पत्रिका : परिंदे (लघुकथा केन्द्रित अंक) फरवरी-मार्च'19 अ. सम्पादक : कृष्ण मनु
सं. : डॉ.शिवदान सिंह भदौरिया
79ए, दिलशाद गार्डन, नियर पोस्ट ऑफिस,
दिल्ली- 110095,
पृष्ठ संख्या : 116
मल्य- 40/-
लघुकथा अंक की प्रयोगधर्मिता
क्षण मात्र की कथात्मक अभिव्यक्ति की अत्यंत प्रभावी विधा लघुकथा की लोकप्रियता और पठनीयता का आलम यह है कि आये दिन पत्रिकाओं के विधा केन्द्रित विशेषांक प्रकाशित होते रहते हैं पर अधिकतर विशेषांक संख्याबल और परिमाणात्मक दृष्टि से भले ही भारी भरकम प्रतीत होते हों, किंतु उनमें कोई नयापन नजर नहीं आता। इन सबसे उलट, जब कोई विधा केन्द्रित अंक बनी-बनाई लीक से अलग हटकर प्रकाशित होती है तो उसकी चर्चा लाजिमी हो जाती है।ऐसा ही, लघुकथा पर केन्द्रित एक अंक प्रकाशित हुआ है साहित्य, संस्कृति एवं विचार की द्वैमासिक पत्रिका परिन्दे का , जो ग्यारहवें वर्ष के प्रथमांक(फरवरी-मार्च '2019) के रुप में आया है। लब्धप्रतिष्ठ लघुकथाकार कृष्ण मनु के अतिथि सम्पादन में छपे इस अंक में एक तरफ वैसे वरिष्ठतम रचनाकार हैं जो लघुकथा लेखन के पांच दशक पूरे कर चुके हैं, वहीं दूसरी ओर वैसी प्रतिभायें हैं जो पिछले पांच वर्षों से इस विधा में सृजनशील हैं। हर लघुकथाकार की पहली लघुकथा, प्रकाशन वर्ष तथा पत्रिका के नामोल्लेख के साथ प्रकाशित की गयी है। साथ ही , वर्ष 2018 में रची एक अद्यतन लघुकथा भी।
विशेषांक में शामिल हरेक लघुकथाकार के परिचय के साथ कुछ सवाल भी पूछे गये हैं, जैसे- अबतक कितनी लघुकथाएं लिखीं, पत्र-पत्रिकाओं के नाम जिनमें उनका प्रकाशन हुआ, लघुकथा लिखना कब से शुरु किया , लघुकथा आपकी प्रिय विधा क्यों है, लघुकथा के क्षेत्र में उपलब्धियां आदि।सन् 1970 से लघुकथा लिखते आ रहे 'विश्व लघुकथा कोश' के सम्पादक बलराम ने अपने साक्षात्कार में कहा है कि #कविता की जगह ले सकती है #लघुकथा। वरिष्ठ लेखक राम अवतार बैरवा का भी मानना है कि उज्ज्वल है लघुकथा का भविष्य। मगर अतिथि सम्पादक ने तल्ख हकीकत का बयान करते हुए लिखा है-' लघुकथा की पहचान बनाये रखनी है तो लिखते समय विषय का चयन सावधानी से करने की जरूरत। है।यहाँ एक बात रेखांकित करने योग्य है कि लघुकथा के प्रति पनप रही उपेक्षा का कारण लघुकथा लेखन में विषयों की आवृति से अधिक स्तरहीनता है। लघुकथा की तकनीक जाने बिना, लघुकथा के विषय में अल्प जानकारी रखते हुए दनादन सीधी सपाट लघुकथा लिखते जाना ही लघुकथा के प्रति ऊब का कारण बनता जा रहा है। विषय पुराने हों, लेकिन प्रस्तुति में नयापन, बुनावट में निपुणता, भाषा में कसावट और कथ्य में ताजगी हो तो पाठक के ऊबने/नकारने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता।'
लघुकथाओं के चयन एवं सम्पादन में अतिथि सम्पादक की सतर्कता व पारखी दृष्टि स्पष्टतः परिलक्षित होती है। यही वजह है कि तिरसठ लघुकथाकारों की एक सौ छब्बीस लघुकथाओं के इस संचयन में ज्यादातर रचनायें अपनी छाप छोड़ने में काफी हद तक कामयाब हैं। लघुकथाकार की पहली लघुकथा भी उतनी ही प्रभावी है, जितनी आज की। यहाँ लघुकथाकारों की एक ही साथ तीन पीढ़ियां अपनी दमदार मौजूदगी का अहसास कराती हैं। आज के युगधर्म का आईना है यह संचयन। महिला लघुकथाकारों ने भी घर-आंगन की चहारदीवारी से बाहर निकलकर सामाजिक विसंगतियों , विद्रूपताओं को अपने कथ्य का विषय बनाया है। और ऐसी रचनाओं में आभा सिंह, डाॅ. आशा 'पुष्प', मंजु शर्मा, डाॅ. लता अग्रवाल, माला वर्मा, कृष्णलता यादव, डाॅ. शैल चंद्रा, इन्जी आशा शर्मा, कनक हरलालका, सविता मिश्रा 'अक्षजा', डाॅ.संध्या तिवारी आदि की लघुकथाएं प्रभावी बन पड़ी हैं।
अपने अनूठे कथ्य व शिल्प की मार्फत मानवीय संवेदना को झकझोरने वाले लघुकथाकारों में प्रमुख हैं- बलराम, कमलेश भारतीय, डाॅ.कमल चोपड़ा, कृष्ण मनु, अशोक भाटिया, सतीश राठी, अतुल मोहन प्रसाद, अंकुश्री, गोविन्द शर्मा, शराफत अली खान, कुंवर प्रेमिल, पवन शर्मा, डाॅ.रामकुमार घोटड़, संदीप तोमर आदि
अंक में खटकने वाली बात है भाषा-व्याकरण तथा प्रुफ की अशुद्धियां -ठीक सुस्वादु खीर में कंकड़ की तरह बतौर बानगी इन पंक्तियों के लेखक का जन्म वर्ष 1955 के बजाय 1995 मुद्रित है। जैसा कि सम्पादकीय में जिक्र है, इस विशेषांक के पुस्तकाकार प्रकाशन की भी योजना है। अतः पुस्तक प्रकाशन के पूर्व अशुद्धियों का शोधन-परिमार्जन अपेक्षित है।
विश्वास है, साहित्य, संस्कृति एवं विचार के स्तर पर 'परिंदे' की यह लघुकथा-केन्द्रित उड़ान सुधी पाठकों को कभी चमत्कृत करेगी, कभी अभिभूत करेगी तो कभी अंतर्मन को आईना भी दिखाएगी।
अतिथि संपादक कृष्ण मनु के साथ ही 'परिंदे' के सम्पादक डॉ. शिवदान सिंह भदौरिया तथा कार्यकारी सम्पादक ठाकुर प्रसाद चौबे भी बधाई के पात्र हैं।
समीक्षक- भगवती प्रसाद द्विवेदी
सम्पर्क : 9430600958