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शुक्रवार, 12 नवंबर 2021

वरिष्ठ लघुकथाकार श्री उमेश महदोषी की फेसबुक वॉल से

 लघुकथा के पुरोधा डॉ. सतीश दुबे साहब को नमन!



आज का दिन लघुकथा के लिए बहुत बड़ा दिन होता है। हाँ, बहुत बड़ा। क्योंकि आज के दिन ही लघुकथा के व्यास श्रद्धेय डॉ. सतीश दुबे साहब इस दुनिया में अवतरित हुए थे। समकालीन लघुकथा के सबसे बड़े हस्ताक्षर ही नहीं, वह लघुकथा के पर्याय हैं। नियमित और समर्पित लघुकथा लेखकों की सूची में उनका नाम सबसे पहले तो आता ही है, वे ऐसे प्रथम हस्ताक्षर भी हैं, जिनकी लघुकथाओं का प्रकाशन सबसे पहले आरम्भ हुआ। जीवन-भर वह लघुकथा के लिए समर्पित रहे और अंतिम श्वाँस भी उन्होंने लघुकथा के नाम की ही ली। अंतिम वर्ष में किसी एक विषय पर संग्रह भर लघुकथाओं का सृजन (लघुकथा संग्रह ़‘प्रेम के रंग’) उनके समर्पण भाव की गहराई को दर्शाता है।

श्रद्धेय दुबे साहब को नमन करते हुए उनके सुप्रसिद्ध लघुकथा संग्रह ‘ट्वीट’ से उनकी एक महत्वपूर्ण लघुकथा मित्रों के लिए प्रस्तुत है। हमारी सामाजिक और कानून व्यवस्था पर इस लघुकथा में तीखी टिप्पणी है। आजादी से लेकर आज तक हमने जिस व्यवस्था को खड़ा किया है, उस पर इससे बड़ी टिप्पणी और क्या हो सकती है!


जन सुनवाई/डॉ. सतीश दुबे


     ‘‘नाम रमणलाल वल्द आनंदीलाल, निवासी ग्राम कस्बा भाटखेड़ी तहसील असरावदा और ये मेरी औरत याने पत्नी दुर्गेश...’’ आत्म-परिचय के साथ उसने अपनी अर्जी जन-सुनवाई के लिए बैठे आला अफसरों के सामने पेश कर दी।

      आवेदन पर सरसरी नजर डालकर, बीच वाली कुर्सी पर बैठे बड़े साब ने आँखें उठाकर आवेदक की ओर देखा- ’’इसमें जो लिखा है, उसके बारे में मुँहजबानी कुछ बताइए।’’

     प्रत्युत्तर में पुरुष की बजाय भाल तक घूँघट निकालकर साथ में खड़ी महिला आक्रोश भरे स्वर में बोली- ‘‘साब, ऑफिस, थाना, लोग-बाग सबसे कहते-कहते जुबान को भी अब तो शरम आने लगी किन्तु सुनने वालों को नहीं। न न्याय न धरम...।’’ अंतिम लब्ज बोलते हुए महिला का आक्रोशी कंठ भावावेग में बदलकर रुँध गया।

     बड़े साब की ‘‘आप बताइए’’ प्रश्नवाचक सांकेतिक मुद्रा के प्रत्युत्तर में पुरुष का क्षणिक मौन एकदम बुलंद-स्वरों में फूट पड़ा- ‘‘साब, लोग-बाग कहते हैं कि लड़कियों-औरतों को चटक-भटक, चुहुलबाजी के कारण छेड़छाड़ और...। मेरी लड़की तो बिचारी एकदम गाय से भी सीधी। सलवार-कुरता का कपड़ा देने टेलर की दुकान पर जा रही थी। रास्ते में नशे की दवाई रुमाल में सुँघाकर वो खानदानी गुंडा उसे उठा ले गया... और...।’’

     ‘‘वो मुंजला अपने कमीने दोस्तों के साथ हिजड़ों जैसी मूँछों पर ताव देकर घूम रहा है।’’

     ‘‘हाँ साब, पुलिस में रिपोर्ट लिखाई थी। पर पुलिस हाथ पर हाथ धरे इसलिए बैठ गई कि उसने प्रमाण देकर यह सफाई दे दी कि वारदात वाले दिनों वह उदयपुर-जयपुर था...।’’

     ‘‘साब, लड़की महीने भर में मरी हत्या हो गई है। उसकी छोटी बेन ही नहीं गाँव-कस्बे की सब लड़कियाँ घर से बाहर निकलने में डरती हैं।’’

      दोनों की समवेत कथा सुनकर अफसरों ने एक-दूसरे की ओर देखा तथा फुसफुसाए- ‘‘यह तो पेचीदा मामला है।’’

      ‘‘साब, मालूम था कि यहाँ भी कुछ होना-जाना नहीं, पर ये औरत दूसरों के कहने में नी मानी...।’’ कहते हुए पुरुष ने औरत की ओर देखा तथा- ‘‘सुन लिया ना, चल अब’’ शब्दों के साथ उसे धकेलकर जोरों से झकझोरा तथा जनसुनवाई बैठक में आशा की ललक से आई जन की भीड़ को चीरता हुआ बाहर निकल गया। उसे न जाने क्यों कानों में प्रतिध्वनि हो रही, ‘‘अरे आप लोग सुनिए तो...’’ आवाज में आस्था नहीं रही थी।

गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

वेबदुनिया पर डॉ. सतीश दुबे का साक्षात्कार



लघुकथा विराट प्रभाव की अभिव्यक्ति है।
साहित्यकार डॉ. सतीश दुबे से लघुकथा पर विशेष चर्चा

* सन् 1971 के बाद वे कौन सी समस्याएँ थीं जिन्हें लघुकथाओं ने छुआ?
राजनैतिक अस्थिरता, आम आदमी के प्रति प्रशासनिक जिम्मेदार व्यवहार, सामाजिक-आर्थिक विषमता, पारिवारिक ढाँचे में आए बदलाव के कारण रिश्तों के नए समीकरण।

* हमारे समाज में आज की लघुकथा कितनी गहरी जुड़ी हुई है? 
संक्षिप्त कथा-बोध समाज के आकर्षण का केंद्र नैतिक, दृष्टांत, धार्मिक या लोककथाओं के रूप में गहरे से जुड़ा हुआ है। कथा-विधा की संक्षिप्त अभिव्यक्ति के रूप में लघुकथाओं-लेखन के पश्चात साहित्य जगत में जहाँ लेखन-प्रकाशन का माहौल बना है, वहीं दूसरी ओर पठन-पाठन में इसके प्रति आकर्षण समाज के सूक्ष्म पथ की संक्षिप्त-प्रस्तुति कुछ कहने की मुद्रा में होने के कारण बढ़ा है।

* लघुकथाएँ खूब लिखी जा रही हैं? क्या ये किसी प्रकार की चेतना को जाग्रत करने का प्रयास कर रही हैं?
साहित्य का उद्‍देश्य ही चेतना जाग्रत करना है। लघुकथा लेखन भी इसी पृष्ठभूमि से जुड़ा है? पाठक वर्ग का यदि किसी विधा के प्रति मोह है तो जाहिर है वह उससे वह प्राप्त करना चाहता है जो अछूता है। चेतना एक छोटी सी चिंगारी का विचार बिंदु है यह पाठक पर निर्भर करता है कि वह उसमें निहित ऊर्जा को कितना और किस रूप में प्राप्त करता है।

* लघुकथा की परिभाषा व्यक्त करना चाहें तो किन शब्दों में करेंगे?
- लघुकथा क्षण-विशेष में उपजे भाव, घटना या विचार के कथ्‍य-बीज की संक्षिप्त फलक पर शब्दों की कूँची और शिल्प से तराशी गई प्रभावी अभिव्यक्ति है।'कथा विधा के अंतर्गत संपूर्ण जीवन की, कहानी जीवन के एक खंड की और लघुकथा खंड के किसी विशेष क्षण की तात्विक अभिव्यक्ति है।'

* हिन्दी की पहली लघुकथा किसे मानते हैं?
- इस प्रश्न पर लघुकथा-जगत की मजलिस में कहानी की तरह ही बहस जारी हैं।

* लघुकथा लिखने की आवश्यकता क्यों महसूस हुई?
-क्षण में छिपे जीवन के विराट प्रभाव की अभिव्यक्ति के लिए।

* लघुकथा के मूल तत्व कौन से हो सकते हैं?
- कथ्य, पात्र, चरित्र-चित्रण, संवाद, उद्देश्य।

* अभिव्यक्ति के मामले में लघुकथा कितनी सफल है?
- कथा-विधा में इसका ग्रॉफ सबसे ऊपर है।

* आज की साहित्यिक दौड़ में लघुकथा कहाँ ठहरती है?
- दौड़ के अंतिम निर्णायक छोर पर।

* अन्य विधाओं में लिखने वाले रचनाकारों में से कुछ रचनाकारों के लिए लघुकथा 'पार्ट ऑफ टाइम जॉब 'है? क्या उनकी यह नीति भविष्‍य के लिए नकारात्मक तो नहीं?
- 'जॉब' की बजाय समर्पण भाव से जो लघुकथाएँ लिखते हैं उनके लिए इस लेखन से सुकून और ऊर्जा मिलती है। 'लघुकथा लिखना मेरे लिए कठिन काम है' वक्तव्य देने वाले राजेंद्र यादव अनेक लघुकथाएँ लिखकर तकरीबन ऐसा ही महसूस करते रहे हैं।

* लघुकथा के तेवरों में कौन से तत्वों को रखा जा सकता है, व्यंग्य, संवेदना या कुछ और।
- यह रचनाकार के कथ्य की सम्प्रेष्य-सोच पर निर्भर है।

* सन् 1971 के पश्चात आपकी लघुकथाओं के प्रमुख विषय क्या थे? इस दौर में किन घटनाओं से वे प्रेरित रहीं?
- राजनैतिक, प्रशासनिक, सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक तथा धार्मिक व समसा‍मयिक समस्त घटनाचक्र जो कि एक संवेदनशील रचनाकार को लिखने के लिए उद्वेलित करता है।

* सन् 1971 के बाद लिखी गई आपकी लघुकथाओं का कोई संग्रह?
1. सिसकता उजास (1974)
2. भीड़ में खोया आदमी (1990)
3. राजा भी लाचार है (1994)
4. प्रेक्षागृह (1998)

प्रस्तुतकर्ता : जितेन्द्र 'जीतू'

Source:
https://hindi.webdunia.com/article/hindi-poet-interview/%E0%A4%B2%E0%A4%98%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BE-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9F-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B5-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%B9%E0%A5%88-109052800071_1.htm

गुरुवार, 6 दिसंबर 2018

सन्दीप तोमर (लेखक एवं समीक्षक) द्वारा फेसबुक पर की गयी एक पोस्ट

संदीप तोमर एक अच्छे लेखक ही नहीं बल्कि बढ़िया समीक्षक भी हैं।  आप द्वारा समय-समय पर  लघुकथाकारों को  टिप्स भी दी जाती है। उनकी एक पोस्ट, जो उन्होंने फेसबुक पर शेयर की थी, लघुकथा विधा में अच्छे लेखन का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। पोस्ट निम्न है:-