ममता | डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
नये साल की वह पहली सुबह जैसे बर्फानी पानी में नहा कर आई थी। 10 बज चुके थे पर सूर्यदेव अब तक धुंध का धवल कंबल ओढ़े आराम फरमा रहे थे। अनु ने पूजा की थाली तैयार की और ननद के कमरे में झांक कर कहा, "नेहा! प्लीज नोनू सो रहा है, उसका ध्यान रखना। मैं मंदिर जा कर आती हूँ।"
शीत लहर के तमाचे खाते और ठिठुरते हुए उसने मंदिर वाले पथ पर पग धरे ही थे कि उसके पैरों को जैसे जकड़ लिया, एक बोतल, जिसमें से शराब रिस रही थी, उसके पैरों के नीचे आते-आते बची थी।
“ये भिखारी, नये साल का स्वागत भी शराब से करते हैं..." सर्दी से कांप रहे होंठों से बुदबुदाते हुए उसने पास ही फुटपाथ पर बनी तम्बूनुमा झोंपड़ी की तरफ घृणा से देखा और शराब की बोतल से दूर हट गयी।
वह फिर से मंदिर जाने के लिये बढ़ने ही वाली थी कि उस झोंपड़ी से कुम्हलाये हुए चेहरे वाली एक महिला बाहर आकर बैठ गयी। उसकी गोद में लगभग दो महीने का बच्चा था, जो चिल्ला-चिल्ला कर रो रहा था। उस महिला को देखकर अनु के चेहरे पर घृणा के भाव और भी अधिक उभर आये। वह क्रोध में कुछ कहने ही वाली थी कि, उस महिला ने अपना फटा हुआ आँचल हटाया और बच्चे को अपना दूध पिलाने लगी। वह बच्चा उसकी छाती से मुंह हटा रहा था, अनु समझ गयी उस महिला के दूध नहीं आ रहा है।
तभी हवा थोड़ी तेज़ हुई और झोंपड़ी की दिशा से बदबू का एक भभका आया, अनु उसे सहन नहीं कर पाई और नथूने बंद कर चल पड़ी। मंदिर से आती आरती की घंटियों की आवाज़ ने उसकी चाल को और भी तेज़ कर दिया।
अनु के कदम बढ रहे थे, लेकिन उसकी निगाहों से वह दृश्य नहीं हट रहा था। वह कुछ सोच कर मुड़ी, और महिला के पास जाकर, अपनी पूजा की थाली में रखा दूध का लोटा उसकी तरफ बढ़ा दिया। महिला ने कृतज्ञता भरी नजरों से अनु की तरफ देखा और लोटा अपने रोते हुए बच्चे के मुंह से लगाने लगी, लेकिन अनु ने उसका हाथ पकड़ कर उसे रोक दिया और कहा,
"यह दूध तुम्हारे लिए है।"
कहकर अनु ने उसके बच्चे को लिया और अपनी शाल में छिपा कर दूध से गीली हो रही छाती से लगा दिया।
-0-
- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी