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रविवार, 10 मई 2020
शनिवार, 25 अप्रैल 2020
रविवार, 29 दिसंबर 2019
ज्योति जैन के लघुकथा संग्रह 'निन्यानवे के फेर में' का विमोचन
December 29, 2019
किसी भी रचनाकार के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण होता है कि उसकी सारी रचनाएं हर अर्थ में भिन्न हों। इस दृष्टि से शहर की ख्यातनाम लेखिका ज्योति जैन की रचनाएं आकर्षित करती हैं। वे हमारे ही आसपास के परिदृश्य का प्रतिनिधित्व करती हैं। भाषा,शैली और शिल्प का रचाव और कसाव ही उनकी लघुकथाओं का सम्मोहन है। उक्त विचार जाने माने उपन्यासकार और शिवना प्रकाशन के श्री पंकज सुबीर ने व्यक्त किए।
वे लेखिका ज्योति जैन के लघुकथा संग्रह निन्यानवे के फेर में के विमोचन के अवसर पर बोल रहे थे। मुख्य अतिथि का दायित्व निभाते हुए पंकज सुबीर ने कहा कि लेखिका ज्योति जैन ने साहित्य की लगभग हर विधा में स्वयं को सुव्यक्त किया है जबकि लेखन और समाज की तमाम जिम्मेदारियों के बीच एक साथ सभी विधाओं को साधना मुश्किल होता है। लेखिका ने यह साधना बड़ी खूबी से की है।
उन्होंने लेखिका की खूबसूरत कथाओं का वाचन भी किया। पुस्तक पर चर्चा करते हुए वरिष्ठ लघुकथाकार सतीश राठी ने कहा कि निन्न्यानवे का फेर में शामिल लघुकथाएं सुंदर जीवन जीने की दिशा को इंगित करती है।उनकी जीवन दृष्टि उच्च मानवीय मूल्यों को स्थापित करने की है। उनकी लघुकथा में पात्रों का प्रवेश बड़ी ही सरलता से होता है जितनी कि वे स्वयं सरल और सहज हैं। उनमें रचना के भीतर की संवेदना को पाठकों तक उसी रूप में पहुंचाने का कौशल है जिस रूप में वे स्वयं अनुभव करती हैं।
लेखिका ज्योति जैन ने अपनी लघुकथा और सृजनप्रक्रिया पर कहा कि मेरा छोटा सा लेखन संसार अपनी अनुभूतियों,परिवेश,संबंधों और समाज के आसपास आकार लेता है।मेरी लघुकथाओं ने मुझसे बहुत मेहनत करवाई है। कुछ कथानक और पात्र फोन सुनते सुनते या आटा सानते मानस में उभरते हैं और सारा काम परे रख कागज पर उतरने को बेताब हो जाते हैं और कुछ बरसों अवचेतन में सुप्तावस्था में होते हैं और सुदीर्घ प्रतीक्षा के उपरांत उचित समय पर यकायक लघुकथा के रूप में प्रकट हो जाते हैं।
पाठक के रूप में संगीतकार सलिल दाते ने भी अपने विचार रखे। वामा साहित्य मंच के बैनर तले सम्पन्न इस आयोजन के आरंभ में संगीता परमार ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की।
अतिथि द्वय का स्वागत वामा साहित्य मंच की भावी अध्यक्ष अमर चड्ढा, और भावी सचिव इंदु पराशर ने किया। स्वागत उद्बोधन वर्तमान अध्यक्ष पद्मा राजेन्द्र ने किया। अतिथियों को पौधे बड़जात्या परिवार के आत्मीय सदस्यों द्वारा प्रदान किए गए। कार्यक्रम का संचालन गरिमा संजय दुबे ने किया व अंत में आभार श्री शरद जैन ने माना।
Source:
https://hindi.webdunia.com/hindi-literature-articles/jyoti-jain-book-inauguration-119122900016_1.html
किसी भी रचनाकार के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण होता है कि उसकी सारी रचनाएं हर अर्थ में भिन्न हों। इस दृष्टि से शहर की ख्यातनाम लेखिका ज्योति जैन की रचनाएं आकर्षित करती हैं। वे हमारे ही आसपास के परिदृश्य का प्रतिनिधित्व करती हैं। भाषा,शैली और शिल्प का रचाव और कसाव ही उनकी लघुकथाओं का सम्मोहन है। उक्त विचार जाने माने उपन्यासकार और शिवना प्रकाशन के श्री पंकज सुबीर ने व्यक्त किए।
वे लेखिका ज्योति जैन के लघुकथा संग्रह निन्यानवे के फेर में के विमोचन के अवसर पर बोल रहे थे। मुख्य अतिथि का दायित्व निभाते हुए पंकज सुबीर ने कहा कि लेखिका ज्योति जैन ने साहित्य की लगभग हर विधा में स्वयं को सुव्यक्त किया है जबकि लेखन और समाज की तमाम जिम्मेदारियों के बीच एक साथ सभी विधाओं को साधना मुश्किल होता है। लेखिका ने यह साधना बड़ी खूबी से की है।
उन्होंने लेखिका की खूबसूरत कथाओं का वाचन भी किया। पुस्तक पर चर्चा करते हुए वरिष्ठ लघुकथाकार सतीश राठी ने कहा कि निन्न्यानवे का फेर में शामिल लघुकथाएं सुंदर जीवन जीने की दिशा को इंगित करती है।उनकी जीवन दृष्टि उच्च मानवीय मूल्यों को स्थापित करने की है। उनकी लघुकथा में पात्रों का प्रवेश बड़ी ही सरलता से होता है जितनी कि वे स्वयं सरल और सहज हैं। उनमें रचना के भीतर की संवेदना को पाठकों तक उसी रूप में पहुंचाने का कौशल है जिस रूप में वे स्वयं अनुभव करती हैं।
लेखिका ज्योति जैन ने अपनी लघुकथा और सृजनप्रक्रिया पर कहा कि मेरा छोटा सा लेखन संसार अपनी अनुभूतियों,परिवेश,संबंधों और समाज के आसपास आकार लेता है।मेरी लघुकथाओं ने मुझसे बहुत मेहनत करवाई है। कुछ कथानक और पात्र फोन सुनते सुनते या आटा सानते मानस में उभरते हैं और सारा काम परे रख कागज पर उतरने को बेताब हो जाते हैं और कुछ बरसों अवचेतन में सुप्तावस्था में होते हैं और सुदीर्घ प्रतीक्षा के उपरांत उचित समय पर यकायक लघुकथा के रूप में प्रकट हो जाते हैं।
पाठक के रूप में संगीतकार सलिल दाते ने भी अपने विचार रखे। वामा साहित्य मंच के बैनर तले सम्पन्न इस आयोजन के आरंभ में संगीता परमार ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की।
अतिथि द्वय का स्वागत वामा साहित्य मंच की भावी अध्यक्ष अमर चड्ढा, और भावी सचिव इंदु पराशर ने किया। स्वागत उद्बोधन वर्तमान अध्यक्ष पद्मा राजेन्द्र ने किया। अतिथियों को पौधे बड़जात्या परिवार के आत्मीय सदस्यों द्वारा प्रदान किए गए। कार्यक्रम का संचालन गरिमा संजय दुबे ने किया व अंत में आभार श्री शरद जैन ने माना।
Source:
https://hindi.webdunia.com/hindi-literature-articles/jyoti-jain-book-inauguration-119122900016_1.html
शुक्रवार, 29 नवंबर 2019
रिपोर्ट: क्षितिज अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन 2019,इंदौर | सतीश राठी
कोई भी कला संयम और समय के साथ ही विकसित होती है--- सुकेश साहनी
‘क्षितिज’ संस्था,इंदौर द्वारा द्वितीय ‘अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन 2019’ का आयोजन दिनांक 24 नवम्बर 2019, रविवार को श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति, इन्दौर में किया गया। यह कार्यक्रम चार विभिन्न सत्रों में आयोजित हुआ। प्रथम उद्घाटन, लोकार्पण एवम सम्मान सत्र रहा। इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार, कला मर्मज्ञ श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने की। मंच पर क्षितिज साहित्य संस्था के अध्यक्ष श्री सतीश राठी, श्री सूर्यकांत नागर, श्री सुकेश साहनी, श्री श्याम सुंदर अग्रवाल, श्री माधव नागदा एवमश्री कुणाल शर्मा उपस्थित थे।
संस्था परिचय एवं अतिथियों के लिए स्वागत भाषण श्री सतीश राठी ने दिया। लघुकथा विधा को लेकर वर्ष 1983 से संस्था द्वारा किए गए कार्यों की उन्होंने जानकारी दी एवं संस्था के विभिन्न प्रकाशनों पर जानकारी देते हुए लघुकथा विधा के पिछले 35 वर्ष के इतिहास पर एक दृष्टि डाली। उन्होंने संस्था के इतिहास व कार्यों से सभी को परिचित करवाया। अतिथियों का परिचय देते हुए लघुकथा विधा के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों की जानकारी प्रस्तुत की तथा लघुकथा विधा के लिए दिए जाने वाले सम्मानो की चयन प्रक्रिया वहां पर प्रस्तुत की।
इस सत्र में सत्र अध्यक्ष श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय को कला साहित्य सृजन सम्मान 2019, श्री सुकेश साहनी को क्षितिज लघुकथा शिखर सम्मान 2019, श्री श्याम सुंदर अग्रवाल को क्षितिज लघुकथा सेतु शिखर सम्मान 2019, श्री माधव नागदा को क्षितिज लघुकथा समालोचना सम्मान 2019, श्री कुणाल शर्मा को क्षितिज लघुकथा नवलेखन सम्मान 2019 एवं श्री हीरालाल नागर को, लघुकथा शिखर सम्मान 2019 से सम्मानित किया गया। इस सत्र में पुस्तकों का विमोचन भी किया गया।
क्षितिज पत्रिका के सार्थक लघुकथा अंक का विमोचन सर्वप्रथम हुआ। पुस्तक सार्थक लघुकथाएँ, इंदौर के 10 लघुकथा कारों के लघुकथा संकलन शिखर पर बैठ कर श्री सुकेश साहनी के लघुकथा संग्रह सायबर मैन, श्री भागीरथ परिहार की पुस्तक कथा शिल्पी सुकेश साहनी की सृजन चेतना, ज्योति जैन के लघुकथा संग्रह जलतरंग का अंग्रेजी अनुवाद, डॉ अश्विनी कुमार दुबे के गजल संग्रह कुछ अशहार हमारे भी, श्री चरण सिंह अमी की पुस्तक हिंदी सिनेमा के अग्रज, श्री बृजेश कानूनगो की दो पुस्तके रात नौ बजे का इंद्रधनुष व अनुगमन का विमोचन इस कार्यक्रम के लोकार्पण सत्र में हुआ। उद्घाटन के पश्चात इस तरह कुल 11 पुस्तकों का विमोचन हुआ।
अतिथियों का स्वागत पुरुषोत्तम दुबे, अरविंद ओझा, सतीश राठी, अश्विनी कुमार दुबे, योगेन्द्र नाथ शुक्ल, आशा गंगा शिरढोनकर एवं प्रदीप नवीन ने किया। प्रथम सत्र का संचालन अंतरा करबड़े ने किया। मां सरस्वती के पूजन एवं दीप प्रज्वलन के वक्त सरस्वती वंदना विनीता शर्मा ने प्रस्तुत की।
व्याख्यान सत्र में कुणाल शर्मा ने लघुकथा के आधुनिक स्वरूप पर बात की। श्री माधव नागदा ने शैक्षणिक पाठ्यक्रम में लघुकथा की उपादेयता विषय पर अपने विचार रखे। किशोर और युवा को लघुकथा पाठ्यक्रम में शामिल करवा कर ही साहित्य से परिचित करवाया जा सकता है, उससे उनमें साहित्यिक अभिरुचि का विकास होता है। इतिहास भले ही पुराना हो किंतु यह एक नई विधा है। विधार्थी इससे अंजान हैं इसलिए यदि विधिवत पाठ्यक्रम के द्वारा उन्हें विधा से परिचित करवाया जाए तो आगे शोध के रास्ते खुलते हैं।पंचतंत्र भी लघुकथा का ही रूप है, बुद्ध महावीर भी लघुकथा के माध्यम से अपनी बात कहते थे। समय का अभाव व भाव की तीव्रता के कारण यह विधा अधिक ग्राहय है।
हिंदी और पंजाबी भाषा में समान रूप से लघुकथा लिख रहे श्री जगदीश कुलारिया सम्मेलन में एक सत्र में अतिथि के रूप में मंच पर विराजमान रहे।
कहानी उपन्यास की तरह यह भी सभी विषयों पर अपनी उपयोगिता सिद्ध करेगी।
सुकेश साहनी ने अपने भाषण में लघुकथा के विचार पक्ष एवम विभिन्न विषयों पर रची जा रही लघुकथाओं के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि, लघुकथा विषय पर अपने विचार लेखक को व्यक्त करते हुए विषय के साथ न्याय करना प्राथमिकता में होना चाहिए। घटना व विषय विविध हैं। लिखते वक़्त समय देते हुए लिखा जाए। कोई भी कला संयम और समय के साथ विकसित होती है इसलिए किसी भी विषय के साथ समय देकर ही न्याय किया जा सकता है।विचार वह धुरी है जिस पर कल्पना घुमती है। सीप में मोती बनने वाली प्रक्रिया की तरह लघुकथा का सृजन हो सकता है लेकिन शीघ्र मोती पाने के चक्कर में लघुकथा को नोच कर नहीं परोसा जा सकता उसका पूरी तरह से परिपक्व होना जरूरी है।
श्री श्याम सुंदर अग्रवाल ने अपने वक्तव्य में कहा कि पंजाबी लघुकथा से आगे अब हिंदी लघुकथा विकास की बात हो। इंदौर शहर के योगदान को याद करते हुए उन्होंने विविध भाषाओं में लिखने वाली लघुकथा के विकास की बात की। निरंतरता सबसे बड़ा गुण है वह सफलता की और ले जाती है। लघुकथा में भी यह बात उल्लेखनीय है कि तमाम आलोचना के बाद भी लेखकों ने लिखना जारी रखा और आज लघुकथा एक विधा के रूप में स्थापित हो चुकी है। पंजाबी भाषा एवं हिंदी भाषा के आपसी जुड़ाव की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि क्षितिज पत्रिका ने कभी पंजाबी लघुकथाओं पर भी अंक निकाला और मिनी पत्रिका में भी हिंदी के लघुकथाकारों की लघुकथाओं के अनुवाद प्रकाशित किए गए।
विशेष योगदान हेतु, सर्वश्री उमेश नीमा, चरण सिंह अमी, नई दुनिया के अनिल त्रिवेदी, पत्रिका अखबार की संपादक क रुखसाना, दैनिक भास्कर के श्री रविंद्र व्यास श्री प्रदीप नवीन आदि को सम्मानित किया गया। कला सहयोग के लिए वरिष्ठ कलाकार श्री संदीप राशिनकर को भी सम्मानित किया गया।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने अपने वक्तव्य में कहा कि, साहित्य का यात्री सृजन से एकाकर हो जाता है। जो बुद्धि न समझ सके वह चमत्कार कहा जाता है, लघुकथा भी एक सहज चमत्कार है, कहने को लघु किंतु प्रभाव में विराट है। यह विधा, वामन के विराट पग की तरह अपने प्रभाव क्षेत्र में व्यापक रूप से लोकप्रिय है। एक स्वतंत्र विधा के रूप में इसका बड़ा सम्मान है।
लघुकथा की यात्रा की तुलना उन्होंने गंगा की यात्रा से कर कहा कि, अब यह संगम की तरह महत्वपूर्ण हो गई है। संस्कृत आख्यायिका यह नहीं है, उपन्यास का साररूप भी यह नहीं है। लघुकथा भिन्न विधा है एडगर एलान पो अंग्रेजी में इसे पुरोधा रहे। लघुकथा संवेदना का सार रूप है जिसकी तेजस्विता अपूर्व है। प्राचीन ग्रंथों में हर जगह यह विधा भिन्न-भिन्न स्वरूप में उपस्थित रही है।सार्थक संदेश, विसंगति पर चोट व व्यंग्य भी लघुकथा के तत्व माने जाते हैं।
विधाओं के अंतर अवगमन पर उन्होंने कहा विधाओं का आपस में संवाद होना आवश्यक है, अधिक से अधिक अध्ययन यह विवाद समाप्त किया जा सकता है।
श्री नरेंद्र जैन, श्री राजेंद्र मूंदड़ा, श्री नितिन पंजाबी, को भी सम्मानित किया गया। इस सत्र का आभार प्रदर्शन पुरुषोत्तम दुबे ने किया।
कार्यक्रम का द्वितीय सत्र लघुकथा पाठ का था जिसमें 35 से अधिक लघुकथाकारों ने अपनी प्रतिनिधि रचनाओं का पाठ किया। इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ लघुकथाकार श्री भागीरथ परिहार ने की। मंच पर अतिथि थे सर्वश्री योगेन्द्र नाथ शुक्ल, पवन जैन, संतोष सुपेकर।
श्रीमती जया आर्य, सुषमा दुबे, सुषमा व्यास, पुष्परानी गर्ग, स्नेहलता, कोमल वाधवानी प्रेरणा, राम मुरत राही, कपिल शास्त्री, दीपा व्यास, आदि ने लघुकथा पाठ किया।
अपने उद्बोधन में श्री योगेंद्रनाथ शुक्ल, श्री पवन जैन, श्री भागीरथ परिहार ने पढ़ी गई लघुकथाओं के कथ्य शिल्प की समीक्षा की। इस सत्र का संचालन निधि जैन ने किया।
तृतीय सत्र नारी अस्मिता व लघुकथा लेखन पर मूल रूप से केंद्रित था। मुख्य अतिथि श्री सूर्यकांत नागर थे। सत्र अध्यक्षता श्री बलराम अग्रवाल ने की। डॉ पुरुषोत्तम दुबे, हीरालाल नागर, ज्योति जैन व वसुधा गाडगिल सत्र में अतिथि के रूप में मौजूद थे। इस सत्र का संचालन श्रीमती सीमा व्यास एवं वत्सला त्रिवेदी ने किया।
श्री सूर्यकांत नागर ने स्त्री पुरुष की संवेदना में भेद बताते हुए स्त्री विमर्श को आवश्यकता पर बल दिया।
श्री बलराम अग्रवाल ने कहा - साहस के साथ स्त्री अस्मिता व अधिकार की बात करने के लिए लेखन से बेहतर कोई माध्यम नहीं है, वेदो से लेकर अब तक स्त्री के विमर्श में गिरावट आई है और अब धीरे-धीरे स्थितियाँ बदली है, भारतीय साहित्य भाषा की मर्यादा के साथ आधुनिक विषय को विस्तार द्वारा सकते हैं।
श्री हीरालाल नागर ने अपने वक्तव्य में स्त्री विर्मश में लघुकथा की उपयोगिता व उसकी यात्रा पर प्रकाश डाला। डॉ पुरुषोत्तम दुबे ने लघुकथा के कालखंड व शिल्प पर चर्चा की। ज्योति जैन ने स्त्री अस्मिता पर कुछ लघुकथाओं के माध्यम से अपनी बात प्रभावी ढंग से प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि स्त्री और पुरुष की तुलना नहीं की जा सकती।
वसुधा गाडगिल ने अपने वक्तव्य में स्त्री के विविध स्वरूप पर लिखे जाने वाले साहित्य पर प्रकाश डाला। नवीन प्रतिमान नवीन विचार आज की आवश्यकता है।
आखिरी महत्वपूर्ण सत्र प्रश्न उत्तर सत्र व मुक्त संवाद व परिचर्चा का था जिसमें लघुकथा विधा से जुड़ी विभिन्न जिज्ञासा, दुविधा उसके कथा शिल्प व प्रभाव पर चर्चा हुई। सत्र की अध्यक्षता श्रीमध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के श्री राकेश शर्मा, संपादक वीणा पत्रिका ने की। मंच पर विभिन्न प्रश्नों का जवाब देने के लिए देश भर में लघुकथा की अलख जगाने के लिए निरंतर सक्रिय श्री सुकेश साहनी, श्री बलराम अग्रवाल, श्री श्याम सुंदर अग्रवाल व श्री ब्रजेश कानूनगो ने विभिन्न प्रश्नों का उचित समाधान करते हुए जवाब दिये।
लघुकथा में शब्द सीमा क्या हो? लघुकथा व अंग्रेजी की शॉर्ट स्टोरी में क्या भेद है? लघुकथा में संवाद की भूमिका कितनी है? एक चरित्र पर आधारित लघुकथा को मान्य किया जायेगा? लघुकथा व कथा में क्या भेद है? लघुकथा के मापदंड क्या हैं? लघुकथा में व्यंग्य की भूमिका पर प्रश्न क्यों उठाये जाते हैं? लघुकथा में कथ्य का विकास कैसा हो? जैसे और कई प्रश्नों के जवाब देकर नव लेखकों, शोधर्थियों की जिज्ञासाओं का समाधान किया गया। सत्र का संचालन डॉ गरिमा संजय दुबे ने किया।
समूचे आयोजन के संदर्भ में, आयोजन में पधारे अतिथियों का उपस्थित लघुकथाकारों का एवं स्थानीय अतिथियों का, क्षितिज संस्था के सचिव श्री अशोक शर्मा भारती ने आभार व्यक्त किया।
इस आयोजन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि लघुकथा की रचना प्रक्रिया एवं विभिन्न विषयों पर लिखी जाने वाली लघुकथा पर चर्चा करने के साथ-साथ सार्थक लघुकथा पर चर्चा विशेष रुप से की गई। क्षितिज संस्था का प्रथम सम्मेलन लघुकथा की सजगता पर केंद्रित था और यह द्वितीय सम्मेलन लघुकथा की सार्थकता पर केंद्रित था।
- श्री सतीश राठी
‘क्षितिज’ संस्था,इंदौर द्वारा द्वितीय ‘अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन 2019’ का आयोजन दिनांक 24 नवम्बर 2019, रविवार को श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति, इन्दौर में किया गया। यह कार्यक्रम चार विभिन्न सत्रों में आयोजित हुआ। प्रथम उद्घाटन, लोकार्पण एवम सम्मान सत्र रहा। इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार, कला मर्मज्ञ श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने की। मंच पर क्षितिज साहित्य संस्था के अध्यक्ष श्री सतीश राठी, श्री सूर्यकांत नागर, श्री सुकेश साहनी, श्री श्याम सुंदर अग्रवाल, श्री माधव नागदा एवमश्री कुणाल शर्मा उपस्थित थे।
संस्था परिचय एवं अतिथियों के लिए स्वागत भाषण श्री सतीश राठी ने दिया। लघुकथा विधा को लेकर वर्ष 1983 से संस्था द्वारा किए गए कार्यों की उन्होंने जानकारी दी एवं संस्था के विभिन्न प्रकाशनों पर जानकारी देते हुए लघुकथा विधा के पिछले 35 वर्ष के इतिहास पर एक दृष्टि डाली। उन्होंने संस्था के इतिहास व कार्यों से सभी को परिचित करवाया। अतिथियों का परिचय देते हुए लघुकथा विधा के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों की जानकारी प्रस्तुत की तथा लघुकथा विधा के लिए दिए जाने वाले सम्मानो की चयन प्रक्रिया वहां पर प्रस्तुत की।
इस सत्र में सत्र अध्यक्ष श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय को कला साहित्य सृजन सम्मान 2019, श्री सुकेश साहनी को क्षितिज लघुकथा शिखर सम्मान 2019, श्री श्याम सुंदर अग्रवाल को क्षितिज लघुकथा सेतु शिखर सम्मान 2019, श्री माधव नागदा को क्षितिज लघुकथा समालोचना सम्मान 2019, श्री कुणाल शर्मा को क्षितिज लघुकथा नवलेखन सम्मान 2019 एवं श्री हीरालाल नागर को, लघुकथा शिखर सम्मान 2019 से सम्मानित किया गया। इस सत्र में पुस्तकों का विमोचन भी किया गया।
क्षितिज पत्रिका के सार्थक लघुकथा अंक का विमोचन सर्वप्रथम हुआ। पुस्तक सार्थक लघुकथाएँ, इंदौर के 10 लघुकथा कारों के लघुकथा संकलन शिखर पर बैठ कर श्री सुकेश साहनी के लघुकथा संग्रह सायबर मैन, श्री भागीरथ परिहार की पुस्तक कथा शिल्पी सुकेश साहनी की सृजन चेतना, ज्योति जैन के लघुकथा संग्रह जलतरंग का अंग्रेजी अनुवाद, डॉ अश्विनी कुमार दुबे के गजल संग्रह कुछ अशहार हमारे भी, श्री चरण सिंह अमी की पुस्तक हिंदी सिनेमा के अग्रज, श्री बृजेश कानूनगो की दो पुस्तके रात नौ बजे का इंद्रधनुष व अनुगमन का विमोचन इस कार्यक्रम के लोकार्पण सत्र में हुआ। उद्घाटन के पश्चात इस तरह कुल 11 पुस्तकों का विमोचन हुआ।
अतिथियों का स्वागत पुरुषोत्तम दुबे, अरविंद ओझा, सतीश राठी, अश्विनी कुमार दुबे, योगेन्द्र नाथ शुक्ल, आशा गंगा शिरढोनकर एवं प्रदीप नवीन ने किया। प्रथम सत्र का संचालन अंतरा करबड़े ने किया। मां सरस्वती के पूजन एवं दीप प्रज्वलन के वक्त सरस्वती वंदना विनीता शर्मा ने प्रस्तुत की।
व्याख्यान सत्र में कुणाल शर्मा ने लघुकथा के आधुनिक स्वरूप पर बात की। श्री माधव नागदा ने शैक्षणिक पाठ्यक्रम में लघुकथा की उपादेयता विषय पर अपने विचार रखे। किशोर और युवा को लघुकथा पाठ्यक्रम में शामिल करवा कर ही साहित्य से परिचित करवाया जा सकता है, उससे उनमें साहित्यिक अभिरुचि का विकास होता है। इतिहास भले ही पुराना हो किंतु यह एक नई विधा है। विधार्थी इससे अंजान हैं इसलिए यदि विधिवत पाठ्यक्रम के द्वारा उन्हें विधा से परिचित करवाया जाए तो आगे शोध के रास्ते खुलते हैं।पंचतंत्र भी लघुकथा का ही रूप है, बुद्ध महावीर भी लघुकथा के माध्यम से अपनी बात कहते थे। समय का अभाव व भाव की तीव्रता के कारण यह विधा अधिक ग्राहय है।
हिंदी और पंजाबी भाषा में समान रूप से लघुकथा लिख रहे श्री जगदीश कुलारिया सम्मेलन में एक सत्र में अतिथि के रूप में मंच पर विराजमान रहे।
कहानी उपन्यास की तरह यह भी सभी विषयों पर अपनी उपयोगिता सिद्ध करेगी।
सुकेश साहनी ने अपने भाषण में लघुकथा के विचार पक्ष एवम विभिन्न विषयों पर रची जा रही लघुकथाओं के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि, लघुकथा विषय पर अपने विचार लेखक को व्यक्त करते हुए विषय के साथ न्याय करना प्राथमिकता में होना चाहिए। घटना व विषय विविध हैं। लिखते वक़्त समय देते हुए लिखा जाए। कोई भी कला संयम और समय के साथ विकसित होती है इसलिए किसी भी विषय के साथ समय देकर ही न्याय किया जा सकता है।विचार वह धुरी है जिस पर कल्पना घुमती है। सीप में मोती बनने वाली प्रक्रिया की तरह लघुकथा का सृजन हो सकता है लेकिन शीघ्र मोती पाने के चक्कर में लघुकथा को नोच कर नहीं परोसा जा सकता उसका पूरी तरह से परिपक्व होना जरूरी है।
श्री श्याम सुंदर अग्रवाल ने अपने वक्तव्य में कहा कि पंजाबी लघुकथा से आगे अब हिंदी लघुकथा विकास की बात हो। इंदौर शहर के योगदान को याद करते हुए उन्होंने विविध भाषाओं में लिखने वाली लघुकथा के विकास की बात की। निरंतरता सबसे बड़ा गुण है वह सफलता की और ले जाती है। लघुकथा में भी यह बात उल्लेखनीय है कि तमाम आलोचना के बाद भी लेखकों ने लिखना जारी रखा और आज लघुकथा एक विधा के रूप में स्थापित हो चुकी है। पंजाबी भाषा एवं हिंदी भाषा के आपसी जुड़ाव की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि क्षितिज पत्रिका ने कभी पंजाबी लघुकथाओं पर भी अंक निकाला और मिनी पत्रिका में भी हिंदी के लघुकथाकारों की लघुकथाओं के अनुवाद प्रकाशित किए गए।
विशेष योगदान हेतु, सर्वश्री उमेश नीमा, चरण सिंह अमी, नई दुनिया के अनिल त्रिवेदी, पत्रिका अखबार की संपादक क रुखसाना, दैनिक भास्कर के श्री रविंद्र व्यास श्री प्रदीप नवीन आदि को सम्मानित किया गया। कला सहयोग के लिए वरिष्ठ कलाकार श्री संदीप राशिनकर को भी सम्मानित किया गया।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने अपने वक्तव्य में कहा कि, साहित्य का यात्री सृजन से एकाकर हो जाता है। जो बुद्धि न समझ सके वह चमत्कार कहा जाता है, लघुकथा भी एक सहज चमत्कार है, कहने को लघु किंतु प्रभाव में विराट है। यह विधा, वामन के विराट पग की तरह अपने प्रभाव क्षेत्र में व्यापक रूप से लोकप्रिय है। एक स्वतंत्र विधा के रूप में इसका बड़ा सम्मान है।
लघुकथा की यात्रा की तुलना उन्होंने गंगा की यात्रा से कर कहा कि, अब यह संगम की तरह महत्वपूर्ण हो गई है। संस्कृत आख्यायिका यह नहीं है, उपन्यास का साररूप भी यह नहीं है। लघुकथा भिन्न विधा है एडगर एलान पो अंग्रेजी में इसे पुरोधा रहे। लघुकथा संवेदना का सार रूप है जिसकी तेजस्विता अपूर्व है। प्राचीन ग्रंथों में हर जगह यह विधा भिन्न-भिन्न स्वरूप में उपस्थित रही है।सार्थक संदेश, विसंगति पर चोट व व्यंग्य भी लघुकथा के तत्व माने जाते हैं।
विधाओं के अंतर अवगमन पर उन्होंने कहा विधाओं का आपस में संवाद होना आवश्यक है, अधिक से अधिक अध्ययन यह विवाद समाप्त किया जा सकता है।
श्री नरेंद्र जैन, श्री राजेंद्र मूंदड़ा, श्री नितिन पंजाबी, को भी सम्मानित किया गया। इस सत्र का आभार प्रदर्शन पुरुषोत्तम दुबे ने किया।
कार्यक्रम का द्वितीय सत्र लघुकथा पाठ का था जिसमें 35 से अधिक लघुकथाकारों ने अपनी प्रतिनिधि रचनाओं का पाठ किया। इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ लघुकथाकार श्री भागीरथ परिहार ने की। मंच पर अतिथि थे सर्वश्री योगेन्द्र नाथ शुक्ल, पवन जैन, संतोष सुपेकर।
श्रीमती जया आर्य, सुषमा दुबे, सुषमा व्यास, पुष्परानी गर्ग, स्नेहलता, कोमल वाधवानी प्रेरणा, राम मुरत राही, कपिल शास्त्री, दीपा व्यास, आदि ने लघुकथा पाठ किया।
अपने उद्बोधन में श्री योगेंद्रनाथ शुक्ल, श्री पवन जैन, श्री भागीरथ परिहार ने पढ़ी गई लघुकथाओं के कथ्य शिल्प की समीक्षा की। इस सत्र का संचालन निधि जैन ने किया।
तृतीय सत्र नारी अस्मिता व लघुकथा लेखन पर मूल रूप से केंद्रित था। मुख्य अतिथि श्री सूर्यकांत नागर थे। सत्र अध्यक्षता श्री बलराम अग्रवाल ने की। डॉ पुरुषोत्तम दुबे, हीरालाल नागर, ज्योति जैन व वसुधा गाडगिल सत्र में अतिथि के रूप में मौजूद थे। इस सत्र का संचालन श्रीमती सीमा व्यास एवं वत्सला त्रिवेदी ने किया।
श्री सूर्यकांत नागर ने स्त्री पुरुष की संवेदना में भेद बताते हुए स्त्री विमर्श को आवश्यकता पर बल दिया।
श्री बलराम अग्रवाल ने कहा - साहस के साथ स्त्री अस्मिता व अधिकार की बात करने के लिए लेखन से बेहतर कोई माध्यम नहीं है, वेदो से लेकर अब तक स्त्री के विमर्श में गिरावट आई है और अब धीरे-धीरे स्थितियाँ बदली है, भारतीय साहित्य भाषा की मर्यादा के साथ आधुनिक विषय को विस्तार द्वारा सकते हैं।
श्री हीरालाल नागर ने अपने वक्तव्य में स्त्री विर्मश में लघुकथा की उपयोगिता व उसकी यात्रा पर प्रकाश डाला। डॉ पुरुषोत्तम दुबे ने लघुकथा के कालखंड व शिल्प पर चर्चा की। ज्योति जैन ने स्त्री अस्मिता पर कुछ लघुकथाओं के माध्यम से अपनी बात प्रभावी ढंग से प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि स्त्री और पुरुष की तुलना नहीं की जा सकती।
वसुधा गाडगिल ने अपने वक्तव्य में स्त्री के विविध स्वरूप पर लिखे जाने वाले साहित्य पर प्रकाश डाला। नवीन प्रतिमान नवीन विचार आज की आवश्यकता है।
आखिरी महत्वपूर्ण सत्र प्रश्न उत्तर सत्र व मुक्त संवाद व परिचर्चा का था जिसमें लघुकथा विधा से जुड़ी विभिन्न जिज्ञासा, दुविधा उसके कथा शिल्प व प्रभाव पर चर्चा हुई। सत्र की अध्यक्षता श्रीमध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के श्री राकेश शर्मा, संपादक वीणा पत्रिका ने की। मंच पर विभिन्न प्रश्नों का जवाब देने के लिए देश भर में लघुकथा की अलख जगाने के लिए निरंतर सक्रिय श्री सुकेश साहनी, श्री बलराम अग्रवाल, श्री श्याम सुंदर अग्रवाल व श्री ब्रजेश कानूनगो ने विभिन्न प्रश्नों का उचित समाधान करते हुए जवाब दिये।
लघुकथा में शब्द सीमा क्या हो? लघुकथा व अंग्रेजी की शॉर्ट स्टोरी में क्या भेद है? लघुकथा में संवाद की भूमिका कितनी है? एक चरित्र पर आधारित लघुकथा को मान्य किया जायेगा? लघुकथा व कथा में क्या भेद है? लघुकथा के मापदंड क्या हैं? लघुकथा में व्यंग्य की भूमिका पर प्रश्न क्यों उठाये जाते हैं? लघुकथा में कथ्य का विकास कैसा हो? जैसे और कई प्रश्नों के जवाब देकर नव लेखकों, शोधर्थियों की जिज्ञासाओं का समाधान किया गया। सत्र का संचालन डॉ गरिमा संजय दुबे ने किया।
समूचे आयोजन के संदर्भ में, आयोजन में पधारे अतिथियों का उपस्थित लघुकथाकारों का एवं स्थानीय अतिथियों का, क्षितिज संस्था के सचिव श्री अशोक शर्मा भारती ने आभार व्यक्त किया।
इस आयोजन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि लघुकथा की रचना प्रक्रिया एवं विभिन्न विषयों पर लिखी जाने वाली लघुकथा पर चर्चा करने के साथ-साथ सार्थक लघुकथा पर चर्चा विशेष रुप से की गई। क्षितिज संस्था का प्रथम सम्मेलन लघुकथा की सजगता पर केंद्रित था और यह द्वितीय सम्मेलन लघुकथा की सार्थकता पर केंद्रित था।
- श्री सतीश राठी
सोमवार, 25 नवंबर 2019
लघुकथा समाचार | क्षितिज मंच द्वारा इंदौर में आयोजित अ. भा. लघुकथा सम्मेलन
दैनिक भास्कर | Nov 25, 2019.
कहानियां दवा पर लघुकथा इंजेक्शन हैं, फौरन असर करेंगी, बच्चों के पाठ्यक्रम में इन्हें शामिल कर हम जागरूक पीढ़ी तैयार कर सकेंगे
"लघुकथा जातीय भेदभाव, लिंगभेद, स्त्री पर अत्याचारों और साम्प्रदायिक हिंसा के खिलाफ किशोरों-युवाओं को प्रभावी ढंग से जागरूक कर सकती है। इसलिए देश के तमाम स्कूल-काॅलेज के पाठ्यक्रमों में श्रेष्ठ लघुकथाओं को शामिल किया जाना चाहिए। कहानी के मुकाबले लघुकथा इंजेक्शन की तरह फौरन असर करती है। आकार में लघु होने और बेहतर संप्रेषण के कारण ये ज्यादा असरदार साबित हुई हैं।' शुक्रवार को क्षितिज के अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन में साहित्यकार माधव नागदा संबोधित कर रहे थे। मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति में हुए सम्मेलन में कई सत्रों में वक्ताओं ने विचार रखे।
सीप में मोती बनने की प्रक्रिया पीड़ादायक होती है, लघुकथाकार के मन में हो यह पीड़ा
सुकेश साहनी ने कहा कि सीप में मोती बनने की प्रक्रिया बहुत पीड़ादायक होती है इसी तरह मन में लघुकथा बनने की प्रक्रिया भी पीड़ादायक होना चाहिए। जैसे मोती को निकालने के लिए नाज़ुक शल्य क्रिया होती है, उसी तरह लघुकथा को भी संवारना होता है। रचनायात्रा तपती रेत पर चलने के समान है और पुरस्कार मिलना शीतल छाया है। साहित्यकार श्यामसुंदर अग्रवाल ने कहा कि क्षितिज लघुकथा पत्रिका में पंजाबी लघुकथा पर एक लेख पढ़कर मैंने लघुकथा रचने को चुनौती की तरह लिया और खूब लिखा। आज पंजाब में 25 लघुकथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। नर्मदाप्रसाद उपाध्याय ने कहा कि लघुकथाकार दूसरे अनुशासनों में झांककर ही बेहतर लिख सकता है। दृष्टिसम्पन्न होकर ही पुनरावृत्ति के दोष और शिल्पगत वैविध्य के अभाव से मुक्त हुआ जा सकता है। कुणाल शर्मा ने भी संबोधित किया। दूसरे सत्र में 35 लघुकथाकारों ने पाठ किया।
तीसरे सत्र में नारी अस्मिता और लघुकथा पर सूरीकांत नागर बलराम अग्रवाल, ज्योति जैन और वसुधा गाडगिल ने बातचीत की। आखरी सत्र कथा शिल्प और प्रभाव पर साहित्यकार राकेश शर्मा, सुकेश साहनी, बलराम अग्रवाल, श्याम सुंदर अग्रवाल और ब्रजेश कानूनगो ने सवालों के जवाब दिए। संचालन अंतरा करवेड़े, सीमा व्यास, निधि जैन और डॉ. गरिमा संजय दुबे ने किया। आभार सतीश राठी, पुरुषोत्तम दुबे ने माना।
श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय को कला साहित्य सृजन सम्मान, श्री हीरालाल नागर को लघुकथा सम्मान, श्री श्याम सुंदर अग्रवाल को क्षितिज लघुकथा शिखर सेतु सम्मान 2019 हिंदी और पंजाबी भाषा में मिनी पत्रिका के माध्यम से सेतु का काम करने के संदर्भ में दिया गया है जबकि श्री सुकेश साहनी को क्षितिज लघुकथा शिखर सम्मान 2019 प्रदान किया गया है जो गत वर्ष श्री बलराम अग्रवाल को दिया गया था। श्री माधव नागदा को क्षितिज लघुकथा समालोचना सम्मान 2019 प्रदान किया गया है गत वर्ष यह सम्मान श्री बीएल आच्छा को दिया गया था। श्री कुणाल शर्मा को क्षितिज लघुकथा नवलेखन सम्मान 2019 से सम्मानित किया गया है गत वर्ष यह सम्मान श्री कपिल शास्त्री को दिया गया था।
Sources:
1. https://www.bhaskar.com/news/mp-news-stories-are-short-lived-injections-on-medicine-they-will-make-an-immediate-impact-by-including-them-in-the-curriculum-of-children-we-will-be-able-to-create-a-conscious-generation-075624-6019212.html
2. Shri Satish Rathi
कहानियां दवा पर लघुकथा इंजेक्शन हैं, फौरन असर करेंगी, बच्चों के पाठ्यक्रम में इन्हें शामिल कर हम जागरूक पीढ़ी तैयार कर सकेंगे
"लघुकथा जातीय भेदभाव, लिंगभेद, स्त्री पर अत्याचारों और साम्प्रदायिक हिंसा के खिलाफ किशोरों-युवाओं को प्रभावी ढंग से जागरूक कर सकती है। इसलिए देश के तमाम स्कूल-काॅलेज के पाठ्यक्रमों में श्रेष्ठ लघुकथाओं को शामिल किया जाना चाहिए। कहानी के मुकाबले लघुकथा इंजेक्शन की तरह फौरन असर करती है। आकार में लघु होने और बेहतर संप्रेषण के कारण ये ज्यादा असरदार साबित हुई हैं।' शुक्रवार को क्षितिज के अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन में साहित्यकार माधव नागदा संबोधित कर रहे थे। मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति में हुए सम्मेलन में कई सत्रों में वक्ताओं ने विचार रखे।
सीप में मोती बनने की प्रक्रिया पीड़ादायक होती है, लघुकथाकार के मन में हो यह पीड़ा
सुकेश साहनी ने कहा कि सीप में मोती बनने की प्रक्रिया बहुत पीड़ादायक होती है इसी तरह मन में लघुकथा बनने की प्रक्रिया भी पीड़ादायक होना चाहिए। जैसे मोती को निकालने के लिए नाज़ुक शल्य क्रिया होती है, उसी तरह लघुकथा को भी संवारना होता है। रचनायात्रा तपती रेत पर चलने के समान है और पुरस्कार मिलना शीतल छाया है। साहित्यकार श्यामसुंदर अग्रवाल ने कहा कि क्षितिज लघुकथा पत्रिका में पंजाबी लघुकथा पर एक लेख पढ़कर मैंने लघुकथा रचने को चुनौती की तरह लिया और खूब लिखा। आज पंजाब में 25 लघुकथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। नर्मदाप्रसाद उपाध्याय ने कहा कि लघुकथाकार दूसरे अनुशासनों में झांककर ही बेहतर लिख सकता है। दृष्टिसम्पन्न होकर ही पुनरावृत्ति के दोष और शिल्पगत वैविध्य के अभाव से मुक्त हुआ जा सकता है। कुणाल शर्मा ने भी संबोधित किया। दूसरे सत्र में 35 लघुकथाकारों ने पाठ किया।
तीसरे सत्र में नारी अस्मिता और लघुकथा पर सूरीकांत नागर बलराम अग्रवाल, ज्योति जैन और वसुधा गाडगिल ने बातचीत की। आखरी सत्र कथा शिल्प और प्रभाव पर साहित्यकार राकेश शर्मा, सुकेश साहनी, बलराम अग्रवाल, श्याम सुंदर अग्रवाल और ब्रजेश कानूनगो ने सवालों के जवाब दिए। संचालन अंतरा करवेड़े, सीमा व्यास, निधि जैन और डॉ. गरिमा संजय दुबे ने किया। आभार सतीश राठी, पुरुषोत्तम दुबे ने माना।
श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय को कला साहित्य सृजन सम्मान, श्री हीरालाल नागर को लघुकथा सम्मान, श्री श्याम सुंदर अग्रवाल को क्षितिज लघुकथा शिखर सेतु सम्मान 2019 हिंदी और पंजाबी भाषा में मिनी पत्रिका के माध्यम से सेतु का काम करने के संदर्भ में दिया गया है जबकि श्री सुकेश साहनी को क्षितिज लघुकथा शिखर सम्मान 2019 प्रदान किया गया है जो गत वर्ष श्री बलराम अग्रवाल को दिया गया था। श्री माधव नागदा को क्षितिज लघुकथा समालोचना सम्मान 2019 प्रदान किया गया है गत वर्ष यह सम्मान श्री बीएल आच्छा को दिया गया था। श्री कुणाल शर्मा को क्षितिज लघुकथा नवलेखन सम्मान 2019 से सम्मानित किया गया है गत वर्ष यह सम्मान श्री कपिल शास्त्री को दिया गया था।
Sources:
1. https://www.bhaskar.com/news/mp-news-stories-are-short-lived-injections-on-medicine-they-will-make-an-immediate-impact-by-including-them-in-the-curriculum-of-children-we-will-be-able-to-create-a-conscious-generation-075624-6019212.html
2. Shri Satish Rathi
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गुरुवार, 11 अप्रैल 2019
पुस्तक समीक्षा | श्रापित योद्धा की कष्ट कथा | सतीश राठी
महाभारत हमारे प्राचीन इतिहास की एक ऐसी कथा है, जिसमें धर्म भी है धर्मराज भी है और अधर्म भी है, कृपा भी है पीड़ा भी है, स्वार्थ भी है सेवा भी है, वैमनस्य भी है प्रेम भी है, राजनीति भी है त्याग भी है ,प्रतिशोध भी है दया भी है, कपट भी है निश्चलता भी है, छल भी है और ईमानदारी भी । यह कथा जीवन का एक ऐसा सत्य है जिसमें सारे सुख भी हैं ,सारे दुख भी और इसी कथा का एक पात्र ऐसा भी है जिसके क्रोध ने उसके जीवन को ऐसा नष्ट किया कि वह अपनी यातना, अपनी पीड़ा को सहते हुए आज तक भटक रहा है। ऐतिहासिक किंवदंती को उपन्यास का मुख्य विषय बना कर अश्वत्थामा जैसे खलनायक पात्र को नायक बनाकर श्रीमती अनघा जोगलेकर ने अपना उपन्यास रचा है, 'अश्वत्थामा: यातना का अमरत्व'।
जीवन में सुख का घंटों का समय भी क्षण मात्र लगता है और दुख का क्षण भी व्यतीत ही नहीं होता । यदि किसी व्यक्ति को दुख और यातना का जीवन भर का श्राप मिल जाए और जीवन अमर हो जाए, तो फिर उसका भटकाव कैसा होगा, इसे शब्द देना शायद बड़ा कठिन है और एक कड़ी परीक्षा भी। इस उपन्यास को पढ़ने के बाद मुझे यह लगा कि अनघा जी इस कड़ी परीक्षा में मेरिट लिस्ट में पास हुई हैं। उन्होंने महाभारत के इस सूक्ष्म से विषय को उठाकर विस्तार दिया है। उनकी भाषा पर पकड़ और लेखन के शिल्प पर उनका आधिपत्य ,इतना अधिक तैयारी से परिपूर्ण है कि उपन्यास को पढ़ते हुए कहीं पर भी यह नहीं लगा कि हम कहीं उससे अलग हो रहे हैं। एक चुनौतीपूर्ण बात थी कि अनघा जी ने अश्वत्थामा पर उपन्यास लिखने का विचार बना लिया और यह विचार पूरे शोध के साथ प्रस्तुत भी किया।
ऐसा कहा जाता है कि जब कोई व्यक्ति लिखने बैठता है, तो पात्र उसके सामने जीवंत हो जाते हैं। यहां पर अश्वत्थामा जैसे पात्र पर उसे जीवंत कर लिखना कितना पीड़ादायक होगा यह समझा जा सकता है। उपन्यास का प्रारंभ शारण देव नामक एक ब्राह्मण को कथा का सूत्रधार बनाकर किया गया है। शारण देव, उसका पुत्र शत और उसकी पत्नी भगवती इस कथा के सूत्रधार पात्र हैं जो कहीं ना कहीं अपनी भावनाओं के साथ इसमें जुड़ भी जाते हैं। यह तो दंतकथा है कि अश्वत्थामा जो दुर्योधन के अंतिम सेनापति रहे कृष्ण के श्राप से आज भी वन वन भटक रहे हैं, लेकिन क्या वाकई में श्राप होता है या फिर कर्मफल जीवन के साथ यात्रा करते हैं।लेखिका ने प्रत्येक अध्याय के पहले ऐसे कुछ प्रश्न भी उठाए हैं और उनके समाधान भी दिए हैं। महाभारत में कई सारी चमत्कारिक घटनाएं वर्णित है, उनके पीछे के तथ्य और तर्क को विभिन्न अध्यायों के पूर्व तार्किक समाधान के साथ प्रस्तुत किया गया है ।
आचार्य द्रोणाचार्य का पुत्र, आचार्य कृपाचार्य का भांजा ,दुर्योधन और कर्ण का प्रिय मित्र अश्वत्थामा जब अपनी कथा खुद शारण देव के सामने वर्णित करता है तो अध्याय दर अध्याय उसका दुख, उसका पश्चाताप उसके शरीर से निकल रहे मवाद की तरह सामने बहता हुआ दिखता है। जन्म के समय अश्व की तरह हिनाहिनाने की आवाज करते हुए पैदा होने से पिता ने उनका नाम अश्वत्थामा रख दिया और यह अभिशापित नाम इतिहास का एक ऐसा हिस्सा बना जो दर-दर भटकने के लिए शापित हो गया है। इसकी पूर्व पीठिका के रूप में कृपा कृपी के जन्म की भी कथा है और वहीं से सूत्र जोड़कर कथा को विस्तार दिया है। अनावश्यक हिस्से को बड़ी कुशलता के साथ उपन्यास का हिस्सा बनने से हटा दिया गया है। कृष्ण भी हर पृष्ठ पर विद्यमान होते हुए शायद कहीं नहीं है। यह लेखिका की कुशलता की बात है। कौरव और पांडव और महाभारत के पात्र इतने महत्वपूर्ण रहे हैं कि, उनकी छाया में कोई दूसरा पात्र खड़ा ही नहीं हो सकता, पर यह अनघा जी का लेखकीय कौशल्य है कि उन्होंने अन्य समस्त महत्वपूर्ण पात्रों को छाया रूप में रखते हुए अश्वत्थामा का अंतर्मन यहां पर प्रस्तुत किया है ।क्रोध भी आता है और दया भी पैदा होती है। उसका दुख एक खलनायक का दुख है, पर पाठक वहां पर भी जाकर जुड़ता है। खलनायक को कहीं पर भी नायक बनाने की कोशिश नहीं की गई है पर रचना कौशल से उसका पश्चाताप भी सामने आया है और उसका क्रोध तथा अहंकार भी । यह सब एक साथ किसी पुस्तक में रखना जिस अतिरिक्त कौशल की जरूरत की ओर इशारा करता है वह इस युवा लेखिका के पास है, और इसी कौशल के साथ लिखे जाने से यह उपन्यास विश्वसनीय भी हो गया है।
उस समय के सारे तथ्यों पर खोजबीन के साथ प्रत्येक अध्याय के पहले जो समाधान टिप्पणियां दी गई हैं वह सारी टिप्पणियां अपने आप में बड़ी महत्वपूर्ण हैं ,क्योंकि उनमें उठाए गए प्रश्न और उनके समाधान फिर कुछ नए प्रश्न भी खड़े कर देते हैं, और पाठक की सोच को विस्तार भी देते हैं। शायद यह विस्तार पाना ही तो किसी उपन्यासकार की इच्छा होती है, और उसके लिखे जाने की सफलता भी। इस मायने में अनघा जी पूरी तरह सफल हैं और बधाई की हकदार भी।
यह पुस्तक अमेज़ॉन पर उपलब्ध है। इसे लेखिका से सीधे प्राप्त करने हेतु नीचे दिये ईमेल पर सम्पर्क कर सकते हैं
anaghajoglekar@yahoo.co.in
- सतीश राठी
आर 451, महालक्ष्मी नगर ,
इंदौर 452 010
मोबाइल 94250 67204
-------------
जीवन में सुख का घंटों का समय भी क्षण मात्र लगता है और दुख का क्षण भी व्यतीत ही नहीं होता । यदि किसी व्यक्ति को दुख और यातना का जीवन भर का श्राप मिल जाए और जीवन अमर हो जाए, तो फिर उसका भटकाव कैसा होगा, इसे शब्द देना शायद बड़ा कठिन है और एक कड़ी परीक्षा भी। इस उपन्यास को पढ़ने के बाद मुझे यह लगा कि अनघा जी इस कड़ी परीक्षा में मेरिट लिस्ट में पास हुई हैं। उन्होंने महाभारत के इस सूक्ष्म से विषय को उठाकर विस्तार दिया है। उनकी भाषा पर पकड़ और लेखन के शिल्प पर उनका आधिपत्य ,इतना अधिक तैयारी से परिपूर्ण है कि उपन्यास को पढ़ते हुए कहीं पर भी यह नहीं लगा कि हम कहीं उससे अलग हो रहे हैं। एक चुनौतीपूर्ण बात थी कि अनघा जी ने अश्वत्थामा पर उपन्यास लिखने का विचार बना लिया और यह विचार पूरे शोध के साथ प्रस्तुत भी किया।
ऐसा कहा जाता है कि जब कोई व्यक्ति लिखने बैठता है, तो पात्र उसके सामने जीवंत हो जाते हैं। यहां पर अश्वत्थामा जैसे पात्र पर उसे जीवंत कर लिखना कितना पीड़ादायक होगा यह समझा जा सकता है। उपन्यास का प्रारंभ शारण देव नामक एक ब्राह्मण को कथा का सूत्रधार बनाकर किया गया है। शारण देव, उसका पुत्र शत और उसकी पत्नी भगवती इस कथा के सूत्रधार पात्र हैं जो कहीं ना कहीं अपनी भावनाओं के साथ इसमें जुड़ भी जाते हैं। यह तो दंतकथा है कि अश्वत्थामा जो दुर्योधन के अंतिम सेनापति रहे कृष्ण के श्राप से आज भी वन वन भटक रहे हैं, लेकिन क्या वाकई में श्राप होता है या फिर कर्मफल जीवन के साथ यात्रा करते हैं।लेखिका ने प्रत्येक अध्याय के पहले ऐसे कुछ प्रश्न भी उठाए हैं और उनके समाधान भी दिए हैं। महाभारत में कई सारी चमत्कारिक घटनाएं वर्णित है, उनके पीछे के तथ्य और तर्क को विभिन्न अध्यायों के पूर्व तार्किक समाधान के साथ प्रस्तुत किया गया है ।
आचार्य द्रोणाचार्य का पुत्र, आचार्य कृपाचार्य का भांजा ,दुर्योधन और कर्ण का प्रिय मित्र अश्वत्थामा जब अपनी कथा खुद शारण देव के सामने वर्णित करता है तो अध्याय दर अध्याय उसका दुख, उसका पश्चाताप उसके शरीर से निकल रहे मवाद की तरह सामने बहता हुआ दिखता है। जन्म के समय अश्व की तरह हिनाहिनाने की आवाज करते हुए पैदा होने से पिता ने उनका नाम अश्वत्थामा रख दिया और यह अभिशापित नाम इतिहास का एक ऐसा हिस्सा बना जो दर-दर भटकने के लिए शापित हो गया है। इसकी पूर्व पीठिका के रूप में कृपा कृपी के जन्म की भी कथा है और वहीं से सूत्र जोड़कर कथा को विस्तार दिया है। अनावश्यक हिस्से को बड़ी कुशलता के साथ उपन्यास का हिस्सा बनने से हटा दिया गया है। कृष्ण भी हर पृष्ठ पर विद्यमान होते हुए शायद कहीं नहीं है। यह लेखिका की कुशलता की बात है। कौरव और पांडव और महाभारत के पात्र इतने महत्वपूर्ण रहे हैं कि, उनकी छाया में कोई दूसरा पात्र खड़ा ही नहीं हो सकता, पर यह अनघा जी का लेखकीय कौशल्य है कि उन्होंने अन्य समस्त महत्वपूर्ण पात्रों को छाया रूप में रखते हुए अश्वत्थामा का अंतर्मन यहां पर प्रस्तुत किया है ।क्रोध भी आता है और दया भी पैदा होती है। उसका दुख एक खलनायक का दुख है, पर पाठक वहां पर भी जाकर जुड़ता है। खलनायक को कहीं पर भी नायक बनाने की कोशिश नहीं की गई है पर रचना कौशल से उसका पश्चाताप भी सामने आया है और उसका क्रोध तथा अहंकार भी । यह सब एक साथ किसी पुस्तक में रखना जिस अतिरिक्त कौशल की जरूरत की ओर इशारा करता है वह इस युवा लेखिका के पास है, और इसी कौशल के साथ लिखे जाने से यह उपन्यास विश्वसनीय भी हो गया है।
उस समय के सारे तथ्यों पर खोजबीन के साथ प्रत्येक अध्याय के पहले जो समाधान टिप्पणियां दी गई हैं वह सारी टिप्पणियां अपने आप में बड़ी महत्वपूर्ण हैं ,क्योंकि उनमें उठाए गए प्रश्न और उनके समाधान फिर कुछ नए प्रश्न भी खड़े कर देते हैं, और पाठक की सोच को विस्तार भी देते हैं। शायद यह विस्तार पाना ही तो किसी उपन्यासकार की इच्छा होती है, और उसके लिखे जाने की सफलता भी। इस मायने में अनघा जी पूरी तरह सफल हैं और बधाई की हकदार भी।
यह पुस्तक अमेज़ॉन पर उपलब्ध है। इसे लेखिका से सीधे प्राप्त करने हेतु नीचे दिये ईमेल पर सम्पर्क कर सकते हैं
anaghajoglekar@yahoo.co.in
- सतीश राठी
आर 451, महालक्ष्मी नगर ,
इंदौर 452 010
मोबाइल 94250 67204
-------------
Note:
हालांकि अश्वत्थामा: यातना का अमरत्व एक उपन्यास है लेकिन लेखिका ने उपसंहार में एक लघुकथा को उद्धरित किया है। एक उपन्यास और लघुकथा में सहसंबंध स्थापित करना स्वागत योग्य है।शनिवार, 9 फ़रवरी 2019
लघुकथा कलश (तृतीय महाविशेषांक) की समीक्षा श्री सतीश राठी द्वारा
श्री योगराज प्रभाकर के संपादन में 'लघुकथा कलश' का तीसरा महाविशेषांक प्रकाशित हो चुका है और तकरीबन सभी लघुकथा पाठकों को प्राप्त भी हो चुका है। मुझे भी पिछले दिनों यह विशेषांक प्राप्त हो गया और इसे पूरा पढ़ने के बाद मुझे यह जरूरी लगा कि इस विशेषांक पर चर्चा जरूरी है।
इस विशेषांक के पहले भाग में डॉ अशोक भाटिया, प्रोफेसर बीएल आच्छा और रवि प्रभाकर ने श्री महेंद्र कुमार, श्री मुकेश शर्मा एवं डॉ कमल चोपड़ा की लघुकथाओं के बहाने समकालीन लघुकथा लेखन पर बातचीत की है। यह इसलिए महत्वपूर्ण कहा जा सकता है कि इसमें एक नया लघुकथाकार दो वरिष्ठ लघुकथाकारों के साथ अपनी लघुकथाओं को लेकर प्रस्तुत हुआ है और यह लघुकथाएं विधा की नई संभावनाओं की और दिशा देने वाली लघुकथाएं हैं जिसके बारे में डॉ अशोक भाटिया ने भी इंगित किया है। लघुकथाओं को देखने के बाद लघुकथाओं को लेकर कोई चिंता नहीं रखना चाहिए। बहुत सारी अच्छी लघुकथाएं विशेषांक में समाहित है। नौ आलेख इसे समृद्ध करते हैं। कल्पना भट्ट का पिता पात्रों को लेकर लिखा गया आलेख, डॉ ध्रुव कुमार का लघुकथा के शीर्षक पर आलेख, लघुकथा की परंपरा और आधुनिकता पर डॉक्टर पुरुषोत्तम दुबे ,लघुकथा के द्वितीय काल परिदृश्य पर डॉ रामकुमार घोटड, लघुकथा के भाषिक प्रयोगों पर श्री रामेश्वर कांबोज, खलील जिब्रान की लघुकथाओं पर डॉक्टर वीरेंद्र कुमार भारद्वाज, लघुकथा के अतीत पर डॉक्टर सतीशराज पुष्करणा और राजेंद्र यादव की लघुकथा पर सुकेश साहनी, इनके साथ में तीन साक्षात्कार जो मुझसे, डॉ कमल चोपड़ा एवं डॉ श्याम सुंदर दीप्ति से लिए गए हैं, कुछ पुस्तकों की समीक्षा, कुछ गतिविधियों की जानकारी, दिवंगत लघुकथाकारों को श्रद्धांजलि, कुछ गतिविधियों का जिक्र और 177 हिंदी लघुकथाओं के साथ नेपाली, पंजाबी, सिंधी भाषा के विभिन्न लघुकथाकारों की लघुकथाएं इतना सब एकत्र कर प्रस्तुत करने के पीछे भाई योगराज प्रभाकर की कड़ी मेहनत हमारे सामने आती है। ऐसे काम जुनून से ही पूरे होते हैं और वह जुनून इस विशेषांक में दृष्टिगत होता है। पाठक यदि इस विधा को लेकर कोई प्रश्न खड़े करते हैं तो उसका जवाब भी उन्हें इस तरह के विशेषांक में प्राप्त हो जाता है। मैं श्री योगराज प्रभाकर जी की पूरी टीम को विशिष्ट उपलब्धि के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं। पिछले दोनों अंको से और आगे जाकर यह तीसरा अंक सामने आया है और यह आश्वस्ति देता है कि चौथा अंक और अधिक समृद्ध साहित्य के साथ में हम सबके सामने प्रस्तुत होगा। पुनः बधाई।
- सतीश राठी
इस विशेषांक के पहले भाग में डॉ अशोक भाटिया, प्रोफेसर बीएल आच्छा और रवि प्रभाकर ने श्री महेंद्र कुमार, श्री मुकेश शर्मा एवं डॉ कमल चोपड़ा की लघुकथाओं के बहाने समकालीन लघुकथा लेखन पर बातचीत की है। यह इसलिए महत्वपूर्ण कहा जा सकता है कि इसमें एक नया लघुकथाकार दो वरिष्ठ लघुकथाकारों के साथ अपनी लघुकथाओं को लेकर प्रस्तुत हुआ है और यह लघुकथाएं विधा की नई संभावनाओं की और दिशा देने वाली लघुकथाएं हैं जिसके बारे में डॉ अशोक भाटिया ने भी इंगित किया है। लघुकथाओं को देखने के बाद लघुकथाओं को लेकर कोई चिंता नहीं रखना चाहिए। बहुत सारी अच्छी लघुकथाएं विशेषांक में समाहित है। नौ आलेख इसे समृद्ध करते हैं। कल्पना भट्ट का पिता पात्रों को लेकर लिखा गया आलेख, डॉ ध्रुव कुमार का लघुकथा के शीर्षक पर आलेख, लघुकथा की परंपरा और आधुनिकता पर डॉक्टर पुरुषोत्तम दुबे ,लघुकथा के द्वितीय काल परिदृश्य पर डॉ रामकुमार घोटड, लघुकथा के भाषिक प्रयोगों पर श्री रामेश्वर कांबोज, खलील जिब्रान की लघुकथाओं पर डॉक्टर वीरेंद्र कुमार भारद्वाज, लघुकथा के अतीत पर डॉक्टर सतीशराज पुष्करणा और राजेंद्र यादव की लघुकथा पर सुकेश साहनी, इनके साथ में तीन साक्षात्कार जो मुझसे, डॉ कमल चोपड़ा एवं डॉ श्याम सुंदर दीप्ति से लिए गए हैं, कुछ पुस्तकों की समीक्षा, कुछ गतिविधियों की जानकारी, दिवंगत लघुकथाकारों को श्रद्धांजलि, कुछ गतिविधियों का जिक्र और 177 हिंदी लघुकथाओं के साथ नेपाली, पंजाबी, सिंधी भाषा के विभिन्न लघुकथाकारों की लघुकथाएं इतना सब एकत्र कर प्रस्तुत करने के पीछे भाई योगराज प्रभाकर की कड़ी मेहनत हमारे सामने आती है। ऐसे काम जुनून से ही पूरे होते हैं और वह जुनून इस विशेषांक में दृष्टिगत होता है। पाठक यदि इस विधा को लेकर कोई प्रश्न खड़े करते हैं तो उसका जवाब भी उन्हें इस तरह के विशेषांक में प्राप्त हो जाता है। मैं श्री योगराज प्रभाकर जी की पूरी टीम को विशिष्ट उपलब्धि के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं। पिछले दोनों अंको से और आगे जाकर यह तीसरा अंक सामने आया है और यह आश्वस्ति देता है कि चौथा अंक और अधिक समृद्ध साहित्य के साथ में हम सबके सामने प्रस्तुत होगा। पुनः बधाई।
- सतीश राठी
रविवार, 3 फ़रवरी 2019
लघुकथा समाचार: सरल काव्यांजलि की इंदौर में गोष्ठी आयोजित
उज्जैन 2 फरवरी 2019
संस्था सरल काव्यांजलि द्वारा एक साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन इंदौर में किया गया। अध्यक्षता साहित्यकार श्री पुरुषोत्तम दुबे ने की।
अतिथि उपन्यासकार अश्विनी कुमार दुबे थे। कार्यक्रम में सतीश राठी द्वारा परिवर्तन एवं ठोकर नाम की लघुकथाएं प्रस्तुत की गईं। राम मूरत राही ने भूमि एवं तरक्की लघुकथाएं, संतोष सुपेकर द्वारा लघुकथा नया नारा,दीपक गिरकर ने तफ्तीश जारी ह नामक लघुकथा प्रस्तुत किया।
अशोक शर्मा भारती ने कविता आकलन एवं मार्मिक कविता बसंत प्रस्तुत की। अश्विनी कुमार दुबे ने अपनी व्यंग्य रचना शैतान के दिलचस्प कारनामे प्रस्तुत की। संचालन सतीश राठी ने किया। आभार संतोष सुपेकर ने माना।
News Source:
http://avnews.in/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%B2-%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%BF-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8C%E0%A4%B0-%E0%A4%AE/
गुरुवार, 23 अगस्त 2018
लघुकथा समाचार
शहर में आज : दिल की आवाज़ भी सुन / लघुकथा संगोष्ठी
Dainik Bhaskar | Aug 23, 2018 | Indore
लघुकथा संगोष्ठी
समय : शाम 4 बजे से
कहां : लोकमान्य नगर
प्रवेश : सभी के लिए
डिटेल : लघुकथा संगोष्ठी में लघुकथाओं का पाठ होगा। क्षितिज की इस गोष्ठी में डॉ. वसुधा गाडगिल ,सतीश राठी, अंतरा करवडे, विनीता शर्मा, डॉ लीला मोरे, नयना कानिटकर, राममूरत राही, जितेंद्र गुप्ता, बी आर रामटेके, सुरेश बजाज, अखिलेश शर्मा, शारदा गुप्ता, ज्योति जैन, पदमा राजेंद्र, दीपा व्यास, अश्विनी कुमार दुबे, गरिमा दुबे, रश्मि वागले पाठ करेंगे। इसकी अध्यक्षता भोपाल की कथा लेखिका डॉ. मालती बसंत करेंगी।
News Source:
https://www.bhaskar.com/mp/indore/news/city-event-23-august-mp-5943386.html
Dainik Bhaskar | Aug 23, 2018 | Indore
लघुकथा संगोष्ठी
समय : शाम 4 बजे से
कहां : लोकमान्य नगर
प्रवेश : सभी के लिए
डिटेल : लघुकथा संगोष्ठी में लघुकथाओं का पाठ होगा। क्षितिज की इस गोष्ठी में डॉ. वसुधा गाडगिल ,सतीश राठी, अंतरा करवडे, विनीता शर्मा, डॉ लीला मोरे, नयना कानिटकर, राममूरत राही, जितेंद्र गुप्ता, बी आर रामटेके, सुरेश बजाज, अखिलेश शर्मा, शारदा गुप्ता, ज्योति जैन, पदमा राजेंद्र, दीपा व्यास, अश्विनी कुमार दुबे, गरिमा दुबे, रश्मि वागले पाठ करेंगे। इसकी अध्यक्षता भोपाल की कथा लेखिका डॉ. मालती बसंत करेंगी।
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https://www.bhaskar.com/mp/indore/news/city-event-23-august-mp-5943386.html
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