नईदुनिया, इंदौर। 'लघुकथा शिखर सेतु सम्मान' से सम्मानित पंजाब के ख्यात लघुकथाकार श्याम सुंदर अग्रवाल से विशेष चर्चा |
Publish Date: | Sun, 24 Nov 2019
तीन दशक पहले मैंने जब लघुकथा की त्रैमासिक पत्रिका शुरू की, उस वक्त साहित्य परिदृश्य पर नए लेखकों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ी थी। मगर इनमें से कई लोग लघुकथा के नाम पर सिर्फ चुटकुलेबाजी करते रहे और परिदृश्य से ओझल हो गए। कमोबेश ऐसी ही स्थिति पिछले कुछ वर्षों में एक बार फिर बनी है। फर्क ये है कि इस बार लेखिकाओं की संख्या ज्यादा है। मैं नहीं चाहता कि एक बार फिर अस्सी के दशक जैसी स्थिति बने और नए कलमकार साहित्यिक पटल से नदारद होते जाएं। इसलिए मैं उन्हें ये सलाह देना चाहूंगा कि अपनी लघुकथाओं में निरंतरता बनाए रखें। इसके अलावा पुराने घिसे-पिटे जुमलों और विषयों के बजाय आधुनिक समाज और राजनीति से जुड़े ऐसे चुटीले और ज्वलंत विषय उठाएं, जो जनता की नब्ज पर सीधे हाथ रखते हैं। जो इन दो पैमानों पर खरा उतरेगा, वही लंबी रेस का घोड़ा साबित होगा।
ये कहना है रविवार को हिंदी साहित्य समिति में होने वाले 'अखिल भारतीय लघुकथाकार सम्मेलन' में 'लघुकथा शिखर सेतु सम्मान' से सम्मानित किए जा रहे पंजाब के ख्यात लघुकथाकार श्याम सुंदर अग्रवाल का। नईदुनिया से विशेष चर्चा में उन्होंने स्वीकार किया कि जब किसी भी विधा में लेखकों की संख्या बढ़ती है तो कई बार स्तरहीन रचनाएं भी देखने में आ जाती हैं। लेकिन हमारा फर्ज है कि ऐसी रचनाओं के लेखकों को दरकिनार करने के बजाय उन्हें समझाइश देकर बेहतर बनाएं ताकि वो भी मुख्य धारा में शामिल होकर साहित्य को समृद्ध कर सकें, क्योंकि लघुकथा की संरचना अन्य विधाओं से बिलकुल अलग होती है।
बहुत गंभीर विधा है लघुकथा
मैंने देखा है कि कई बार नए लेखक कन्फ्यूज हो जाते हैं कि अपनी भावनाओं को किस तरह प्रस्तुत करें। ऐसे लोगों को मैं सुझाव देना चाहूंगा कि लघुकथा भी बहुत गंभीर विधा है। अगर आप सिर्फ हंसना-हंसाना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि लघुकथा की बजाय कॉमेडी शो लिखें। इसके जरिए तो आपकी कोशिश कम शब्दों में अपनी बात प्रभावी तरीके से लोगों तक पहुंचानी है, ताकि उन्हें ज्यादा पढ़ना भी न पड़े, उनका वक्त भी बचे और आपका संदेश भी उन तक पहुंच जाए। एक दौर था, जब कविताओं को समाज से संवाद का सबसे अच्छा माध्यम माना जाता था, लेकिन हल्के स्तर की रचनाओं और चुटकुलेबाजी ने इसकी गंभीरता खत्म कर दी और लघुकथा को पांव पसारने का मौका मिल गया। इस मौके को मत गंवाइए। आमजन के मुद्दों पर केंद्रित तीखे तेवर के साथ शाब्दिक और तात्विक प्रहार कीजिए तो ये विधा बहुत आसानी से आपको देश-दुनिया में लोकप्रिय बना सकती है।
Source:
https://www.naidunia.com/madhya-pradesh/indore-naidunia-live-3683196
Publish Date: | Sun, 24 Nov 2019
तीन दशक पहले मैंने जब लघुकथा की त्रैमासिक पत्रिका शुरू की, उस वक्त साहित्य परिदृश्य पर नए लेखकों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ी थी। मगर इनमें से कई लोग लघुकथा के नाम पर सिर्फ चुटकुलेबाजी करते रहे और परिदृश्य से ओझल हो गए। कमोबेश ऐसी ही स्थिति पिछले कुछ वर्षों में एक बार फिर बनी है। फर्क ये है कि इस बार लेखिकाओं की संख्या ज्यादा है। मैं नहीं चाहता कि एक बार फिर अस्सी के दशक जैसी स्थिति बने और नए कलमकार साहित्यिक पटल से नदारद होते जाएं। इसलिए मैं उन्हें ये सलाह देना चाहूंगा कि अपनी लघुकथाओं में निरंतरता बनाए रखें। इसके अलावा पुराने घिसे-पिटे जुमलों और विषयों के बजाय आधुनिक समाज और राजनीति से जुड़े ऐसे चुटीले और ज्वलंत विषय उठाएं, जो जनता की नब्ज पर सीधे हाथ रखते हैं। जो इन दो पैमानों पर खरा उतरेगा, वही लंबी रेस का घोड़ा साबित होगा।
ये कहना है रविवार को हिंदी साहित्य समिति में होने वाले 'अखिल भारतीय लघुकथाकार सम्मेलन' में 'लघुकथा शिखर सेतु सम्मान' से सम्मानित किए जा रहे पंजाब के ख्यात लघुकथाकार श्याम सुंदर अग्रवाल का। नईदुनिया से विशेष चर्चा में उन्होंने स्वीकार किया कि जब किसी भी विधा में लेखकों की संख्या बढ़ती है तो कई बार स्तरहीन रचनाएं भी देखने में आ जाती हैं। लेकिन हमारा फर्ज है कि ऐसी रचनाओं के लेखकों को दरकिनार करने के बजाय उन्हें समझाइश देकर बेहतर बनाएं ताकि वो भी मुख्य धारा में शामिल होकर साहित्य को समृद्ध कर सकें, क्योंकि लघुकथा की संरचना अन्य विधाओं से बिलकुल अलग होती है।
बहुत गंभीर विधा है लघुकथा
मैंने देखा है कि कई बार नए लेखक कन्फ्यूज हो जाते हैं कि अपनी भावनाओं को किस तरह प्रस्तुत करें। ऐसे लोगों को मैं सुझाव देना चाहूंगा कि लघुकथा भी बहुत गंभीर विधा है। अगर आप सिर्फ हंसना-हंसाना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि लघुकथा की बजाय कॉमेडी शो लिखें। इसके जरिए तो आपकी कोशिश कम शब्दों में अपनी बात प्रभावी तरीके से लोगों तक पहुंचानी है, ताकि उन्हें ज्यादा पढ़ना भी न पड़े, उनका वक्त भी बचे और आपका संदेश भी उन तक पहुंच जाए। एक दौर था, जब कविताओं को समाज से संवाद का सबसे अच्छा माध्यम माना जाता था, लेकिन हल्के स्तर की रचनाओं और चुटकुलेबाजी ने इसकी गंभीरता खत्म कर दी और लघुकथा को पांव पसारने का मौका मिल गया। इस मौके को मत गंवाइए। आमजन के मुद्दों पर केंद्रित तीखे तेवर के साथ शाब्दिक और तात्विक प्रहार कीजिए तो ये विधा बहुत आसानी से आपको देश-दुनिया में लोकप्रिय बना सकती है।
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https://www.naidunia.com/madhya-pradesh/indore-naidunia-live-3683196