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शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

मैं पानी हूँ (लघुकथा)

"क्या... समझ रखा है... मुझे? मर्द हूँ... इसलिए नीट पीता हूँ... मरद हूँ... मुरद...आ"
ऐसे ही बड़बड़ाते हुए वह सो गया. रोज़ की तरह ही घरवालों के समझाने के बावजूद भी वह बिना पानी मिलाये बहुत शराब पी गया था.

कुछ देर तक यूं ही पड़ा रहने के बाद वह उठा. नशे के बावजूद वह स्वयं को बहुत हल्का महसूस कर रहा था, लेकिन कमरे का दृश्य देखते ही अचरज से उसकी आँखें फ़ैल गयीं, उसके पलंग पर एक क्षीणकाय व्यक्ति लेटा हुआ तड़प रहा था.

उसने  उस व्यक्ति को गौर से देखा, उस व्यक्ति का चेहरा उसी के चेहरे जैसा था. वह घबरा गया और उसने पूछा, "कौन हो तुम?"
उस व्यक्ति ने तड़पते हुए कहा, "...पानी..."

और यह कहते ही उस व्यक्ति का शरीर निढाल हो गया. वह व्यक्ति पानी था, लेकिन अब मिट्टी में बदल चुका था.

उसी समय कमरे में उसकी पत्नी, माँ और बच्चों ने प्रवेश किया और उस व्यक्ति को देख कर रोने लगे. वह चिल्लाया, "क्यों रो रहे हो?"

लेकिन उसकी आवाज़ उन तक नहीं पहुंच रही थी.
वह और घबरा गया, तभी पीछे से किसी ने उसे धक्का दिया, वह उस मृत शरीर के ऊपर गिर कर उसके अंदर चला गया. वहां अँधेरा था, उसे अपना सिर भारी लगने लगा और वह तेज़ प्यास से व्याकुल हो उठा. वह चिल्लाया "पानी", लेकिन बाहर उसकी आवाज़ नहीं जा पा रही थी.

उससे रहा नहीं गया और वह अपनी पूरी शक्ति के साथ चिल्लाया, "पा...आआ...नी"

चीखते ही वह जाग गया, उसने स्वप्न देखा था, लेकिन उसका हलक सूख रहा था. उसने अपने चेहरे को थपथपाया और पास रखी पानी की बोतल को उठा कर एक ही सांस में सारा पानी पी लिया.

और उसके पीछे रखी शराब की बोतल नीचे गिर गयी थी, जिसमें से शराब बह रही थी... बिना पानी की

मंगलवार, 6 फ़रवरी 2018

शह की संतान (लघुकथा)


तेज़ चाल से चलते हुए काउंसलर और डॉक्टर दोनों ही लगभग एक साथ बाल सुधारगृह के कमरे में पहुंचे। वहां एक कोने में अकेला खड़ा वह लड़का दीवार थामे कांप रहा था। डॉक्टर ने उस लड़के के पास जाकर उसकी नब्ज़ जाँची, फिर ठीक है की मुद्रा में सिर हिलाकर काउंसलर से कहा, "शायद बहुत ज़्यादा डर गया है।"

काउंसलर के चेहरे पर चौंकने के भाव आये, अब वह उस लड़के के पास गया और उसके कंधे पर हाथ रख कर पूछा, "क्या हुआ तुम्हें?"

फटी हुई आँखों से उन दोनों को देखता हुआ वह लड़का कंधे पर हाथ का स्पर्श पाते ही सिहर उठा। यह देखकर काउंसलर ने उसके कंधे को धीमे से झटका और फिर पूछा, "डरो मत, बताओ क्या हुआ?"

वह लड़का अपने कांपते हुए होठों से मुश्किल से बोला, "सर... पुलिस वालों के साथ...  लड़के भी मुझे डराते हैं... कहते हैं बहुत मारेंगे... एक ने मेरी नेकर उतार दी... और दूसरे ने खाने की थाली..." 

सुनते ही बाहर खड़ा सिपाही तेज़ स्वर में बोला, "सर, मुझे लगता है कि ये ही ड्रामा कर रहा है। सिर्फ एक दिन डांटने पर बिना डरे जो अपने प्रिंसिपल को गोली मार सकता है वो इन बच्चों से क्या डरेगा?"

सिपाही की बात पूरी होने पर काउंसलर ने उस लड़के पर प्रश्नवाचक निगाह डाली, वह लड़का तब भी कांप रहा था, काउंसलर की आँखें देख वह लड़खड़ाते स्वर में बोला,

"सर, डैडी ने मुझे कहा था कि... प्रिंसिपल और टीचर्स मुझे हाथ भी लगायेंगे तो वे उन सबको जेल भेज देंगे... उनसे डरना मत.... लेकिन उन्होंने... इन लड़कों के बारे में तो कभी कुछ नहीं..." 

कहते हुए उस लड़के को चक्कर आ गए और वह जमीन पर गिर पड़ा।



- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी