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गुरुवार, 15 अगस्त 2019

अशोक शर्मा भारती की हिन्दी लघुकथा “पन्द्रह अगस्त” का नेपाली अनुवाद अनुवादकर्ताः एकदेव अधिकारी

स्वतन्त्रता
“साहुजी, सुखिया पन्ध्र दिनदेखि ओछ्यानमा थला परेको छ ।” कामदारहरूले जमिन्दारसँग भने ।
जमिन्दार रिसले चुर भएर कुर्लिन थाल्यो, “सुखिया त बिरामी छ ... त्यसको छाउरो त बिरामी छैन होला नि ... जाओ ... त्यो छाउरोलाई ल्याएर उसको बाउको सट्टा खेतको काममा जोतिदेओ ।”
सुखियाको छोरो हरियालाई कामदारहरूले जमिन्दारको आदेश सुनाए । रिसले नाकको पोरा फुलाएर कामदारहरूलाई हेर्दै हरिया चिच्यायो, “के रे ?” उसको आँखा सल्केका गोल झैँ राता थिए ।
“तेरो बाउको सट्टामा ...।” कामदारहरूले भने ।
“किन ...?” हरियाका आँखाबाट मानौँ आगोको ज्वाला निस्कँदै थियो ।
“किनकि तेरो बाउ जमिन्दारको घरको कमारो हो...।” कामदारहरूले उसलाई खाउँला झैँ गरेर हेर्न थाले ।
“जाओ..., गएर तिमीहरूको जमिन्दारसँग भनिदेऊ कि उसको कमारो सुखिया हो... हरिया होइन... अनि कहिल्यै हुँदैन पनि ।” हरिया हातको लाठी उचाल्दै गर्जियो । उसका पाखुराका मांशपेशी सलबलाउन थाले ।
गाँउलेहरु एकत्रित भइसकेका थिए।

लघुकथा का हिन्दी पाठ

पन्द्रह अगस्त

“सुखिया पन्द्रह दिनों से बिस्तर पर पड़ा हुआ है मालिकI” कारिंदों ने ज़मींदार से कहाI
ज़मींदार गुस्से से उबलने लगा, “सुखिया बीमार है... उसका लौंडा तो नहीं... जाओ... पकड़ लाओ ससुरे को और जोत दो उसके बाप की जगह खेत मेंI” 
सुखिया के लड़के हरिया को जब कारिंदों ने ज़मींदार का आदेश सुनाया तो वह दहाड़ उठा, 
“क्यों...? खून उसकी आँखों में उतर आयाI 
“तुम्हारे बाप की जगह...I” कारिंदों ने कहाI
“किसलिए...?” हरिया की आँखें अंगारे बरसाने लगींI
“इसलिए कि तुम्हारा बाप ज़मींदार के यहाँ बंधुआ है...I” कारिंदों ने उसे खा जाने वाली निगाहों से देखाI
“जाओ.., जाकर कह देना तुम्हारे ज़मींदार से, उसका बंधुआ सुखिया है... हरिया नहीं... और न कभी होगाI” हरिया लाठी सँभालते हुए गरजने लगाI उसके बाज़ू फड़कने लगेI
गाँव इकठ्ठा हो चुका थाI