यह ब्लॉग खोजें

डॉ. सतीश राज पुष्करणा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
डॉ. सतीश राज पुष्करणा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 31 अगस्त 2021

‘स्वर्ण जयंती लघुकथाएँ’ । अविराम वाणी । वाचन: श्री उमेश महदोषी

 ‘अविरामवाणी’ पर ‘स्वर्ण जयंती लघुकथाएँ’ की तेईसवीं प्रस्तुति

वरिष्ठ लघुकथाकार स्मृतिशेष डॉ.सतीश राज पुष्करणा जी  की लघुकथा ‘बदलते समय के साथ’ और स्मृतिशेष श्री रवि प्रभाकर जी की लघुकथा ‘प्रिज्म’। लघुकथाओं का पाठ श्री उमेश महादोषी जी द्वारा किया गया है।




शुक्रवार, 8 नवंबर 2019

लघुकथा : सद्भाव | लेखक: डॉ. सतीश राज पुष्करणा | समीक्षा : कल्पना भट्ट

रचनाकाल- 1975 - 1980 के आसपास
लघुकथा: सद्भाव  / डॉ. सतीश राज पुष्करणा 

आधुनिक विचारों की मीता की शादी हुई तो उसने न तो सिन्दूर लगाया और न ही साड़ी, सलवार-कमीज आदि पहनना स्वीकार किया| वह कुँवारेपन की तरह जीन्स एवं टी-शर्ट ही पहनती|
ससुराल में सभी उसे अजीब नजरों से देखते| मोहल्ले टोले में उसका सिन्दूर न लगाना और उसका जीन्स एवं टी-शर्ट पहनना, चर्चा का विषय बन गया| मीता सुनती किन्तु उसे कभी किसी की भी परवाह नहीं थी| वह कुँवारेपन की तरह ही समय परोफ्फिस जाती और समय पर घर लौट आती|
एक दिन वह आई और सीधे पलंग पर लेट गयी | सास ने बहुत वात्सल्य भाव से पुछा,"क्या बात है बेटे? क्या तबियत खराब है?"
"हाँ ! कुछ बुखार-सा लग रहा है...सिर आदि में भी बहुत दर्द है|"
सास अभी उसकी तबियत के बारे में समझ ही रही थी कि उसके ससुर डॉक्टर ले आये|"
डॉक्टर ने ठीक से देखा और दावा लिख कर चले गए|
ऑफिस से लौटकर सत्यम अभी घर में प्रवेश कर ही रहा थे कि डॉक्टर को घर से निकलते देख सत्यम परेशान हो गया| उसने साथ चल रहे पिता से पूछा, "क्या हुआ? किसकी तबियत खराब है?"
"मीता की... चिंता की कोई बात नहीं|"
इतना सुनते ही सत्यम लपककर मीता के पास पहुँचा, “क्या हुआ मीते?” चिंता की रेखाएँ सत्यम के चेहरे पर स्पष्ट थीं, जिन्हें मीता ने पढ़ लिया|
सत्यम तुरंत पिटा की ओर बढ़ा, “ पापा! प्रेसक्रिप्शन कहाँ है? दीजिये मैं दवाएँ ले आता हूँ|”
“बेटा! मैं जब जा ही रहा हूँ तो तू क्यों परेशान होता है?”
“नहीं पापा! आप लोग मीता को देखें... ,मैं दवा लेकर आता हूँ|” यह कहकर वह बाईक पर स्वर हुआ और बाज़ार की ओर बढ़ गया|”
मीता सोचने लगी! अरे यह कैसा परिवार है ज़रा-सा बुखार होने पर सबने जमीन-आस्मां एक कर दिया| इतना प्यार मुझसे... ख़ुशी से उसकी आँखें छलछला आयीं|
आँखों में पानी देखकर सास ने कहा, “बेटे! तू चिंता न कर, तू जल्दी ठीक हो जायेगी| ले ! तब तक तू चाय पी ले...सत्यम दवा लेकर आता ही होगा|”
“माँ-जी ! मुझे हुआ ही क्या है? ... बुखार एकाध दिन में उतर जायेगा|”
“हिल नहीं बेटा! चुपचाप आराम से पड़ी रहो|”
मीता कुछ नहीं बोली| सत्यम दवाएँ ले आया... जिन्हें खाकर वह सो गयी| दो-तीन दिन बाद जब वह तैयार होकर ऑफिस जाने लगी तो सबके आश्चर्य की सीमा न रही| आज उसकी माँग में सिन्दूर भी था और बदन साड़ी और ब्लाउज से भी ढका था| सास-ससुर के चरण-स्पर्श करके बहु ऑफिस जाने हेतु अपनी गाड़ी की ओर बढ़ गयी|
-0-

समीक्षा / 
कल्पना भट्ट
जनरेशन गैप की बात हो चाहे आधुनिकता की, पश्च्यात संस्कृति हावी होती दिखाई पड़ती है, आधुनिकता को लेकर लोगों की अपनी अपनी समझ है, जिसपर वह अमल करते है, समय बदलता है, काल बदलता है, तभी प्रगति संभव होती है, प्रगतिशील होना यह एक स्वाभाविक गुण है, आधुनिकता को लेकर हर इन्सान की अपनी सोच और अपना विवेक होता है| आधुनिक होना बुरा नहीं, पर आधुनिकता के लिए जिद करना कहाँ तक उचित होता है, इसी विषय को लेकर डॉ सतीशराज पुष्करणा जी इस विषय को लेकर अपनी कुशल कलम का परिचय एक बार और दिया है| आप बहुत ही सहजता से गूढ़ बात को कह देते हैं, यह सिर्फ एक वरिष्ठ और तजुर्बेकार व्यक्ति ही कर सकता है|
‘सद्भाव’ एक ऐसी ही आधुनिक लड़की पर आधारित लघुकथा है : ‘ आधुनिक विचारों की मीता की शादी हुई तो उसने न तो सिन्दूर लगाया और न ही साड़ी, सलवार- कमीज़ आदि पहनना स्वीकार नहीं किया वह कुंवारेपन की तरह जीन्स एवं टी-शर्ट ही पहनती|
इससे साफ़ झलक रहा है कि मीता से ससुराल वालों ने साड़ी पहनने को कहा गया होगा, पर उसने उनकी बातों को नज़रंदाज़ कर दिया, मीता ऑफिस जाती है, परिवार में किसीको कोई परेशानी नहीं हो रही उसकी नौकरी करने के निर्णय से, परिवार की सोच आधुनिक प्रतीत हो रही है, विकासशील सोच है|
‘एक दिन वह आयी और सीधे पलंग पर लेट गयी| सास ने बहुत वात्सल्य भाव से पूछा, “ क्या बात है? क्या तबियत ख़राब है?”
मीता अपने ससुराल वालों की बातों को नहीं मानती पर उसकी सास का वात्सल्य भाव उनकी उदारता दर्शा रहा है, सास और बहु का रिश्ता ज्यादातर नकारत्मक दृष्टि से देखा जाता है पर इस लघुकथा के माध्यम से रचनाकार ने इस रिश्ते को सकारत्मक दिखा कर एक समाज में आ रहे बदलाव को दिखाया है और आपसी रिश्तों में बढ़ रही दूरियों को करीब लाने का प्रयास किया है, लघुकथा के लिए यह कहा गया है कि यह विधा या तो मनो-उत्थान के लिए लिखी जाती है या समाज-उत्थान के लिए, इस लघुकथा में सास की उदारता दोनों की मकसद को पूरा करने में सफल हो रही है, एक तरफ से मीता को अपने बर्ताव और सोच पर पुनः विचार करने पर प्रेरित कर रहा है, वहीँ समाज में सास-बहु के रिश्ते को नकारत्मक सोच को एक सकारात्मक दिशा प्रदान कर रही है|
“हाँ, बुखार सा लग रहा है... सिर आदि में भी बहुत दर्द है|” मीता को बुखार आ रहा है सुनकर उसकी सास उसको आराम करने की सलाह देती है और अपने पति से डॉक्टर को बुलाने को कहती हैं, मीता के ससुरजी पहले ही डॉक्टर को लेने चले जाते है, डॉक्टर मीता की जांच करते है और दवाई लिख कर देते है, ससुरजी बाज़ार जाकर दवाई लाने के घर से बाहर जाने के लिए खड़े होते है, यहाँ एक और परंपरा टूटती नज़र आती है, समाज में एक प्रचलन है, बहु और बेटी में फर्क किया जाता रहा है, इससे विपरीत यहाँ मीता ( नायिका) के सास-ससुर अपनी बहु की सेवा में लगे हुए हैं| इस बीच सत्यम, मीता का पति ऑफिस से घर आ जाता है और अपने पिता से कहता है, “ आप दोनों मीता के पास रहे और प्रिस्क्रिप्शन मुझे दे दीजिये , दवाई मैं लेकर आता हूँ| “ और वह अपनी बाईक पर बैठकर बाज़ार चला जाता है|
पति सत्यम को अपने माता-पिता के प्रति आदर और अपनी पत्नी के प्रति प्रेम, उसके कर्त्तव्य को निभाने में वह कहीं भी चूकता नहीं है| दवाई खाकर मीता सो जाती है, इस बीच पलंग पर लेटे हुए उसको अपनी गलती का एहसास होता है, जब वह अपने सास- ससुर को अपने लिए खड़े पाँव देखती है, और उनके बड़प्पन पर वह नतमस्तक हो जाती है, सिर्फ बुखार ही तो है, पर इस दौरान भी यह मेरी कितनी सेवा कर रहें हैं| दो-तीन दिन के बाद जब वह ठीक हो जाती है, वह साडी में आती है, और माथे पर सिन्दूर लगा लेती है, यह देख उसके घरवालों को ख़ुशी होती है और कहते हैं न सुबह का भूला ‘गर शाम को घर लौट आये तो उसको भूला नहीं कहते| बिकुल ऐसा ही तो मीता के साथ हुआ, आधुनिकता के लिए जो उसकी जो गलत सोच थी उसपर से काला पर्दा हट जाता है और वह अपने कर्तव्यों को और परम्पराओं के बीच बैलेंस करना सीख जाती है|
‘सद्भावना’ शीर्षक इस लघुकथा के लिए सार्थक सिद्ध हो रहा है, इस लघुकथा में संवाद, रचना को सहज और सजीव बना रहे हैं, कथानक और भाषा शैली दोनों ही बहुत सुंदर और सक्षम सिद्ध हो रहे हैं, इस लघुकथा में कुछ दिनों में घटित घटनाक्रम है जो कालखंड के होने का संशय पैदा कर रही है, पर कथा की मांग के चलते इसको गर नज़रंदाज़ कर दिया जाए तो यह लघुकथा एक सार्थक और सकारत्मक सन्देश देने में सफल रही है | समाज में बुराई और अच्छाई दोनों ही देखने को मिलती है, बस देखने का दृष्टिकोण बदलने से घर परिवार में सुख-शांति लायी जा सकती है| इस सुंदर और सार्थक रचना के लिए डॉ सतीशराज पुष्करणा जी को हार्दिक बधाई|

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019

साक्षात्कार: सतीश राज पुष्करणा: लघुकथा के लब्धप्रतिष्ठित रचनाकार



स्वत्व समाचार डॉट कॉम के लिए अभिलाष दत्त जी द्वारा August 20, 2018 को लिया गया डॉ. सतीश राज पुष्करणा जी का महत्वपूर्ण साक्षात्कार


लाहौर से पटना आकर बसे सतीश राज पुष्करणा पिछले 45 साल से लघुकथा लिख रहे हैं। हिंदी साहित्य सम्मेलन की ओर से लघुकथा सम्मान से सम्मानित पुष्करणा लघुकथा विधा की पहली समीक्षात्मक किताब “लघुकथा: बहस के चौराहे पर” लिख चुके हैं। स्वत्व समाचार डॉट कॉम के लिए अभिलाष दत्त ने उनसे बातचीत की।




1. आपका जन्म लाहौर (पाकिस्तान) में हुआ, वर्तमान में आप पटना में रह रहे हैं। इस सफ़र के बारे में बताइए।

उत्तर:- मेरे दादा परदादा लाहौर में मॉडर्न टाउन में 51 नंबर की कोठी में रहते थे। मेरे दादा जमींदार थे। उस समय भारत पाकिस्तान एक ही था। पिताजी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में रेलवे इंजीनियर थे। उसके बाद सन 47 में देश आजाद होते ही देश का बंटवारा हो गया। हमारा पूरा परिवार बग्घी पर बैठ कर मामा के साथ अमृतसर चले आए। उसके बाद हम लोग पिताजी के पास सहारनपुर चले गए। वहीं से मैंने मैट्रिक किया। इलाहाबाद के के.पी.इंटर कॉलेज से इंटर पास किया। आगे बी.एस.सी के पढ़ाई के लिए देहरादून के डी.बी.एस कॉलेज में दाखिला लिया। 1964 के जनवरी मेंशादी हो गयी। उसी साल नवंबर में पिता बनने का सुख प्राप्त हुआ।

श्रीमती जी के कहने पर नौकरी की तलाश शुरू की। मामा ने कहा उनके बिज़नेस में हाथ बताऊं। मेरा मन रिश्तेदारी में काम करने का बिल्कुल भी नहीं था। नौकरी की तलाश में पटना चला आया। पटना में यूनाइटेड स्पोर्ट्स वर्क में काम मिला 125 रुपये वेतन पर। छः महीने के बाद वह काम छूट गया। उसके बाद मखनिया में पटना जूनियर स्कूल में गया काम मांगने के लिए , वहाँ से उन्होंने मुझे सेंट्रल इंग्लिश स्कूल भेज दिया। इस स्कूल में केवल महिला शिक्षक को ही नौकरी पर रखा जाता था। मेरी श्रीमती जी को वहाँ नौकरी मिल गयी। स्कूल के बच्चे हमारे यहाँ ट्यूशन पढ़ने आने लगे। मैं खुद गणित और अंग्रेजी पढ़ाया करता था। उसके बाद अपना स्कूल खोला विवेकानंद बाल बालिका विद्यालय। 76 में अपना खुद का प्रेस , ‘बिहार सेवक प्रेस’ शुरू किया। 2001 में आधुनिकरण के अभाव के कारण प्रेस बन्द हो गया। प्रेस बन्द होने के बाद भी काम चलता रहा।


2. हिंदी साहित्य में रुचि कैसे जगी?

उत्तर:- विज्ञान का विद्यार्थी था और भाषा मेरी पंजाबी थी। इलाहाबाद के एक मित्र थे राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी बंधु। उन्होंने मुझे हिंदी भाषा का ज्ञान दिया। मेरा लगाव हिंदी के तरफ होने लगा। उसके बाद मैंने लिखना शुरू कर दिया। मेरी पहली कहानी कॉलेज की पत्रिका में छपी। उसके बाद आगरा से प्रकाशित होने वाली पत्रिका निहारिका में मेरी तीन कहानियों को लगतार प्रकाशित किया।
वर्तमान में हर पत्रिका में मेरी रचना छप चुकी है। दिल्ली से प्रकाशित होने वाली पत्रिका आज-कल में 1990 में सम्पादक भी बना।

3. हिंदी साहित्य के लघुकथा विधा में आपको भीष्म पितामह कहा जाता है। इस विधा में कैसे आना हुआ?

उत्तर:- सन 1977 में हरिमोहन झा (मैथिली साहित्यकार) मेरे अभिभावक के तौर पर मुझे हमेशा स्नेह किया करते थे। एक बार उन्होंने मुझसे पूछा , तुम हो क्या?

मैं उनकी बातों को समझ नहीं सका। उसके बाद उन्होंने कहा तुम्हारे काम से तुमको संतुष्टि मिल सकती है , लेकिन इससे साहित्य का भला नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा अगर 100 कहानीकार का नाम लिखूं तो उसमें मेरा नाम नहीं आएगा।

उसके बाद वह चले गए। दूसरी बार आए तो उन्होंने दुबारा पूछा, कुछ सोचा? मैंने कोई जवाब नहीं दिया। उन्होंने सुझाव दिया कि छोटी छोटी कथा लघुकथा लिखा करो।

एक हफ़्ते के बाद मैंने पाँच लघुकथा उनको लिखा कर दिखाया। वह पांचों लघुकथा देख कर वह बहुत खुश हुए। बस लघुकथा लिखने का सिलसिला वहाँ से चल पड़ा।

4. हिंदी साहित्य में लघुकथा क्या है?

उत्तर:- आज के व्यस्त जीवन में लोग छोटी-छोटी कथाएं पढ़ना अधिक पसंद करते हैं। कम शब्दों में सारी बातें लघुकथा में कही जाती है। अधिक से अधिक दो पेज तक की लघुकथा होनी चाहिए।

आपातकाल के समय पेपर की भारी किल्लत हुई। साहित्य वाला पेज घट कर एक – दो कॉलम तक सीमित हो गयी। इस कमी के कारण कम शब्दों की कथा चाहिए थी। इसी कारण लघुकथा प्रसिद्ध हो गयी। आज के समय लघुकथा पर अनेक प्रकार के शोध हो रहे हैं। बिहार में पिछ्ले 29 सालों से लघुकथा सम्मेलन आयोजित हो रही है।

आजकल फेसबुक पर अनगिनत नए लेख़क सब लघुकथा लिख रहे हैं। लेकिन फेसबुक पर लिखी जा रही लघुकथा उच्चस्तरीय नहीं होती है। उसका मुख्य कारण होता है वहाँ कोई संपादक नहीं होता है।
प्रायः हर दशक में लघुकथा में बदलाव देखने को मिली है। सामाज का रूप प्रस्तुत करने के कारण इसमें बदलाव आते रहते हैं।

5. नए लेखकों को क्या संदेश देना चाहेंगे?

उत्तर:- आपकी रचनाओं में दम है तो लोग आपको एक दिन जरूर पहचानने लगेंगे। सवाल यह है आप कैसा लिख रहे हैं। पाठक जिसको अच्छा कहें वही अच्छा माना जाएगा। साहित्य के लिए लिखिए। आत्ममुग्धा से बचिए।
सूरज कभी किसी को नहीं कहने जाता है कि मुझे प्रणाम करो। हम सुबह उठते है और खुद ही उसे प्रणाम करते हैं।
यह बात हमेशा याद रखिए लेखक से बड़ा पाठक होता है।


Source:
https://swatvasamachar.com/sanskriti/satish-raj-pushkarna-laghukatha/

मंगलवार, 29 जनवरी 2019

लघुकथा समाचार: अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच और बिहार आर्ट थियेटर की ओर से लघुकथा कलश के तृतीय महाविशेषांक का लोकार्पण


Patna News - deepa is working on small stories in bihar

Dainik Bhaskar| Jan 28, 2019 | Patna News

अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच और बिहार आर्ट थियेटर की ओर से लघुकथा कलश के तृतीय महाविशेषांक का लोकार्पण रविवार को कालिदास रंगालय में किया गया। इस अवसर पर विचार गोष्ठी भी हुई। वरिष्ठ लघुकथाकार डॉ. सतीश राज पुष्करणा, लघु कथा मंच के महासचिव डॉ. ध्रुव कुमार, बिहार आर्ट थियेटर के सचिव कुमार अनुपम, समीक्षक डॉ. अनिता राकेश व विभा रानी श्रीवास्तव ने लोकार्पण किया।

कार्यक्रम में डॉ. सतीश राज ने कहा कि लघुकथा एक लंबा सफर तय कर बहस के चौराहे से उठकर चर्चा के चौपाल तक आ पहुंची है, लेकिन इस विद्या के लिए अभी बहुत काम बाकी है। ऐसे में लघुकथा कलश का प्रकाशन एक सार्थक प्रयास है। डॉ. ध्रुव कुमार ने लघुकथा कलश के संपादक योगराज प्रभाकर और संपादकीय टीम को बधाई देते हुए कहा कि बिहार में लघुकथा को लेकर गहराई से काम हो रहा है। कुमार अनुपम ने लघुकथा को एक महत्वपूर्ण साहित्यिक विद्या बताया।

कार्यक्रम में डॉ. अनीता राकेश, डॉ. मेहता नागेंद्र, विभा रानी, अनिल रश्मि, प्रभात, सिद्धेश्वर, विदेश्वरी प्रसाद, आलोक चोपड़ा, घनश्याम, पुष्पा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

News Source:
https://www.bhaskar.com/bihar/patna/news/deepa-is-working-on-small-stories-in-bihar-043131-3760435.html