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मंगलवार, 24 दिसंबर 2019

मैं कहानी कैसे लिखता हूँ | मुंशी प्रेमचंद

मुंशी प्रेमचंद ने अपनी कहानी लेखन की रचना प्रक्रिया के बारे में बताया है। यह लघुकथाकारों के लिए महत्वपूर्ण इसलिए हो जाती हैं क्योंकि कमोबेश इसे हम लघुकथा रचना से जोड़ सकते हैं। आइये पढ़ते हैं :

प्रेमचंद की रचना प्रक्रिया

मेरे किस्से प्राय: किसी-न-किसी प्रेरणा अथवा अनुभव पर आधारित होते हैं, उसमें मैं नाटक का रंग भरने की कोशिश करता हूं मगर घटना-मात्र का वर्णन करने के लिए मैं कहानियां नहीं लिखता । मैं उसमें किसी दार्शनिक और भावनात्मक सत्य को प्रकट करना चाहता हूँ । जब तक इस प्रकार का कोई आधार नहीं मिलता, मेरी कलम ही नहीं उठती । आधार मिल जाने पर मैं पात्रों का निर्माण करता हूँ । कई बार इतिहास के अध्ययन से भी प्लाट मिल जाते हैं । लेकिन कोई घटना कहानी नहीं होती, जब तक कि वह किसी मनोवैज्ञानिक सत्य को व्यक्त न करे ।

मैं जब तक कोई कहानी आदि से अन्त तक जेहन में न जमा लूं, लिखने नही बैठता। पात्रों का निर्माण इस दृष्टि से करता हूँ कि वे इस कहानी के अनुकूल हों । मैं इसकी जरुरत नहीं समझता कि कहानी का आधार किसी रोचक घटना को बनाऊं मगर किसी कहानी में मनोवैज्ञानिक पराकाष्ठा (Climax) हो, और चाहे वह किसी भी घटना से सम्बन्धित हो, मैं इसकी परवाह नहीं करता । अभी मैंने हिन्दी में एक कहानी लिखी है, जिसका नाम है, 'दिल की रानी' । मैंने मुस्लिम इतिहास में तैमूर के जीवन की एक घटना पड़ी थी, जिसमें हमीदा बेगम से उसके विवाह का उल्लेख था । मुझे तुरन्त इस ऐतिहासिक घटना के नाटकीय पहलू का ख्याल आया। इतिहास में क्लाइमैक्स कैसे उत्पन्न हो, इसकी चिन्ता हुई । हमीदा बेगम ने बचपन में अपने पिता से शस्त्र-विद्या सीखी थी और रणभूमि में कुछ अनुभव भी प्राप्त किए थे । तैमूरने हजारों तुर्कों का वध किया था । ऐसे प्रतिपक्षी पर एक तुर्क स्त्री किस प्रकार अनुरक्त हुई, इस समस्या का हल होने से क्लाइमैक्स निकल आता था । तैमूर रूपवान न था, इसलिए जरूरत हुई कि उसमें ऐसे नैतिक और भावनात्मक गुण उत्पन्न किए जाएं, जो एक श्रेष्ठ स्त्री को उसकी ओर खींच सकें । इस प्रकार वह कहानी तैयार हो गई ।

कभी-कभी सुनी-सुनाई घटनाएं ऐसी होती हैं कि उन पर आसानी से कहानी की नींव रखी जा सकती है । कोई घटना, महज सुन्दर और चुस्त शब्दावली और शैली का चमत्कार दिखाकर ही कहानी नहीं बन जाती; मैं उसमें क्लाइमैक्स लाज़िमी चीज़ समझता हूँ, और वह भी मनोवैज्ञानिक । यह भी जरूरी है कि कहानी इस क्रम से आगे चले कि क्लाइमैक्स निकटतम आता जाए । जब कोई ऐसा अवसर आ जाता है, जहां तबीयत पर जोर डालकर साहित्यिक और काव्यात्मक रंग उत्पन्न किया जा सकता है, तो मैं उस अवसर से अवश्य लाभ उठाने का प्रयत्न करता हूँ । यही रंग कहानी की जान है ।

मैं कम भी लिखता हूँ। महीनेभर में शायद मैंने कभी दो कहानियों से अधिक नहीं लिखी । कई बार तो महीनों कोई कहानी नहीं लिखता । घटना और पात्र तो मिल जाते हैं; लेकिन मनोवैज्ञानिक आधार कठिनता से मिलता है । यह समस्या हल हो जाने के बाद कहानी लिखने में देर नहीं लगती । मगर इन थोड़ी सी पंक्तियों में कहानी-कला के तत्व वर्णन नहीं कर सकता । यह एक मानसिक वस्तु है । सीखने से भी लोग कहानीकार बन जाते हैं, लेकिन कविता की तरह इसके लिए भी, और साहित्य के प्रत्येक विषय के लिए, कुछ प्राकृतिक लगाव आवश्यक है । प्रकृति आपसे-आप प्लाट बनाती है, नाटकीय रंग पैदा करती है, ओज लाती है, साहित्यिक गुण जुटाती है, अनजाने आप ही आप सब कुछ होता रहता है । हाँ, कहानी समाप्त हो जाने के बाद मैं खुद उसे पढता हूँ । अगर उसमें मुझे नयापन, बुद्धि का कुछ चमत्कार, कुछ यथार्थ की ताजगी, कुछ गति उत्पन्न करने की शक्ति का एहसास होता है तो मैं उसे सफल कहानी समझता हूँ वरना समझता हूँ फेल हो गया । फेल और पास दोनों कहानियां छप जाती हैं और प्राय: ऐसा होता है कि जिस कहानी को मैंने फेल समझा था, उसे 'मित्रों' ने बहुत सराहा । इसलिए मैं अपनी परख पर अधिक विश्वास नहीं करता ।

Basic Source:
https://www.bharatdarshan.co.nz/magazine/literature/668/how-i-write-story-premchand.html

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2019

लघुकथा वीडियो | मुंशी प्रेमचंद की लघुकथा "देवी" | स्वर : निधिकांत पांडे

भिखारी को एक महिला ने कुछ दिया और फुसफुसाया। लेखक ने देखा कि वह महिला दस रुपये (उन दिनों दस रुपयों का मूल्य काफी अधिक था) देकर चली गयी। लेखक ने उस महिला को देवी सरीखी पाया... क्या सिर्फ अधिक रुपए देने की खातिर? चलिये सुनते हैं और जानते हैं देवी का रहस्य - मुंशी प्रेमचंद द्वारा सृजित और निधिकांत पांडे जी के स्वर में कही गयी लघुकथा - "देवी"।


मंगलवार, 27 नवंबर 2018

राष्ट्र का सेवक (लघुकथा) - मुंशी प्रेमचंद

राष्ट्र के सेवक ने कहा- देश की मुक्ति का एक ही उपाय है और वह है नीचों के साथ भाईचारे का सलूक, पतितों के साथ बराबरी का बर्ताव। दुनिया में सभी भाई हैं, कोई नीच नहीं, कोई ऊँच नहीं।

दुनिया ने जय-जयकार की - कितनी विशाल दृष्टि है, कितना भावुक हदय!

उसकी सुन्दर लड़की इन्दिरा ने सुना और चिन्ता के सागर में डूब गई। राष्ट्र के सेवक ने नीची जाति के नौजवान को गले लगाया।
दुनिया ने कहा- यह फरिश्ता है, *पैगम्बर है, राष्ट्र की नैया का खेवैया है। इन्दिरा ने देखा और उसका चेहरा चमकने लगा। राष्ट्र का सेवक नीची जाति के नौजवान को मन्दिर में ले गया, देवता के दर्शन कराए और कहा - हमारा देवता गरीबी में है, ज़िल्लत में है, पस्ती में है।

दुनिया ने कहा- कैसे शुद्ध अन्त:करण का आदमी है! कैसा ज्ञानी! इन्दिरा ने देखा और मुस्कराई।

इन्दिरा राष्ट्र के सेवक के पास जाकर बोली- श्रद्धेय पिताजी, मैं मोहन से ब्याह करना चाहती हूं।राष्ट्र के सेवक ने प्यार की नज़रों से देखकर पूछ- मोहन कौन है? इन्दिरा ने उत्साह भरे स्वर में कहा- मोहन वही नौजवान है, जिसे आपने गले लगाया, जिसे आप मन्दिर में ले गए, जो सच्चा, बहादुर और नेक है।

राष्ट्र के सेवक ने प्रलय की आंखों से उसकी ओर देखा और मुँह फेर लिया।

- प्रेमचंद