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रविवार, 29 मार्च 2020

लघुकथा वीडियो: क्या क्यूँ कैसे @ लघु कथा संग्रह | लेखन: अशोक भाटिया | वाचन: सृजनउत्सव



अशोक भाटिया करनाल से हैं। हिन्दी में एसोसिएट प्रोफेसर रह चुके हैं, आजकल लेखन और सामाजिक कार्यों में सक्रिय हैं। आपकी कविता, आलोचना, बाल साहित्य, व्यंग्य, लघु कथा जैसे विषयों पर 13 मौलिक और 15 संपादित पुस्तकें आ चुकी हैं। उनके लघुकथा संग्रह 'क्या क्यूँ कैसे' से लीजिए कुछ लघुकथाएँ सुनिए..


रविवार, 5 जनवरी 2020

लघुकथा समाचार : विश्व पुस्तक मेले में होगा डॉ. भाटिया की पुस्तक का लोकार्पण


हरियाणा के लघुकथाकार डॉ. अशोक भाटिया की नई पुस्तक कथा समय का दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में लोकार्पण होगा। डॉ. अशोक की यह 33वीं पुस्तक है...

जागरण संवाददाता, करनाल : हरियाणा के लघुकथाकार डॉ. अशोक भाटिया की नई पुस्तक कथा समय का दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में लोकार्पण होगा। डॉ. अशोक की यह 33वीं पुस्तक है, जिसे आठ जनवरी को वरिष्ठ साहित्यकारों द्वारा विमोचित किया जाएगा। कथा समय पुस्तक में लघुकथा के 50 वर्षो के संघर्ष के साक्षी और यात्री रहे प्रतिनिधि कथाकारों की चुनिदा लघुकथाएं शामिल हैं।

पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर अशोक भाटिया की अनेक पुस्तकों के कई-कई संस्करण छपकर लोकप्रिय हो चुके हैं। इनकी जंगल में आदमी और अंधेरे में आंख लघुकथा पुस्तकें हिदी जगत में बहुत सराही गई हैं। इनके द्वारा पंजाबी से अनुवाद कर श्रेष्ठ पंजाबी लघुकथाएं हिदी में इस तरह की पहली पुस्तक है। हरियाणा ग्रंथ अकादमी के अनुरोध पर लिखी समकालीन हिदी लघुकथा इस विद्या की प्रतिमानक पुस्तक मानी जाती है। साहित्यिक क्षेत्र में निरंतर सक्रिय डा. भाटिया की अनेक लघुकथाएं स्कूली तथा विश्वविद्यालयों के पाठयक्रमों में पढ़ाई जा रही हैं। इन्हें अब तक हरियाणा साहित्य अकादमी सहित कोलकाता, पटना, शिलांग, हैदराबाद, इंदौर, भोपाल, रायपुर, अमृतसर, जालंधर आदि की संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत व सम्मानित किया जा चुका है।

Source:
https://www.jagran.com/haryana/karnal-bhatia-book-will-be-released-at-the-world-book-fair-19904749.html

सोमवार, 17 जून 2019

विचार-विमर्श: डॉ॰ अशोक भाटिया जी के लेख: लंबी लघुकथाएं : आकार और प्रकार पर

डॉ० अशोक भाटिया जी के इस लेख पर इन दिनों फेसबुक पर काफी विचार-विमर्श हो रहा है। जहां अनिल शूर आज़ाद जी ने "लम्बी लघुकथाएं" शब्द पर एतराज़ किया और यह मत भी प्रकट किया कि जिन लघुकथाओं का डॉ० भाटिया ने उदाहरण दिया है वे वास्तव में लघु कहानियाँ हैं।

उसके उत्तर में अशोक भाटिया जी ने बताया कि उन्होने देश-विदेश की लगभग ४५ लघुकथाओं का उदाहरण दिया है। उनका लेख विशुद्ध रचनात्मक आधार पर है।

डॉ० बलराम अग्रवाल जी के अनुसार भी 'छोटी लघुकथा' 'लघुकथा' और 'लम्बी लघुकथा' के विभाजन का समय अभी नहीं है। अभी लोग 'लघुकथा' शब्द के आभामंडल से चमत्कृत हैं, सराबोर हैं। 'लघुत्तम लघुकथा' की अवधारणा भी सिर पटक रही है। अतीत में 'अणुकथा' की अवधारणा दम तोड़ चुकी है।

श्री वीरेंद्र सिंह के अनुसार कुदरत ने हर चीज का आकार तय किया है। एक मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो हर चीज को अलग दृष्टिकोण से देखा करता है। किसी भी विषय पर बात कीजिए। हर विषय वस्तु की अपनी सीमाएं है। अतः लघुकथा का मतलब ही उसका लघु रूप में विराजमान होना है।

सुभाष नीरव जी की प्रतिक्रिया कुछ इस प्रकार से आई कि बराय मेहरबानी  'लघुकथा' को लघुकथा ही रहने दो ! और उनके अनुसार वे कहानी में लंबी कहानी बेशक खूब चली और पाठकों ने उसे स्वीकार भी किया हो, पर उसी की तर्ज पर लघुकथा का ' लंबी लघुकथा ' के रूप में वर्गीकरण करने के पक्ष में वे नहीं हैं। 

डॉ० अशोक भाटिया का उत्तर कुछ निम्न बिन्दुओं में आया:
  • लघुकथा का बाहरी स्पेस थोड़ा बाधा लेने से यथार्थ को व्यक्त करने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं |पिछले पंद्रह-बीस वर्षों में ऐसी कई श्रेष्ठ लघुकथाएं सामने आई हैं,जो पांच सौ से अधिक और एक हजार शब्दों तक जाती हैं और उन्होने कुछ लघुकथाओं के उदाहरण दिये। 
  • लघुकथा में आकारगत विस्तार हो रहा है,लघुकथा के ही फॉर्मेट में रहते हुए और यह एक स्वस्थ प्रवृत्ति है |क्या इस प्रवृत्ति को उजागर नहीं किया जाना चाहिए ?
  • यथार्थ के अनेक आयाम लघुकथा-लेखक से इसलिए भी छूट जाते हैं कि वह अपने अर्धचेतन में इसके आकार की सीमा को तय किये बैठा है |इस उपक्रम में कई लघुकथाएं इसलिए नहीं लिखी जातीं कि ये तय सीमा से बाहर हैं।
  • लघुकथा के आकार का लेखक के अर्ध-चेतन में बना यह दबाव कहाँ से आया--इस पर विस्तार से फिर बात करेंगे।
  • जून 1973 और जुलाई 1975 के सारिका के लघुकथा विशेषांक में लघुकथा के बारे 250 शब्दों तक आकार रहने की बात करने वाले लेखक ही अधिक थे, तब डा.बालेन्दु शेखर तिवारी ने एक पत्र में लिखा था कि, "अब समय आ गया है कि 250 से अधिक शब्दों वाली रचना को लघुकथा के दायरे से बाहर कर दिया जाए।" पर ऐसा न हुआ,न होना था। लेकिन फिर 500 शब्दों की लघुकथा की भी बात और स्वीकृति होने लगी। अब 1000 का विरोध है,तो यह आकार भी स्वीकृत होगा,क्योंकि यहाँ तक अनेक श्रेष्ठ लघुकथाएं जाती हैं।
  • 'लम्बी लघुकथा' कहने से लघुकथा का विभाजन नहीं होता,क्योंकि यह लघुकथा का विस्तार है,जैसे कि इसने दो-ढाई सौ शब्दों से आगे विस्तार पाया। |लघु उपन्यास शब्द में भी विरोधाभास है,वह भी स्वीकृत हुआ
उपरोक्त डॉ॰ भाटिया की फेसबुक पोस्ट पर राजेश उत्साही जी की टिप्पणी कुछ यों थी, जिन लघुकथाओं की बात हो रही है, वे श्रेष्‍ठ का दर्जा पा चुकी हैं। इसलिए उन्‍हें स्‍वीकारने या नकारने का तो कोई प्रश्‍न ही नहीं है। इससे यह बात तो लगभग तय है कि श्रेष्‍ठ लघुकथाओं के लिए यह शब्‍द संख्‍या पर्याप्‍त है। दूसरे शब्‍दों में कहें तो श्रेष्‍ठ लघुकथा इससे अधिक जगह की माँग नहीं करेगी। हाँ यहाँ समस्‍या उनके लिए है जो उसे 250,500 या 700 शब्‍दों की सीमा में बाँधने के पक्षधर हैं। अपन तो 1000 शब्‍दों की सीमा में बाँधने के पक्षधर भी नहीं हैं। क्‍योंकि लघुकथा का जो शिल्‍प है, वह एक स्‍वाभाविक आकार के बाद स्‍वयं ही दम तोड़ देगा। उसकी विषयवस्‍तु को अगर लम्‍बा खींचने की कोशिश होगी, तो वह बिखर जाएगा। इसका विलोम भी है कि अगर शब्‍द सीमा तय की जाएगी, तो भी उसका कथ्‍य दम तोड़ देगा, या उभरेगा ही नहीं। कल मैंने अभ्‍यास के तौर पर अपनी 19 लघुकथाओं में शब्‍दों की गिनती की। उनमें कम से कम 50 शब्‍दों की है और अधिक से अधिक 721 शब्‍दों की। मेरी दृष्टि में तो दोनों ही अपनी बात कहने में सक्षम हैं।

और इसी पोस्ट पर सुभाष नीरव जी की टिप्पणी अत्यंत महत्वपूर्ण है, पढ़िये, मुझे 'संरचना' का ताज़ा अंक मिल चुका है और मैंने सबसे पहले इस आलेख को ही पढ़ा। मुझे पूरा आलेख छिटपुट असहमति को छोड़कर कहीं से भी नकारे जाने योग्य नहीं लगा। बहुत सी बातें, धारणाएं तो मेरी अपनी सोच को पुष्ट करती ही लगीं। मैंंने तो स्वयं शब्द गिनकर कभी लघुकथाएं नहीं लिखीं, उन्हें अपना सहज आकार लेने दिया और मेरी अधिकतर लघुकथाएं 500 शब्दों से लेकर 800 शब्दों तक गई हैं। मैं लघुकथा को कम शब्दों की वज़ह से 'लघु' नहीं मानता, मैं लघु कथ्य की ओर ध्यान देता हूँ। अपनी लघुकथा लेखन यात्रा के दौरान मुझे भी लगता रहा है कि बदलते समय में जब दुनिया में इतना कुछ नया जुड़ा है, और बहुत कुछ बदला है, तो नये विषय लघुकथा के घेरे में लाने के लिए लघुकथा के आकार में कुछ तो वृद्धि होना स्वाभाविक ही है, तभी उस नये विषय से सही में न्याय हो पाएगा, अन्यथा वे विषय 250 -300 शब्दों की अवधारणा के चलते अपना दम तोड़ देंगे। और रचनाकार के अन्दर जो प्रयोगधर्मी होने का गुण होता है, वह भी मर जाएगा। मैं इस बात से सहमत रहा हूँ कि 'आकार बाहरी चीज़ है ।'

डॉ० भाटिया की उपरोक्त दर्शित पोस्ट पर ही श्री योगराज प्रभाकर की टिप्पणी भी उल्लेखनीय है, उनके अनुसार, इस आलेख में कहीं भी अशोक भाटिया जी लघुकथा के आकार को लेकर आग्रही नहीं दिखे। न ही उन्होंने "लम्बी लघुकथा" शब्द लिखकर कोई आकार के हवाले से लघुकथा को डिफ्रेंशिएट करने का प्रयास ही किया है। अगर सीधे सादे शब्दों में कहा जाए तो किसी इमारत की विशालता, भव्यता या उपयोगिता प्लॉट के साइज़ पर भी निर्भर करती है। वैसे जब लघुकथा में कोई न्यूनतम शब्द सीमा तय नहीं तो अधिकतम शब्द सीमा को 250 या 300 में बांधना कहाँ की समझदारी है?

बहरहाल, इस विमर्श के एक भाग को आप सभी के समक्ष रखा वह लेख भी आप सभी के समक्ष है। आइये इसे भी पढ़ते हैं।


संकलन: डॉ० चंद्रेश कुमार छ्तलानी

गुरुवार, 24 जनवरी 2019

लघुकथा वीडियो : डॉ. अशोक जी भाटिया की लघुकथा "रंग"


मित्रों, लघुकथा वीडियो में आज देखिये-सुनिए वरिष्ठ लघुकथाकार डॉ. अशोक जी भाटिया की लघुकथा रंग।
आम व्यक्ति को लगता है ख़ास बन जाऊं लेकिन ख़ास बनकर कहीं न कहीं फिर से सामान्य व्यक्ति बनने इच्छा रहती ही है। यह छोटी सी रचना कितने ही लोगों के जीवन से जुडी हुई है।
देखिये किस तरह होली पर किसी ने रंग ना लगाया तो, ख़ास होने के अहंकार से भरपूर एक व्यक्ति अपने पर गर्वित होते समय, अचानक स्वयं को आम दुनिया से अलग-थलग पाता है और फिर......



डॉ. अशोक जी भाटिया की लघुकथा "रंग"
courtesy: YouTube

सोमवार, 26 नवंबर 2018

लघुकथा समाचार

पंजाब कला साहित्य अकादमी ने किया 14 राज्यों से आए साहित्यकारों का सम्मान
Jagaran| 25 Nov 2018 |जालंधर 

उत्तर भारत की प्रमुख साहित्यिक एवं सामाजिक संस्था पंजाब कला साहित्य अकादमी पूरे देश के साहित्यकारों को एक मंच पर ला रही है। पंकस अकादमी के कार्यक्रम में पूरे देश से आए साहित्यकारों ने हिस्सा लिया। अकादमी का यह प्रयास सराहनीय है। यह कहना था पूर्व मंत्री मनोरंजन कालिया का, जो अकादमी अवार्ड समारोह में विशेष अतिथि के तौर पर शामिल हुए। उन्होंने कहा कि अकादमी के अध्यक्ष सिमर सदोष पंजाब के साहित्यकारों के लिए बहुत कुछ कर रहे हैं। इस दौरान मुख्य मेहमान के तौर पर मौजूद आईजी पंजाब प्रवीण कुमार ¨सन्हा, व पुलिस कमिश्नर गुरप्रीत ¨सह भुल्लर ने कहा कि अकादमी अवार्ड समारोह में जो लोग आते हैं, वह सब अपने अपने राज्यों के प्रसिद्ध साहित्यकार कवि और लेखक हैं। ऐसे लोगों के बीच में रहना बेहद गर्व की बात है। विधायक राजेंद्र बेरी व मेयर जगदीश राज राजा ने कहा कि जालंधर की धरती हमेशा साहित्य एवं कला से समृद्ध रही है। पंजाब में बड़े-बड़े साहित्यकार कवि एवं लेखक हुए हैं। पंकस आदमी ऐसे लेखकों, साहित्यकारों, व कवियों को सम्मानित कर नई नई प्रतिभाओं को आगे लाने का मौका भी दे रही है।

हिमाचल के पूर्व बागवानी मंत्री ठाकुर सत्य प्रकाश ने कहा कि पंकस अकादमी की ख्याति पूरे देश में फैली हुई है। आने वाले समय में अकादमी और ऊंचाइयों पर जाएगी। कार्यक्रम की शुरुआत में प्रेमलता ठाकुर, रोहणी मेहरा, विनोद कालड़ा, रानू सलारिया व पूजा ने ज्योति प्रज्ज्वलित की। सख्शियतों को इन अवॉर्डो से नवाजा एसएसपी नवजोत ¨सह माहल को शौर्य सम्मान से सम्मानित किया। गया। इसके अलावा चंडीगढ़ स्थित अकाल ओल्ड एज होम को मानवता की सेवा में एक विनम्र यत्न के ²ष्टिगत शुभ कर्मण सम्मान दिया गया। लुधियाना से साहित्यकार डॉक्टर फकीरचंद शुक्ला को आजीवन उपलब्धि सम्मान, हिमाचल की प्रोफेसर सुरेश परमार को आधी दुनिया पंकस अकादमी अवार्ड, राजस्थान से डॉक्टर सुधीर उपाध्याय, एमबीएम इंजीनियर आशा शर्मा बीकानेर, साहित्यकार अरुण नैथानी, डॉक्टर विनोद कुमार, वीणा विज, मनजीत कौर मीत, डॉक्टर कुल¨वदर कौर, अशोक भंडारी, शिमला से आए यादवेंद्र चौहान को अकादमी अवार्ड प्रदान किया गया। ठाकुर सत्य प्रकाश, डॉ अजय शर्मा, डेजी एस शर्मा, नवजोत ¨सह को विद्या वाचस्पति उपाधि एवं सारस्वत सम्मान दिया गया। लघुकथा के क्षेत्र में अशोक भाटिया को लघु कथा श्रेष्ठी सम्मान एवं डॉक्टर कुंवर वीर ¨सह मार्तंड व कांता राय को साहित्य शिरोमणि सम्मान दिया गया। शिरोमणि पत्रकारिता अवॉर्ड इलेक्ट्रॉनिक मीडिया प्रभारी सुनील रुद्रा, अंबाला से वरिष्ठ पत्रकार उज्जवल शर्मा को दिया गया। सहकार प्रबंधन अवॉर्ड रमेश ठाकुर को दिया गया। यश भारती सम्मान विश्वविद्यालय औद्योगिक संपर्क विभाग की कनुप्रिया को दिया गया। साज सज्जा सम्मान निक्स नीलू स्टूडियो की निक्स व नीलू को दिया गया। गौरव मेहरा को युवा प्रतिभा सम्मान, मनोज प्रीत, विष्णु सागर, गगन बंसल, रजनीश राणा, डोरा ¨सह महंत, सोनू त्रेहण को विशिष्ट पंकस अकादमी सम्मान दिया गया।

News Source:
https://www.jagran.com/punjab/jalandhar-city-pankas-academy-award-ceremony-18680868.html

मंगलवार, 6 मार्च 2018

पुस्तक समीक्षा: देश-विदेश से कथाएं - संपादन : अशोक भाटिया

देश-विदेश से कथाएं : गिने-चुने शब्दों में दीन-दुनिया की अनगिनत बातें
अगर आपके पास वक्त की कमी है, लेकिन कुछ अच्छा साहित्य पढ़ना चाहते हैं तो आपको ये लघुकथाएं जरूर पढ़नी चाहिए
Satyagrah | 05 मार्च 2017 |

संपादन : अशोक भाटिया
प्रकाशन : साहित्य उपक्रम
कीमत : 80 रुपये


कहने का अंदाज क्या हो, अक्सर खुद बात ही यह तय करती है. कभी कोई बात कविता में कही जाती है, तो कभी कहने के लिए कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध,लेख या फिर लघुकथा का सहारा लिया जाता है. इन विधाओं में लघुकथा को भले ही बाकियों जितना महत्व न मिला हो लेकिन यह साहित्य में आज भी जिंदा है. न सिर्फ भारत बल्कि दुनियाभर के साहित्य में लघुकथा ने अपनी उपस्थिति दर्ज की है.

‘देश-विदेश से कथाएं’ में अशोक भाटिया ने दुनियाभर के 66 लेखकों और 18भाषाओं की बहुत अच्छी लघुकथाएं संकलित की हैं. अंग्रेजी, रूसी, जर्मन, स्पेनिश, जापानी, अरबी, फारसी, चीनी आदि विदेशी भाषाओं की लघुकथाएं इस किताब में शामिल हैं तो वहीं हिन्दी-उर्दू के साथ दूसरी भारतीय भाषाओं की लघुकथाएं भी यहां मिलेंगी.

इन लघुकथाओं में जहां एक तरफ सामाजिक विसंगतियों और नैतिकता पर व्यंग्य है, वहीं दूसरी तरफ मानवीय मूल्यों को समाज में स्थापित करने की तीव्र इच्छा भी है. ऐसी ही बहुत अच्छी अरबी लघुकथा है, ‘पागलखाना’. खलील जिब्रान इस लघुकथा में सभ्य समाज के उन मूल्यों और अपेक्षाओं पर तंज कसते हैं, जिसमें खुद को श्रेष्ठ मानने वाला हर व्यक्ति दूसरे को अपने जैसा बनाने पर अमादा है. खलील जिब्रान तर्कसंगत तरीके से आदर्शां से भरी दुनिया को असली पागलखाना साबित कर देते हैं-

‘उस पागलखाने के बगीचे में एक युवक से मेरी भेंट हो गई... मैं उसकी बगल में ही बेंच पर जा बैठा और उससे पूछा, ‘अरे, तुम यहां कैसे आए?’...‘मेरे शिक्षक और तर्कशास्त्र के अध्यापक, सब के सब इस बात पर आमादा हैं कि वे मुझमें दर्पण की तरह अपना प्रतिबिम्ब देखें. इसलिए मुझे यहां आना पड़ा. यहां मैं अधिक सहज हूं. कम से कम यहां मेरा अपना व्यक्तित्व तो है.’अचानक मेरी ओर घूमकर वह बोला, ‘लेकिन यह बताइए, आप यहां कैसे आए ? क्या आपको भी आपकी शिक्षा और सद्बुद्धि ने यहां आने के लिए प्रेरित किया ?’

मैंने उत्तर दिया, ‘नहीं, मैं तो यहां एक दर्शक के रूप में आया हूं.’ उसने कहा, ‘समझा! आप इस चहारदीवारी के बाहर के विस्तृत पागलखाने के निवासी हैं.’

भारत-पाकिस्तान के प्रमुख प्रगतिशील कथाकार जोगिंदर पाल को इस विधा में खासा ऊंचा मुकाम हासिल है. इस किताब में उनकी दो लघुकथाएं शामिल हैं और दोनों ही दिल को बेहद छूने वाली हैं. ‘जागीरदार’ नाम की लघुकथा का अंत तो सुन्न कर देने वाला है. इसमें एक पिता अपनी 12-13 साल की बेटी के हाथ में एक चिठ्ठी देकर लेखक के पास भेजता है. चिठ्ठी में माली हालत का जिक्र करते हुए, कम से कम पांच रुपये देने की बात लिखी होती है. लेखक पांच रुपये दे देता है. फिर और भी कई बार वह लड़की ऐसी ही चिठ्ठी लेकर आती है, लेकिन अब लेखक उसे दो रुपये देकर भेज देता है. यह घटना कई बार दोहराई जाती है. फिर कई महीनों के बाद एक दिन वह व्यक्ति स्वयं लेखक के पास आता है और कहता है (लघुकथा की पंक्तियां) –

‘इस बार लड़की को चिठ्ठी देकर नहीं भेजा. आप ही हाजिर हो गया हूं. मुझे आपसे यह निवेदन करना है कि... ‘मैंने उसे दो रुपये देने के लिए जेब में हाथ डाला. ‘नहीं, ठहरिए, पहले मेरी विनती सुन लीजिए - मैं अपनी चिठ्ठियों में जो रकम लिखूं, कृपया आप वही भेजा करें.’
मैं उसकी तरफ हैरत और गुस्से से देखने लगा.

‘मेरी बेटी अब पूरी जवान हो चुकी है जनाब. आपको अब तो पूरे ही पैसे चुकाने होंगे.’

इस किताब में शामिल चीनी भाषा की लघुकथा ‘नींद’ पति-पत्नी के रिश्ते की बहुत ही प्यारी कहानी है. इसमें एक पति द्वारा अपनी पत्नी के लिए किए गए त्याग-भाव का छू लेने वाला वर्णन है. लियो टॉल्सटॉय की लघुकथा ‘बोझ’ एक घोड़े के माध्यम से मालिक की झूठी चिंता पर तंज करती है –

‘कुछ फौजियों ने दुश्मन के इलाके पर हमला किया तो एक किसान भागता हुआ खेत में अपने घोड़े के पास गया और उसे पकड़ने की कोशिश करने लगा, पर घोड़ा था कि उसके काबू में ही नहीं आ रहा था.

किसान ने उससे कहा, ‘मूर्ख कहीं के, अगर तुम मेरे हाथ न आये तो दुश्मन के हाथ पड़ जाओगे.’

‘दुश्मन मेरा क्या करेगा ?’ घोड़ा बोला.

‘वह तुम पर बोझ लादेगा और क्या करेगा’

‘तो क्या मैं तुम्हारा बोझ नहीं उठाता?’ घोड़े ने कहा, ‘मुझे क्या फर्क पड़ता है कि में किसका बोझ उठाता हूं.’

इस किताब में अशोक भाटिया ने काफी अच्छी लघुकथाओं को संकलित किया है. अपवाद छोड़कर लगभग सभी अनुवादकों ने अच्छा अनुवाद किया है. अरबी लघुकथाएं ‘पागल खाना’, ‘आजादी’, ‘वह पवित्र नगर; उर्दू भाषा की ‘जागीरदार, ‘नहीं रहमान बाबू; चीनी की ‘नींद’; रूसी की ‘बोझ; जर्मन की ‘कानून के मुहाने पर’; अंग्रेजी की ‘पिछले बीस वर्ष’, ‘ईसा के चित्र’, ‘रंग-भेद’; स्पेनिश की ‘आखिरी स्टेशन’; बांग्ला की ‘नीम का पेड़’; ‘हिंदी की ‘पेट का कछुआ‘, ‘पेट सबके हैं’, ‘बयान’, ‘बिना नाल का घोड़ा’, ‘कपों की कहानी’, ‘कसौटी’, ‘आग’; पंजाबी की ‘भगवान का घर’, ‘प्रताप’; तेलुगु की ‘स्पर्श’, ‘भोज्येषु माता’, ‘टैस्ट’; मलयाली की ‘उपनयन’; मराठी की ‘बकरी’, ‘सत्कार’; गुजराती की ‘विदाई’; कश्मीरी की ‘फाटक’ आदि लघुकथाएं पाठक की सीरत पर असर डालने वाली लगती हैं.

किताब की कीमत इसमें संकलित सामग्री के हिसाब से बहुत कम है. साहित्य उपक्रम इस मामले में साहित्य को समर्पित सच्चा प्रकाशन लगता है जो लोगों की जेब का ख्याल करके उन तक उत्कृष्ट साहित्य को पहुंचाने की दिशा में सराहनीय काम कर रहा है. किताब में सभी लेखकों के बारे में संक्षेप में बताया गया है. इतने सारे लेखकों का परिचय पढ़ना और साथ में उनके कृतित्व की बानगी देखना अपने आप में बेहद रोचक है. विश्व और हिंदी से इतर दूसरी भाषाओं की लघुकथाओं को एक साथ संकलित करना, इस संग्रह को और भी समृद्ध बनाता है. भागादौड़ी की दिनचर्या में पाठकों को साहित्य से जोड़े रखने को ये लघुकथाएं प्रेरित करती हैं. लगता है जैसे कहती हों, ‘हमें आपकी लंबी सिटिंग नहीं चाहिए, कभी भी, कहीं भी...आपका स्वागत है.’


Source:
https://satyagrah.scroll.in/article/105298/book-review-desh-videsh-se-kathayen-ashok-bhatiya