इस पोस्ट में एक ऐसा वैश्विक विषय है, जो लघुकथाकारों सहित सभी साहित्यकारों को लेखन हेतु लगातार प्रेरित करता रहा है। यह विषय है - न्याय।
न्याय सम्बंधित कुछ बातें साहित्य में काफी लिखी गई हैं, इनमें से एक है, न्याय की देवी की मूर्ती की आँखों पर बंधी पट्टी। इस पर तो इतना सृजन हुआ है और चर्चाएँ भी हुई हैं कि अब भारत सरकार ने वह पट्टी आधिकारिक तौर पर हटा ही दी। लेकिन वैश्विक रूप से पट्टी का अर्थ निष्पक्षता है और न्याय उस पट्टी के अलावा भी बहुत सारी अन्य बातों पर निर्भर करता है। जो बातें साहित्यकारों की पसंद हैं, उनमें से एक न्याय में देरी होना भी है। देरी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। कुल मिलाकर यह कहें कि, न्याय किसी भी सभ्य समाज की आधारशिला है, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। लेकिन यह भी सत्य है कि इस आधारशिला को अक्सर प्रणालीगत असमानताओं से बचने, भ्रष्टाचार न्यून करने और निष्पक्षता सुनिश्चित करने में, कानूनी प्रणालियों की विफलता के कारण, समझौता करना पड़ता है। दुनिया भर में, नस्लीय भेदभाव, लैंगिक असमानता, राजनीतिक उत्पीड़न और न्याय तक पहुँच की कमी जैसे मुद्दे लाखों लोगों को परेशान करते हैं। इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए समानता, मानवाधिकारों की सुनिश्चितता के प्रति प्रतिबद्धता तथा सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता है।
न्याय से सम्बंधित प्रमुख वैश्विक मुद्दे
न्याय केवल न्यायालय तक ही सीमित नहीं है। अन्यायालय इनके परिसरों के बाहर भी विद्यमान हैं। इनमें से कुछ पर बात करते हैं।
नस्लीय और जातीय भेदभाव: नस्लवाद दुनिया भर में समुदायों को प्रभावित करता है। चाहे पुलिस की बर्बरता, संसाधनों तक असमान पहुँच या सांस्कृतिक दमन के रूप में, ये अन्याय विभाजन और असमानता को बनाए रखते हैं।
लैंगिक असमानता: महिलाएँ और LGBTQ+ व्यक्ति अक्सर हिंसा, वेतन अंतर और शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुँच का सामना करते हैं। लैंगिक न्याय एक महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दा बना हुआ है।
आर्थिक असमानता: अमीर और गरीब के बीच की खाई चौड़ी हो गई है, जिससे असमान अवसर और वंचितों के लिए कमियाँ उत्पन्न हो गई हैं। यह भी प्रणालीगत न्याय की मांग करता है।
न्यायिक भ्रष्टाचार: कई क्षेत्रों में, न्यायिक प्रणालियाँ भ्रष्टाचार, देरी और अकुशलता से ग्रस्त हैं, जिससे पीड़ितों को समय पर और निष्पक्ष न्याय नहीं मिल पाता है।
मानवाधिकार उल्लंघन: राजनीतिक और अन्य उत्पीड़न से लेकर जबरन श्रम तक, मानवाधिकारों का हनन एक महत्वपूर्ण चुनौती बना हुआ है। यह एक बड़ा अन्याय है।
पर्यावरण सबंधित न्याय: जलवायु परिवर्तन असमान रूप से कमजोर आबादी को प्रभावित करता है, जिससे अक्सर उन्हें नीतिगत निर्णयों में वांछित मान्यता नहीं मिलती है।
न्याय पर कुछ अच्छे दृष्टिकोण और उद्धरण
महात्मा गांधी: “प्रेम द्वारा दिया जाने वाला न्याय समर्पण है; कानून द्वारा दिया जाने वाला न्याय दंड है।”
डॉ. बी.आर. अंबेडकर: “न्याय ने हमेशा समानता के विचारों को जन्म दिया है... हर देश में, न्याय की भावना का इस्तेमाल कमजोरों को मजबूत से बचाने के लिए एक हथियार के रूप में किया गया है।”
मार्टिन लूथर किंग जूनियर: “किसी भी जगह का अन्याय हर जगह के न्याय के लिए खतरा है।”
नेल्सन मंडेला: “गरीबी पर काबू पाना दान का इशारा नहीं है, यह न्याय का कार्य है।”
रंगभेद के खिलाफ मंडेला की लड़ाई आर्थिक और सामाजिक समानता के साथ न्याय के प्रतिच्छेदन को उजागर करती है।
न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ (भारत के मुख्य न्यायाधीश): "न्यायपालिका को लोकतंत्र के क्षरण के खिलाफ़ रक्षा की पहली पंक्ति के रूप में खड़ा होना चाहिए।"
कुछ समाधानपरक बातें
वैश्विक न्याय संबंधी मुद्दों का समाधान कानूनी प्रणालियों को मज़बूत करना: न्यायिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करना, लंबित मामलों को कम करना और भ्रष्टाचार से निपटना कानूनी प्रणालियों में विश्वास बहाल करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
हाशिए पर पड़े समुदायों को सशक्त बनाना: शिक्षा, सकारात्मक कार्यवाही और नीतिगत हस्तक्षेप वंचित समूहों का उत्थान कर सकते हैं, समानता को बढ़ावा दे सकते हैं।
वैश्विक सहयोग: संयुक्त राष्ट्र और एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों को मानवाधिकारों का हनन नहीं हो, इस पर कार्यवाही जारी रखना चाहिए और उल्लंघनकर्ताओं की जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए।
पुनर्स्थापनात्मक (Restorative) न्याय को बढ़ावा देना: पुनर्स्थापनात्मक न्याय दृष्टिकोण केवल सज़ा देने के बजाय सुलह और उपचार पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो दीर्घकालिक सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देते हैं।
जमीनी स्तर के आंदोलन: समुदाय द्वारा संचालित पहल, जैसे कि महिला समूहों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के नेतृत्व में, स्थानीय न्याय सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
कानूनी सुधार: देशों को प्रौद्योगिकी और जलवायु परिवर्तन से संबंधित चुनौतियों सहित उभरती न्याय चुनौतियों का समाधान करने के लिए अपने कानूनों को अनुकूलित करना चाहिए।
न्याय संबंधी मुद्दों पर साहित्य सृजन
प्लेटो द्वारा लिखित "द रिपब्लिक", न्याय और नैतिकता की एक कालातीत खोज, यह दार्शनिक कार्य शासन में न्याय पर चर्चाओं की नींव रखता है।
माइकल सैंडल की पुस्तक "Justice: What’s the Right Thing to Do?" नैतिक दुविधाओं की पड़ताल करती है, जो आधुनिक समाज में न्याय को समझने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करती है।
अपनी पुस्तक "ए थ्योरी ऑफ़ जस्टिस" में जॉन रॉल्स न्याय के विचार को निष्पक्षता के रूप में प्रस्तुत करते हैं और समानता व व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा पर जोर देते हैं।
मलाला यूसुफजई द्वारा सृजित "आई एम मलाला" एक संस्मरण है, जो बालिका शिक्षा और उत्पीड़न समाप्त कर सम्मान के साथ जीने के अधिकार की लड़ाई पर आधारित है।
गुरचरण दास अपनी पुस्तक "द डिफिकल्टी ऑफ़ बीइंग गुड" में महाभारत का विश्लेषण करते हुए, न्याय, नैतिकता और मानव व्यवहार की जटिलताओं को उभारते हैं।
न्याय विषय पर लघुकथाएँ
गुलामयुग । बलराम अग्रवाल
गुलाम ने एक रात स्वप्न देखा कि शहजादे ने बादशाह के खिलाफ बगावत करके सत्ता हथिया ली है। उसने अपने दुराचारी बाप को कैदखाने में डाल दिया है तथा उसके लिए दुराचार के साधन जुटाने वाले उसके गुलामों और मंत्रियों को सजा-ए-मौत का हुक्म सुना दिया है।
उस गहन रात में ऐसा भायावह स्वप्न देखकर भीतर से बाहर तक पत्थर वह गुलाम सोते-सोते उछल पड़ा। आव देखा न ताव, राजमहल के गलियारे में से होता हुआ उसी वक्त वह शहजादे के शयन-कक्ष में जा घुसा और अपनी भारी-भरकम तलवार के एक ही वार में उसका सिर धड़ से अलग कर दिया।
सवेरे, दरबार लगने पर, वह इत्मीनान से वहाँ पहुँचा और जोर-जोर से अपना सपना बयान करने के बाद, बादशाह के भावी दुश्मन का कटा सिर उसके कदमों में डाल दिया। गुलाम की इस हिंसक करतूत ने पूरे दरबार को हिलाकर रख दिया। सभी दरबारी जान गए कि अपनी इकलौती सन्तान और राज्य के आगामी वारिस की हत्या के जुर्म में बादशाह इस सिरचढ़े गुलाम को तुरन्त मृत्युदण्ड का हुक्म देगा। गुलाम भी तलवार को मजबूती से थामे, दण्ड के इंतजार में सिर झुकाकर खड़ा हो गया।
शोक-संतप्त बादशाह ने अपने हृदय और आँखों पर काबू रखकर दरबारियों के दहशतभरे चेहरों को देखा। कदमों में पड़े अपने बेटे के कटे सिर पर नजर डाली। मायूसी के साथ गर्दन झुकाकर खड़े अपने मासूम गुलाम को देखा और अन्तत: खूनमखान तलवार थामे उसकी मजबूत मुट्ठी पर अपनी आँखें टिका दीं।
“गुला…ऽ…म!” एकाएक वह चीखा। उसकी सुर्ख-अंगारा आँखें बाहर की ओर उबल पड़ीं। दरबारियों का खून सूख गया। उन्होंने गुलाम के सिर पर मँडराती मौत और तलवार पर उसकी मजबूत पकड़ को स्पष्ट देखा। गुलाम बिना हिले-डुले पूर्ववत खड़ा रहा।
“हमारे खिलाफ…ख्वाब में ही सही…बगावत का ख्याल लाने वाले बेटे को पैदा करने वाली माँ का भी सिर उतार दो।”
यह सुनना था कि साँस रोके बैठे सभी दरबारी अपने-अपने आसनों से खड़े होकर अपने दूरदर्शी बादशाह और उसके स्वामिभक्त गुलाम की जय-जयकार कर उठे। गुलाम उसी समय नंगी तलवार थामे दरबार से बाहर हो गया और तीर की तरह राज्य की गलियों में दाखिल हो गया।
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- बलराम अग्रवाल
निरस्त्र / गीता सिंह
देवताओं की सभा में चर्चा न्याय व्यवस्था कों लेकर हो रही थी, तभी न्याय की देवी ने कहा,
" हे प्रभु स्त्री की इतनी उपेक्षा, दुहाई तो देते हैं कि स्त्री देवी हैं सर्वशक्तिमान हैं।न्याय व्यवस्था को थामें-थामें अब थक गयी हूँ और आँखें भी बंद हैं, जो सबूत है उसी पर न्याय होता हैं। कानून की देवी स्त्री, और कानून अंधा। क्या संयोग है?"
प्रभु ने कहा, "आज तो तुम्हारा मुँह ही बंद कर दिया कुबेर ने ? न्यायकर्त्ता को ही पंगु कर दिया, वो किस बात की सजा दे ? शोषण किया गया ? या वो आंतकी हैं ? या फिर आततायी हैं ? प्रत्येक अपराध की अलग सजा होती हैं ? " इसे कहते हैं निरस्त्र करना?"
कुबेर ने गहरी मुस्कान प्रेषित की!! निःशब्दता व्याप्त चारों तरफ।
"देखा प्रभु, आँखें बंद तो सबूत चाहिए? मुँह बंद तो आवाज चाहिए? मन ही था जो सही बोलता था लेकिन भौतिकता ने मुँह बंद कर दिया अब 'मन' आँखें फाड़े अपनी विवशता पर स्तब्ध हैं? न्याय की परिभाषा न्याय की देवी का बलिदान माँग रही हैं?"
स्तब्धता विहँस रही थी न्याय की शहादत पर। प्रश्नों के भँवर में सभा डूब उतरा रहा था- निःशब्द।
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- गीता सिंह
गवाह / रेखा श्रीवास्तव
अदालत की कार्यवाही चल रही थी , आज के सबसे ज्वलंत मुद्दे सामूहिक दुष्कर्म का मामला था। एक गरीब किसान की बेटी जानवरों के लिए चारा लेने खेत में गई थी और वहीं दंबग का बेटा दोस्तों के साथ शराब पी रहा था। उसके बाद अकेली लड़की के साथ हुआ वह घिनौना काण्ड।
पेशी, बहस, गवाही का सिलसिला महीनों से चल रहा था। अदालत खचाखच भरी होती और लोग वकील के ऊल जलूल प्रश्नों का मजा लेने आते थे।
वकील की दलील होती कि दुष्कर्म का कोई चश्मदीद गवाह है, जिससे उसके इल्जाम की पुष्टि हो सके। आरोपी तभी साबित हो सकते हैं।
महिला जज बहुत धैर्य से बहस सुन रही थी। एकाएक उसका चेहरा तमतमा गया और वह बोली - "वकील साहब अदालत की मर्यादा ये नहीं कहती कि आप कुछ भी बोलें। ये दुष्कर्म एक जीता जागता अपराध था कोई फिल्म की शूटिंग नहीं कि मजमे के बीच इसको अंजाम दिया जाय। कौन चश्मदीद गवाह होगा वे सारे अपराधी जिन्होंने ये काम किया। पीड़िता को नहीं पता था कि वह जहाँ जा रही है वहाँ दरिंदे बैठे हैं तो साथ में गवाह लेकर चलती।"
अदालत में सन्नाटा छा गया था और सभी लोग सिर झुकाये रह गये।
"और हाँ कल से ये सुनवाई बंद कमरे में होगी, ताकि आप जैसे वकीलों के द्वारा किया गया मौखिक दुष्कर्म से पीड़िता को इतने लोगों के सामने बार बार जलील न होना पड़े।"
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- रेखा श्रीवास्तव
न्याय / मोहन राजेश
निष्कर्षतः, न्याय एक विशेषाधिकार नहीं बल्कि हर व्यक्ति का अधिकार है, जो सीमाओं और बाधाओं से परे है। न्याय प्राप्त करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जिसमें संस्थानों में सुधार, समुदायों को सशक्त बनाना और समानता और निष्पक्षता की संस्कृति को बढ़ावा देना शामिल है। गांधी, अंबेडकर और मंडेला जैसे नेता हमें मानवता और करुणा में निहित न्याय की परिवर्तनकारी शक्ति की याद दिलाते हैं। साहित्य और वास्तविक दुनिया के प्रयासों से प्रेरणा लेकर, हम एक ऐसी दुनिया बनाने के करीब पहुँच सकते हैं जहाँ सभी के लिए न्याय हो।