यह ब्लॉग खोजें

ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश' लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश' लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 13 मार्च 2022

मेरी लघुकथा लेखन प्रक्रिया | चंद्रेश छतलानी | साक्षात्कारकर्ता: ओमप्रकाश क्षत्रिय

 2016 में श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय द्वारा मेरा साक्षात्कार लिया गया था. आज 2022 में हालांकि इस प्रक्रिया में पहले से कुछ परिवर्तन है, जो कि समय के साथ होना भी चाहिए. आइए पढ़ते हैं, ओमप्रकाश क्षत्रिय जी को,

आज हम आप का परिचय एक ऐसे साहित्यकार से करवा रहे है जो लघुकथा के क्षेत्र में अपनी अनोखी रचना प्रक्रिया के लिए जाने जाते हैं. आप की लघुकथाएँ अपनेआप में पूर्ण तथा सम्पूर्ण लघुकथा के मापदंड को पूरा करने की कोशिश करती हैं. हम ने आप से जानना चाहा की आप अपनी लघुकथा की रचना किस तरह करते है? ताकि नए रचनाकार आप की रचना प्रक्रिया से अपनी रचना प्रक्रिया की तुलना कर के अपने लेखन में सुधार ला सके.

लघुकथा के क्षेत्र में अपना पाँव अंगद की तरह ज़माने वाले रचनाकार का नाम है आदरणीय चंद्रेश कुमार छतलानी जी. आइए जाने आप की रचना प्रक्रिया:

ओमप्रकाश क्षत्रिय- चंद्रेश जी ! आप की रचना प्रक्रिया किस की देन है ? या यूँ कहे कि आप किस का अनुसरण कर रहे हैं ? 

चंद्रेश कुमार छतलानी-  आदरणीय सर !  हालाँकि मुझे नहीं पता कि मैं किस हद तक सही हूँ . लेकिन आदरणीय गुरूजी (योगराज जी प्रभाकर) से जो सीखने का यत्न किया है, और उन के द्वारा कही गई बातों को आत्मसात कर के और उन की रचनाएँ पढ़ कर जो कुछ सीखासमझा हूँ, उस का ही अनुसरण कर रहा हूँ.

ओमप्रकाश क्षत्रिय- लघुकथा लिखने के लिए आप सब से पहले क्या-क्या करते हैं ? 

चंद्रेश कुमार छतलानी - सब से पहले तो विषय का चयन करता हूँ . वो कोई चित्र अथवा दिया हुआ विषय भी हो सकता है. कभीकभी विषय का चुनाव स्वयं के अनुभव द्वारा या फिर विचारप्रक्रिया द्वारा प्राप्त करने का प्रयास करता हूँ.

ओमप्रकाश क्षत्रिय- विषय प्राप्त करने के बाद आप किस प्रक्रिया का पालन करते हैं ? 

चंद्रेश कुमार छतलानी - सब से पहले विषय पर विषय सामग्री का अध्ययनमनन करता हूँ. कहीं से भी पढता अवश्य हूँ . जहाँ भी कुछ मिल सके-  किसी पुस्तक में, इन्टरनेट पर, समाचार पत्रों में, धार्मिक ग्रन्थों में या पहले से सृजित उस विषय की रचनाओं आदि को खोजता हूँ.  इस में समय तो अधिक लगता है . लेकिन लाभ यह होता है कि विषय के साथ-साथ कोई न कोई संदेश मिल जाता है. 

इस में से  जो अच्छा लगता है उसे अपनी रचना में देने का दिल करता है  उसे मन में उतर लेता हूँ.  यह जो कुछ अच्छा होता है उसे संदेश के रूप में अथवा विसंगति के रूप में जो कुछ मिलता है, जिस के बारे में लगता है कि उसे उभारा जाए तो उसे अपनी रचना में ढाल कर उभार लेता हूँ.  

ओमप्रकाश क्षत्रिय- मान लीजिए कि इतना करने के बाद भी लिखने को कुछ नहीं मिल पा रहा है तब आप क्या करते हैं ? 

चंद्रेश कुमार छतलानी- जब तक कुछ सूझता नहीं है, तब तक पढता और मनन करता रहता हूँ. जबतक कि कुछ लिखने के लिए कुछ विसंगति या सन्देश नहीं मिल जाता. 

ओमप्रकाश क्षत्रिय- इस के बाद ? 

चंद्रेश कुमार छतलानी - इस विसंगति या संदेश के निश्चय के बाद मेरे लिये लिखना अपेक्षाकृत आसान हो जाता है . तब कथानक पर सोचता हूँ . कथानक कैसे लिखा जाए ? उस के लिए स्वयं का अनुभव, कोई प्रेरणा, अन्य रचनाकारों की रचनाएं,  नया-पुराना साहित्य,  मुहावरे,  लोकोक्तियाँ, आदि से कोई न कोई प्रेरणा प्राप्त करता हूँ.  कई बार अंतरमन से भी कुछ सूझ जाता है . उस के आधार पर पंचलाइन बना कर कथानक पर कार्य करता हूँ .

ओमप्रकाश क्षत्रिय- इस प्रक्रिया में हर बार सफल हो जाते हैं ? 

चंद्रेश कुमार छतलानी-  ऐसा नहीं होता है, कई बार इस प्रक्रिया का उल्टा भी हो जाता है . कोई कथानक अच्छा लगता है तो पहले कथानक लिख लेता हूँ और पंचलाइन बाद में सोचता हूँ .  तब पंचलाइन कथानक के आधार पर होती है .

ओमप्रकाश क्षत्रिय- आप अपनी लघुकथा में पात्र के चयन के लिए क्या करते हैं ? 

चंद्रेश कुमार छतलानी- पहले कथानक को देखता हूँ. उस के आधार पर पात्रों के नाम और संख्या का चयन करता हूँ. पात्र कम से कम हों अथवा न हों . इस बात का विशेष ध्यान रखता हूँ. 

ओमप्रकाश क्षत्रिय- लघुकथा के शब्द संख्या और कसावट के बारे में कुछ बताइए ? 

चंद्रेश कुमार छतलानी - मैं यह प्रयास करता हूँ  कि लघुकथा 300 शब्दों से कम की हो.  हालाँकि प्रथम बार में जो कुछ भी कहना चाहता हूँ  उसे उसी रूप में लिख लेता हूँ. वो अधिक बड़ा और कम कसावट वाला भाग होता है, लेकिन वही मेरी लघुकथा का आधार बन जाता है .  कभी-कभी थोड़े से परिवर्तन के द्वारा ही वह कथानक लघुकथा के रूप में ठीक लगने लगता है. कभी-कभी उस में बहुत ज्यादा बदलाव करना पड़ता है.

ओमप्रकाश क्षत्रिय- लघुकथा को लिखने का कोई तरीका हैं जिस का आप अनुसरण करते हैं ? 

चंद्रेश कुमार छतलानी -  लघुकथा सीधी ही लिखता हूँ. हाँ , दो अनुच्छेदों के बीच में एक खाली पंक्ति अवश्य छोड़ देता हूँ, ताकि पाठकों को पढने में आसानी हो. यह मेरा अपना तरीका है.  इस के अलावा जहाँ संवाद आते हैं वहां हर संवाद को उध्दरण चिन्हों के मध्य रखा देता हूँ . साथ ही प्रत्येक संवाद की समाप्ति के बाद एक खाली पंक्ति छोड़ देता हूँ. यह मेरा अपना तरीका हैं.

ओमप्रकाश क्षत्रिय- इस के बाद आप लघुकथा पर क्या काम करते हैं ताकि वह कसावट प्राप्त कर सके ? 

चंद्रेश कुमार छतलानी- इस के बाद लघुकथा को अंत में दो-चार बार पढ़ कर उस में कसावट लाने का प्रयत्न करता हूँ.  मेरा यह प्रयास रहता है कि लघुकथा 300  शब्दों में पूरी हो जाए. (हालाँकि हर बार सफलता नहीं मिलती) . इस के लिए कभी किसी शब्दों/वाक्यों को हटाना पड़ता हैं .  कभी उन्हें बदल देता हूँ . दो-चार शब्दों/वाक्यों के स्थान पर एक ही शब्द/वाक्य लाने का प्रयास करता हूँ.

कथानक पूरा होने के बाद उसे बार-बार पढ़ कर उस में से लेखन/टाइपिंग/वर्तनी/व्याकरण की अशुद्धियाँ निकालने का प्रयत्न करता हूँ.  उसी समय में शीर्षक भी सोचता रहता हूँ . कोशिश करता हूँ कि शीर्षक के शब्द पंचलाइन में न हों और जो लघुकथा कहने का प्रयास कर रहा हूँ, उसका मूल अर्थ दो-चार शब्दों में आ जाए . मुझे शीर्षक का चयन सबसे अधिक कठिन लगता है.

ओमप्रकाश क्षत्रिय- अंत में कुछ कहना चाहेंगे ? 

चंद्रेश कुमार छतलानी- इस के पश्चात प्रयास यह करता हूँ कि कुछ दिनों तक रचना को रोज़ थोड़ा समय दूं,  कई बार समय की कमी से रचना के प्रकाशन करने में जल्दबाजी कर लेता हूँ,  लेकिन अधिकतर 4 से 7 दिनों के बाद ही भेजता हूँ.  इससे बहुत लाभ होता है.

यह मेरा अपना तरीका हैं. मैं सभी लघुकथाकारों से यह कहना चाहता हूँ कि वे अपनी लघुकथा को पर्याप्त समय दे, उस पर चिंतन-मनन करे. उन्हें जब लगे कि यह अब पूरी तरह सही हो गई हैं तब इसे पोस्ट/प्रकाशित करें. 

-0-

सोमवार, 24 जून 2019

लघुकथा : सुख (ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश') तथा कटती हुई हवा (डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी)

सुमन सागर त्रैमासिक पत्रिका के जुलाई-सितंबर 2019 के अंक में वरिष्ठ लघुकथाकार ओमप्रकाश क्षत्रिय जी सर के साथ लघुकथा 'सुख' के साथ मेरी लघुकथा 'कटती हुई हवा'।






























कटती हुई हवा

पिछले लगभग दस दिनों से उस क्षेत्र के वृक्षों में चीख पुकार मची हुई थी। उस दिन सबसे आगे खड़े वृक्ष को हवा के साथ लहराती पत्तियों की सरसराहट सुनाई दी। उसने ध्यान से सुना, वह सरसराहट उससे कुछ दूरी पर खड़े एक दूसरे वृक्ष से आ रही थी।

सरसराहट से आवाज़ आई, "सुनो! "
फिर वह आवाज़ कुछ कांपने सी लगी, "पेड़खोर इन्सान...  यहां तक पहुंच चुका है। पहले तो उसने... हम तक पहुंचने वाले पानी को रोका और अब हमें...आssह!"

और उसी समय वृक्ष पर कुल्हाड़ी के तेज प्रहार की आवाज़ आई। सबसे आगे खड़े उस वृक्ष की जड़ें तक कांप उठीं। उसके बाद सरसराहट से एक दर्दीला स्वर आया,
"उफ्फ! हम सब पेड़ों का यह परिवार… कितना खुश और हवादार था। कितने ही बिछड़ गए और अब ये मुझ पर... आह! आह!"

तेज़ गति से कुल्हाड़ियों के वार की आवाज़ ने सरसराहट की चीखों को दबा दिया। कुछ ही समय में कट कर गिरते हुए वृक्ष की चरचराहट के स्वर के साथ सरसराहट वाली आवाज़ फिर आई, इस बार यह आवाज़ बहुत कमजोर और बिखरी हुई थी, "सुनो! मैं जा रहा हूँ। मेरे बहुत सारे बीज धरती माँ पर बिखर गए हैं। उगने पर उन्हें हवा-पानी, रोशनी और गर्मी के महत्व को समझाना… मिट्टी से प्यार करना भी। प्रार्थना करना… कि अगली बार मैं किसी ऊंचे पहाड़ पर उगूं… जहां की हवा भी ये… पेड़खोर छू नहीं पाएं। उफ्फ...मेरी जड़ें भी उखड़..."

धम्म से वृक्ष के गिरने का स्वर गूँजा और फिर चारों तरफ शांति छा गयी। सबसे आगे खड़ा वृक्ष शिकायती लहज़े में सोच रहा था, "ईश्वर, तुमने हम पेड़ों को पीड़ा तो दी, पैर क्यों नहीं दिए?"




मंगलवार, 4 जून 2019

मेरी लघुकथा लेखन प्रक्रिया- चंद्रेश छतलानी | ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'



कुछ वर्षों पूर्व की मेरी लघुकथा लेखन प्रक्रिया 

मार्च 2016 में ओम प्रकाश क्षत्रिय जी सर द्वारा लिया गया मेरा साक्षात्कार, वर्ष 2019 में साहित्यकुंज में पुनः प्रकाशित।

मुझे लगता है पूर्ण रूप से नए लघुकथा लेखकों के लिए यह पोस्ट कुछ लाभप्रद होनी चाहिए। मेरा यह भी मानना है कि प्रत्येक लेखक की रचना प्रक्रिया अलग होती है, किसी से तुलना करना उचित नहीं। केवल प्रारम्भ में एक स्टार्ट चाहिए होता है जो अन्य लेखकों की लेखन प्रक्रिया को जानने के बाद समझा जा सकता है। अपने अंतर में बैठे लेखक से पूछ कर अपनी लेखन प्रक्रिया स्वयं ही बनाई जाये तो उससे बेहतर कुछ भी नहीं। इसके अतिरिक्त लेखन प्रक्रिया भी समय के साथ बदलती रहती है, 2016 में जो मेरी रचना प्रक्रिया थी, आज उससे अलग है। हो सकता है बेहतर हो, हो सकता है बदतर भी हो, लेकिन समय के साथ जिस परिवर्तन की आवश्यकता होती है, मेरी लेखन प्रक्रिया में वह परिवर्तन स्वाभाविक रूप से हुआ है। इसके अलावा लेखन पर समय और परिस्थिति का भी बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है। 


मेरी लघुकथा लेखन प्रक्रिया- चंद्रेश छतलानी

ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'


आज हम आप का परिचय एक ऐसे साहित्यकार से करवा रहे है जो लघुकथा के क्षेत्र में अपनी अनोखी रचना प्रक्रिया के लिए जाने जाते हैं। आप की लघुकथाएँ अपने-आप में पूर्ण तथा सम्पूर्ण लघुकथा के मापदंड को पूरा करने की कोशिश करती हैं। हम ने आप से जानना चाहा कि आप अपनी लघुकथा की रचना किस तरह करते है? ताकि नए रचनाकार आप की रचना प्रक्रिया से अपनी रचना प्रक्रिया की तुलना कर के अपने लेखन में सुधार ला सकें।

लघुकथा के क्षेत्र में अपना पाँव अंगद की तरह ज़माने वाले रचनाकार का नाम है आदरणीय चंद्रेश कुमार छतलानी जी। आइए जाने आप की रचना प्रक्रिया-

-ओमप्रकाश क्षत्रिय

ओमप्रकाश क्षत्रिय
चंद्रेश जी! आप की रचना प्रक्रिया किस की देन है? या यूँ कहे कि आप किस का अनुसरण कर रहे हैं? 

चंद्रेश कुमार छतलानी
आदरणीय सर! हालाँकि मुझे नहीं पता कि मैं किस हद तक सही हूँ। लेकिन आदरणीय गुरूजी (योगराज जी प्रभाकर) से जो सीखने का यत्न किया है और उन के द्वारा कही गई बातों को आत्मसात कर के और उन की रचनाएँ पढ़ कर जो कुछ सीखा-समझा हूँ, उस का ही अनुसरण कर रहा हूँ।

ओमप्रकाश क्षत्रिय
लघुकथा लिखने के लिए आप सब से पहले क्या-क्या करते हैं?

चंद्रेश कुमार छतलानी
सब से पहले तो विषय का चयन करता हूँ। वो कोई चित्र अथवा दिया हुआ विषय भी हो सकता है। कभी-कभी विषय का चुनाव स्वयं के अनुभव द्वारा या फिर विचारप्रक्रिया द्वारा प्राप्त करने का प्रयास करता हूँ।

ओमप्रकाश क्षत्रिय
विषय प्राप्त करने के बाद आप किस प्रक्रिया का पालन करते हैं? 

चंद्रेश कुमार छतलानी
सब से पहले विषय पर विषय सामग्री का अध्ययन-मनन करता हूँ। कहीं से भी पढ़ता अवश्य हूँ। जहाँ भी कुछ मिल सके- किसी पुस्तक में, इन्टरनेट पर, समाचार पत्रों में, धार्मिक ग्रन्थों में या पहले से सृजित उस विषय की रचनाओं आदि को खोजता हूँ। इस में समय तो अधिक लगता है। लेकिन लाभ यह होता है कि विषय के साथ-साथ कोई न कोई संदेश मिल जाता है। 

इस में से जो अच्छा लगता है उसे अपनी रचना में देने का दिल करता है उसे मन में उतार लेता हूँ। यह जो कुछ अच्छा होता है उसे संदेश के रूप में अथवा विसंगति के रूप में जो कुछ मिलता है, जिस के बारे में लगता है कि उसे उभारा जाए तो उसे अपनी रचना में ढाल कर उभार लेता हूँ। 

ओमप्रकाश क्षत्रिय
मान लीजिए कि इतना करने के बाद भी लिखने को कुछ नहीं मिल पा रहा है तब आप क्या करते हैं?

चंद्रेश कुमार छतलानी
जब तक कुछ सूझता नहीं है, तब तक पढ़ता और मनन करता रहता हूँ। जब तक कि कुछ लिखने के लिए कुछ विसंगति या सन्देश नहीं मिल जाता। 

ओमप्रकाश क्षत्रिय
इस के बाद? 

चंद्रेश कुमार छतलानी
इस विसंगति या संदेश के निश्चय के बाद मेरे लिये लिखना अपेक्षाकृत आसान हो जाता है। तब कथानक पर सोचता हूँ। कथानक कैसे लिखा जाए? उस के लिए स्वयं का अनुभव, कोई प्रेरणा, अन्य रचनाकारों की रचनाएँ, नया-पुराना साहित्य, मुहावरे, लोकोक्तियाँ, आदि से कोई न कोई प्रेरणा प्राप्त करता हूँ। कई बार अंतरमन से भी कुछ सूझ जाता है। उस के आधार पर पंचलाइन बना कर कथानक पर कार्य करता हूँ।

ओमप्रकाश क्षत्रिय
इस प्रक्रिया में हर बार सफल हो जाते हैं?

चंद्रेश कुमार छतलानी
ऐसा नहीं होता है, कई बार इस प्रक्रिया का उल्टा भी हो जाता है। कोई कथानक अच्छा लगता है तो पहले कथानक लिख लेता हूँ और पंचलाइन बाद में सोचता हूँ। तब पंचलाइन कथानक के आधार पर होती है।

ओमप्रकाश क्षत्रिय
आप अपनी लघुकथा में पात्र के चयन के लिए क्या करते हैं? 

चंद्रेश कुमार छतलानी
पहले कथानक को देखता हूँ। उस के आधार पर पात्रों के नाम और संख्या का चयन करता हूँ। पात्र कम से कम हों अथवा न हों। इस बात का विशेष ध्यान रखता हूँ। 

ओमप्रकाश क्षत्रिय
लघुकथा के शब्द संख्या और कसावट के बारे में कुछ बताइए? 

चंद्रेश कुमार छतलानी
मैं यह प्रयास करता हूँ कि लघुकथा 300 शब्दों से कम की हो। हालाँकि प्रथम बार में जो कुछ भी कहना चाहता हूँ उसे उसी रूप में लिख लेता हूँ। वो अधिक बड़ा और कम कसावट वाला भाग होता है, लेकिन वही मेरी लघुकथा का आधार बन जाता है। कभी-कभी थोड़े से परिवर्तन के द्वारा ही वो कथानक लघुकथा के रूप में ठीक लगने लगता है। कभी-कभी उस में बहुत ज़्यादा बदलाव करना पड़ता है।

ओमप्रकाश क्षत्रिय
लघुकथा को लिखने का कोई तरीक़ा है जिस का आप अनुसरण करते हैं? 

चंद्रेश कुमार छतलानी
प्रारूप यदि देखें तो लघुकथा सीधी ही लिखता हूँ। हाँ, दो अनुच्छेदों के बीच में एक खाली पंक्ति अवश्य छोड़ देता हूँ, ताकि पाठकों को पढ़ने में आसानी हो। यह मेरा अपना तरीक़ा है। इस के अलावा जहाँ संवाद आते हैं वहाँ हर संवाद को उद्धरण चिन्हों के मध्य रखा देता हूँ। साथ ही प्रत्येक संवाद की समाप्ति के बाद एक खाली पंक्ति छोड़ देता हूँ। यह मेरा अपना तरीक़ा है।

ओमप्रकाश क्षत्रिय
इस के बाद आप लघुकथा पर क्या काम करते हैं ताकि वह कसावट प्राप्त कर सके?

चंद्रेश कुमार छतलानी
इस के बाद लघुकथा को अंत में दो-चार बार पढ़ कर उस में कसावट लाने का प्रयत्न करता हूँ। मेरा यह प्रयास रहता है कि लघुकथा 300 शब्दों में पूरी हो जाए। (हालाँकि हर बार सफलता नहीं मिलती)। इस के लिए कभी किसी शब्दों/वाक्यों को हटाना पड़ता है। कभी उन्हें बदल देता हूँ। दो-चार शब्दों/वाक्यों के स्थान पर एक ही शब्द/वाक्य लाने का प्रयास करता हूँ।

कथानक पूरा होने के बाद उसे बार-बार पढ़ कर उस में से लेखन/टाइपिंग/वर्तनी/व्याकरण की अशुद्धियाँ निकालने का प्रयत्न करता हूँ। उसी समय में शीर्षक भी सोचता रहता हूँ। कोशिश करता हूँ कि शीर्षक के शब्द पंचलाइन में न हों और जो लघुकथा कहने का प्रयास कर रहा हूँ, उसका मूल अर्थ दो-चार शब्दों में आ जाए। मुझे शीर्षक का चयन सबसे अधिक कठिन लगता है।

ओमप्रकाश क्षत्रिय
अंत में कुछ कहना चाहेंगे? 

चंद्रेश कुमार छतलानी
इस के पश्चात प्रयास यह करता हूँ कि कुछ दिनों तक रचना को रोज़ थोड़ा समय दूँ, कई बार समय की कमी से रचना के प्रकाशन करने में जल्दबाज़ी कर लेता हूँ, लेकिन अधिकतर 4 से 7 दिनों के बाद ही भेजता हूँ। इससे बहुत लाभ होता है।

यह मेरा अपना तरीक़ा है। मैं सभी लघुकथाकारों से यह कहना चाहता हूँ कि वे अपनी लघुकथा को पर्याप्त समय दें, उस पर चिंतन-मनन करें। उन्हें जब लगे कि यह अव पूरी तरह सही हो गई है तब इसे पोस्ट/प्रकाशित करें। 





Source:

सोमवार, 18 मार्च 2019

लघुकथा संकलन: महिला लघुकथाकारों के लिए

महिला कथाकारों से चुनिंदा 10 बेहतरीन लघुकथाएं आमन्त्रित हैं

किताबगंज प्रकाशन द्वारा प्रकाशित होने वाली साझा संकलनों की महायात्रा के अंतर्गत नवीनतम साझा संकलन "बोलती लघुकथाएं" के लिए महिला लघुकथाकारों से बेहतरीन और चुनिंदा 10 लघुकथाएं सचित्र परिचय सहित ईमेल से आमन्त्रित हैं।


  • प्रत्येक महिला रचनाकार को संकलन में सिर्फ चार पृष्ठ दिए जाएंगे। संकलन में सिर्फ 25 महिला रचनाकारों को ही स्थान दिया जाएगा।
  • प्रकाशित/अप्रकाशित को कोई बंधन नहीं हैं। आप सिर्फ मौलिक तथा टाईपशुदा चुनिंदा एवं बेहतरीन 10 लघुकथाएं में से चार चयनित की जाएगी. इस हेतु अपना सचित्र परिचय नाम, जन्मतिथि, योग्यता, मोबाइल न, पता व मेल आईडी के प्रारूप सहित ही ईमेल से भिजवाएं।
  • पुस्तक के यथाशीघ्र "किताबगंज प्रकाशन" से प्रकाशित होगी।
  • सहयोगी कथाकारों को संकलन की पहली लेखकीय प्रति निःशुल्क भेजी जाएगी और उनके द्वारा इस संकलन की अन्य प्रतियां खरीदने पर 50% स्पेशल डिस्काउंट (+डाक खर्च अतिरिक्त) पर उपलब्ध कराई जाएगी ।
  • कृपया अपने चुनिंदा एवं बेहतरीन 10 लघुकथाएं निम्न ईमेल पर 25 मार्च 2019 तक भेजें.


•••••••••••••••••••••••••••••••••••••
ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'
संपादक (बोलती लघुकथाएं)
📲: 942-407-9675
📧: opkshatriya@gmail.com
•••••••••••••••••••••••••••••••••••••

डाॅ. प्रमोद सागर
(चेयरमैन)
किताबगंज प्रकाशन
📲: 8750-660-105
📧: kitabganj@gmail.com

रविवार, 3 फ़रवरी 2019

लघुकथा संग्रह "श्रंखला" की समीक्षा - ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'

मारक क्षमता से युक्त लघुकथाओं का  गुल्दस्ता

पुस्तक- श्रंखला (लघुकथा संग्रह)
कथाकार- तेजवीर सिंह 'तेज'

समीक्षक- ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'
पृष्ठसंख्या-176
मूल्य -रुपये 300/-
प्रकाशक- देवशीला पब्लिकेशन 
पटियाला (पंजाब) 98769 30229

समीक्षा 

मारक क्षमता लघुकथा की पहचान है । यह जितनी छोटी हो कर अपना तीक्ष्ण भाव छोड़ती है उतनी उम्दा होती है। ततैया के डंकसी चुभने वाली लघुकथाएं स्मृति में गहरे उतर जाती है । ऐसी लघु कथाएं की कालजई होती है।

लघुकथा की लघुता इसकी दूसरी विशेषता है। यह कम समय में पढ़ी जाती है। मगर लिखने में चिंतन-मनन और अधिक समय लेती है । भागम-भाग भरी जिंदगी में सभी के पास समय की कमी है इसलिए हर कोई कहानी-उपन्यास को पढ़ना छोड़ कर लघुकथा की ओर आकर्षित हो रहा है। इसी वजह से आधुनिक समय में इस का बोलबाला हैं ।

इसी से आकर्षित होकर के कई नए-पुराने कथाकारों ने लघुकथा को अपने लेखन में सहज रुप से अपनाया है। इन्हीं नए कथाकारों में से तेजवीर सिंह 'तेज' एक नए कथाकार है जो इसकी मारक क्षमता के कारण इस ओर आकर्षित हुए । इन्होंने लघुकथा-लेखन को जुनून की तरह अपने जीवन में अपनाया है । इसी एकमात्र विधा में अपना लेखन करने लगे हैं। इसी साधना के फल स्वरुप इन का प्रथम लघुकथा संग्रह शृंखला आपके सम्मुख प्रस्तुत है।

शृंखला बिटिया की स्मृति को समर्पित इस संग्रह की अधिकांश कथाएं जीवन में घटित-घटना, उसमें घुली पीड़ा, संवेदना, विसंगतियों और विद्रूपताओं को अपने लेखन का विषय बनाया है । इनकी अधिकांश लघुकथाएं संवाद शैली में लिखी गई है जो बहुत ही सरल सहज और मारक क्षमता युक्त हैं।

संग्रहित श्रंखला लघुकथा की अधिकांश लघुकथाएं की भाषा सरल और सहज है । आम बोलचाल की भाषा में अभिव्यक्त लघुकथाएं अंत में मारक बन पड़ी है ।वाक्य छोटे हैं । भाषा-प्रवाहमय है । अंत में उद्देश्य और समाहित होता चला गया है।

संवाद शैली में लिखी गई लघुकथाएं बहुत ही शानदार बनी है । इन में कथाओं का सहज प्रवेश हुआ है । संवाद से लघुकथाओं में की मारक क्षमता पैदा हुई है ।

इस संग्रह में 140 लघुकथाएं संग्रहित की गई है । इनमें से मन की बात , सबसे बड़ा दुख, ईद का तोहफा, एमबीए बहू, दर्द की गठरी, दरारे, गुदगुदी, लालकिला, अंगारे, गॉडफादर, इंसानी फितरत, बोझ, बस्ता, भयंकर भूल, नासूर, वापसी, हिंदी के अखबार, पलायन, खुशियों की चाबी, वेलेंटाइन डे, आदि लघुकथाएं बहुत उम्दा बनी है।

सबसे बड़ा दुख -लघुकथा की नायिका को अपना वैधव्य से अपने ससुर का पुत्र-शोक कहीं बड़ा दृष्टिगोचर होता है। इस अन्तर्द्वन्द्व को वह गहरे तक महसूस करती है । वही दर्द की गठरी -एक छोटी व मारक क्षमता युक्त लघुकथा है। यह एक वृद्धा की वेदना को बखूबी उजागर करती है।

मन की बात- की नायिका पलायनवादी वृति को छोड़कर त्याग की और अग्रसर होती है, नायिका की कथा है । यह इसे मार्मिक ढंग से व्यक्त करने में सक्षम है ।अंगारे- लघुकथा धार्मिक उन्माद का विरोध को मार्मिक ढंग से उजागर करने में सफल रही है।

खुशियों की चाबी- में टूटते परिवार को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया गया है । वहीं भयंकर भूल- में नायिका के हृदय की पीड़ा को मार्मिक ढंग से उकेरा गया है ।
कुल मिलाकर अधिकांश मार्मिक, हृदयग्राही और संवेदना से युक्त बढ़िया बन पड़ी है। कुछ लघुकथाएं कहानी के अधिक समीप प्रतीत होती है । मगर उनमें कथातत्व विद्यमान है।
संग्रह साफ-सुथरे ढंग से अच्छे कागज और साजसज्जा से युक्त प्रकाशित हुआ है। 176 पृष्ठ का मूल्य ₹ 300 है। जो वाजिब हैं ।
लघुकथा के क्षेत्र में इस संग्रह का दिल खोल कर स्वागत किया जाएगा ऐसी आशा की जा सकती है।

-
ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश' ,
पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़
जिला -नीमच (मध्यप्रदेश)
पिनकोड- 458226
9424079675

बुधवार, 30 मार्च 2016

साक्षात्कार: चंद्रेश कुमार छ्तलानी | साक्षात्कारकर्ता: ओम प्रकाश क्षत्रिय

मेरी लघुकथा लेखन प्रक्रिया- चंद्रेश छतलानी

आज हम आप का परिचय एक ऐसे साहित्यकार से करवा रहे है जो लघुकथा के क्षेत्र में अपनी अनोखी रचना प्रक्रिया के लिए जाने जाते हैं. आप की लघुकथाएँ अपनेआप में पूर्ण तथा सम्पूर्ण लघुकथा के मापदंड को पूरा करने की कोशिश करती हैं. हम ने आप से जानना चाहा की आप अपनी लघुकथा की रचना किस तरह करते है ? ताकि नए रचनाकार आप की रचना प्रक्रिया से अपनी रचना प्रक्रिया की तुलना कर के अपने लेखन में सुधार ला सके.

लघुकथा के क्षेत्र में अपना पाँव अंगद की तरह ज़माने वाले रचनाकार का नाम है आदरणीय चंद्रेश कुमार छ्तलानी जी. आइए जाने आप की रचना प्रक्रिया---

ओमप्रकाश क्षत्रिय- चंद्रेश जी ! आप की रचना प्रक्रिया किस की देन है ? या यूँ कहे कि आप किस का अनुसरण कर रहे हैं ? 

चंद्रेश कुमार छतलानी- आदरणीय सर ! हालाँकि मुझे नहीं पता कि मैं किस हद तक सही हूँ . लेकिन आदरणीय गुरूजी (योगराज जी प्रभाकर) से जो सीखने का यत्न किया है, और उन के द्वारा कही गई बातों को आत्मसात कर के और उन की रचनाएँ पढ़ कर जो कुछ सीखा समझा हूँ, उस का ही अनुसरण कर रहा हूँ.

ओमप्रकाश क्षत्रिय- लघुकथा लिखने के लिए आप सब से पहले क्या-क्या करते हैं ? 

चंद्रेश कुमार छतलानी - सब से पहले तो विषय का चयन करता हूँ . वो कोई चित्र अथवा दिया हुआ विषय भी हो सकता है. कभीकभी विषय का चुनाव स्वयं के अनुभव द्वारा या फिर विचारप्रक्रिया द्वारा प्राप्त करने का प्रयास करता हूँ.

ओमप्रकाश क्षत्रिय- विषय प्राप्त करने के बाद आप किस प्रक्रिया का पालन करते हैं ? 

चंद्रेश कुमार छतलानी - सब से पहले विषय पर विषय सामग्री का अध्ययनमनन करता हूँ. कहीं से भी पढता अवश्य हूँ . जहाँ भी कुछ मिल सके- किसी पुस्तक में, इन्टरनेट पर, समाचार पत्रों में, धार्मिक ग्रन्थों में या पहले से सृजित उस विषय की रचनाओं आदि को खोजता हूँ. इस में समय तो अधिक लगता है . लेकिन लाभ यह होता है कि विषय के साथ-साथ कोई न कोई संदेश मिल जाता है. 

इस में से जो अच्छा लगता है उसे अपनी रचना में देने का दिल करता है उसे मन में उतर लेता हूँ. यह जो कुछ अच्छा होता है उसे संदेश के रूप में अथवा विसंगति के रूप में जो कुछ मिलता है, जिस के बारे में लगता है कि उसे उभारा जाए तो उसे अपनी रचना में ढाल कर उभार लेता हूँ.  

ओमप्रकाश क्षत्रिय- मान लीजिए कि इतना करने के बाद भी लिखने को कुछ नहीं मिल पा रहा है तब आप क्या करते हैं ? 

चंद्रेश कुमार छतलानी- जब तक कुछ सूझता नहीं है, तब तक पढता और मनन करता रहता हूँ. जबतक कि कुछ लिखने के लिए कुछ विसंगति या सन्देश नहीं मिल जाता. 

ओमप्रकाश क्षत्रिय- इस के बाद ? 

चंद्रेश कुमार छतलानी - इस विसंगति या संदेश के निश्चय के बाद मेरे लिये लिखना अपेक्षाकृत आसान हो जाता है . तब कथानक पर सोचता हूँ . कथानक कैसे लिखा जाए ? उस के लिए स्वयं का अनुभव, कोई प्रेरणा, अन्य रचनाकारों की रचनाएं, नया-पुराना साहित्य, मुहावरे, लोकोक्तियाँ, आदि से कोई न कोई प्रेरणा प्राप्त करता हूँ. कई बार अंतरमन से भी कुछ सूझ जाता है . उस के आधार पर पंचलाइन बना कर कथानक पर कार्य करता हूँ .

ओमप्रकाश क्षत्रिय- इस प्रक्रिया में हर बार सफल हो जाते हैं ? 

चंद्रेश कुमार छतलानी- ऐसा नहीं होता है, कई बार इस प्रक्रिया का उल्टा भी हो जाता है . कोई कथानक अच्छा लगता है तो पहले कथानक लिख लेता हूँ और पंचलाइन बाद में सोचता हूँ . तब पंचलाइन कथानक के आधार पर होती है .

ओमप्रकाश क्षत्रिय- आप अपनी लघुकथा में पात्र के चयन के लिए क्या करते हैं ? 

चंद्रेश कुमार छतलानी- पहले कथानक को देखता हूँ. उस के आधार पर पात्रों के नाम और संख्या का चयन करता हूँ. पात्र कम से कम हों अथवा न हों . इस बात का विशेष ध्यान रखता हूँ. 

ओमप्रकाश क्षत्रिय- लघुकथा के शब्द संख्या और कसावट के बारे में कुछ बताइए ? 

चंद्रेश कुमार छतलानी - मैं यह प्रयास करता हूँ कि लघुकथा 300 शब्दों से कम की हो. हालाँकि प्रथम बार में जो कुछ भी कहना चाहता हूँ उसे उसी रूप में लिख लेता हूँ. वो अधिक बड़ा और कम कसावट वाला भाग होता है, लेकिन वही मेरी लघुकथा का आधार बन जाता है . कभीकभी थोड़े से परिवर्तन के द्वारा ही वो कथानकलघुकथा के रूप में ठीक लगने लगता है. कभीकभी उस में बहुत ज्यादा बदलाव करना पड़ता है.

ओमप्रकाश क्षत्रिय- लघुकथा को लिखने का कोई तरीका हैं जिस का आप अनुसरण करते हैं ? 

चंद्रेश कुमार छतलानी - लघुकथा सीधी ही लिखता हूँ. हाँ , दो अनुच्छेदों के बीच में एक खाली पंक्ति अवश्य छोड़ देता हूँ, ताकि पाठकों को पढने में आसानी हो. यह मेरा अपना तरीका है. इस के अलावा जहाँ संवाद आते हैं वहां हर संवाद को उध्दरण चिन्हों के मध्य रखा देता हूँ . साथ ही प्रत्येक संवाद की समाप्ति के बाद एक खाली पंक्ति छोड़ देता हूँ. यह मेरा अपना तरीका हैं.

ओमप्रकाश क्षत्रिय- इस के बाद आप लघुकथा पर क्या काम करते हैं ताकि वह कसावट प्राप्त कर सके ? 

चंद्रेश कुमार छतलानी- इस के बाद लघुकथा को अंत में दो-चार बार पढ़ कर उस में कसावट लाने का प्रयत्न करता हूँ. मेरा यह प्रयास रहता है कि लघुकथा 300 शब्दों में पूरी हो जाए. (हालाँकि हर बार सफलता नहीं मिलती) . इस के लिए कभी किसी शब्दों/वाक्यों को हटाना पड़ता हैं . कभी उन्हें बदल देता हूँ . दो-चार शब्दों/वाक्यों के स्थान पर एक ही शब्द/वाक्य लाने का प्रयास करता हूँ.

कथानक पूरा होने के बाद उसे बार-बार पढ़ कर उस में से लेखन/टाइपिंग/वर्तनी/व्याकरण की अशुद्धियाँ निकालने का प्रयत्न करता हूँ. उसी समय में शीर्षक भी सोचता रहता हूँ . कोशिश करता हूँ कि शीर्षक के शब्द पंचलाइन में न हों और जो लघुकथा कहने का प्रयास कर रहा हूँ, उसका मूल अर्थ दो-चार शब्दों में आ जाए . मुझे शीर्षक का चयन सबसे अधिक कठिन लगता है.

ओमप्रकाश क्षत्रिय- अंत में कुछ कहना चाहेंगे ? 

चंद्रेश कुमार छतलानी- इस के पश्चात प्रयास यह करता हूँ कि कुछ दिनों तक रचना को रोज़ थोड़ा समय दूं, कई बार समय की कमी से रचना के प्रकाशन करने में जल्दबाजी कर लेता हूँ, लेकिन अधिकतर 4 से 7 दिनों के बाद ही भेजता हूँ. इससे बहुत लाभ होता है.

यह मेरा अपना तरीका हैं. मैं सभी लघुकथाकारों से यह कहना चाहता हूँ कि वे अपनी लघुकथा को पर्याप्त समय दे, उस पर चिंतन-मनन करे. उन्हें जब लगे कि यह अव पूरी तरह सही हो गई हैं तकब इसे पोस्ट करे.