समय की नब्ज़ को पहचानती कृति…हाल-ए-वक्त
डॉ चंद्रेश कुमार जी को मैं सुविज्ञ लघुकथा-पुरोधाओं की क़तार में आगे-आगे खड़ा पाती हूँ सदा। मेरा यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि सही मायने में लघुकथा कैसे लिखी जाती है… यह चंद्रेश जी से सीखा जा सकता है। बानगी के तौर पर उनका नव लघुकथा-संग्रह ‘ हाल-ए-वक़्त ‘ सामने है ।सौम्य एवं शीर्षकानुकूल नयनाभिराम आवरण-पृष्ठ से सुसज्जित पुस्तक के मात्र 90 पृष्ठों पर क़रीने से टंकी एक कम 80 लघुकथाएँ…समय की नब्ज़ को कसकर थामे हुए हैं । समाज के विविध क्षेत्रों से कथानक उठाकर सुलेख ने , सलीक़े से ये कथाएँ बुनी हैं…कुछ इस तरह कि हर कथा का अंदाज़ निराला है और मिज़ाज जुदा और पंच मारक भी तथा प्रहारक भी ।
सर्वप्रथम सुलेखक ने 'लेखकीय वक्तव्य' के अंतर्गत समय की महत्ता पर प्रकाश डाला है। रहीम जी के एक अनमोल दोहे का दृष्टांत देते हुए समझाया है कि समय लाभ सम लाभ नाहिं, समय चूक नाहिं चूक।
कृति के शीर्षक से संग्रह में कोई कथा नहीं है। वस्तुतः संग्रह की प्रत्येक कथा ‘ हाल-ए-वक़्त ‘ ही तो कह रही है…सरल, सहज एवं सरस भाषा-शैली में। दरअसल प्रस्तुत कृति एक समाज-यात्रा है, जो ‘देशबंदी' से शुभारंभित होकर ‘कोई तो मरा है‘ पर समाप्त होती है। बीच में 77 मोड़ हैं, जो बहुत-बहुत कुछ समझाते और सिखाते हैं । इनमें व्यवस्था के प्रति चिंता भी है और चिंतन भी। किसान द्वारा क्षुब्ध होकर की गई खेतीबंदी कैसे देशबंदी का रूप ले लेती है…स्वयं पढ़ें । ’कोई तो मरा है‘ माँसाहारी-वर्ग पर वार करती है तो ‘ माँ के सौदागर ‘ गौहत्या के वास्तविक कारणों की अजब किंतु सच्ची कहानी बयां करती है।’ मार्गदर्शक ‘ स्वार्थी नेताओं की अवसरवादिता पर कटाक्ष करती है और ‘ मेरी याद ‘ … अति मार्मिक… अपनी गुमशुदगी की खबर खोजते हताश-निराश वृद्ध की व्यथा कथा सुनाती सी। ‘बच्चा नहीं‘ कथा अनकही में बहुत कुछ कह जाती है सिर्फ़ इतना कहकर,” उसका बच्चा किन्नर हुआ है…।”
‘ सोयी हुई सृष्टि ‘ सुलेखक के यथार्थ में कल्पना रस घोलने का सुंदर प्रयास है…इसे पढ़कर चंद्रेश जी की कलम को नमन करने को जी चाहता है । ईलाज, धर्म-प्रदूषण, गरीब सोच,एक बिखरता टुकड़ा , कटती हुई हवा ,अन्नदाता एवं इतिहास गवाह है भी अति सराहनीय सुपठनीय कथाएँ हैं किन्तु ‘अस्वीकृत मृत्यु‘ को मैं कृति की सर्वश्रेष्ठ लघुकथा कहूँगी , जो बलात्कार को तीनों लोकों का जघन्यता गुनाह ठहराती है..; इतना कि इसके गुनाहगार को नर्क भी स्वीकार नहीं करता और कीड़े-मकौड़े तक भी उसके पास नहीं फटकते । इस लघुकथा के तो पोस्टर बनने चाहिए और पाठ्यक्रम में भी इसे शामिल करना चाहिए ।
कुल मिलाकर ‘हाल-ए-वक्त ‘ एक सुंदर-संग्रहणीय संग्रह है, जो शोधार्थियों के लिए भी अति उपयोगी सिद्ध होगा ।
अंततः सुलेखक को मन-प्राण से बधाई तथा उनके उज्ज्वल भविष्य के लिये अतिशय मंगल कामनाएँ ।इति!
- कमल कपूर
अध्यक्ष: नारी अभिव्यक्ति मंच ‘ पहचान ‘
2144/9
फ़रीदाबाद 121006
हरियाणा