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शुक्रवार, 21 नवंबर 2025

लघुकथा लेखन में अनुवाद का महत्व | मनोरमा पंत | आलेख

विभिन्न भाषाओं के बीच अनुवाद का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। अनुवाद ने ही हमें विश्व के विविध साहित्यिक, सांस्कृतिक और दार्शनिक मूल्यों से परिचित कराया है। आज हम अलग-अलग सभ्यताओं को एक-दूसरे के करीब पाते हैं, तो उसके पीछे अनुवाद की अदृश्य लेकिन अनिवार्य भूमिका रही है। भारत जैसे बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक देश में, जहाँ 453 जीवित भाषाएँ, 270 मातृभाषाएँ और 1369 बोलियाँ प्रचलित हैं - वहाँ अनुवाद केवल भाषा नहीं, बल्कि संस्कृति, भाव और विचार का भी आदान-प्रदान है। वेद, उपनिषद, पुराण, पंचतंत्र, हितोपदेश जैसे भारतीय ग्रंथों की कथाएँ विभिन्न भाषाओं में अनुवादित होकर वैश्विक धरोहर बन गईं। वहीं ईसप की कथाओं जैसी पश्चिमी लघुकथाएँ भारतीय भाषाओं में लोकप्रिय हुईं।

लघुकथा अपनी संक्षिप्तता और सामाजिक तीव्रता के कारण आज के समय की माँग बन गई है। अनुवादक के माध्यम से यह विधा देश-विदेश में पहचानी जा रही है। तेजी से बदलते समय में कई भाषाएँ विलुप्त हो रही हैं। ऐसे में अनुवादित लघुकथाएँ भाषाई धरोहरों को संरक्षित कर रही हैं। भारत में अब तक 42 भाषाएँ लुप्त हो चुकी हैं और 147 संकट में हैं।

जब देश में भाषा-आधारित राजनीति और टकराव बढ़ रहे हों, तब अनुवादित लघुकथाएँ भाषाओं के बीच संवाद का पुल बनती हैं। जैसे महाराष्ट्र में हिन्दी विरोध के बीच हिन्दी भाषी क्षेत्रों में मराठी और अन्य भाषाओं की लघुकथाओं का अनुवाद हो रहा है। अशोक भाटिया ने “रूसी लघुकथाओं का पुनर्पाठ”—टॉलस्टॉय, चेखव, गोर्की आदि—को हिन्दी में प्रस्तुत किया है। कल्पना भट्ट और संतोष सुपेकर ने हिन्दी लघुकथाओं का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया है। बेबी कारफोमा और हीरालाल मिश्र ने बांग्ला लघुकथाओं का हिन्दी में अनुवाद किया है; वहीं हिन्दी लघुकथाओं का मराठी में अनुवाद मंजूषा मूले, डॉ. वसुधा गाडगिल, संतोष सुपेकर, उज्ज्वला केलकर और अंतरा करवड़े ने किया है। हिन्दी से नेपाली और नेपाली से हिन्दी में अनुवाद डॉ. पुष्कर राज भट्ट, रचना शर्मा और किशन पौडेल ने किया है। आशीष श्रीवास्तव ‘अश्क’ ने हिन्दी लघुकथाओं का उर्दू में, डॉक्टर रीना ने हिन्दी लघुकथाओं का मलयालम में, श्यामसुन्दर अग्रवाल और जगदीश राय कुलरियाँ ने हिन्दी लघुकथाओं का पंजाबी में, रजनीकांत एस. शाह ने हिन्दी लघुकथाओं का गुजराती में, मिन्नी मिश्रा ने हिन्दी लघुकथाओं का मैथिली में, रेखा शाह आर.बी. ने भोजपुरी में और हेमलता शर्मा ‘भोली बेन’ ने मालवी बोली में अनुवाद किया है।

योगराज प्रभाकर का अनुवाद के क्षेत्र में सराहनीय योगदान रहा है। वे हिन्दी लघुकथाओं का पंजाबी और उर्दू में अनुवाद करते ही हैं, साथ ही पंजाबी और उर्दू लघुकथाओं का हिन्दी में अनुवाद करने की दक्षता भी रखते हैं। हाल ही में योगराज जी का प्रकाशित “पंजाबी लघुकथा-संग्रह” चर्चा में है।

इन अनुवादकों की विशेषता यह है कि वे केवल शब्दों का अनुवाद नहीं करते, बल्कि मूल भाषा के भाव, उद्देश्य और शैली को आत्मसात कर दूसरे पाठकों तक पहुँचाते हैं। इससे अनूदित लघुकथाएँ न केवल पठनीय होती हैं, बल्कि प्रभावशाली भी बनती हैं। अनुवाद से भाषाई सौहार्द और एकता, विविधताओं में एकरूपता का अनुभव, अंतर-भाषायी समझ का विकास, संस्कृति और साहित्य का साझा बोध तथा नई भाषाओं और विचारों का साक्षात्कार होता है। जैसे-जैसे पाठक विभिन्न भाषाओं की अनूदित लघुकथाएँ पढ़ते हैं, वे इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि दुख–सुख, संघर्ष और संवेदनाएँ सार्वभौमिक होती हैं। यही अनुवाद का सार है - भिन्न भाषाओं में एक जैसी मानवता को पाना।

अनुवाद किसी रचना के अर्थ, भावना और सांस्कृतिक बारीकियों को एक भाषा से दूसरी भाषा में सटीक रूप से संप्रेषित करने की प्रक्रिया है, जिसमें मूल पाठ की निष्ठा और लक्ष्य भाषा में सहज प्रवाह—दोनों का संतुलन आवश्यक है। इसके मूल में ‘समतुल्यता’, ‘सटीकता’, ‘प्रवाह’, ‘सांस्कृतिक अनुकूलन’ और लेखक के मूल आशय की समझ शामिल है। एक कुशल अनुवादक को मूल लेखक की शैली, बारीकियों और दोहरे अर्थों को समझकर उन्हें लक्ष्य भाषा में स्वाभाविक रूप से संप्रेषित करना होता है।

अनुवाद प्रक्रिया में अनुवादक मूल पाठ की भावनाओं को समझकर उसे लक्ष्य भाषा के अनुकूल, स्वाभाविक और सुंदर रूप में प्रस्तुत करता है। अनुवाद विभिन्न साहित्यिक कृतियों तक पहुँच को सुगम बनाता है और उनके इर्द-गिर्द के संवाद को समृद्ध करता है। अनुवाद सांस्कृतिक आदान-प्रदान, लेखक की पहुँच बढ़ाने, सहानुभूति उत्पन्न करने और मूल भाषा की बारीकियों को बनाए रखने में सहायक है। अनुवादक की भूमिका केवल भाषा का रूपांतरण नहीं, बल्कि लेखक की शैली और आशय को संरक्षित रखना भी है, जिससे रचना लक्ष्य भाषा में स्वाभाविक लगे। अनुवादक सांस्कृतिक और वैचारिक अंतर्दृष्टि प्रदान करके साहित्यिक विमर्श को समृद्ध करते हैं।

लघुकथा में अनुवाद न केवल भाषाओं का सेतु है, बल्कि साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक सौहार्द का माध्यम भी है। आज के वैश्विक युग में, जहाँ संचार का दायरा व्यापक है, वहाँ लघुकथा जैसी संक्षिप्त और प्रभावशाली विधा का अनुवाद एक मूल्यवान साहित्यिक साधना है। यह न केवल भाषाओं को बचाता है, बल्कि उन्हें नई पीढ़ियों और नई सीमाओं तक भी पहुँचाता है।

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मनोरमा पंत  / 92291131 95

लेखिका परिचय:

भोपाल निवासी मनोरमा पंत समकालीन हिंदी साहित्य की सक्रिय और संवेदनशील रचनाकार हैं। उनका लघुकथा संग्रह "ज़िंदगी की अदालत में" और कविता संकलन "भाव सरिता" पाठकों द्वारा अत्यंत सराहा गया है। वे लघुकथा-संग्रह "उत्कर्ष" की सह-संपादक रही हैं और अब तक 15 से अधिक सांझा संकलनों में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा चुकी हैं।

समीक्षा-लेखन में भी वे समान रूप से सक्रिय हैं। उन्होंने बेताल पच्चीसी, ऋषि रेणु, भज मन, गुलाबी गलियां, मन का फेर, कलम बोलती है, मैंने देखा है, सूर्य देव सहित कई महत्वपूर्ण कृतियों की समीक्षाएँ लिखी हैं।

आलेख, लघुकथाएँ, पर्यावरण विषयक लेख और व्यंग्य उनकी प्रमुख लेखन विधाएँ हैं जो विविध पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होते रहते हैं। साहित्यिक रुचि और विचार-गहराई के कारण उनका साक्षात्कार वर्ल्ड पंजाबी टाइम्स, जन सरोकार मंच, कथा दर्पण और वरिष्ठ फोटोग्राफर जगदीश कौशल द्वारा लिया जा चुका है।

मनोरमा पंत को उनके निरंतर और गुणवत्तापूर्ण लेखन हेतु अनेक साहित्यिक सम्मान प्राप्त हुए हैं।

शुक्रवार, 26 जुलाई 2024

आलेख । प्रयोगात्मक लघुकथा आज के संदर्भ में । मनोरमा पंत

वर्ष 2023 में प्रसिद्ध लघुकथाकार योगराज प्रभाकर द्वारा संपादित प्रयोगात्मक लघुकथा विशेषांक ‘लघुकथा कलश’ पाठकों के सम्मुख आया। इसके तुरन्त बाद 2024 में बलराम अग्रवाल की नई ‘बेताल पच्चीसी’ प्रयोगात्मक लघुकथा संग्रह के रूप में प्रकाशित हुई। प्रयोगात्मक लघुकथाएँ ऐसे दौर में आई जब लघुकथा का एक निश्चित स्वरूप स्थापित हो चुका था और लोकप्रियता में बुलंदी छू रही थी। तो  फिर  प्रश्र  उठता है कि लघुकथा में प्रयोगों की आवश्यकता क्यों हुई? 

इसका उत्तर प्रबुद्ध लघुकथाकार प्रभाकर योगराज जी ने ‘लघुकथा कलश’ के संपादकीय में दिया ,वह भी कविता के रूप में-

"करें गर बात कविता की, हुआ बदलाव है आला,

 लहक, अक्षुण्ण रखकर, काट डाला छंद का जाला।

 ये जकड़न से मिली आजादी थी ,अनुभूति सुखदायी 

 तभी खुली हवा में आज कविता सांस ले पाई।

 न पहले सी रही कविता, न नॉवल की, रवानी,

 सभी बदले, हमारी लघुकथा पहले सी क्योंकर हैं?"

योगराज का सीधा-सीधा कहना  है कि समय के साथ-साथ जब साहित्य की  सभी विधाएं बदली तो लघुकथा क्यों न बदले? 

वे अपने प्रयोगों के समर्थन  में लिखते हैं कि कोई  भी व्यक्ति अपनी बात शायरी में ,खत में, डायरी में, खबर के रुप में, बेताल के रुप में कह सकता है।

इस बात को साबित  कर दिखाया  167 लघुकथाकारों ने "लघुकथा कलश" में विविध  शैलियों में  लिखकर, जिनमें अनुभवी और नये रचनाकार दोनों सम्मिलित रहे।

बलराम अग्रवाल की "नई  बेताल  पच्चीसी" को भी भरपूर प्रशंसा मिली।

लघुकथा का मुख्य उद्देश्य है, लोकरंजन  के साथ-साथ समय  की विसंगतियों को सामने लाना। यह कार्य बलराम जी की नयी "बेताल पच्चीसी" के बेताल ने किया, आमजन की  गम्भीर समस्याओं को व्यंग्य, कटाक्ष के द्वारा  उजागर करके इन बेताल कथाओं ने पाठकों का भरपूर मनोरंजन किया और उनके दिल में जगह बना ली। मजे की बात यह है कि कथा पच्चीसी का बेताल डरावना नहीं है, उसका व्यवहार भी आमजन जैसा है। वह मनमौजी है और कथा सुनाने/सुनने के बाद कहीं भी लटक जाता है। राजा विक्रमादित्य कभी-कभी उसे विवश कर देते हैं कि वे कथा कहेगें,और उत्तर बेताल को देने पडेगे।

इन प्रयोगात्मक लघुकथाओं के पक्ष में इन्दौर  के लघुकथाकार डाॅ.पुरुषोतम अपने लेख "लघुकथा और काल-परिपेक्ष्य में प्रायोगिकता" में लिखते हैं कि "नित नये प्रयोगों के रचनात्मक कौशल्य से ही साहित्य की विधाओं में निरन्तर विकास के सोपान दृष्टव्य हैं। कल के साहित्य में जो शब्द जिस अर्थ मेग्निफ़ाइन्ग-ग्लास होते थे,आज के साहित्य में वे ही शब्द नये अर्थ के साथ प्रयुक्त होकर भाषा में नया शिल्प, नई शैली का संवाहक बने हुए  है।"

इतनी वर्णित खूबियाँ होने के पश्चात भी नये प्रयोग अनेक साहित्यकारों को पचे नहीं और परिणामस्वरूप लघुकथा में प्रयोग ने लघुकथाकारों को दो खेमों में बाँट दिया। प्रयोगों के विरोधी खेमे का कहना है कि -"इन प्रयोगवादी लघुकथा लेखन ने तो लघुकथा के ढांचे को ही पूरी तरह ध्वस्त कर दिया, जिससे लघुकथा की आत्मा ही मर गई।"

इस खेमे का स्पष्ट कहना है कि प्रयोग नये नहीं हैं, शैलियां वही परम्परागत है बस कलेवर बदल दिया गया है। नये प्रयोगों के नाम पर पुरानी शराब नयी बोतल में परोसी जा रही है। लघुकथा के बीज तो वैदिक काल में ही    प्रस्फुटित हो चुके थे। पौराणिक काल  की राजा परीक्षित  की कहानी, शुक रंभा संवाद से लेकर तीजा, करवा चौथ, महालक्ष्मी  की कथा सब लघुकथा के ही विभिन्न रुप हैं। इनमें कोई  वाचिक रुप हैं,कोई संवाद शैली में। प्रश्नोत्तर या साक्षात्कार शैली में उदाहरण है, विष्णु पुराण  की कथा जिसमें विष्णु जी नारद के इस दर्प को खंडित करते हैं कि उनसे बड़ा विष्णु भक्त पूरे ब्रह्मांड में कोई नहीं है। पूरी कथा प्रश्नोत्तर में वर्णित है। आज इसे साक्षात्कार शैली या संवाद शैली कह सकते हैं। वाल्मीकि रामायण से लेकर महाकाव्यों मे विभिन्न आख्यान इनके अन्य उदाहरण हैं।

कुछ भी हो नये प्रयोगों ने लघुकथा के संसार में हलचल तो मचा दी है।

आज के संदर्भ में मानें या न मानें प्रयोगात्मक  लघुकथाओं  का चलन  बढ रहा है। अनकहे कथानक  वाली अभिवञ्जनात्मक लघुकथाएं  लिखी जा रही हैं। पौराणिक कथाएं आधुनिक  संदर्भ में लिखी जा रही हैं। प्रकृति का मानवीयकरण लघुकथाकारों का प्रिय विषय है। प्रयोगात्मक लघुकथाओं के विभिन्न  शैलियों में रुप वर्णित किये गये हैं जैसे विज्ञापन, साक्षात्कार , समाचारपत्र , डायरी, वर्णनात्मक, आत्मकथात्मक, आत्मालाप, पत्र, तोता मैना,बेताल, अकबर-बीरबल शैली आदि।

हकीकत तो यह है कि मनुष्य स्वभाव  ही है कि वह नवीनता चाहता है। प्रायः सभी लघुकथाकारों ने कोई न कोई  प्रयोग  किया है। प्रसिद्ध  लघुकथाकार अशोक भाटिया जी की हाल में ही प्रकाशित  "सूत्रधार " नामक लघुकथा-संग्रह की  'आत्मालाप' तथा 'माँ बेटा संवाद 'प्रयोगशील  लघुकथाएं  हैं। प्रसिद्ध  साहित्यकार प्रो.बी .एल .आच्छा ने, जो एक सफल व्यंग्यकार  होने के साथ-साथ  एक लघुकथाकार और समीक्षक भी हैं, अशोक भाटिया को भाव संवेदी यथार्थ का प्रयोगशील लघुकथाकार कहा है।

कहने का तात्पर्य यह है कि प्रयोग तो होते रहते हैं चाहे शैली में, कथानक में, भावों की प्रस्तुतिकरण  में।

वर्तमान  की बात  करे तो कटु सत्य  तो यह है कि प्रयोगात्मक लघुकथाओं को पाठक पचा नहीं पा रहा। कारण  यह है कि इन लघुकथाकाओं के विधान पढ़कर समझना ही नहीं चाहते रचनाकार। व्यंग्य  के नाम पर फूहड हास्य  लिखा जा रहा है ।

प्रसिद्ध लघुकथाकार पुरुषोत्तम  जी स्वयं स्वीकार करते हैं कि अब लघुकथा में प्रयोग लिखने की हवा सी चल पड़ी है। तथापि एक प्रकार का अकथ्य भटकाव प्रयोगशील लघुकथाओं के लेखन में दिखाई दे रहा है। इसका एक बड़ा कारण केवल और केवल फैशन के बूते प्रयोगवादी लघुकथाएँ लिखने का ‘‘हाशिएवादी लेखन’’ महज प्रयोग के नाम पर शोर मचा रहा है। 

प्रयोगवादी लघुकथाओं के पीछे योगराज प्रभाकर जैसे अनुभवी कथाकार की गम्भीर सोच एक गम्भीर चिंतन मनन रहा है जिससे अपेक्षा की जा रही है कि प्रयोगात्मक लघुकथा की कथावस्तु की अनुभूति को अभिव्यक्त करने सरल, सहज व्याकरणों सम्मत सटीक भाषा के साथ शिल्प सम्मत शैली से लघुकथा में प्रयोग को साधा जा सकता है।

यही कारण है कि माधव नागदा जैसे लघुकथाकार कहते हैं कि लेखक अपनी बात  को कहने के लिए  विभिन्न  शैलियों का प्रयोग  कर सकते हैं बशर्ते वह संप्रेषणीयता में बाधक न हो,अन्यथा यशलिप्सा में जो उलटबांसी कर रहे हैं,समय का प्रवाह उन्हें शीघ्र  ही किनारे लगा देगा ।

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मनोरमा पंत 

भोपाल मध्यप्रदेश 

कार्यकारिणी मंत्री  -लघु कथा शोध संस्थान भोपाल 

उपाध्यक्ष -अखिल भारतीय साहित्य कला मंदिर 

सदस्य  -महिला आयाम प्रज्ञा समूह ,लेखिकासंघ  भोपाल  ,

भोजपाल  समूह  ,क्षितिज  ,पाठक मंच  (हिसार हरियाणा )

प्रकाशन- लघुकथा संग्रह" जिंदगी की अदालत में "

कविता संकलन-" भाव सरिता"

सह संपादक-" उत्कर्ष "लघु कथा संग्रह  

 सांझा संकलन - 15 सांझा  संकलन 

समीक्षा -"बैताल पच्चीसी"लघुकथा-संग्रह संपादक  बलराम अग्रवाल 

ऋषि रेणु -लघुकथा-संग्रह  -अशोक धमेनिया 

भज मन -कवितासंकलन  डाक्टर  मालती बंसत 

गुलाबी गलियां - कहानी संग्रह - सुरेश सौरभ 

मन का फेर - कहानी संग्रह-सुरेश सौरभ 

कलम बोलती है -कहानी संग्रह  -सुनीता मिश्रा 

मैं कहता हूँ-कविता संकलन  -तेजेन्द्र 

बारिश  की बूंदें -लघुकथा-संग्रह  -निशा भास्कर 

स्त्री-पुरूष  -मनोविज्ञान  पर आलेख सुरेश पटवा

 पत्र-पत्रिकाओं में आलेख ,लघु कथा,पर्यावरण   तथा व्यंग  रचनाओं का प्रकाशन 

साक्षात्कार --1-वर्ल्ड पंजाबी टाइम्स के संपादक सुरजीत बहादुर  

2 -जन सरोकार मंच राजीव ओझा द्वारा

3-कथादर्पण साहित्यिक  मंच द्वारा आयोजित  कार्यक्रम  "इनसे मिलिए  "में साक्षात्कार 

 सम्मान- 

7जुलाई  24को  निर्दलीय  समाचार  पत्रद्वारा  पर्यावरण  जागरुकता शिखर सम्मान  

"कला साहित्य रत्न सम्मान "अखिल भारतीय कला साहित्य मंदिर द्वारा भाव सरिता की पांडुलिपि पर 

"लघु कथा श्री सम्मान "लघु कथा शोध संस्थान द्वारा 

"डॉ सुशीला कपूर हिंदी सेवा सम्मान" लेखिकासंघ भोपाल 

अमृता प्रीतम सम्मान-विश्व हिन्दी  रचनाकार मंच

" मातृशक्ति सम्मान "आर्य समाज द्वारा 

अमृत शक्ति सम्मान" अखिल भारतीय साहित्य परिषद द्वारा

लगभग  आठ अन्य  सम्मान

अनुवाद -करीब  2oलघुकथाओं का पंजाबी में अनुवाद  तथा प्रकाशन ।

विशेष  -लगभग  20कविताओं का  दैनिक  जागरण  में प्रकाशन