हिंदी के शीर्ष लघुकथाकार सुकेश साहनी जी, संपादन कला एवं लेखन कला में वैश्विक स्तर पर पहचान बना चुके हैं, उनके संपादन में 2020 में प्रकाशित लघुकथा का साझा संग्रह "मास्टर स्ट्रोक" की लघुकथाओं से मैं गुजर रहा हूं, जिसकी लघुकथाएं रिश्ते नातों व सामाजिक बंधनों विभेदों की गहनता से पड़ताल करती हुई दिखाई पड़ती हैं। बलराम अग्रवाल की लघुकथा 'बिना नाल का घोड़ा' ऐसी लघुकथा है, जो यह दर्शाती है कि आज के भौतिकतावादी युग में इंसान बिल्कुल घोड़ा सरीखा बन चुका है, जो सब कुछ सहता हैं, बहुत कुछ सुनता है, सिर्फ इसलिए कि घर-परिवार और ऑफिस के बंधनों को निभाना उसकी नैसर्गिक विवशता है। प्रियंका गुप्ता की लघुकथा 'भेड़िये' घर में छिपे षड्यंत्रकारियों की ओर संकेत करती है। यह लघुकथा मानवेतर कथानक के माध्यम से अपना संदेश देने कुछ हद सफल रही है, मुझे लगता है कि कई बार बहुत गूढ़ प्रतीकों के माध्यम से संदेश प्रेषित करने वाली लघुकथाएं, आम पाठकों के सिर के ऊपर से गुजर जाती हैं, वह किसी फैंटैसी कविता सी प्रतीक होती हैं।
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सोमवार, 12 मई 2025
पुस्तक समीक्षा | सुकेश का मास्टर स्ट्रोक | सुरेश सौरभ
बुधवार, 27 नवंबर 2024
वैश्विक सरोकार की लघुकथाएं | भाग 15 | विषय: जल
सम्माननीय प्रबुद्धजन,
जल से सम्बन्धित मुख्य वैश्विक मुद्दे
जल प्रदूषण: औद्योगिक अपशिष्ट, कृषि अपवाह और अनुपचारित सीवेज जल प्रदूषण में प्रमुख योगदानकर्ता हैं, जो जल निकायों को विषाक्त और उपभोग या कृषि के लिए अनुपयुक्त बनाते हैं।
जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा के पैटर्न में बदलाव, बढ़ते तापमान और पिघलते ग्लेशियरों ने जल चक्रों को बाधित किया है, जिससे सूखा और बाढ़ आ रही है।
जल की स्वच्छता और गुणवत्ता : हर 10 में से 1 इंसान साफ पानी से दूर है। मतलब, करोड़ों लोग रोज़ पानी के लिए लाइन लगाते हैं, जैसे टिकट के लिए लगाते थे। वैश्विक प्रयासों के बावजूद, लगभग 771 मिलियन लोगों के पास सुरक्षित पेयजल तक पहुँच नहीं है। यह मुद्दा हाशिए पर पड़े और कम आय वाले समुदायों को असमान रूप से प्रभावित करता है। पानी में कई तरह की गंध और स्वाद पानी की गुणवत्ता को बताते हैं। जैसे कि, सड़े हुए अंडे या सल्फ़र की गंध या स्वाद हाइड्रोजन सल्फ़ाइड की मौजूदगी का संकेत देता है।
कई विद्वान, शोधकर्ता और वैज्ञानिक यह सुनिश्चित करने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं कि भारत के जल संसाधनों का प्रबंधन आने वाली पीढ़ियों के लिए कुशलतापूर्वक और स्थायी रूप से किया जाए। इनमें से कुछ पर बात करते हैं,
भारत के जलपुरुष - डॉ. राजेंद्र सिंह:
भारत के जलपुरुष के रूप में जाने जाने वाले मेग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित डॉ. राजेंद्र सिंह ने पारंपरिक वर्षा जल संचयन तकनीकों का उपयोग करके राजस्थान में कई नदियों को पुनर्जीवित किया है। उनके जमीनी प्रयासों ने सूखाग्रस्त क्षेत्रों में जल सुरक्षा बहाल की है और वैश्विक स्तर पर इसी तरह की पहल को प्रेरित किया है।
ग्रेटा थनबर्ग:
ग्रेटा थनबर्ग जैसे समर्पित कार्यकर्ता जल संसाधनों की सुरक्षा के लिए जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने के महत्व पर जोर देते हैं। उनके प्रयासों ने स्थायी जल नीतियों की आवश्यकता को बढ़ाया है।
स्थानीय समुदाय और गैर सरकारी संगठन:
मैट डेमन द्वारा सह-स्थापित water.org जैसे संगठन जल और स्वच्छता परियोजनाओं के लिए माइक्रोफाइनेंसिंग पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे सभी को सुरक्षित जल तक पहुँच पाए।
वैज्ञानिक और नवप्रवर्तक:
जल शोधन तकनीकों में प्रगति, जैसे कि विलवणीकरण और सौर ऊर्जा से चलने वाले filtration, शुष्क क्षेत्रों में जल की कमी को दूर करने में गेम-चेंजर हैं। कई वैज्ञानिक और नवप्रवर्तक इस कार्य में रत हैं।
जल मुद्दों के समाधान
1. सरकारों को सख्ती से जल नीतियों को लागू करना चाहिए जो संरक्षण, समान वितरण और प्रदूषण नियंत्रण को प्राथमिकता दें।
2. वर्षा जल संचयन जैसी स्वदेशी जल प्रबंधन प्रथाओं को कृत्रिम recharge जैसी आधुनिक तकनीकों के साथ मिलाने से भूजल स्तर में वृद्धि हो सकती है।
3. बड़े स्तर पर लोगों को जल संरक्षण, कुशल उपयोग और प्रदूषण की रोकथाम के बारे में शिक्षित करना दीर्घकालिक परिवर्तन का आधार बन सकता है।
4. अंतर्देशीय और अंतराज्यीय जल समझौतों को सशक्त करना और जल निकायों में shared governance को बढ़ावा देना झगड़ों को कम कर सकता है।
5. बांध, नहरें और treatment plants जैसे जल infrastructure का विकास, उपलब्धता और पहुंच सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।
एक अन्य वास्तविक उदाहरण:
छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के दूरस्थ वनांचल क्षेत्र में स्थित हरदा गांव में पीने के पानी की समस्या को जल जीवन मिशन के तहत किए गए सफल प्रयासों से उस गांव को “हर घर जल“ गांव के रूप में घोषित कर दिया गया है।
हम क्या करें?
- ज़रूरत के मुताबिक ही पानी का इस्तेमाल करें।
- पानी का रिसाव होने पर उसकी जांच करें और उसे ठीक करें।
- नहाने का वक्त थोड़ा कम करें। दाढ़ी बनाते समय या वॉशबेसिन का प्रयोग करते समय, नल पर भी दिमाग लगाएं।
- कम पानी गरम होने वाले धीमे शॉवर हेड का इस्तेमाल करें।
- हर बार टॉयलेट फ्लश करने में 6 लीटर पानी जाता है। इसका समझदारी से प्रयोग करें। कम फ़्लश या दोहरे फ़्लश वाले शौचालय का इस्तेमाल करें।
- शौचालय में पानी देने के लिए खारे पानी या बरसाती पानी का इस्तेमाल करें।
- पानी की बोतल में बचा पानी फेंकने की बजाय पौधों को सींचने में इस्तेमाल करें।
- सब्ज़ियां और फल धोने के पानी से फूलों और सजावटी पौधों को सींचें।
- पानी के हौज़ को खुला न छोड़ें।
- तालाबों, नदियों, या समुद्र में कूड़ा न फेंकें।
- पुरानी तरकीबें अपनाएं, जैसे राजस्थान के जोहड़ और कुवों की परंपरा।
.... आदि-आदि
मित्रों, पानी की एक-एक बूंद को संजोना सीखें। कुल मिलाकर पानी का कुशलतापूर्वक उपयोग करें।
जल मुद्दों पर साहित्य सृजन
अनेक पुस्तकें और अध्ययन जल संकट की जटिलताओं पर प्रकाश डालते हैं और समाधान प्रस्तुत करते हैं।
चार्ल्स फिशमैन द्वारा सृजित "The Big Thirst" पुस्तक जल की प्रचुरता और कमी के मध्य विरोधाभास की पड़ताल करती है और इस बात पर प्रकाश डालती है कि हम सभी जल के साथ अपने संबंधों पर कैसे पुनर्विचार कर सकता हैं?
"When the Rivers Run Dry" फ्रेड पीयर्स द्वारा लिखी गई है जो, वैश्विक जल संकट पर एक सम्मोहक कथा, नदियों और जल प्रणालियों पर मानवीय क्रियाओं के प्रभाव को प्रदर्शित करती है।
मौड बार्लो ने "Blue Covenant" शीर्षक से एक पुस्तक लिखी है, जो जल की राजनीति पर एक आवश्यक पुस्तक है। इसमें जल को एक मौलिक मानव अधिकार के रूप में मान्यता देने की वकालत की गई है।
वंदना शिवा द्वारा लिखी गई "Water Wars" पुस्तक जल संसाधनों पर संघर्षों की जांच करती है और टिकाऊ और लोकतांत्रिक प्रबंधन की आवश्यकता पर जोर देती है।
भारत के जलपुरुष जल पर आधारित कई पुस्तकों के रचियता हैं। इनमें विरासत स्वराज यात्रा, बाढ़ व सुखाड़ जैसी पुस्तकें बहुत कुछ स्पष्ट करती हैं।
जल सम्बंधित लघुकथाएं:
खारा पानी / सुकेश साहनी
दाहिने हाथ में शकुनक-दंड [डिवाइनिंग-राड] थामे, धीरे-धीरे कदम बढ़ाते बूढ़े सगुनिया का मन काम में नहीं लग रहा था।इस जमीन पर कदम रखते ही उसकी अनुभवी आँखों ने उन पौधों को खोज लिया था, जो ज़मीन के नीचे मीठे पानी के स्रोत के संकेतक माने जाते हैं। अब बाकी का काम उसे दिखावे के लिए ही करना था। उसकी नज़र लकड़ी के सिरे पर लटकते धागे के गोले से अधिक वहाँ खड़े उन बच्चों की ओर चली जाती थी, जिनके अस्थिपंजर-से शरीरों पर मोटी-मोटी गतिशील आँखें ही उनके जीवित होने का प्रमाण थीं। कोई बड़ा-बूढ़ा ग्रामवासी वहां दिखाई नहीं दे रहा था। जहाँ तक नज़र जाती थी,मुख्यमंत्री के ब्लैक कमांडो फैले हुए थे। प्रशासन ने मुख्यमंत्री की सुरक्षा को दृष्टिगत रखते हुए वहां के वृक्षों को कटवा दिया था।
बड़ी-सी छतरी के नीचे बैठे मुख्यमंत्री उत्सुकता से सगुनिया की कार्यवाही को देख रहे थे। गृह सचिव के अलावा अन्य छोटे-बड़े अफसरों की भीड़ वहाँ मौजूद थी।
काम पूरा होते ही सगुनिया मुख्यमंत्री के नज़दीक आकर खड़ा हो गया।
“तुम्हारी जादुई लकड़ी क्या कहती है।” बूढ़े ने बताया।
सचिव ने खुश होकर मुख्यमंत्री को बधाई दी। मुख्यमंत्री अभी भी संतुष्ट नज़र नहीं आ रहे थे। पिछली दफा फार्म हाउस के लिए ज़मीन का चुनाव करते हुए उन्होंने पूरी सावधानी बरती थी, पानी का रासायनिक विश्लेषण भी कराया था। परीक्षण रिपोर्ट के अनुसार पानी बहुत बढ़िया था, पर फार्म हाउस के बनते-बनते ज़मीन के नीचे का पानी खारा हो गया था। हारकर उनको न्ए सिरे से फार्म हाउस के लिए मीठे पानी वाली ज़मीन की खोज करवानी पड़ रही थी।
“आगे चलकर पानी खारा तो नहीं हो जाएगा?” इस बार मुख्यमंत्री ने बूढ़े से पूछा।
“इसके लिए ज़रूरी है कि आँसुओं की बरसात को रोका जाए।” बूढ़े ने क्षितिज की ओर ताकते हुए धीरे से कहा।
“आँसुओं की बरसात?” सचिव चौंके।
“ऐसा तो कभी नहीं सुना।” मुख्यमंत्री के मुँह से निकला।
“इस बरसात के बारे में जानने के लिए ज़रुरी है कि मुख्यमंत्री जी भी उसी कुँए से पानी पिएँ जिससे कि प्रदेश की जनता पीती है।” कहकर बूढ़े ने शकुनक-दंड अपने कंधे पर रखा और समीपस्थ गाँव की ओर चल दिया।
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- सुकेश साहनी
दशरथ जल / अनिल मकारिया
पीने लायक पानी के स्त्रोत जब गिने-चुने ही बचे तब उन पर वर्चस्व हेतु दुनिया के कई देश व संगठन एक-दूसरे पर हमला करने लगे। इन हमलों की एक बड़ी वजह यह भी थी कि ऐसे युद्धों से प्रायः पानी वाले प्रदेशों में स्थित एक बड़ी आबादी का सफाया हो जाता जिससे सत्ताधीशों द्वारा पानी का विभाजन बची हुई आबादी के बीच करना आसान होता। जिस गाँव के अधिकतर युवा इस तरह के युद्धों में खेत रहे थे, उसी गाँव के जलाशय से पहरा उठवाकर सत्ताधीशों ने पीने का पानी गाँव वालों में बाँटने का आदेश दे दिया ।
लेकिन जब कोई भी अपने हिस्से का पानी लेने नहीं पहुँचा तब एक पत्रकार ने गाँव की विधवा महिला से इस बाबत पूछताछ की,
" गाँववालों के लिए जलाशय के पानी को बाँटने का आदेश आया है ! क्या आपको पीने का 'मीठा' पानी मिला ?" पत्रकार का जोर 'मीठा' शब्द पर अधिक था।
"नहीं !... हमें अब अनायास ही आँखों से मुँह तक पहुँचते खारे पानी को पीने की आदत पड़ चुकी है।" नमकीन पानी का ज्वार-भाटा अब उस महिला के स्वर में साफ दिख रहा था।
"नदी, तालाब के पानी का स्वाद, खारे पानी से तो बेहतर ही होता है। " पत्रकार कुरेदकर खुशी निकालना चाहती थी ।
"मीठे पानी का स्वाद अब अपनों के खून-सा लगने लगा है।" और महिला का गम था कि कम होने का नाम नहीं ले रहा था ।
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- अनिल मकारिया
दो बूँदें जल की / अंशु श्री सक्सेना
आज मानसून ने पहली दस्तक दी है । रमा सूखे कपड़े लेकर कमरे में आयी तो देखा उसकी सात वर्षीया पोती इशी, खिड़की से अपने दोनों हाथ बाहर निकाल कर अपनी नन्ही नन्ही हथेलियों के बीच बारिश की बूँदे सहेजने का प्रयास कर रही है । मैं उसे देख कर हँस पड़ी और बोली “ ये क्या कर रही है लाडो ?”
“ पानी की बूँदे सहेज रही हूँ दादी....मेरी टीचर जी ने बताया है कि हमारी धरती से पीने वाला पानी बहुत तेज़ी से ख़त्म हो रहा है....हमारी नदियाँ, तालाब, कुएँ, सब सूख रहे हैं....तो जब हमें भगवान जी पानी देते हैं तो उसको हमें सहेज कर रख लेना चाहिये....हमारी टीचर जी कहती हैं कि जल की दो बूँदे आपके सोने के झुमके से भी ज़्यादा क़ीमती हैं...सच में दादी ?” इशी ने अपनी बालसुलभ चंचलता में मेरे झुमके हिलाते हुए पूछा।
“ हाँ लाडो “ मैंने हँस कर उत्तर दिया और अपने आँगन और बरामदे मेँ रेन वॉटर हारवेस्टिंग के लिये गड्ढे बनवाने के निर्णय ले लिया ।
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- अंशु श्री सक्सेना
पानी / नीना सिन्हा
“रधवा के माई! ओलावृष्टि और बेमौसम की बरसात से सारी फसल खराब हो गई है। क्यों न शहर चलें? दिहाड़ी मज़दूरी मिल जाएगी। साथी ने रहने की जगह खोज रखी है। बच्चों को भूखा कैसे रखें?”
“ठीके है रधवा के बापू! और कुच्छो नहीं सूझ रहा है?”
दोपहर होते-होते सीमित गृहस्थी समेटकर पास के शहर जा पहुँचे। अंधियारा कमरा एक छोटी सी बस्ती में, धूल और गंदगी से भरा हुआ; एक कोने में सामान जमाया, बेटे को कहा कि खाली डिब्बों में कुछ पानी भर लाए, ताकि कमरा धुल सके।
“माँ! इतने सारे डिब्बों में पानी मैं अकेला कैसे ला सकूँगा?”
“तू चल बेटा! तेरी बहन को पीछे से भेजती हूँ, अभी मेरी मदद कर रही है। झाड़ू लगाकर धोने से ही कमरा रात में सोने योग्य होगा।”
वह नल पर गया, सप्लाई का पानी जा चुका था। पता लगा, आधा किलोमीटर दूरी पर एक चापाकल है।
“बच्चे! अगर जरूरी हो चापाकल से ले आओ, नहीं तो शाम को पानी आता है।”किसी ने सलाह दी।
उसने वापस जाकर माँ को बताया और चल पड़ा। रास्ते में नजर एक वाटर पार्क पर पड़ी; एक फव्वारे से पानी तेजी से ऊपर जाकर वापस गिर रहा था। गिरते पानी में कुछ लोग उछल कूद मचा कर नहा रहे थे। ऐसी जगह सिर्फ टीवी पर देखी थी।
गार्ड से पूछा, “चाचा! क्या यहाँ से पानी ले सकता हूँ?”
“नहीं बच्चे! यह मनोरंजन की जगह है, पानी लेने की नहीं?”
“मुझे आधा किलोमीटर पैदल चलना पड़ेगा। मुझे पानी लेने दीजिए।”
“अंदर जाने की फीस ढाई सौ है, दे सकते हो? यहाँ चारों ओर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, गलती होते ही मेरी नौकरी चली जाएगी।”
“जब बस्ती के नल में पानी नहीं आ रहा है, तो यहाँ इतना सारा पानी कैसे आ रहा है?”
“बच्चे! ये अमीर लोगों की जगह है? यहाँ पानी जमा करके रखा जाता है।”
“चाचा! क्या भगवान भी अमीर-गरीब का फर्क करके पानी देते हैं? हमारी बस्ती में नल सूखा है और अमीरों के नल से पानी इतनी तेजी से आ रहा है, क्यों?”
तब तक माँ-बहन पीछे से पहुँच गईं और उसे कानों से खींचकर आगे ले गईं।
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- नीना सिन्हा
निष्कर्षतः, जल वैश्विक रूप से एक साझा संसाधन है और वैश्विक जल चुनौतियों का समाधान करने के लिए सामूहिक जिम्मेदारी की आवश्यकता है। व्यक्तियों, समुदायों, सरकारों और वैश्विक संगठनों को इस महत्वपूर्ण संसाधन को स्थायी रूप से संरक्षित, प्रबंधित और साझा करने के लिए एकजुट होना चाहिए। डॉ. राजेंद्र सिंह जैसे व्यक्तियों के प्रयास हमें याद दिलाते हैं कि बदलाव जमीनी स्तर से शुरू होता है और प्रतिबद्धता व नवाचार के साथ, जल-सुरक्षित भविष्य हासिल किया जा सकता है।
गुरुवार, 26 दिसंबर 2019
पुस्तक समीक्षा | महानगर की लघुकथाएँ | संपादक : सुकेश साहनी | समीक्षा: कल्पना भट्ट
संपादक : सुकेश साहनी
प्रकाशक : अयन प्रकाशन १/२०, महरौली, नई दिल्ली-११००३०
प्रथम संस्करण : १९९३, द्वितीय संस्करण : २०१९
मूल्य : ३०० रुपये
हिंदी लघुकथा अपनी गति से क्रमशः प्रगति की राह पर चल रही है। लघुकथा आज के समय की माँग भी है और यह भौतिक और मशीनीयुग की जरूरत भी बन चुकी है। लोगों के पास लम्बी-लम्बी कहानी और उपन्यास पढ़ने का समय नहीं है। अनेकानेक लेखकों ने हिंदी- लघुकथा के विकास में एकल संग्रह, संकलन और पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से लघुकथा के विकास में अपना योगदान दिया है।
हिंदी लघुकथा में ऐसे लेखकों में सुकेश साहनी का नाम पांक्तेय है। ‘ठंडी रजाई’ आपकी प्रतिनिधि लघुकथा है। उन्होंने हिंदी- लघुकथा की पहली वेबसाइट www.laghukatha.com का वर्ष 2000 से सम्पादन किया है, वर्ष २००८ से रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ भी उनके साथ इस काम में जुड़ गये। सुकेश साहनी के १२ संपादित लघुकथा संकलनों में ‘महानगर की लघुकथाएँ’ विशेष स्थान रखता है।
जैसे की नाम से विदित होता है कि प्रस्तुत पुस्तक ‘महानगर’ विषय पर आधारित है, इस पुस्तक में महानगर के जीवन से परिचय तो होता ही है, साथ ही महानगर को समझने के लिए एक सकारात्मक दृष्टिकोण भी बनता नज़र आता है। सुकेश साहनी ने अपने सम्पादकीय में अपने अनुभवों को साझा करते हुए महानगर से सम्बंधित कुछ समस्यायों पर अपने विचार प्रकट किये हैं जो विचारणीय है।
प्रस्तुत संकलन को दो भागों में बाँटा गया है, पहले भाग में कुल ९३ लेखकों की लघुकथाएँ प्रकाशित हैं जिनमें चर्चित लघुकथाकारों के साथ-साथ कुछ अचर्चित लेखकों की भी उत्कृष्ट लघुकथाएँ प्रकाशित हुई हैं। दूसरे भाग में परिशिष्ट में प्रथम संस्करण में प्रकाशित रचनाकारों के अतिरिक्त २१ नई लघुकथाओं को भी शामिल किया गया है। युवा पीढ़ी ऐसे संकलनो से न सिर्फ अपने वरिष्ठ रचनाकारों को पढ़कर सीख सकती हैं अपितु शोधार्थियों के लिए भी विषय आधारित संकलन अध्ययन हेतु उपयोगी साबित होते हैं। सुकेश साहनी ने उपर्युक्त पुस्तक का दूसरा संस्करण प्रकाशित करवा कर हिंदी- लघुकथा- जगत् को एक अनमोल और ऐतिहासिक धरोहर प्रदान की है जिसके लिए सुकेश साहनी बधाई के पात्र हैं। जहां तक मेरा अध्ययन है महानगर को लेकर यह प्रथम संकलन है।
इस संकलन का अध्ययन करते समय संपादक की ये पंक्तियाँ अत्यधिक महत्त्वपूर्ण प्रतीत होती हैं, “महानगरों में रहने वाला आदमी कितना प्रतिशत कंप्यूटर में बदल गया है और कहाँ कहाँ उसकी आत्मा का लोप हुआ है। किसी भी समाज को जिवीत रखने के लिए अनिवार्य संवेदना एवं सहानुभूति की भावना की महानगरों में कितनी कमी हुई है।” इसमें प्रकाशित प्रायः लघुकथाकारों ने महानगरों में उपज रही समस्यायों एवं विडम्बनाओं का चित्रण बहुत ही सुंदर ढंग से किया है। मानव मूल्यों हेतु संघर्ष करते लोगों का चित्रण, ‘रिश्ते’ (पृथ्वीराज अरोड़ा), ‘अर्थ’ (कुमार नरेन्द्र) की लघुकथाओं में स्पष्ट देखा जा सकता है जो जितना बड़ा महानगर है उसमे उतनी ही भ्रष्ट व्यवस्था है जिसे ‘सवारी’ (राजेंद्र मोहन त्रिवेदी ‘बंधु’) ,’सुरक्षा’ (श्रीकांत चौधरी), ‘हादसा’ (महेश दर्पण) इत्यादि लघुकथाओं में स्पष्ट है।
आज शिक्षा की जब सबसे ज्यादा आवश्यकता है तो ऐसे समय में शिक्षा संस्थानों में जो भ्रष्टाचार मचा हुआ है वो भी किसीसे छिपा नहीं है, महानगर की इस समस्या पर यूँ तो कई लोगों ने लिखा है किन्तु ‘वज़न’ (सुरेश अवस्थी), ‘शुरुआत’ (शशिप्रभा शास्त्री) की लघुकथाएँ अपने उद्देश्य में अधिक सफल रही हैं। महानगर में नित्यप्रति हो रहे अवमूल्यन पर भी लघुकथाकारों ने अपने-अपने ढंग से सुंदर चित्रण किया है ‘आशीर्वाद’ (पल्लव), ‘कमीशन’( यशपाल वैद, ‘आग’ (भारत भूषण), ‘लंगड़ा’ (पवन शर्मा), ‘बीसवीं सदी का आदमी’ (भारत यायावर) इत्यादि लेखकों ने अपने कौशल से लोहा मनवाया है। अरविन्द ओझा की ‘खरीद’ लघुकथा महानगर में किस प्रकार लोगों का विदेशी वस्तुओं के प्रति आकर्षण बढ़ता जा रहा है उसपर करारी चोट की है और महानगरों में जितनी तेज़ी से आबादी बढ़ रही है, उतनी ही तेज़ी से सभी क्षेत्रों में प्रदूषण भी बढ़ता जा रहा है, जिसे रमाकांत की लघुकथा ‘मृत आत्मा’ में देखा जा सकता है। इतना ही नहीं छोटे शहरों की अपेक्षा महानगरों में क्रूर मानसिकता का भी तेज़ी से विकास हो रहा है जिसे ज्ञानप्रकाश विवेक की लघुकथा ‘जेबकतरा’ में देखा जा सकता है।
अपवाद को छोड़ दें तो महानगरों में प्रायः लोग दोहरा जीवन जी रहे हैं। एक ही बात पर दूसरों के प्रति उनकी विचारधारा कुछ होती है और अपने बारे में उनकी विचारधारा ठीक इसके विपरीत होती है जिसे सतीशराज पुष्करणा की लघुकथा ‘उच्छलन’ में देखा जा सकता है,अर्थाभाव के कारण कैसे व्यक्ति संवेदना शून्य हो जाता है इसे प्रायः महानगरों में देखा जा सकता है इस मानसिकता को महावीर प्रसाद जैन ने अपनी लघुकथा ‘हाथ वाले’ में प्रत्यक्ष किया है।
प्रायः व्यक्ति अच्छी बातों कि अपेक्षा बुरी बातों से जल्दी प्रभावित होता है, यही बात फिल्मों के सन्दर्भ में भी कही जा सकती है, फिल्मों द्वारा उपजी बुराइयों का प्रभाव किस प्रकार बढ़ता जा रहां इसे रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ की लघुकथा ‘स्क्रीन-टेस्ट’ में देखा जा सकता है। आज हमारी नज़र जितनी दूर भी जाती है हम देखते हैं कि पैसा बेचा जा रहा है और पैसा ही खरीदा जा रहा है आज हमारे जीवन में पैसा ही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बन गया है जिसके आगे रिश्तों के बीच का अपनापन लुप्त होता हुआ प्रतीत होता है इसे बहुत ही सटीक ढंग से दर्शाती है कमल चोपड़ा की लघुकथा ‘किराया’। ऐसी ही श्रेष्ठ लघुकथाएँ लिखने में सुकेश साहनी ने अपना लोहा मनवाया है यहाँ भी ‘काला घोड़ा’ लघुकथा में महानगरीय सभ्यता से अभिशप्त इंसान का चित्रण करके स्वयं को सिद्ध कर दिया है। महानगर में जहाँ अम्बानी जैसे धनाढ्य लोग हैं वहीँ दिहाड़ी पर काम करने वाले लाखों इंसान भी हैं। धनाढ्य लोगों के चक्रव्ह्यू में किस प्रकार आदमी फंसता-सिमटता जा रहा है यह बात गीता डोगरा ‘मीनू’ की लघुकथा ‘हमदर्द’ में भली-भाँति देखा जा सकता है। आज उपभोक्तावादी संस्कृति में महानगर के आदमी को इस बुरी सभ्यता ने इस तरह से जकड़ लिया है कि उसकी प्राथमिकतायें ही बदलती जा रही है। इन्हें हम इस संकलन की प्रायः लघुकथाओं में देख सकते हैं। इसके अतिरिक्त विविध समस्याओं से परिपूर्ण जो लघुकथाएँ आकर्षित करती हैं उनमें डॉ. सतीश दुबे, शंकर पुणताम्बेकर, रमेश बत्रा, प्रबोध गोविल, चित्रा मुद्गल, मधुदीप, बलराम, सुदर्शन, विक्रम सोनी, कृष्ण कमलेश, असगर वजाहत, कृष्णानन्द कृष्ण, मंटो, हीरालाल नागर, सतीश राठी, सुभाष नीरव, पवन शर्मा, राजकुमार गौतम, मधुकांत, कमल कपूर, अशोक लव, भगवती प्रसाद द्विवेदी, बलराम अग्रवाल, रमेश गौतम, मार्टीन जॉन ‘अजनबी’, नीलिमा शर्मा निविया, अनीता ललित, डॉ.सुषमा गुप्ता, सविता मिश्रा, सत्या शर्मा ‘कीर्ति’ इत्यादि की लघुकथाओं की परख की जा सकती है। एक संकलन में इतनी अधिक एक ही विषय पर श्रेष्ठ लघुकथाओं का होना संपादक के सम्पादकीय कौशल को प्रत्यक्ष करता है।
इतना ही नहीं, नामी लघुकथाकारों की लघुकथाओं के साथ-साथ जहाँ उन्होंने नवोदित लघुकथाकारों को स्थान दिया है वहाँ अज्ञात नामों की लघुकथाओं को छापने में भी परहेज़ नहीं किया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि सम्पादक को नामों की अपेक्षा श्रेष्ठ लघुकथाओं से ही मतलब रहा है।

इस संकलन के लिए मैं बिना किसी संकोच के कहना चाहती हूँ कि सम्पादित लघुकथा संकलनों में यह संकलन अपनी विशिष्ट पहचान प्रत्यक्ष करता है। अंत में मैं संपादक को एक अति विनम्र सुझाव देना चाहती हूँ कि वे इसी प्रकार ‘ग्रामीण क्षेत्र की लघुकथाओं’ पर भी काम करें, क्योंकि इस विषय पर लघुकथा में अभी कोई काम हुआ हो ऐसा मेरी जानकारी में नहीं है।
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कल्पना भट्ट
श्री द्वारकाधीश मंदिर,
चौक बाज़ार,
भोपाल-४६२००१.
मो : ९४२४४७३३७७
बुधवार, 25 दिसंबर 2019
सुकेश साहनी की लघुकथाएँ नहीं पढ़नी चाहिए... | रवि प्रभाकर
तभी अप्रत्याशित बात हुई। गगनभेदी विस्फोट से एकबारगी भीड़ के कान बहरे हो गए, आँखें चौंधिया गईं। कई विमान आकाश को चीरते चले गए, ख़तरे का सायरन बजने लगा। राजा के सिपहसालार पड़ोसी देश द्वारा एकाएक आक्रमण कर दिए जाने की घोषणा के साथ लोगों को सुरक्षित स्थानों में छिप जाने के निर्देश देने लगे।
भीड़ में भगदड़ मच गई। राजमार्ग के आसपास खुदी खाइयों में शरण लेते हुए लोग हैरान थे कि अचानक इतनी खाइयाँ कहाँ से प्रकट हो गईं।
सामान्य स्थिति की घोषणा होते ही लोग खाइयों से बाहर आ गए। उनके चेहरे देशभक्ति की भावना से दमक रहे थे, बाँहें फड़क रही थीं। अब वे सब देश के लिए मर-मिटने को तैयार थे। राष्ट्रहित में उन्होंने राजा के ख़िलाफ़ अभियान स्थगित कर दिया था। देशप्रेम के नारे लगाते वे सब घरों को लौटने लगे थे।
राजमहल की दीवारें पहले की तरह स्थिर हो गई थीं। रातोंरात राजमार्ग के इर्द-गिर्द खाइयाँ खोदनेवालों को राजा द्वारा पुरस्कृत किया जा रहा था।
(हंस, अक्टूबर 98)
'जमना, जे तू के रई हय? इत्ती पुरानी होके। हमारे लिए किसी एक गिराक से आशनाई ठीक नई।'
'अरे मौसी, तू मुझे गलत समझ रई है। मैं कोई बच्ची तो नहीं, तू किसी बात की चिंता कर। पर इसे मैं ही बिठाऊँगी।'
'वजह भी तो जानूँ?'
'वो बात जे है कि...कि...' एकाएक जमना का पीला चेहरा और फीका हो गया, आँखें झुक गईं, 'इसकी शक्ल मेरे सुरगवाली मरद से बहुत मिलती है। जब इसे बिठाती हूँ, तो थोड़ी देर के वास्ते ऐसा लगे है, जैसे मैं धंधे में नहीं अपने मरद के साथ घर में हूँ।'
'पर...पर...आज तो वह तेरे साथ बैठनाई नहीं चाह रिया, उसे तो बारह-चौदह साल की चइए।'
रविवार, 8 दिसंबर 2019
सोमवार, 25 नवंबर 2019
लघुकथा समाचार | क्षितिज मंच द्वारा इंदौर में आयोजित अ. भा. लघुकथा सम्मेलन
कहानियां दवा पर लघुकथा इंजेक्शन हैं, फौरन असर करेंगी, बच्चों के पाठ्यक्रम में इन्हें शामिल कर हम जागरूक पीढ़ी तैयार कर सकेंगे
"लघुकथा जातीय भेदभाव, लिंगभेद, स्त्री पर अत्याचारों और साम्प्रदायिक हिंसा के खिलाफ किशोरों-युवाओं को प्रभावी ढंग से जागरूक कर सकती है। इसलिए देश के तमाम स्कूल-काॅलेज के पाठ्यक्रमों में श्रेष्ठ लघुकथाओं को शामिल किया जाना चाहिए। कहानी के मुकाबले लघुकथा इंजेक्शन की तरह फौरन असर करती है। आकार में लघु होने और बेहतर संप्रेषण के कारण ये ज्यादा असरदार साबित हुई हैं।' शुक्रवार को क्षितिज के अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन में साहित्यकार माधव नागदा संबोधित कर रहे थे। मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति में हुए सम्मेलन में कई सत्रों में वक्ताओं ने विचार रखे।
सीप में मोती बनने की प्रक्रिया पीड़ादायक होती है, लघुकथाकार के मन में हो यह पीड़ा
सुकेश साहनी ने कहा कि सीप में मोती बनने की प्रक्रिया बहुत पीड़ादायक होती है इसी तरह मन में लघुकथा बनने की प्रक्रिया भी पीड़ादायक होना चाहिए। जैसे मोती को निकालने के लिए नाज़ुक शल्य क्रिया होती है, उसी तरह लघुकथा को भी संवारना होता है। रचनायात्रा तपती रेत पर चलने के समान है और पुरस्कार मिलना शीतल छाया है। साहित्यकार श्यामसुंदर अग्रवाल ने कहा कि क्षितिज लघुकथा पत्रिका में पंजाबी लघुकथा पर एक लेख पढ़कर मैंने लघुकथा रचने को चुनौती की तरह लिया और खूब लिखा। आज पंजाब में 25 लघुकथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। नर्मदाप्रसाद उपाध्याय ने कहा कि लघुकथाकार दूसरे अनुशासनों में झांककर ही बेहतर लिख सकता है। दृष्टिसम्पन्न होकर ही पुनरावृत्ति के दोष और शिल्पगत वैविध्य के अभाव से मुक्त हुआ जा सकता है। कुणाल शर्मा ने भी संबोधित किया। दूसरे सत्र में 35 लघुकथाकारों ने पाठ किया।
तीसरे सत्र में नारी अस्मिता और लघुकथा पर सूरीकांत नागर बलराम अग्रवाल, ज्योति जैन और वसुधा गाडगिल ने बातचीत की। आखरी सत्र कथा शिल्प और प्रभाव पर साहित्यकार राकेश शर्मा, सुकेश साहनी, बलराम अग्रवाल, श्याम सुंदर अग्रवाल और ब्रजेश कानूनगो ने सवालों के जवाब दिए। संचालन अंतरा करवेड़े, सीमा व्यास, निधि जैन और डॉ. गरिमा संजय दुबे ने किया। आभार सतीश राठी, पुरुषोत्तम दुबे ने माना।
श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय को कला साहित्य सृजन सम्मान, श्री हीरालाल नागर को लघुकथा सम्मान, श्री श्याम सुंदर अग्रवाल को क्षितिज लघुकथा शिखर सेतु सम्मान 2019 हिंदी और पंजाबी भाषा में मिनी पत्रिका के माध्यम से सेतु का काम करने के संदर्भ में दिया गया है जबकि श्री सुकेश साहनी को क्षितिज लघुकथा शिखर सम्मान 2019 प्रदान किया गया है जो गत वर्ष श्री बलराम अग्रवाल को दिया गया था। श्री माधव नागदा को क्षितिज लघुकथा समालोचना सम्मान 2019 प्रदान किया गया है गत वर्ष यह सम्मान श्री बीएल आच्छा को दिया गया था। श्री कुणाल शर्मा को क्षितिज लघुकथा नवलेखन सम्मान 2019 से सम्मानित किया गया है गत वर्ष यह सम्मान श्री कपिल शास्त्री को दिया गया था।
Sources:
1. https://www.bhaskar.com/news/mp-news-stories-are-short-lived-injections-on-medicine-they-will-make-an-immediate-impact-by-including-them-in-the-curriculum-of-children-we-will-be-able-to-create-a-conscious-generation-075624-6019212.html
2. Shri Satish Rathi
Event in print media
शनिवार, 30 मार्च 2019
शुक्रवार, 23 नवंबर 2018
लघुकथा वीडियो
लघुकथा का बाजार बढ़ रहा है, बहुत से लोग हैं जो सोशल मीडिया पर खूब लिख रहे हैं और शेयर भी कर रहे हैं. ऐसे लोगों को कॉपीराइट की चिंता नहीं है. ये बातें कहीं लघुकथा से प्रसिद्धी पा रहे गिरींद्र नाथ झा ने. सत्र में पहुंचे सुकेश साहनी ने कहा कि लघुकथा के लिए वरदान है कि वह कम समय में पढ़ ली जाती है. आज के समय में किसी के पास समय नहीं है. देखिए वीडियो