यह ब्लॉग खोजें

लघुकथा रचना प्रक्रिया लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
लघुकथा रचना प्रक्रिया लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 2 मई 2019

लघुकथा रचना प्रक्रिया । यक्ष प्रश्न । सविता मिश्रा 'अक्षजा'

यक्ष प्रश्न

"दिख रही है न ! चाँद सितारों की खूबसूरत दुनिया ?" अदिति को टेलेस्कोप से आसमान दिखाते हुये शिक्षक ने पूछा ।
"जी सर ! कई चमकीले तारें दिख रहे हैं ।"
"देखो! जो सात ग्रह पास-पास हैं, वो 'सप्त ऋषि' हैं ! और जो सबसे अधिक चमकदार तारा उत्तर में है, वह है 'ध्रुव-तारा' । जिसने तप करके अपने निरादर का बदला, सर्वोच्च स्थान को पाकर लिया । "
"सर! हम अपने निरादर का बदला कब लें पाएंगे ! हर क्षेत्र में दबदबा कायम कर चुके हैं, फिर भी ध्रुव क्यों नहीं बने अब तक ?" अदिति अपना झुका हुआ सिर उठाते हुये बोली ।
शिक्षक का गर्व से उठा सिर सवाल सुनकर अचानक झुक-सा गया ।

सविता मिश्रा 'अक्षजा'
 आगरा ,, (प्रयागराज)  
 2012.savita.mishra@gmail.com  
 ---००---

रचना प्रक्रिया 

नया लेखन - नए दस्तखत फेसबुक ग्रुप में 'चित्र प्रतियोगिता' आयोजित की  गयी थी  ।  जिसमें एक आदमी एक बच्ची को टेलेस्कोप से कुछ दिखाने का चित्र दिया गया था । उसी  चित्र  को  देखकर चेतन  मन लघुकथा हेतु कथानक चुनने लगा ।  अचानक  से  17 April 2015को उस चित्र को देखकर हमारे दिमाग में ध्रुव तारा आया । जिसके साथ उसकी कहानी भी याद आई ।  दिमाग में क्लिक हुआ कि लड़कियों के महती कार्य करने को कहकर हम उनकी होती उपेक्षा और निरादर दिखा सकते हैं । बस फिर क्या था कम्प्यूटर के किबोर्ड पर उँगलियाँ थिरकने लगी । और अवचेतन मन में छुपा लडकियों के प्रति होता निरादर  'निरादर का बदला' नामक लघुकथा रूप में स्क्रीन पर उतरता गया ।
कथोपकथन शैली को अपनाकर अपनी बात को कहना ज्यादा सरल था । जिसके कारण हमने इसी शैली को अपनाते हुए अपने अन्तर्द्वन्द को शब्दों में गढ़ा ।

पहले ही ड्राफ्ट के साथ यह लघुकथा दो-तीन जगह छपी, जिसमें साहित्य शिल्पी वेबसाइट महत्वपूर्ण है । बाद में २०१८ में मेल में भेजते समय दिमाग ने कहा कि 'निरादर का बदला' से ज्यादा ‘यक्ष प्रश्न’ नामक शीर्षक मेरे विचारों को गति दे रहा है । इस बात के दिमाग में कौंधते ही हमने इसके शीर्षक में बदलाव कर दिया । क्योंकि लगा कि लड़कियों को उनका सम्मान कब मिलना, पूछना एक ‘यक्ष प्रश्न’ ही है, जिसका जवाब न अब तक मिला और न शायद कभी मिलेगा । साथ ही हमने इसके  वाक्य-विन्यास  को सही  किया । यानी की दूसरे ड्राफ्ट में ही यह  कथा वर्तमान स्वरूप  को प्राप्त  हुई ।
 इसको सही करने या शीर्षक बदलने में  हमने  किसी की भी सलाह का सहारा  नहीं  लिया  ।
---००---

Source:
http://kavitabhawana.blogspot.com/2019/04/blog-post.html