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मंगलवार, 11 जून 2019

लघुकथा: मंगलसूत्र | डॉ. संतोष श्रीवास्तव | समीक्षा: डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

आज फेसबुक पर वरिष्ठ लघुकथाकार डॉ. बलराम अग्रवाल जी ने स्त्री के सशक्त रूप की एक अद्भुत लघुकथा साझा की। डॉ. संतोष श्रीवास्तव जी द्वारा सृजित यह लघुकथा एक स्त्री के चार रूप दिखाने में सक्षम है। पहला रूप वह स्त्री अपने शराबी पति से रोज़ मार खाती एक अबला का, दूसरा रूप अपने बच्चों का पालन-पोषण कर रही माँ अन्नपूर्णा सरीखी, तीसरा रूप जो इसमें बताया गया वह यह है कि वह किसी की दया पर ज़िंदा नहीं रहना चाहती और चौथा रूप जिस पर इस लघुकथा का शीर्षक टिका' है वह है - अंदर ही अंदर स्वयं को जलाती हुई एक स्त्री अब स्वतंत्रता की हवा में सांस ले पा रही है।

शराबी पति-मारपीट-खुद घर चलाना आदि पुराने विषय हैं लेकिन एक अर्थहीन पति की पत्नी की बजाय वह विधवा स्वयं को पहले से ठीक महसूस कर रही है, यहाँ लेखिका ने लघुकथा में जो शब्द कहे हैं कि "भोत चुभता था ताई मंगलसूत्र!", यह पढ़ते ही ना केवल दिल से आह बल्कि लेखिका के लेखन कौशल से वाह भी बरबस निकल जाता है।

- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

अद्भुत पंच पंक्ति लिए यह लघुकथा श्रेष्ठ हिन्दी लघुकथाओं में से एक है। आइए पढ़ते हैं: