बैताल पच्चीसी (वेतालपञ्चविंशतिः) की छोटी-कथाओं की तरह ही लघुकथा में भी इस शैली का प्रयोग किया जा सकता है. बैताल पच्चीसी के शिल्प की बातों के अतिरिक्त इस शैली में मेरे अनुसार निम्न बातों पर ध्यान दिया जा सकता है:
- मूल बैताल पच्चीसी में बैताल द्वारा कहीं छोटी कहानी तो कहीं लघुकथा भी कही गई है, लेकिन इसमें बैताल द्वारा कही गई लघुकथा ही हो (एकांगी स्वरुप हो.) हालांकि इस बात का एक पक्ष यह भी है कि चूँकि बैताल कह रहा है अतः यह अपने आप में एकांगी है और तब उसकी कथा में छूट ली जा सकती है, ठीक उसी प्रकार जैसे फ्लैशबैक तकनीक, डायरी शैली आदि में रचनाकर्म किया जाता है. आगे जो पहली रचना है उसे कुछ ऐसा ही रखा गया है.
- बैताल द्वारा सुनाई जा रही कथा स्पष्ट हो.
- बैताल द्वारा सुनाई जा रही कथा को बैताल द्वारा ही अंतिम स्वरुप न देकर उसे इस तरह से आगे बढाना है कि अंत तक आते-आते वह रचना एक प्रश्न का सर्जन कर ले.
- उपरोक्त बिंदु में कहा गया प्रश्न ही बैताल विक्रम से पूछे और विक्रम उसका उत्तर दे. इस भाग (उत्तर) में जो विशेष बात मुझे समझ में आती है कि लघुकथा का एलिमेंट ऑफ़ सरप्राइज़ या वास्तविक विषय विक्रम के उत्तर में उजागर हो सकता है.
- बाकी रचना के प्रारम्भ में विक्रम द्वारा बैताल को पेड़ से उतार कर कंधे पर लादना, बैताल द्वारा मौन रहने की शर्त और अंत में फिर उड़ जाना, वो तो हो ही सकता है.
किसी भी शैली में सुधार सतत प्रक्रिया है. लेखक/लेखिकाएं केवल उपरोक्त बिन्दुओं पर ही निर्भर न रहें, स्वयं भी सोचें व प्रयोग करें. निवेदन है. उपरोक्त बिन्दुओं में कमियाँ भी हो सकती हैं. आप सभी की सलाहों का स्वागत है.
बातों के पीछे / चंद्रेश कुमार छतलानी
(प्रथम ड्राफ्ट)
बैताल को पकड़ने विक्रम फिर श्मशान में पेड़ पर लटके बैताल के पास गया। उसे उतारकर अपने कंधे पर लादा और ले चला। बैताल ने हँसते हुए एक कथा फिर, विक्रम के मौन रहने की शर्त के साथ, कहनी शुरू की। कथा इस तरह से थी,
एक राजा ने उसके राज्य में सोने के सिक्कों का चलन बंद कर ताम्बे के सिक्के शुरू कर दिए। दोनों धातुओं की मुद्राओं का मूल्य और वज़न बराबर था। राजा और उसके मंत्रियों ने जनता से कहा कि एक तो सोने के सिक्के महंगे पड़ते हैं और इसका संग्रह कर लोग इस चमकती धातु से काला धन इकठ्ठा कर रहे हैं। अतः यह बदल दी गई है। सभी को आदेश दिया जाता है कि दस दिनों के अंदर-अंदर सभी पुरानी मुद्रा को नई से बदलवा लें, उसके बाद जिस किसी के पास भी पुरानी मुद्रा पाई गई उसे दण्ड मिलेगा।
राजा के कुछ विरोधी बहुत धनवान थे और उनके पास बहुत सारे सोने की मुद्राएं जमा की हुईं थी, उन्हें चिंता हो गई क्योंकि अब उनका धन जब बदलवाया जाएगा तो सभी को पता चल जाएगा कि उनके पास बहुत ज़्यादा धन है। राजा के एक मंत्री ने क्या किया कि, किसी को कानोंकान खबर हुए बिना उन विरोधियों से पुराने सिक्के लेकर नए सिक्के दे दिए।
लेकिन यह बात किसी तरह राज्य दरबार में पता चल गई। राजा ने पूरी बात सुनकर मंत्री की तरफ देखा, मंत्री मुस्कुराया, उसे मुस्कुराते देख राजा भी मुस्कुरा दिया और राजा ने मंत्री को सम्मान के साथ इस दोष से मुक्त कर दिया।
यह कथा सुनाकर बैताल ने विक्रम से पूछा कि, "बता विक्रम! मंत्री ने उसके विरोधियों का पूरे का पूरा धन नए में बदल दिया, फिर भी राजा ने उसे क्यों छोड़ा? अगर जानते हुए भी उत्तर नहीं देगा तो तेरे सिर के सौ टुकड़े हो जाएंगे।"
विक्रम ने उत्तर दिया कि "बैताल! वह मंत्री ताम्बे के सिक्कों के बदले में बराबर भार के सोने के सिक्के लाया। अगर राजा के विरोधी उस सोने को गला कर ताम्बे के सिक्के खरीदते तो बहुत ज्यादा मूल्य के होते और वे पहले से अधिक धनवान हो जाते। मंत्री की बुद्धिमानी राजा और राज्य के खजाने के लिए लाभदायक सिद्ध हुई।"
बैताल हँसते हुए बोला, "सच कहा विक्रम! काले धन की बात केवल डर के लिए फैलाई गई थी लेकिन असली मकसद विरोधियों का स्वर्ण निकालना था जो पूरा हुआ। राजनीति में कहा कुछ और जाता है और उसके पीछे मंतव्य कुछ और होता है। तूने कहा तो बिल्कुल सही, लेकिन तू बोल गया इसलिए मुझे जाना होगा।"
और अगले ही क्षण वह विक्रम के कंधे से उड़ कर श्मशान की तरफ चला गया।
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उपरोक्त रचना पर एक टिप्पणी
उपरोक्त रचना में बेताल जब कथा सुनाता है तो, राजा के दरबार में मंत्री को बंदी बना कर लाया गया, यहाँ से भी प्रारम्भ कर सकते हैं और तब कोई अन्य दरबारी उस पूरी घटना का उल्लेख करे, जो फिलहाल दरबार में लाये जाने के पूर्व में कहा गया है.
यह तब किया जा सकता है, जब बेताल द्वारा कही जा रही कथा को भीआधुनिक लघुकथा की तरह ही न्यूनतम विवरण के साथ रखा जाना हो. हालांकि इससे कथा में तो कुछ फर्क नहीं पडेगा, लेकिन लेखन का तरीका कुछ बदल जाएगा.
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एक अन्य लघुकथा जिसमें इस शैली में ही थोड़ा परिवर्तन (बेताल का प्रश्न पूछना हटा कर कथ्य में थोड़ा बदलाव) किया गया है. रचना इस प्रकार है:
गुलाम अधिनायक / चंद्रेश कुमार छतलानी
उसके हाथ में एक किताब थी, जिसका शीर्षक ‘संविधान’ था और उसके पहले पन्ने पर लिखा था कि वह इस राज्य का राजा है। यह पढने के बावजूद भी वह सालों से चुपचाप चल रहा था। उस पूरे राज्य में बहुत सारे स्वयं को राजा मानने वाले व्यक्ति भी चुपचाप चल रहे थे। किसी पुराने वीर राजा की तरह उन सभी की पीठ पर एक-एक बेताल लदा हुआ था। उस बेताल को उस राज्य के सिंहासन पर बैठने वाले सेवकों ने लादा था। ‘आश्वासन’ नाम के उस बेताल के कारण ही वे सभी चुप रहते।
वह बेताल वक्त-बेवक्त सभी से कहता था कि, “तुम लोगों को किसी बात की कमी नहीं ‘होगी’, तुम धनवान ‘बनोगे’। तुम्हें जिसने आज़ाद करवाया है वह कहता था – कभी बुरा मत कहो। इसी बात को याद रखो। यदि तुम कुछ बुरा कहोगे तो मैं, तुम्हारा स्वर्णिम भविष्य, उड़ कर चला जाऊँगा।”
बेतालों के इस शोर के बीच जिज्ञासावश उसने पहली बार हाथ में पकड़ी किताब का दूसरा पन्ना पढ़ा। उसमें लिखा था – ‘तुम्हें कहने का अधिकार है’। यह पढ़ते ही उसने आँखें तरेर कर पीछे लटके बेताल को देखा। उसकी आँखों को देखते ही आश्वासन का वह बेताल उड़ गया। उसी समय पता नहीं कहाँ से एक खाकी वर्दीधारी बाज आया और चोंच चबाते हुए उससे बोला, “साधारण व्यक्ति, तुम क्या समझते हो कि इस युग में कोई बेताल तुम्हारे बोलने का इंतज़ार करेगा?”
और बाज उसके मुंह में घुस कर उसके कंठ को काट कर खा गया। फिर एक डकार ले राष्ट्रसेवकों के राजसिंहासन की तरफ उड़ गया।