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मंगलवार, 31 अगस्त 2021

‘स्वर्ण जयंती लघुकथाएँ’ । अविराम वाणी । वाचन: श्री उमेश महदोषी

 ‘अविरामवाणी’ पर ‘स्वर्ण जयंती लघुकथाएँ’ की तेईसवीं प्रस्तुति

वरिष्ठ लघुकथाकार स्मृतिशेष डॉ.सतीश राज पुष्करणा जी  की लघुकथा ‘बदलते समय के साथ’ और स्मृतिशेष श्री रवि प्रभाकर जी की लघुकथा ‘प्रिज्म’। लघुकथाओं का पाठ श्री उमेश महादोषी जी द्वारा किया गया है।




बुधवार, 21 अगस्त 2019

अविराम सहित्यिकी के जुलाई-सितंबर 2019 के अंक में मेरी लघुकथा

शह की संतान / डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

तेज़ चाल से चलते हुए काउंसलर और डॉक्टर दोनों ही लगभग एक साथ बाल सुधारगृह के कमरे में पहुंचे। वहां एक कोने में अकेला खड़ा वह लड़का दीवार थामे कांप रहा था। डॉक्टर ने उस लड़के के पास जाकर उसकी नब्ज़ जाँची, फिर ठीक है की मुद्रा में सिर हिलाकर काउंसलर से कहा, "शायद बहुत ज़्यादा डर गया है।"

काउंसलर के चेहरे पर चौंकने के भाव आये, अब वह उस लड़के के पास गया और उसके कंधे पर हाथ रख कर पूछा, "क्या हुआ तुम्हें?"

फटी हुई आँखों से उन दोनों को देखता हुआ वह लड़का कंधे पर हाथ का स्पर्श पाते ही सिहर उठा। यह देखकर काउंसलर ने उसके कंधे को धीमे से झटका और फिर पूछा, "डरो मत, बताओ क्या हुआ?"

वह लड़का अपने कांपते हुए होठों से मुश्किल से बोला, "सर... पुलिस वालों के साथ...  लड़के भी मुझे डराते हैं... कहते हैं बहुत मारेंगे... एक ने मेरी नेकर उतार दी... और दूसरे ने खाने की थाली..."

सुनते ही बाहर खड़ा सिपाही तेज़ स्वर में बोला, "सर, मुझे लगता है कि ये ही ड्रामा कर रहा है। सिर्फ एक दिन डांटने पर बिना डरे जो अपने प्रिंसिपल को गोली मार सकता है वो इन बच्चों से क्या डरेगा?"

सिपाही की बात पूरी होने पर काउंसलर ने उस लड़के पर प्रश्नवाचक निगाह डाली, वह लड़का तब भी कांप रहा था, काउंसलर की आँखें देख वह लड़खड़ाते स्वर में बोला,

"सर, डैडी ने मुझे कहा था कि... प्रिंसिपल और टीचर्स मुझे हाथ भी लगायेंगे तो वे उन सबको जेल भेज देंगे... उनसे डरना मत.... लेकिन उन्होंने... इन लड़कों के बारे में तो कभी कुछ नहीं..."

कहते हुए उस लड़के को चक्कर आ गए और वह जमीन पर गिर पड़ा।




गुरुवार, 25 जुलाई 2019

अविराम साहित्यिकी के पांच अंकों के लिए रचनाएं.....

श्री उमेश मदहोशी Umesh Mahadoshi की फेसबुक वॉल से 

अविराम साहित्यिकी के आगामी पांच (अक्टूबर _ दिसंबर 2019 व 2020 के सभी चार) अंकों के लिए सामग्री का चयन अपरिहार्य कारणों से नवंबर 2019 से पूर्व किया जाना है। यद्यपि अंकों का प्रकाशन निर्धारित समय पर ही होगा। अत: सभी सहयोगी मित्रो एवम् पत्रिका के सदस्यों से अनुरोध है कि अपनी रचनाएं (कविता, क्षणिका, हाइकु, लघुकथा, कहानी, आलेख आदि) ईमेल (aviramsahityaki@gmail.com) के माध्यम से (मेल बॉक्स में पेस्ट करके या वर्ड की फाइल में) यथाशीघ्र भेजकर सहयोग करें। हार्ड कॉपी या स्कैन प्रति के रूप में रचनाओं का उपयोग न कर पाने के लिए क्षमा प्रार्थी है। 15अक्टूबर 2019 के बाद अन्य योजनाओं (2021 में लघुकथा स्वर्ण जयंती वर्ष मनाने के परिप्रेक्ष्य में) के दृष्टिगत सामान्य सामग्री स्वीकार करना संभव नहीं होगा।

अविराम साहित्यिकी पूर्णत: अव्यवसायिक लघु पत्रिका है। किसी रचनाकार को किसी भी रूप में पारिश्रमिक देना संभव नहीं है। इसके लिए क्षमा करें।

कृपया सहयोग करें। लघुकथा के विभिन्न महत्वपूर्ण पक्षों को रेखांकित करती लघुकथाएं कुछ योजनाओं में संदर्भित भी की जा सकती हैं।

रविवार, 2 दिसंबर 2018

अविराम साहित्यिकी का तीसरा लघुकथा विशेषांक : स्केन प्रति

श्री उमेश मदहोशी  ने डॉ. बलराम अग्रवाल जी के अतिथि संपादन में आये अविराम साहित्यिकी के तीसरे लघुकथा विशेषांक के सम्पूर्ण अंक को स्कैन कर प्रति फेसबुक पर शेयर की है।

इसे निम्न links पर पढ़ा जा सकता है:

पहली पोस्ट (आवरण 01 से पृष्ठ संख्या 45 तक)
https://www.facebook.com/umesh.mahadoshi/posts/2025767640796039

दूसरी पोस्ट (पृष्ठ संख्या 46 से पृष्ठ संख्या 79 तक)
https://www.facebook.com/umesh.mahadoshi/posts/2025780210794782


तीसरी पोस्ट (पृष्ठ संख्या 80 से 112 एवं आवरण 03 तक)
https://www.facebook.com/umesh.mahadoshi/posts/2025791147460355

तीसरी पोस्ट का टेक्स्ट निम्नानुसार है:-

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Umesh Mahadoshi

आद. मित्रो,
अग्रज डॉ. बलराम अग्रवाल के अतिथि संपादन में आये अविराम साहित्यिकी के तीसरे लघुकथा विशेषांक में आपमें से अनेक मित्रों ने सहभागिता की, इसके लिए आप सबका धन्यवाद। सुधी पाठक के रूप में भी आप सबने उत्साह दिखाया, हमारा मनोबल बढ़ाया, यह हमारा सौभाग्य है। लेकिन आपमें से अनेक मित्रों की शिकायत है कि उक्त अंक आपको प्राप्त नहीं हुआ है, मैं सभी शिकायतकर्ता मित्रों से निवेदन करता चला गया कि 02-03 दिसम्बर तक प्रतीक्षा कर लीजिए, न मिलने पर पुनः प्रति भेज दी जायेगी। इस निवेदन और वादा करने की प्रक्रिया में सूची लगातार लम्बी होती जा रही है। मेरे पास पुनःप्रेषण के लिए बामुश्किल 20-22 प्रतियाँ बची हैं। धर्मसंकट यह है कि कितने मित्रों से किए वादे पूरे किए जायें! दूसरी बात- दुबारा भेजने पर भी प्रति नहीं मिली तो...?
समाधान यह निकाला है कि पूरे अंक की स्केन प्रति फेसबुक पर डाल दी जाये। जिन मित्रों की लघुकथाएँ इस अंक में शामिल हैं, वे अपनी भी पढ़ सकते हैं और दूसरों की भी। सूची में संबन्धित रचनाकार की पृष्ठ संख्या देखकर उस पृष्ठ को डाउनलोड करके पड़ा जा सकता है। पोस्ट में अंक के पृष्ठों को अपलोड करने की सीमाओं को ध्यान मे रखते हुए आवरण-01 व 04 तथा पृष्ठ संख्या 01 से पृष्ठ संख्या 45 तक को पहली पोस्ट में, पृष्ठ संख्या 46 से 79 तक दूसरी पोस्ट में तथा पृष्ठ संख्या 80 से आवरण-03 तक को तीसरी पोस्ट में अपलोड किया जा रहा है। 
इस व्यवस्था के साथ बची हुई मुद्रित प्रतियाँ उन रचनाकार मित्रों के लिए सुरक्षित रखी जा रही हैं, जो फेसबुक/इण्टरनेट से नहीं जुड़े हैं। हमारी विवशता को समझते हुए आप सब इस व्यवस्था को स्वीकार करें और जिन मित्रों को मुद्रित प्रति नहीं मिल पाये, हमें क्षमा करें।
-उमेश महादोषी//