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शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022

हिंदी वर्तनी की सामान्य अशुद्धियां | लीला तिवानी

लघुकथा सहित साहित्य की सभी विधाओं में भाषा का ज्ञान होना अति आवश्यक है अन्यथा कई बार अर्थ का अनर्थ हो जाता है. आज इसी विषय पर लीला तिवानी जी के एक लेख का सार रूप प्रस्तुत है, जो हम सभी के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध होगा. ज्ञातव्य है कि इस आलेख पर लेखिका लीला तिवानी को १९९४-९५ में राज्य स्तर पर दिल्ली सरकार द्वारा "एस.सी.ई.आर.टी अवार्ड'' से सम्मानित किया गया था. यह दिल्ली सरकार का राज्य स्तर का पुरस्कार है. लीला तिवानी जी को हमारी ओर से शुभकामनाएं.

हिंदी वर्तनी की सामान्य अशुद्धियां | लीला तिवानी

घर से बाहर निकलते ही हमारे सामने से एक ऑटो गुज़रता है, जिस पर ”मां का आशीर्वाद” लिखा हुआ है. इसे पढ़कर हमें बहुत अच्छा लगता है, क्योंकि हमें अपनी माताजी के आशीर्वाद की याद आ जाती है, जिसके कारण हम सफलता के इस मुकाम पर पहुंच सके हैं. फिर अफसोस भी होता है, क्योंकि आशीर्वाद की वर्तनी अशुद्ध होती है. हम यहां किसी भी शब्द की अशुद्ध वर्तनी नहीं दे रहे हैं, क्योंकि अशुद्ध या नकारात्मक चीज़ों का प्रतिरूप हमारे मन पर शीघ्र ही अंकित हो जाता है. ऐसा नहीं है, कि पेंटर के अल्पशिक्षित होने के कारण यह अशुद्धि होती हो, सचेत न रहने के कारण बड़े-बड़े धुरंधरों से भी इस तरह की अनेक त्रुटियां हो जाती हैं.

बाज़ार में केमिस्ट की दुकान पर ”दवाइयां” शब्द अक्सर अशुद्ध लिखा होता है. 1982 में दिल्ली के संगम सिनेमा हॉल में फिल्म ”अतिथि” लगी थी. सुबह स्कूल जाते समय जब मैंने पोस्टर देखा, तो स्कूल में सभी कक्षाओं में उस दिन श्रुतलेख में अतिथि शब्द लिखवाया. लगभग सभी बच्चों ने वैसा ही लिखा, जैसा बड़े-से पोस्टर पर देखकर आए थे.

कभी-कभी किसी कक्षा में हमारे पास पहली बार आने वाले छात्रों के नाम गलत होते हैं. मेरी हमेशा से आदत रही है, कि पहली बार कोई भी कक्षा मिलने पर पहले ही दिन मैं सबके नाम की वर्तनी की जांच करती हूं. जिन छात्रों के नाम अशुद्ध होते हैं, उन छात्रों की पुस्तिका में सही नाम लिखकर घर से जांच करवाने को कहती हूं. अगर घरवाले भी उसको सही बताते हैं, तो एडमीशन पंजिका में छात्र का नाम देखकर ठीक करवाती हूं. अक्सर छात्राएं रुचि नाम को अशुद्ध लिखती हैं. वे या तो रु को रू कर देती हैं या फिर चि को ची कर देती हैं. हमारे पास ऐसे अनेक उदाहरण विद्यमान हैं.

आजकल हिंदी में प्रायः ‘ना’ शब्द का प्रचलन हो गया है, वैसे हिंदी की प्रवृत्ति न की है, लेकिन मैंने उसे न कह दिया से बेहतर लगता है, मैंने उसे ना कह दिया, यानी जहां सुनने में जो बेहतर लगे, वहां वही इस्तेमाल करना चाहिए.

पिछले ब्लॉग में आज के ब्लॉग के लिए बहुत-सी बातें उभरकर सामने आईं, उनमें सबसे प्रमुख इस प्रकार हैं-

1.हममें हिंदी भाषा की वर्तनी के शुद्ध स्वरूप जानने की ललक होनी चाहिए. हम पुस्तक या समाचार पत्र पढ़ते समय अगर शब्दों की शुद्ध वर्तनी पर ध्यान दें, तो शायद लिखने में भी अशुद्धियां नहीं होंगी.

2.सीखें सभी भाषाएं, पर अपनी हिंदी भाषा से प्यार, उसके प्रयोग के लिए समर्पण की भावना होनी चाहिए. जब तक प्यार और समर्पण की भावना नहीं होगी, हम भाषा के शुद्ध स्वरूप के प्रति सजग नहीं रह सकते. मैंने शौक के लिए उर्दू, पंजाबी, गुजराती, बंगाली भाषाएं सीखीं, उर्दू, पंजाबी, गुजराती से सिंधी-हिंदी में अनुवाद भी किए, लेकिन सारा काम हिंदी में ही करती हूं. 

3.ऐसा करने के लिए हमें ‘इतना तो चलता है’ वाली मानसिकता को छोड़ना होगा. अगर हम हिंदी भाषा के सही स्वरूप को जानते हैं, तो अपने या किसी और के लिखे हुए को एक बार ध्यान से देखने पर ही हमें अशुद्धि का पता लग जाता है.

4.हमारे लेखन पर स्थानीय और संगियों-साथियों की भाषा का बहुत प्रभाव पड़ता है. एक सखी के ब्लॉग में ‘मामूरियत’ शब्द हमें बहुत अच्छा और एकदम सटीक लगा था. हमें तो लगा था, कि हिंदी में इसके जोड़ का शब्द शायद ही कोई और हो. पढ़ाते समय मुझे स्थानीयता के कारण बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता था. देश के कुछ हिस्सों के छात्रों को ‘देश’ शब्द का उच्चारण करवाना बहुत चुनौतीपूर्ण काम लगता था, क्योंकि उनकी स्थानीय भाषा की वर्णमाला में ‘श’ होता ही नहीं, इसलिए वे लिखते भी देस हैं और देश में श का सही उच्चारण करने में भी उनको परेशानी होती है.

अब हम आपको बता रहे हैं कुछ सामान्य शब्द, जो अक्सर अशुद्ध लिखे जाते हैं. हम उनके केवल शुद्ध रूप ही लिख रहे हैं. शायद आप इसका कारण जानना चाहेंगे. बेसिक ट्रेनिंग, बी.एड.ट्रेनिंग और एम.एड. ट्रेनिंग में हमें यही प्रशिक्षण दिया गया था, कि कोशिश करके अशुद्ध शब्द को सामने न आने दें, दिखाना भी पड़े तो तुरंत मिटा दें. यहां हम मिटा तो नहीं पाएंगे, इसलिए केवल शुद्ध शब्द लिख रहे हैं- 

दवाइयां
अतिथि
स्थिति
परिस्थिति
उपस्थिति
गड़बड़ 
कवयित्री
परीक्षा
तदुपरांत
निःश्वास
त्योहार
गुरु
निरीह
पारलौकिक
गृहिणी
अभीष्ट
पुरुष
उपलक्ष
वयस्क
सांसारिक
तात्कालिक
ब्राह्मण
हृदय
स्रोत
सौहार्द
चिह्न
उद्देश्य
श्रीमती
आशीर्वाद
मध्याह्न
साक्षात्कार
रोशनी
धुंआ
कृत्य
व्यावहारिक
आकांक्षी
दिमाग
मंत्रियों
विशेष

मात्राओं का सही ज्ञान नहीं होने के कारण अथवा टंकण या फॉन्ट की गड़बड़ी के कारण अंतर्जाल पर कई ब्लॉग्स (मेरे या आपके भी हो सकते हैं ), समाचारपत्रों, साहित्यिक पत्रिकाओं तक में ये अशुद्धियां प्रचुरता में रह जाती हैं, हमें कोशिश करके सावधानी बरतनी चाहिए.

- लीला तिवानी
   नई दिल्ली, सम्प्रति ऑस्ट्रेलिया