः शृगालः अतीव क्षुधार्तः भवन् आसीत्।
समग्र वनम् अनुसन्धित्वा अपि सः।
तदा सः भोजनस्य अनुसन्धनाय एकस्मिन् ग्रामे उपस्थितम् अभवत्।
तत्र एकं वेदिम् उपरि गुच्छानि गुच्छानि द्राक्षाफलानि उलम्बितानि।
द्राक्षाफलं दृष्ट्वा शृगालः अतीव मोदितः अभवत्।
"अहो! क्षुधाकाले पक्व-पक्व द्राक्षाफलस्य भोजनस्य आनंदं हि अतुलनीयम्" सः अचिंतयत्
द्राक्षाफलानि तु अतीव उच्चे आसन्।
बहव लम्फ़झम्पात् अपि तानि तस्य हस्तगतः न अभवन्।
"द्राक्षाफलानि अम्लानि। अहम् अम्लफलं न द्राक्षाफलानि खादामि।"
एतद् उक्त्वा शृगालः स्थानात् गतवान्।

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

लघुकथा वीडियो: विसर्जन (लघुकथा) - लघुकथाकार: अखिलेश द्विवेदी 'अकेला' | स्वर: महेश शर्मा

"लघुकथा तो मर्मस्पर्शी है ही किन्तु प्रस्तुति ने इसमें जान डाल दी है. लघुकथाकार: अखिलेश द्विवेदी 'अकेला' जी व लघुकथा को स्वर देने वाले महेश शर्मा जी को हार्दिक बधाई. इस प्रभावशाली रचना से साक्षात करवाने हेतु वर्जिन स्टूडियो का भी हार्दिक आभार."
- वरिष्ठ लघुकथाकार श्री योगराज प्रभाकर द्वारा इस लघुकथा पर टिप्पणी।
लघुकथा पर महेश शर्मा जी की प्रस्तुति बहुत ही रोचक है। ज़रूर सुनिए इसे।



लघुकथा संग्रह "सहोदरी लघुकथा 2" की समीक्षा अंकु श्री जी द्वारा

मोटे-मोटे उपन्यास और लंबी-लंबी कहानियां पढ़ने के लिये समय निकाल पाना सबके लिये संभव नहीं है। बेषक इसमें समय अधिक लगता है। कुछ ऐसे ही दौर से गुजरते हुए पाठकों के लिये लघुकथा विधा का विकास और विस्तार हुआ। वस्तुतः लघुकथा-लेखन कोई सोची-समझी व्यवस्था नहीं, एक स्वतःस्फूर्त प्रक्रिया थी। वैसे तो यह बहुत पुरानी विधा है, मगर उन्नीस सौ अस्सी के दषक में लघुकथा-लेखन में बहुत तेजी आयी। इस विधा की दर्जनों स्वतंत्र पत्रिकाओं का प्रकाषन शुरू हुआ. लघुकथा के सैकड़ों संकलन छप चुके हैं। यही नहीं, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी लघुकथा को स्थान मिलने लगा और आज भी मिल रहा है। वर्ष 2018 में एक बहुंत ही उम्दा लघुंकथा संकलन हाथ में आया है, जिसका नाम है ‘सहोदरी लघुकथा-2’।
‘भाषा सहोदरी-हिंदी’ द्वारा प्रकाषित इस पुस्तक में उन्हत्तर लघुकथाकारों की करीब तीन सौ लघुकथाएं संकलित हैं, जो विभिन्न विषयों को समेटे हुए हैं। प्रायः ऐसा देखने में आता है कि लघुकथा संकलनों में कई-कई आलेख छपे होते हैं। मगर प्रस्तुत संकलन में सिर्फ लघुकथाएं छपी हैं, जो इसकी विषिष्टता लगी, क्योंकि आलेखों से संकलन भर जाने के कारण अच्छे लघुकथाकारों को भी समेटना कठिन हो जाता है। 304 पृष्ठों के इस संकलन का गेटअप बहुत आकर्षक और बाइन्डिंग काफी मजबूत है।
उन्हत्तर लघुकथाकारों की करीब तीन सौ लघुंकथाओं को एक साथ पढ़ना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। इसमें लघुकथाकारों ने अनेक विषयों पर अपनी कलम चलायी है। लघुकथा की विषेषता है कम शब्दों में किसी बात को रोचकपूर्वक कह देना। यह सभी जानते हैं कि अपने ही हाथ की पांचों अंगुलियां बराबर नहीं होतीं। संकलन की तीन सौ लघुकथाओं में भिन्नता तो रहेंगी ही। इनमें से कुछ लघुकथाएं जुबान पर चढ़ कर बोलती-सी लगती हैं।
‘भाषा सहोदरी-हिंदी’ का छठा अंतर्राष्ट्रीय महाधिवेषन के यादगार अवसर पर 24 और 25 अक्तूबर, 2018 को ‘हंसराज काॅलेज’, दिल्ली में पधारे सैकड़ों साहित्यकार और साहित्य-प्रेमी इस संकलन के लोकार्पण समारोह के साक्षी बने।
प्रस्तुत संकलन की अनेक लघुकथाएं बहुत अच्छी हैं, जबकि कुछ बेशक नव-लेखन के प्रमाण हैं। इस संकलन को पढ़ने से एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात स्पष्ट होती है कि पुराने लेखकों की भी सभी रचनाएं अच्छी नहीं होतीं। एक-दो लघुकथाएं ऐसी भी हैं, जिनके लेखक को विष्वास नहीं है कि पाठक उसे समझ पायेंगे और इसलिये उन्होंने लघुकथा के अंत में ‘नोट’ लिख दिया है। एक लेखिका द्वारा अपनी लघुकथाओं के अंत में ‘सीख’ दी गयी है, जैसे वह पुरानी बालकथा लिख रही हों। कुछ लेखकों द्वारा अपनी लघुकथा के शीर्षक इन्भर्टेड काॅमा में दिये गये हैं और कुछ ने शीर्षक के बाद - - (डैश-डैश) लगा दिया है। एक लेखक ने अपनी हर लघुकथा के अंत में - - (डैश-डैश) लगा दिया है, जिससे लगता है कि लेखक और कुछ कहना चाहता है और कह नहीं पाया है, जिसे पाठक स्वयं संमझ ले। आमूद-पठन में थोड़ी कमी झलकती है। ऐसा लगता है कि इन बातों की ओर संपादकीय दृष्टि नहीं पड़ पायी है। बेषक संकलन की लघुकथाएं हर साहित्यकार का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। संकलन की कुछ अच्छी लघुकथाओं और उसके लेखक का वर्णन आवष्यक लगता है, जो निम्नवत है,
‘अपना-अपना हिन्दुस्तान’ और ‘गांव की धूल’ (अंकुश्री), ‘आहट’ (अनु पाण्डेय), शेरनी (अपर्णा गुप्ता), ‘स्त्रीत्व’ और ‘बदलते दृष्टिकोण’ (डा0 उपमा शर्मा), ‘श्रेय’ (ऋचा वर्मा), ‘खामोषी बोलती है’ (कामिनी गोलवलकर), ‘आग’ (गुंजन खण्डेलवाल), ‘बरसात’ और ‘षिकायत का स्पर्ष’ (पंकज जोषी), ‘छोटू’ (पम्पी सडाना), ‘फैसला’ (पूनम आनंद), ‘जुर्माना’ (मनमोहन भाटिया), ‘जिन्दगी’ और ‘एक संघर्ष नया’ (मनीषा जोबन देसाई), ‘निर्णय’, ‘इंसानियत’ और ‘पावन बंधन’ (मणिबेन द्विवेदी), ‘चिट्ठी-पत्तरी’, ‘पत्थर पर दूब’ और ‘होड़’ (मिनी मिश्रा), ‘टंगटुट्टा’ और ‘हेल्मेट’ (मृणाल आषुतोष), ‘अहसास’, ‘पहचान’, ‘बहराना साहिब‘, ‘आवष्यकता’ और ‘मोतियाबिन्द’ (लीला कृपलानी), ‘श्रवण कुमार’ (डा0 लीला मोरे), ‘भरोसा’ (वन्दना पुणतांबेकर), ‘दोहरा मापदंड’ (संजय कुमार ‘संज’), ‘आश्रम’ और ‘बस’ (सौरभ वाचस्पति ‘रेणु’), ‘बदलती नजरें’, ‘अच्छा हुआ’ और ‘स्पष्टीकरण’ (संतोष सुपेकर), ‘रिमोट वाली गुड़िया’, ‘डिलीट एकाउन्ट्स’ और ‘अनोखी चमक’ (सुरेष बाबू मिश्रा), ‘जख्म’ (सतीेष खनगवाल), ‘निपुणता’, ‘योग्यता’, ‘तीर्थाटन’ और ‘अस्थि के फूल’ (संजय पठाडे ‘षेष’), ‘वृद्धा आश्रम’ और ‘विदुषी’ (सुधा मोदी), ‘भलाई का जमाना’, ‘चोरी’ और ‘एहसास’ (सदानंद कविष्वर), ‘परीक्षा की चिंता’ और ‘हिम्मत’ (सीमा भाटिया), ‘पापा’ और ‘उत्साहवर्द्धन’ (संजीव आहूजा), ‘मुस्कान’ और ‘अनदेखा’ (सागरिका राय), ‘जाल’ और ‘नुस्खा’ (सविता इन्द्र गुप्ता)। यह एक संक्षिप्त सूची है, जिसे अंतिम नहीं माना जा सकता।
लेखक को आसपास की घटनाओं, अध्ययन और विचारों से बहुत सारे कथ्य मिल जाते हैं। उसके आधार पर कथानक का ताना-बाना बुन कर लेखक द्वारा कथा या लघुकथा लिखी जाती है। कथानक और षिल्प के अनुसार कथा अच्छी या साधारण बन जाती है। कुछ रचनाएं साधारण से भी निम्न बन कर रह जाती हैं। इस संकलन में भी कुछ लघुकथाओं के कथ्य अच्छा होते हुए भी कमजोर कथानक और षिल्प के कारण वे अच्छे ढ़ंग से पल्लवित-पुष्पित नहीं हो पायी हैं। शब्दों की मितव्ययिता लघुकथा की महत्वपूर्ण शर्त है। संकलन से गुजरते हुए कहीं-कहीं ऐसा प्रतीत होता है कि मन में आने वाले हर शब्द को कागज पर उतारने के लिये कलम को स्वतंत्र छोड़ देने से लघुकथा खराब हो जाती है।
कुछ लघुकथाओं में भूमिका देकर उसे समझाने का प्रयास किया गया है। कुछ लघुकथाओं के अंत में उपसंहार के तौर पर लेखक द्वारा अपना मत अंकित कर दिया गया है, जो उपदेषात्मक लग रहा है। कहीं-कहीं चलती हुई लघुकथा के बीच में अचानक लेखक ‘‘मैं’’ के रूप में प्रकट हो गया है। कुछ लघुकथाएं घटना प्रधान होती हैं, जिनमें कथात्मकता के अभाव के कारण वे साहित्य नहीं रह कर समाचार लगने लगती हैं। लघुकथाओं के ऐसे उदाहरण भी इस संकलन में हैं। इस संकलन की मुख्य विषेषता इसकी विविधता है।
कथाकार जब सीधी नज़र से देखता है तो उसे गहरी और विस्तृत बातें दिखाई देती हैं, जिससे कहानी का सृजन होता है। मगर उसी बात को तिरछी नज़र से देखने पर उसमें गहराई तो रहती है लेकिन विस्तार का अभाव हो जाता है, जिससे लघुकथा का सृजन होता है। किसी कृति के वास्तविक समीक्षक पाठक होते हैं। इसलिये संकलन मंगा कर पढ़ने पर ही इसमें प्रकाषित तीन सौ लघुकथाओं का एक साथ मजा मिल पायेगा और आज लिखी जा रही लघुकथाओं की भी सही जानकारी मिल सकेगी।
- अंकु श्री

प्रेस काॅलोनी, सिदरौल
नामकुम,रांची-834010
मो0 8809972549

शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

लघुकथा कलश (तृतीय महाविशेषांक) की समीक्षा श्री सतीश राठी द्वारा

श्री योगराज प्रभाकर के संपादन में 'लघुकथा कलश' का तीसरा महाविशेषांक प्रकाशित हो चुका है और तकरीबन सभी लघुकथा पाठकों को प्राप्त भी हो चुका है। मुझे भी पिछले दिनों यह विशेषांक प्राप्त हो गया और इसे पूरा पढ़ने के बाद मुझे यह जरूरी लगा कि इस विशेषांक पर चर्चा जरूरी है।

इस विशेषांक के पहले भाग में डॉ अशोक भाटिया, प्रोफेसर बीएल आच्छा और रवि प्रभाकर ने श्री महेंद्र कुमार, श्री मुकेश शर्मा एवं डॉ कमल चोपड़ा की लघुकथाओं के बहाने समकालीन लघुकथा लेखन पर बातचीत की है। यह इसलिए महत्वपूर्ण कहा जा सकता है कि इसमें एक नया लघुकथाकार दो वरिष्ठ लघुकथाकारों के साथ अपनी लघुकथाओं को लेकर प्रस्तुत हुआ है और यह लघुकथाएं विधा की नई संभावनाओं की और दिशा देने वाली लघुकथाएं हैं जिसके बारे में डॉ अशोक भाटिया ने भी इंगित किया है। लघुकथाओं को देखने के बाद लघुकथाओं को लेकर कोई चिंता नहीं रखना चाहिए। बहुत सारी अच्छी लघुकथाएं विशेषांक में समाहित है। नौ आलेख इसे समृद्ध करते हैं। कल्पना भट्ट का पिता पात्रों को लेकर लिखा गया आलेख, डॉ ध्रुव कुमार का लघुकथा के शीर्षक पर आलेख, लघुकथा की परंपरा और आधुनिकता पर डॉक्टर पुरुषोत्तम दुबे ,लघुकथा के द्वितीय काल परिदृश्य पर डॉ रामकुमार घोटड, लघुकथा के भाषिक प्रयोगों पर श्री रामेश्वर कांबोज, खलील जिब्रान की लघुकथाओं पर डॉक्टर वीरेंद्र कुमार भारद्वाज, लघुकथा के अतीत पर डॉक्टर सतीशराज पुष्करणा और राजेंद्र यादव की लघुकथा पर सुकेश साहनी, इनके साथ में तीन साक्षात्कार जो मुझसे,  डॉ कमल चोपड़ा एवं डॉ श्याम सुंदर दीप्ति से लिए गए हैं, कुछ पुस्तकों की समीक्षा, कुछ गतिविधियों की जानकारी, दिवंगत लघुकथाकारों को श्रद्धांजलि, कुछ गतिविधियों का जिक्र और 177 हिंदी लघुकथाओं के साथ नेपाली, पंजाबी, सिंधी भाषा के विभिन्न लघुकथाकारों की लघुकथाएं इतना सब एकत्र कर प्रस्तुत करने के पीछे भाई योगराज प्रभाकर की कड़ी मेहनत हमारे सामने आती है। ऐसे काम जुनून से ही पूरे होते हैं और वह जुनून इस विशेषांक में दृष्टिगत होता है। पाठक यदि इस विधा को लेकर कोई प्रश्न खड़े करते हैं तो उसका जवाब भी उन्हें इस तरह के विशेषांक में प्राप्त हो जाता है। मैं श्री योगराज प्रभाकर जी की पूरी टीम को विशिष्ट उपलब्धि के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं। पिछले दोनों अंको से और आगे जाकर यह तीसरा अंक सामने आया है और यह आश्वस्ति देता है कि चौथा अंक और अधिक समृद्ध साहित्य के साथ में हम सबके सामने प्रस्तुत होगा। पुनः बधाई।

- सतीश राठी

लघुकथा वीडियो: बिखरने से पहले - शोभना श्याम

"बिखरने से पहले कुछ दिन और एक-दूसरे की पंखुड़ियों को संभाल लिया जाये।" - इस वीडियो से 

बिखरने से पहले फूल एक-दूसरे की पंखुड़ियाँ संभाल नहीं सकते, लेकिन ईश्वर ने हम इन्सानों को तो उन अहसासों से समृद्ध किया है जहां हम दूसरों को अपने साथ से ही बिखरने से रोक सकते हैं। उम्र की लंबाई नापती हुई जिंदगी के हाथों से स्केल छीन कर पेंसिल ही पकड़ा दी जाये तो कितनी ही बार दिल को टटोलता हुआ स्टेस्थेस्कोप गले के लय से लय मिलाकर गाना भी शुरू कर सकता है

कुछ ऐसे ही भावों के साथ रची यह लघु फिल्म शोभना श्याम जी की लघुकथा "बिखरने से पहले" पर आधारित है। इसे एक बार ज़रूर देखिये और समझिए भी। इस रचना का विस्तार केवल बुजुर्गों तक या उनके अकेलेपन तक ही नहीं बल्कि हम मे से अधिकतर के अंदर कहीं न कहीं छिपे खालीपन तक भी है।

- चंद्रेश कुमार छतलानी




शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019

लघुकथा वीडियो - लघुकथा इज्ज़त - लघुकथाकारा सविता मिश्रा

सविता मिश्रा जी द्वारा सृजित एक तीक्ष्ण कटाक्ष करती लघुकथा - इज्ज़त


लघुकथा वीडियो - जाति - हरीशंकर परसाई

जाति न पूछो व्यभिचार की

यह तो हम में से अधिकतर ने पढ़ा-सुना होगा ही कि, जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।  अर्थात सज्जन व्यक्ति की जाति की बजाय उसके ज्ञान को महत्व देना चाहिए। जैसे मूल्यवान तलवार होती है ना कि म्यान। हालांकि समय बदला, आज की नई पीढ़ी भी जाति के बजाय मानवता को महत्व दे रही है लेकिन फिर भी जाति तो जाति ही है। जाति के नाम पर वोट, जाति पर आरक्षण, जाति के अनुसार संबंध, मित्रता (कटुता भी) आदि को कम करने का प्रयास नहीं किया जा रहा, उल्टे कई जगहों पर बढ़ावा दिया जा रहा है। खैर, परसाई जी ने अपनी लघुकथा जाति में जो कटाक्ष किया है उसमें उन्होने ऐसी मानसिकता को उजागर किया है जो "जाति न पूछो साधु की" के बजाय "जाति न पूछो व्यभिचार की" को भी महत्व देने को तैयार हैं। वेलेंटाइन वीक में आइये सुनते हैं शिखा त्रिपाठी जी के स्वर में लघुकथा जाति


गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

लघुकथा वीडियो: तेजवीर सिंह 'तेज' जी की लघुकथा "जन्मदिन का केक"

Vibhor विभोर चैनल पर "बोलती लघुकथाएँ" में तेजवीर सिंह 'तेज' जी की लघुकथा "जन्मदिन का केक"

तेजवीर सिंह 'तेज' जी की पहली लघुकथा 13 जुलाई 2015 को ओपन बुक्स ऑनलाइन (OBO) पर प्रकाशित हुई थी। प्रस्तुत लघुकथा "जन्मदिन का केक" में एक बूढ़े पिता की व्यथा को प्रदर्शित किया गया है। बेटा उसे अपनी कोठी में बने आउट हाउस में रखता है, एक शाम कर्नल बेटे के घर में पार्टी चल रही होती है तो बूढ़े पिता को खाना देना ही भूल जाते हैं । अगले दिन अर्दली से पता चलता है की रात को जन्मदिन की पार्टी थी तो स्मृति में उसे अपना जन्मदिन याद आता है, ख़ुशी होती है, लेकिन जैसे ही बूढ़े पिता को पता चलता है कि जन्मदिन की पार्टी तो बेटा अपने कुत्ते की मना रहा था तो उसको मीठा केक भी कड़वा लगने लगता है|


लघुकथा वीडियो: मधुदीप गुप्ता जी की लघुकथा "हिस्से का दूध" और अनिल शूर आज़ाद जी की लघुकथा "डंडा"

Vibhor विभोर यूट्यूब चैनल पर आदरणीय मधुदीप गुप्ता जी के "हिस्से का दूध" और आदरणीय अनिल शूर आज़ाद जी का "डंडा"

मधुदीप गुप्ता जी ने अपनी लघुकथा "हिस्से का दूध" के माध्यम से सामाजिक परिवेश में परिवार के महत्त्व यानि कि एक दूसरे के ख्याल रखने के साथ साथ आने वाले मेहमान की खातिरदारी का भी ख्याल रखने की भारतीय परम्परा को उकेरा है। अनिल शूर आज़ाद जी ने अपनी लघुकथा में "डंडा" शराबी पिता से डरने के बावजूद अभावों को झेलता हुआ बालक पढाई कर रहा है।



बुधवार, 6 फ़रवरी 2019

लघुकथा संग्रह - तैरती है पत्तियाँ - डॉ॰ बलराम अग्रवाल


लघुकथा साहित्य फेसबुक समूह में डॉ॰ बलराम अग्रवाल की पोस्ट से:

तैरती हैं पत्तियां: त्वरित पाठकीय टिप्पणी
वरिष्ठ साहित्यकार ओमप्रकाश कश्यप की कलम से

बलराम अग्रवाल के ‘तैरती हैं पत्तियां’ शीर्षक से आए लघुकथा संग्रह का पीला मुखपृष्ठ देखकर लगा कि कवर बनाने में चूक हुई है. पत्तियों का जिक्र है तो कवर को हरियाला होना चाहिए था. लेकिन पहली कहानी पढ़ते ही संशय दूर हो गया. जिन पत्तियों को मनस् में रखकर शीर्षक का गठन किया गया है, वे हरी न होकर अपना जीवन पूरा कर पीली हो, पेड़ से स्वतः छिटक गई पत्तियां हैं. छोटी-सी भूमिका में लेखक ने स्वयं कवित्वमय भाषा में इसका उल्लेख किया है. लेकिन भूमिका से गुजरकर पाठक जैसे ही पहली लघुकथा तक पहुंचता तो उसका रहा-सहा संशय भी गायब हो जाता है. संग्रह की पहली ही लघुकथा ‘समंदर: एक प्रेमकथा’ अद्भुत है. इस लघुकथा में भरपूर जीवन जी चुकी एक दादी है. साथ में है उसकी पोती. दोनों के बीच संवाद है. भरपूर जीवन अनेक लोगों के लिए पहेलीनुमा हो सकता है, लेकिन इस लघुकथा को पढ़ेंगे तो इस पहेली का अर्थ भी समझ में आएगा और पीली हो चुकी पत्तियों के प्लावन का रहस्य भी. यह वह अवस्था है जब आदमी उम्रदराज होकर भी बूढ़ा नहीं होता, पत्तियां पीली होने, डाल से छूट जाने के बाद भी मिट्टी में नहीं मिलतीं, उनमें उल्लास बना रहता है. इस कारण वे जलप्रवाह में प्लावन करती नजर आती हैं. प्लेटो ने इसे जीवन की दार्शनिक अवस्था कहा है. अध्यात्मवादी इसके दूसरे अर्थ भी निकाल सकते हैं, लेकिन मैं बस इतना कहूंगा ‘समंदर: एक प्रेमकथा’ अनुभवसिद्ध कथा है.

अभी संग्रह को पूरा नहीं पढ़ा है. शुरुआत से मात्र पंद्रह-सोलह लघुकथाएं ही पढ़ी हैं. इतनी कहानियों में ‘अपने-अपने आग्रह’, ‘अजंता में एक दिन’, ‘उजालों का मालिक’, ‘इमरान’, ‘अपने-अपने मुहाने’, ‘अपूर्णता का त्रास’ अविस्मरणीय लघुकथाएं हैं. इतनी प्रभावी कि इनका असर कम न हो, इसलिए बाकी को छोड़ देना पड़ा. ‘अपने-अपने मुहाने’, ‘अपूर्णता का त्रास’, ‘उजालों का मालिक’ में कहानीपन के साथ-साथ प्रतीकात्मक भी है, वही इन्हें बेजोड़ बनाती है. प्रतीकात्मकता के बल पर ही किसी एक पात्र का सच पूरे समाज का सच नजर आने लगा है. प्रतीकात्मकता की जरूरत व्यंग्य में भी पड़ती है. मगर इन दिनों वह प्रतीकात्मकता से कटा है. इसलिए वह अवसान की ओर अग्रसर भी है.

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बलराम अग्रवाल वरिष्ठ लघुकथाकार हैं. लघुकथा को समर्पित. यूं तो बच्चों के नाटक और बड़ों के लिए कहानियां भी लिखी हैं, लेकिन इन दिनों वे लघुकथा-एक्टीविस्ट की तरह काम कर रहे हैं. अपनी विधा के प्रति ऐसा समर्पण विरलों में ही देखा जाता है....जैसा कि ऊपर बताया गया है, पुस्तक की अभी कुछ ही लघुकथाएं पढ़ी हैं, जैसे-जैसे पुस्तक आगे पढ़ी जाएगी, यह टिप्पणी भी विस्तार लेती जाएगी.

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2019

लघुकथा : मैदान से वितान की ओर


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वरिष्ठ लघुकथाकार श्री भगीरथ द्वारा चुनी हुई 100 हिन्दी लघुकथाओं को वरिष्ठ लघुकथाकार डॉ॰ बलराम अग्रवाल ने धारावाहिक के रूप में अपने ब्लॉग जनागाथा पर 21 पोस्ट्स में संग्रहित किया है, ये महत्वपूर्ण पोस्ट्स निम्नानुसार हैं:


सोमवार, 4 फ़रवरी 2019

लघुकथा वीडियो: -- लघुकथा - मित्रता | हरिशंकर परसाई

लघुकथा वीडियो की श्रंखला में प्रस्तुत है  हरिशंकर परसाई जी की लघुकथा - मित्रता। 

दो विरोधी जब किसी तीसरे के विरोध में उतर आते हैं तो आपस में मित्र बन जाते हैं। सामान्य कार्यालय कर्मचारियों से लेकर देश के बड़े-बड़े राजनीतिक दलों की स्थिति इस एक मिनट से भी कम समय की लघुकथा में परसाई जी ने कह दी है। आइये शिखा त्रिपाठी जी के स्वर में सुनें इसे।



रविवार, 3 फ़रवरी 2019

लघुकथा समाचार : लघुकथा हेतु यूट्यूब चैनल Vibhorविभोर

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श्री विजय विभोर द्वारा एक यूट्यूब चैनल प्रारम्भ किया गया है, जिसके एक विशेष कार्यक्रम "मेरी पहली लघुकथा" के माध्यम से हम हमारी पहली लघुकथा भेज सकते हैं। ईमेल - vibhorvijayji@gmail.com उनकी फेसबुक वाल से: क्या आप लिखना शुरू करना चाहते हैं? तो आपका अपना यूट्यूब चैनल "Vibhorविभोर" आपको मौका दे रहा है। "मेरी पहली लघुकथा" के माध्यम से- भेजिए अपनी पहली लघुकथा और "दिल की बात दिलों तक" में कहानी (हाँ आपकी यह रचना अप्रकाशित, अप्रचारित होनी चाहिए। पहले से लिख रहे रचनाकारों के लिए यह शर्त अनिवार्य नहीं है) सीधे e-mail - vibhorvijayji@gmail.com पर। हम आपकी ईमानदारी पर आँख मूँदकर विश्वास करते हैं। इसलिए आप उचित रचना ही भेजें। चयनित रचनाओं को हम आपके अपने चैनल पर प्रसारित करेंगे। आपकी रचना पर आपका ही अधिकार रहेगा, हम तो मात्र दर्शकों/श्रोताओं तक आपकी रचना को पहुचाने का काम करेंगे। चयनित व प्रसारित रचना का समय आने पर चैनल की तरफ से आपको ससम्मान प्रमाणपत्र भी दिया जाएगा। तो देर किस बात की है? भेजिए अपनी लघुकथाएं/कहानियाँ और अपने साथियों को भी सूचित करें। अपनी रचना भेजें तो शीर्षक में यह जरूर लिखें कि आप रचना को "बोलती लघुकथाएं" के लिए है या "दिल की बात दिलों तक" के लिए है। हाँ अपनी तक आपने अपने इस चैनल "Vibhorविभोर" को सब्स्क्राइब नहीं किया है तो सब्स्क्राइब जरूर कर लें। Email - vibhorvijayji@gmail.com - विजय 'विभोर'

लघुकथा संग्रह "श्रंखला" की समीक्षा - ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'

मारक क्षमता से युक्त लघुकथाओं का  गुल्दस्ता

पुस्तक- श्रंखला (लघुकथा संग्रह)
कथाकार- तेजवीर सिंह 'तेज'

समीक्षक- ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'
पृष्ठसंख्या-176
मूल्य -रुपये 300/-
प्रकाशक- देवशीला पब्लिकेशन 
पटियाला (पंजाब) 98769 30229

समीक्षा 

मारक क्षमता लघुकथा की पहचान है । यह जितनी छोटी हो कर अपना तीक्ष्ण भाव छोड़ती है उतनी उम्दा होती है। ततैया के डंकसी चुभने वाली लघुकथाएं स्मृति में गहरे उतर जाती है । ऐसी लघु कथाएं की कालजई होती है।

लघुकथा की लघुता इसकी दूसरी विशेषता है। यह कम समय में पढ़ी जाती है। मगर लिखने में चिंतन-मनन और अधिक समय लेती है । भागम-भाग भरी जिंदगी में सभी के पास समय की कमी है इसलिए हर कोई कहानी-उपन्यास को पढ़ना छोड़ कर लघुकथा की ओर आकर्षित हो रहा है। इसी वजह से आधुनिक समय में इस का बोलबाला हैं ।

इसी से आकर्षित होकर के कई नए-पुराने कथाकारों ने लघुकथा को अपने लेखन में सहज रुप से अपनाया है। इन्हीं नए कथाकारों में से तेजवीर सिंह 'तेज' एक नए कथाकार है जो इसकी मारक क्षमता के कारण इस ओर आकर्षित हुए । इन्होंने लघुकथा-लेखन को जुनून की तरह अपने जीवन में अपनाया है । इसी एकमात्र विधा में अपना लेखन करने लगे हैं। इसी साधना के फल स्वरुप इन का प्रथम लघुकथा संग्रह शृंखला आपके सम्मुख प्रस्तुत है।

शृंखला बिटिया की स्मृति को समर्पित इस संग्रह की अधिकांश कथाएं जीवन में घटित-घटना, उसमें घुली पीड़ा, संवेदना, विसंगतियों और विद्रूपताओं को अपने लेखन का विषय बनाया है । इनकी अधिकांश लघुकथाएं संवाद शैली में लिखी गई है जो बहुत ही सरल सहज और मारक क्षमता युक्त हैं।

संग्रहित श्रंखला लघुकथा की अधिकांश लघुकथाएं की भाषा सरल और सहज है । आम बोलचाल की भाषा में अभिव्यक्त लघुकथाएं अंत में मारक बन पड़ी है ।वाक्य छोटे हैं । भाषा-प्रवाहमय है । अंत में उद्देश्य और समाहित होता चला गया है।

संवाद शैली में लिखी गई लघुकथाएं बहुत ही शानदार बनी है । इन में कथाओं का सहज प्रवेश हुआ है । संवाद से लघुकथाओं में की मारक क्षमता पैदा हुई है ।

इस संग्रह में 140 लघुकथाएं संग्रहित की गई है । इनमें से मन की बात , सबसे बड़ा दुख, ईद का तोहफा, एमबीए बहू, दर्द की गठरी, दरारे, गुदगुदी, लालकिला, अंगारे, गॉडफादर, इंसानी फितरत, बोझ, बस्ता, भयंकर भूल, नासूर, वापसी, हिंदी के अखबार, पलायन, खुशियों की चाबी, वेलेंटाइन डे, आदि लघुकथाएं बहुत उम्दा बनी है।

सबसे बड़ा दुख -लघुकथा की नायिका को अपना वैधव्य से अपने ससुर का पुत्र-शोक कहीं बड़ा दृष्टिगोचर होता है। इस अन्तर्द्वन्द्व को वह गहरे तक महसूस करती है । वही दर्द की गठरी -एक छोटी व मारक क्षमता युक्त लघुकथा है। यह एक वृद्धा की वेदना को बखूबी उजागर करती है।

मन की बात- की नायिका पलायनवादी वृति को छोड़कर त्याग की और अग्रसर होती है, नायिका की कथा है । यह इसे मार्मिक ढंग से व्यक्त करने में सक्षम है ।अंगारे- लघुकथा धार्मिक उन्माद का विरोध को मार्मिक ढंग से उजागर करने में सफल रही है।

खुशियों की चाबी- में टूटते परिवार को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया गया है । वहीं भयंकर भूल- में नायिका के हृदय की पीड़ा को मार्मिक ढंग से उकेरा गया है ।
कुल मिलाकर अधिकांश मार्मिक, हृदयग्राही और संवेदना से युक्त बढ़िया बन पड़ी है। कुछ लघुकथाएं कहानी के अधिक समीप प्रतीत होती है । मगर उनमें कथातत्व विद्यमान है।
संग्रह साफ-सुथरे ढंग से अच्छे कागज और साजसज्जा से युक्त प्रकाशित हुआ है। 176 पृष्ठ का मूल्य ₹ 300 है। जो वाजिब हैं ।
लघुकथा के क्षेत्र में इस संग्रह का दिल खोल कर स्वागत किया जाएगा ऐसी आशा की जा सकती है।

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ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश' ,
पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़
जिला -नीमच (मध्यप्रदेश)
पिनकोड- 458226
9424079675

लघुकथा समाचार: सरल काव्यांजलि की इंदौर में गोष्ठी आयोजित




उज्जैन 2 फरवरी 2019 

संस्था सरल काव्यांजलि द्वारा एक साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन इंदौर में किया गया। अध्यक्षता साहित्यकार श्री पुरुषोत्तम दुबे ने की।

अतिथि उपन्यासकार अश्विनी कुमार दुबे थे। कार्यक्रम में सतीश राठी द्वारा परिवर्तन एवं ठोकर नाम की लघुकथाएं प्रस्तुत की गईं। राम मूरत राही ने भूमि एवं तरक्की लघुकथाएं, संतोष सुपेकर द्वारा लघुकथा नया नारा,दीपक गिरकर ने तफ्तीश जारी ह नामक लघुकथा प्रस्तुत किया।

अशोक शर्मा भारती ने कविता आकलन एवं मार्मिक कविता बसंत प्रस्तुत की। अश्विनी कुमार दुबे ने अपनी व्यंग्य रचना शैतान के दिलचस्प कारनामे प्रस्तुत की। संचालन सतीश राठी ने किया। आभार संतोष सुपेकर ने माना।

News Source:
http://avnews.in/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%B2-%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%BF-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8C%E0%A4%B0-%E0%A4%AE/

लघुकथा - सच्चाई का हलवा

वह दुनिया का सबसे बड़ा बावर्ची था, ऐसा कोई पकवान नहीं था, जो उसने न बनाया हो। आज भी पूरी दुनिया को सच के असली मीठे स्वाद का अनुभव हो, इसलिये वह दो विशेष व्यंजन सच और झूठ के हलवे को बनाने जा रहा था। उसे विश्वास था कि दुनिया इन दोनों व्यंजनों को खाते ही समझ जायेगी कि अच्छा क्या है और बुरा क्या। 

उसने दो पतीले लिये, एक में ‘सच’ को डाला दूसरे में ‘झूठ’ को। सच के पतीले में खूब शक्कर डाली और झूठ के पतीले में बहुत सारा कडुवा ज़हर सरीखा द्रव्य। दोनों में बराबर मात्रा में घी डाल कर पूरी तरह भून दिया। 

व्यंजन बनाते समय वह बहुत खुश था। वह एक ऐसी दुनिया चाहता था, जिसमें झूठ में छिपी कडुवाहट का सभी को अहसास हो और सच की मिठास से भी सभी परिचित रहें। उसने दोनों पकवानों को एक जैसी थाली में सजा कर चखा।

और उसे पता चल गया कि सच फिर भी कडुवा ही था और झूठ मीठा... हमेशा की तरह।
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- डॉ॰ चंद्रेश कुमार छतलानी

शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2019

सुरेन्द्र कुमार जी अरोड़ा की दो लघुकथाएं

जेहाद 

" अमां ठोक इसे ! "
" ट्रिगर दबा और धायं की साईलेंसरी आवाज के साथ एक जवान जिंदगी लाश में बदल  गयी ! वादी  में एक हल्की सी चीख गूंजी और फिर किसी भुतहे सन्नाटे की तरह  सब कुछ शांत हो गया ।
उस चीख ने न जाने कैसा दर्द पैदा किया कि गोली चलने वाला दरिंदा बोल उठा , "अल्लाह की खिदमत में कहीं इसे गलत तो नहीं पेश कर दिया । "
" भाई मियां अब सोचो मत ! गलत या सही , कर दिया तो कर दिया । वैसे यकीन करो इसे ठोककर कोई गलती नहीं हुई है । साला काफिरों की फ़ौज के लिए लड़ता था । इसलिए काफिर ही था । इसे सजा मिलनी जरूरी थी । इसकी मौत की खबर जब पूरी घाटी में फैलेगी तो  इसका खानदान  तो क्या घाटी में रहने वाले हर बाशिंदे की  कई पुश्ते कभी ये सोचेंगी भी नहीं कि अल्लाह की फ़ौज के खिलाफ लड़ने का मतलब है अल्लाह के हुकुम की नाफ़रमानी और जब कोई शख्स अल्लाह के हुकुम की नाफ़रमानी  करता है तो  उसका सिर्फ एक ही हश्र होता है - जिबह । इस काफिर की रूह शुक्र मनाएगी  कि इसे हमारे खंजर  ने जिबह नहीं किया , राइफल से निकली गोली के एक  झटके  से ही इसके पाप धुल गए और यह खुदा की सल्तनत में फरियादी की तरह जा बैठा  । " झाड़ियों में छिपे  दूसरे दरिंदें  ने भी अपनी ए । के । 47 को संभालते हुए मुस्तैदी से कहा , " ओये ! वो देख जीता - जागता गुलाब । जवान शोरबा । हुस्न का चलता - फिरता टोकरा । इतना करारापन देखा है कहीं ?  "
 " ठोक दूँ  इसे भी । उसी काफिर की बहन लगती है ।" पहला पूरे जुनून में था ।
" पागल हो गया है क्या । ये झटके का माल नहीं है । ऐसा करते हैं पहले इसका जायका लेते हैं । फिर आगे की सोचेंगें । " दूसरे  ने अपने होठों को जबान से तर करते हुए दरिंदगी से सराबोर अपनी  रूह का एक और नमूना पेश किया  ।
" तो क्या इसका लोथड़ा कच्चा चबायेगा ? "  पहला कुछ समझ नहीं पाया ।
" अमां इतने दिन हो गए फातिमा को छोड़े हुए । तुझे  भी तो घर से बेदखल हुए  दो महीने हो गए हैं  ।  हम भी तो इंसान हैं यार । जिस्मानी  भूख हमें भी  लगती है । जवानी  हर तरह का जोर मरती है । आज ये माल दिखा है , पहले मैं इसे फातिमा बनाता हुँ फिर तू इसे कुछ भी समझ लियो । " दूसरा वहशीपन की नई मिसाल कायम करने पर उतर आया ।
" नहीं यार ! ये ठीक नहीं है । तू कहे तो मैं इसे ठोक देता हुँ , पर ये करना ठीक नहीं है ! इसने हमारा क्या बिगाड़ा है ?  " पहले का जमीर शायद  बाकी था पर दूसरे ने उसकी बात पर कोई गौर नहीं किया और आती हुई उस बाला पर भेड़िये की तरह टूट पड़ा । अभी उसने अपनी दरिंदगी को अंजाम देना शुरू ही किया था कि पलक झपकते ही जय माँ काली के उद्घोष के साथ  पांच जवानो की टुकड़ी की राइफलों से निकली गोलियों ने  दोनों दरिंदों की दरिंदगी को   लाशों में तब्दील कर दिया   ।   

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किशोरी मंच
     
" मानसी चल जल्दी से खाना खा ले , मुझे ढेरों काम हैं  ।"
" जल्दी न करो माँ ! पहले मुझे साबुन ला कर दो ।"
" साबुन का क्या करेगी  ,उसके साथ रोटी खाएगी क्या  ? "
"  गुस्सा मत करो माँ , सुबह से घर  से बाहर थी ,  हाथों  ने न जाने कितनी चीजों को छुआ  है , बहुत गंदे हो गए हैं  । हो सकता है बहुत सी खतरनाक  बीमारिओं के  कीटाणु  भी इनसे चिपक गए होंगें , अगर ऐसे ही  खाना खा लिया तो वे सारे कीटाणु  मेरे पेट में जाकर मुझे बीमार कर सकते हैं ।"
" बड़ी समझदार हो गयी है , जा मिटटी से हाथ धो ले , साबुन हो तो दूँ । इतनी महंगाई में बच्चों का पेट पालें या साबुन से उनके चेहरे चमकाएं ।"
" माँ घर में साबुन का होना उतना ही जरूरी है जितना कि रसोई में आटा । मिटटी से हाथ धोने का मतलब है कि बीमारियों के कीटाणुओं में और भी ज्यादाबढ़ोतरी और उसके साथ बिमारिओं को न्योता ।"
" तो बता क्या करूँ ,घर में साबुन नहीं है  ।"
" नहीं है तो मैं खुद जा कर ले आती हूँ ।"
" क्या सचमुच  तू दूकान पर जा कर साबुन की टिकिया लाएगी  ? आज तक तो बगल की दूकान से बिस्कुट  ले कर  आने  में भी आनाकानी करती थी कि गली के गंदे लड़के , आती - जाती  लड़कियों को तंग करते हैं ।।"
" हाँ माँ ।पता भी है आज हमारे स्कूल में एक अनोखा कार्यक्रम रखा गया था  जो अब से पहले कभी नहीं रखा गया  । इस कार्क्रम ने तो हम सब लड़किओं की सोच को ही बदल कर रख दिया ।"
" बेटा ऐसा क्या था उस कार्यक्रम में जो उसके लिए  तू इतना चहक  रही है ।"
" माँ उस कार्यक्रम का नाम था किशोरी मंच ।इसका आयोजन हमारे देश की   केंद्रीय सरकार के अंतर्गत चलने वाले सर्व शिक्षा अभियान के अधिकारिओं ने करवाया था । इसमें हमारे स्कूल की बड़ी मैडम के साथ - साथ हमारी क्लास की मैडम ने भी बड़ी अच्छी बातें बताईं । हमें ऐसी - ऐसी बातें बताईं और ट्रेनिंग दी कि मन कर रहा था   कि यह कार्यक्रम तो कभी खत्म ही न हो ।"
" स्कूल वालों ने ऐसा क्या सिखाया  कि आज तू वो काम करने की बातें कर रही है जो तू पहले मेरे कहने पर भी नहीं करती थी ।"
" माँ ! पहली बात तो यह कि एक बहुत ही  बुद्धिमान मैडम आयीं थी जिन्होंने बड़े अच्छे ढंग से यह बताया कि हम अपनी रोज मर्रा की  जिंदगी में अगर हम सफाई से रहना सीख लें तो  बहुत सी बिमारिओं से आसानी से  बच सकते हैं । इन छोटी - छोटी बिमारिओं के कारण जहाँ एक तरफ बीमार व्यक्ति के कार्य करने की ताकत में कमीं आती है वहीं दूसरी ओर घर और देश की कमाने की ताकत भी कम हो जाती है । हमारा फ़र्ज़ है की हम स्वयं को स्वस्थ रखें । हर व्यक्ति के स्वस्थ रहने से घर और देश दोनों अपने - अपने काम अपनी पूरी ताकत से करते हैं जिससे दोनों  की माली हालत में सुधार होताहै और खुशहाली आती है । इसलिए अब मैं अपनी और घर की साफ़ - सफाई का पूरा ध्यान रखूंगी ।"
" वाह ! मेरी बेटी तो एक ही दिन में इतनी बड़ी हो गयी । दूसरी बात  क्या बताई किशोरी मंच में ?'
"  माँ वह तो मैं भूल ही गयी । एक और मैडम भी आई थी । उन्होंने हम लड़किओं को बताया कि हमें किसी भी  हाल में खराब नियत वाले लड़कों से डरना नहीं है , अगर कोई खराब नियत से किसी लड़की के साथ बदसलूकी करे तो उसको सही सबक सिखाने में देर नहीं करनी है । इस काम के लिए उन्होंने वो तरीके भी बताये कि कैसे खुद की रक्षा करें और जरूरत पड़ने पर उन पर  वार से पीछे भी न हटें । अब जब भी जरूरत होगी मैं अपनी सुरक्षा बिना किसी से डरकर  खुद ही  करूंगी ।"
" चलो मेरी सिरदर्दी खत्म हुई । अब तू खुद ही  अपनी हर तरह की सफाई का भी ध्यान तो रखेगी  ही साथ ही मजबूत भी बनेगी ।"
" हाँ माँ अब हम लड़कियों को दिल्ली की  निर्भया की तरह बदमाशों से लड़ते हुए असमय काल  का ग्रास नहीं बनना है बल्कि रोहतक की आरती और पूजा की तरह बदमाशों की पिटाई करके उन्हें जेल के सीखचों के पीछे भेजना है ।"
" वाह ! आज तो मेरी बेटी का  रूप ही बदला हुआ है ।"
" इतना ही नहीं माँ , सर ने सरकार की तरफ से हमें उपहार स्वरूप यह सौ रूपये भी दिलवाये  । यह रूपये मैं कभी खर्च नहीं करूंगी । हमेशा संभालकर रखूंगी । यह मुझे हमेशा याद दिलवाते रहेंगें कि हमेशा सफाई का ध्यान रखना है और शरीर से ही नहीं दिमाग से भी  मजबूत बनना  है ।"
“  ठीक   है मेरी शेर  बच्ची अब साबुन की टिकिया तो ले आ । “
“ अभी लाई माँ ।” 
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सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
डी - 184 , श्याम पार्क एक्स्टेनशन  साहिबाबाद  - 201005 ( ऊ । प्र । ) 
मोबाईल : 9911127277