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सोमवार, 21 अक्टूबर 2024

वैश्विक सरोकार की लघुकथाएं । भाग 9 । रोजगार पर सर्जन

आदरणीय मित्रों,

वैश्विक मुद्दों के इन आलेखों को पढ़ने पर प्रारम्भ में आप इसे अकादमिक बातों से जुड़ा हुआ पा सकते हैं। हालाँकि, वे बातें मुद्दों पर कुछ सामयिक चर्चाएँ हैं, जो साझा करने का प्रयास किया गया है। विषय को समझने पर ही हमारा मस्तिष्क खुलता है और साहित्यिक समझ के व्यक्तियों के विचारों में रचना जन्म ले सकती है। वैसे भी, जब हम यह चाहते हैं कि हमारी रचनाएं अकादमिक रूप से भी प्रभावित करें तो, उस क्षेत्र में हमें एकाध कदम रखना पड़ेगा ही।

इस आलेख में रोजगार के बारे में चर्चा की गई है, जो कि एक ऐसा विषय है, जिससे हम सभी जुड़े हुए हैं। हम ही नहीं बल्कि पूरा विश्व जुड़ा हुआ है। कई भ्रांतियां भी हैं और कई बाधाएं भी। कहीं अच्छे रोजगार के अवसर नहीं हैं तो कहीं दिशा। कहीं भाई-भतीजावाद है तो कहीं गॉडफादर वाद।

कुल मिलाकर, वैश्विक रोजगार के समक्ष कई चुनौतियाँ हैं, प्रौद्योगिकी में तेज़ी से हो रहे बदलाव, वैश्वीकरण और आर्थिक अस्थिरता के कारण नौकरी के बाज़ार प्रभावित हो रहे हैं। विशेष रूप से कम कौशल वाली नौकरियों में कामगारों की संख्या कम हो रही है, जिससे नौकरी की सुरक्षा को लेकर व्यापक चिंताएँ पैदा हो रही हैं।

इनके साथ ही, जलवायु परिवर्तन और राजनीतिक तनाव जैसे परिवर्तन भी आर्थिक अनिश्चितता में योगदान दे रहे हैं, जिसके फलस्वरूप कई क्षेत्रों में नौकरी के अवसर सीमित हो रहे हैं। यह विकासशील देशों में विशेष रूप से होता है, जहाँ कार्यबल या जनसंख्या बढ़ रही है, लेकिन नौकरियाँ उस गति से नहीं बढ़ रही हैं, जिससे गरीबी और असमानता बढ़ती है।

सबसे बड़ा मुद्दा युवा बेरोज़गारी का है, क्योंकि कई युवा रोज़गार हासिल करने के लिए आवश्यक कौशल या अवसरों के बिना नौकरी चाह रहे हैं। अविकसित उद्योग, शिक्षा की कमी और प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुँच जैसे संरचनात्मक कारक उपलब्ध नौकरियों की संख्या और काम की तलाश करने वाले लोगों की संख्या के बीच के अंतर को और बढ़ाते हैं। इसके अलावा, रोज़गार में लैंगिक असमानताएँ, जिसमें महिलाओं को वेतन असमानता और कम नौकरी की संभावनाओं जैसी अतिरिक्त बाधाओं का सामना करना पड़ता है, और ये मुद्दे रोज़गार संकट में जटिलता की एक और परत जोड़ते हैं।

इन दिनों के मुख्य मुद्दें, Artificial Intelligence और Robotics की बात करें तो, आने वाले कुछ ही वर्षों में यह बहुत कुछ बदलने वाले हैं और इनसे एक भय भी उत्पन्न हो रहा है कि, कई रोजगार चले जाएंगे। हालाँकि यह भय उस लुडाइट हिस्टीरिया की तरह ही है, जब 19 वीं सदी के कपड़ा मजदूरों ने रोजगार छीन जाने के भय के कारण कपड़ा बनाने वाली मशीनों को नष्ट कर दिया था। आज के समय में यह हास्यास्पद लग सकता है कि जब उद्योगों का मशीनों के बिना अस्तित्व ही नहीं है तो पहले के मजदूरों ने यह धारणा कैसे बनाई? बिलकुल यही धारणा आज भी है। यह सच है कि मशीनें या प्रोद्योगिकी जब भी उन्नत होती हैं, हमारी कार्य दक्षता बढ़ती है और उन कार्यों को करने वालों के मानवों को यह चिंता होती ही है कि कहीं उनके रोजगार पर संकट तो नहीं आएगा! यह भी सच है कि - आएगा। लेकिन उसके साथ ही, मशीनें अपने साथ नए रोजगार लाती हैं, जो अधिकतर बार संख्या में अधिक होते हैं और मानदेय (सैलरी) में भी, क्योंकि जब अधिक दक्षता से कार्य होगा तब परिणामस्वरुप कार्य का मूल्य भी बढ़ेगा ही। अतः, यह कह सकते हैं कि, जब भी प्रोद्योगिकी उन्नत हो रही हो, उसे सीखना हमारी उन्नति का भी द्योतक है।

बेरोजगारी पर पुनः आते हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, वैश्विक बेरोजगारी दर अनुमानित र्रोप से 200 मिलियन से अधिक है। 2023 में, वैश्विक बेरोजगारी दर लगभग 5.3% थी, जिसमें विकासशील देशों में सबसे अधिक समस्या थी। युवा बेरोजगारी, विशेष रूप से उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया जैसे क्षेत्रों में, वैश्विक औसत से काफी अधिक बनी हुई है, कुछ देशों में दरें 20% से अधिक तक पहुँच गई हैं। 

COVID-19 महामारी ने इन संख्याओं को और बढ़ा दिया, जिससे लाखों लोग बेरोजगार हो गए और दुनिया भर में आर्थिक अस्थिरता बढ़ गई। यह भी है कि, उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में कुछ सुधार के बावजूद, रोजगार सृजन धीमा ही बना हुआ है, जिसमें अल्परोजगार और अनौपचारिक कार्य भी अतिरिक्त चुनौतियाँ हैं।

कुछ उल्लेखनीय गणमान्य व्यक्तियों के बेरोजगारी पर उद्धरण निम्नानुसार हैं:

फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट - "हमारी प्रगति की परीक्षा यह नहीं है कि हम उन लोगों की समृद्धि में और वृद्धि करते हैं या नहीं, बल्कि यह है कि हम उन लोगों के लिए पर्याप्त प्रदान करते हैं या नहीं जिनके पास बहुत कम है।"

बराक ओबामा - "हम दीर्घकालिक बेरोजगारी की समस्या से तब तक नहीं निपट सकते जब तक हम लोगों को फिर से काम पर नहीं लगाते, एक ऐसी अर्थव्यवस्था का निर्माण नहीं करते जो हर अमेरिकी को अवसर प्रदान करे।"

बान की-मून - "युवा बेरोजगारी एक वैश्विक चुनौती है। तत्काल उपायों के बिना, हम प्रतिभा, नवाचार और गतिशीलता से 'खोई हुई पीढ़ी' बनाने का जोखिम उठा रहे हैं।"

नेल्सन मंडेला - "गरीबी पर काबू पाना दान का इशारा नहीं है, यह न्याय का कार्य है। यह मानव का एक मौलिक अधिकार, उसकी गरिमा और सभ्य जीवन के अधिकार की सुरक्षा है।"

कोफी अन्नान - "यदि एक बेहतर और सुरक्षित दुनिया बनाने की हमारी उम्मीदें केवल कल्पना से अधिक होनी चाहिए, तो हमें कार्यबल में अधिक लोगों की भागीदारी की आवश्यकता होगी, जिनके पास उचित नौकरियां और बेहतर अवसर हों।"

रोजगार समस्या को हल करने के तरीकों पर विचारें तो सबसे पहले विचार आता है कौशल विकास और शिक्षा का। आवश्यक कौशल से लैस करने के लिए शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण में निवेश करना आवश्यक है।

इसके पश्चात सरकारों को नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देना चाहिए। छोटे व्यवसायों और स्टार्टअप को प्रोत्साहित करने से नए रोजगार के अवसर पैदा हो सकते हैं, विशेषकर वंचित क्षेत्रों में।

सामाजिक सुरक्षा को मजबूत करना भी आवश्यक है। बेरोजगारी भत्ता, आर्थिक संकट के समय स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाओं तक आसान पहुँच मानव सुरक्षा में मदद कर सकता है।

समान वेतन, मातृत्व लाभ और उचित अवसरों के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाना रोजगार में लैंगिक असमानताओं को दूर कर सकता है।

इनके साथ ही सरकारों को रोजगार सृजन के लिए दीर्घकालिक रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

बेरोजगारी पर साहित्य सर्जन

बेरोजगारी पर सबसे प्रभावशाली साहित्य में जॉन मेनार्ड कीन्स की 'द जनरल थ्योरी ऑफ़ एम्प्लॉयमेंट, इंटरेस्ट, एंड मनी' जैसी रचनाएँ शामिल हैं, जो आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं में बेरोजगारी की एक आधारभूत समझ प्रदान करती हैं। कीन्स ने तर्क दिया कि बेरोजगारी अक्सर वस्तुओं और सेवाओं की अपर्याप्त मांग के कारण होती है, वे आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए सरकारी हस्तक्षेप पर भी जोर देते हैं। एक अन्य महत्वपूर्ण योगदान डेल मोर्टेंसन और क्रिस्टोफर पिसाराइड्स द्वारा 'जॉब क्रिएशन एंड डिस्ट्रक्शन' है, जो श्रम बाजारों की गतिशीलता और श्रमिकों और नौकरियों के बीच दक्षता/कार्य-कुशलता की जांच करता है।

बेरोजगारी पर लघुकथा सर्जन

बेरोजगारी पर लघुकथा सर्जन बहुतायत में हुआ है। सबसे पहली लघुकथा उन रचनाकार की है, जिन्होंने बहुत कम समय में लघुकथा विधा को ऊँचाइयों पर पहुंचाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। COVID ने उन्हें हमसे छीन लिया, अन्यथा वे विधा के लिए और भी काफी कार्य करते। मैं बात कर रहा हूँ, मेरे अग्रज स्वरूप श्री रवि प्रभाकर की। उनकी रचना पढ़ते हैं

एक बड़ा हादसा / कीर्तिशेष रवि प्रभाकर (Ravi Prabhakar)

फैक्ट्री में हुए एक भयानक हादसे में उसे अपनी दोनों टाँगे गंवानी पड़ गई, जबकि उसके तीन साथियों को जान से हाथ धोना पड़ा था.

"तुम्हें ठीक होनें में तो अभी बहुत समय लगेगा, जबकि एक महीने के बाद ही तुम्हारी रिटायरमेंट है। इसलिए मैनेजमेंट ने फैसला किया है कि तुम्हें एक महीना पहले ही रिटायर कर दिया जाए।”  उसका हाल चाल पूछने आए सहकर्मियों में से एक ने उसे सूचित किया

“चलो कोई बात नहीं यार, भगवान का शुकर मनायो कि जान बच गई।” दूसरे ने दिलासा देते हुए कहा.

"हमारे उन तीन साथियों का क्या हुआ जिनकी मौत हो गई थी ?" उसने उदास स्वर में पूछा

"उन सब के बेटों को नौकरी दे दी गई है." उत्तर मिला

कोने में बैठे अपने बेरोजगार बेटे और उसके तीन बच्चों को देख आज उसे अपने ज़िंदा बच जाने का बेहद अफ़सोस हो रहा था।

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- रवि प्रभाकर (कीर्तिशेष)


अगली एक रचना श्री बालकृष्ण गुप्ता ‘गुरु’ की है। इसे पढ़िए,

प्रसाद/ बालकृष्ण गुप्ता ‘गुरु’

लंबी बेरोजगारी से परेशान चार युवकों के चेहरों पर अब नौकरी लग जाने से संतुष्टि के भाव थे। चारों खुश थे और इसी खुशी में अपनी नौकरी के पीछे का रहस्य बता रहे थे।

पहला युवक – “मैंने सीधे बड़े साहब से बात की, ताकि चूक की कोई गुंजाइश ही न रहे। बात पूरे दो लाख में बनी।”

दूसरा युवक – “मैंने छोटे साहब से बात की। वे स्थापना विभाग के प्रभारी थे, इसलिए चूकने की आशंका नहीं थी। मैंने लाख रुपए में बात पक्की की थी।”

तीसरा युवक – “मैंने डीलिंग क्लर्क से बात की थी। हस्ताक्षर होने के बाद भी सूची में बीच में एक–दो नाम डालने की योग्यता उसमें थी ही। वह पचास हजार में ही मान गया।”

चौथा युवक – “मैंने किसी को रुपए नहीं दिए, मेरा काम मुफ्त में हो गया।” 

बाकी तीनों युवक एक स्वर में बोले – “सफेद झूठ!”

चौथे युवक ने राज खोला – “मैंने चार अन्य बेरोजगार युवकों से साहब को रुपए दिलवाए, तो प्रसाद के रूप में मुझे नौकरी मिल गई।”

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- बालकृष्ण गुप्ता ‘गुरु’


श्री कपिश चन्द्र श्रीवास्तव की लघुकथा विडम्बना भी महत्वपूर्ण बात कह जाती है,

विडम्बना / कपिश चन्द्र श्रीवास्तव 

(सामान्य सम्पादन पश्चात)

चप्पल घिस-घिस कर आधे रह गए थे सूरज शर्मा के। पिछले 3 साल से अपनी मास्टर  डिग्री की फ़ाइल प्लास्टिक के थैले में रखे नौकरी की तलाश में  जगह-जगह धक्के और ठोकरें खाते घूम जो रहा था। मई महीने की दोपहरी थी। दैनिक पत्रिका के 'वान्टेड' वाले पृष्ठ में कई जगह पेन से गोल घेरा लगाए  सूरज पिछले चार घंटे से शहर के चक्कर लगाते भूख-प्यास से बेहाल हो चुका था। शाम तक  दो-तीन इंटरव्यू और देने थे। बची-खुची हिम्मत जुटा, सिटी बस पकड़ने वो दौड़ पडा। सड़क पर पहुँचते-पहुँचते सहसा चकराकर गिर पड़ा और  विपरीत दिशा से आता एक ट्रक उसके बाएं पैर को कुचलते  निकल गया।

देखते-देखते भीड़ लग गयी । बेहोश हो चुके सूरज को लोगों ने अस्पताल पहुंचाया। होश आने पर सूरज ने देखा उसका बायाँ पैर घुटने के ऊपर से काटा जा चुका है। मन पीड़ा और अपने अपाहिज हो जाने के अहसास से तड़प उठा।

सहसा उसे ध्यान आया 'वांटेड' वाले पृष्ठ में शायद किसी बैंक का विज्ञापन था 'केवल विकलांगों के लिए सीधी भर्ती'। उसका दिल अपने दोनों पैरों से बाल्लियों उछलने लगा  और उसके उदास चेहरे पर एक  विद्रूप सी मुस्कराहट उभर आई।

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- कपीश चन्द्र श्रीवास्तव

साहित्य के ये सर्जनात्मक कार्य समकालीन अध्ययनों के साथ, वैश्विक बेरोजगारी के कारणों और संभावित समाधानों दोनों में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।

सादर,

चंद्रेश कुमार छतलानी

9928544748