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शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2024

वैश्विक सरोकार की लघुकथाएं । भाग 5 । युद्ध पर लघुकथा सर्जन

आदरणीय मित्रों,
वैश्विक सरोकार की लघुकथाओं के इस भाग में यह युद्ध पर चर्चा कर रहे हैं। देशों के दिमागों में फैली यह महामारी युद्ध सबसे अधिक विनाशकारी वैश्विक मुद्दों में से एक है, जो समाज को बाधित करता है, लाखों लोगों को विस्थापित करता है, और अथाह मानवीय पीड़ा का कारण बनता है। पूरे इतिहास में, युद्ध विभिन्न कारकों से प्रेरित रहे हैं, जिनमें राजनीतिक सत्ता संघर्ष, क्षेत्रीय विवाद, जातीय तनाव और वैचारिक संघर्ष शामिल हैं। युद्ध के परिणाम युद्ध के मैदान से कहीं आगे तक फैले हुए हैं, जो घरों, स्कूलों, अस्पतालों और आवश्यक बुनियादी ढाँचे के विनाश के माध्यम से नागरिकों को प्रभावित करते हैं। सीरिया, अफ़गानिस्तान और यमन जैसे देशों में, चल रहे संघर्षों ने मानवीय संकटों को जन्म दिया है, जिसमें आबादी के बड़े हिस्से को खाद्य असुरक्षा, स्वास्थ्य सेवा की कमी और विस्थापन का सामना करना पड़ रहा है। युद्ध सामाजिक विभाजन को भी गहरा करता है, आक्रोश को जन्म देता है, और अक्सर आर्थिक प्रगति को दशकों तक पीछे धकेलता है। युद्ध का वित्तीय बोझ चौंका देने वाला है, क्योंकि सरकारें सैन्य अभियानों को निधि देने के लिए सामाजिक कार्यक्रमों, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा से संसाधनों को हटा देती हैं। उदाहरण के लिए, इराक और अफ़गानिस्तान में युद्ध की लागत अमेरिका के लिए खरबों डॉलर में चली गई है, जिसने वैश्विक अर्थव्यवस्था पर स्थायी प्रभाव डाला है। युद्ध की आग में फंसे देशों को अक्सर दीर्घकालिक आर्थिक तबाही का सामना करना पड़ता है, क्योंकि व्यवसाय ध्वस्त हो जाते हैं, उद्योग ठप हो जाते हैं और विदेशी निवेश कम हो जाता है। इसके अलावा, युद्ध अक्सर महत्वपूर्ण पर्यावरणीय गिरावट की ओर ले जाते हैं, क्योंकि बमबारी से भूदृश्य क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जंगल नष्ट हो जाते हैं और सैन्य गतिविधियों से होने वाला प्रदूषण प्राकृतिक संसाधनों को दूषित कर देता है। संघर्ष समाप्त होने के बाद भी ये प्रभाव दशकों तक रह सकते हैं।
आज की दुनिया में, युद्ध एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है, यूक्रेन, सूडान और अन्य क्षेत्रों में संघर्ष जारी है। उदाहरण के लिए, यूक्रेन में युद्ध ने वैश्विक खाद्य और ऊर्जा आपूर्ति को बाधित कर दिया है, जिससे कीमतें बढ़ गई हैं और व्यापक आर्थिक अस्थिरता पैदा हुई है। जीवन और विनाश के तत्काल नुकसान के अलावा, युद्ध कई दीर्घकालिक समस्याओं को जन्म दे सकते हैं, जैसे शरणार्थी संकट, बढ़ती गरीबी और बाधित स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों के कारण बीमारियों का प्रसार। संघर्षों का एक डोमिनो प्रभाव भी हो सकता है, जो पूरे क्षेत्रों को अस्थिर कर सकता है और चरमपंथी समूहों के उदय सहित नए सुरक्षा खतरों को जन्म दे सकता है। एक दूसरे से अत्यधिक जुड़े हुए विश्व में, एक क्षेत्र में युद्ध के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं, जिससे वैश्विक व्यापार, प्रवासन पैटर्न और अंतर्राष्ट्रीय संबंध प्रभावित हो सकते हैं। युद्ध के मूल कारणों, जैसे राजनीतिक अस्थिरता, असमानता और संसाधन प्रतिस्पर्धा को संबोधित करने के प्रयासों के बिना, दुनिया निरंतर संघर्ष के चक्र में फंसने का जोखिम उठाती है।
साथियों,
कीर्तिशेष मधुदीप गुप्ता जी सर की रचना 'युद्ध' जो उजागर करती है, वह एक बड़ा सत्य है।
उनके ही शब्दों में एक रचनाकार की संवेदना भी बताना चाहूंगा,
"दोस्तो ! क्या विश्व में किसी शक्ति-महाशक्ति का कोई दीन-ईमान है? मेरे विचार से सभी के अपने-अपने हित सबसे पहले हैं। इस समय एक तरफ तो समूचा विश्व पकिस्तान को आतंक का जन्मदाता कह रहा है तो दूसरी तरफ रूस उसके साथ साँझा सैनिक अभ्यास कर रहा है ताकि उसे अपने हथियार बेच सके। बात तो सारी वहीं आकर टिक गयी कि कैसे महाशक्तियाँ हमें आपस में लड़वाकर अपने हथियारों की बिक्री कर सके। हम लड़ेंगे तो उनके कारखाने चलेंगे, उनकी अर्थव्यवस्था उन्नत होगी।" - मधुदीप जी
और इस विषय पर उन्हीं की लघुकथा,
युद्ध (स्व. मधुदीप जी की लघुकथा)
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तोप और टैंकों से लैस दोनों देशों की सेनाएँ अन्तर्राष्ट्रीय बोर्डर पर जमा थीं। दोनों देशों के मध्य गुरिल्ला युद्ध तो लम्बे अरसे से चल ही रहा था मगर अब किसी भी पल युद्ध का साफ ऐलान हो सकता था। दोनों देशों के नागरिकों में देशप्रेम पूरे उफान पर था। पल-पल उत्तेजना बढ़ती जा रही थी।
“शान्ति की इच्छा को हमारी कमजोरी न समझा जाए।” इधर से उछाला गया जुमला उधर जा रहा था।
“हमें बुजदिल न समझा जाए। हम अपनी पिछली सभी हारों का बदला लेने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।” उधर से उछाला गया जुमला इधर आ रहा था।
“पड़ोसी देश अपनी दहशतगर्दी की नीति से बाज आए वर्ना एक बार फिर उसका भूगोल बदल जायेगा।” एक धमकी इधर से उधर जा रही थी |
“हमने एटम बम शबे बारात में फोड़ने के लिए नहीं बनाए हैं।” एक धमकी उधर से इधर आ रही थी।
विश्व की महाशक्ति एक देश की पीठ पर सवार थी। विश्व की महाशक्ति दूसरे देश की गर्दन से चिपकी हुई थी। विश्व की महाशक्ति मन्दी की गिरफ्त में थी |
दोनों देशों की नौसेना के जंगी बेड़े समुद्र में आगे बढ़ने लगे थे। दोनों देशों के फाइटर विमान आसमान में मँडराने लगे थे दोनों देशों की सरहदों पर तोप-टैंकों में गोला-बारूद भरा जाने लगा था।
महाशक्ति के आयुध निर्माता जश्न मना रहे थ। उनके कारखानों में तीनों पालियों में जोर-शोर से काम चल रहा था।
महाशक्ति के चेहरे पर कुटिल मुस्कान थी। ***

- स्व. मधुदीप
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मधुदीप जी सर की रचना के साथ ही एक अन्य रचना भी प्रेषित है। मोहन राजेश कुमावत जी सर की यह रचना 'मेहरबान' भी विषय के साथ पूर्ण न्याय करती है। इस रचना की पिक निम्न है:



सादर,
- चंद्रेश कुमार छतलानी