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मंगलवार, 10 दिसंबर 2019

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा की एक लघुकथा और उसका अंग्रेजी अनुवाद

फोटो सेसन / मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

सांसद साहब सुबह-सुबह पूरे दलबल के साथ शहर की मुख्य सड़क पर आ चुके थे। उनके आते ही सड़क पर सरकारी गार्डन का कूड़ा करकट बिखेरा गया। सांसद जी ने एक लम्बा सा झाडू चलाना प्रारम्भ किया तो उनके देखा-देखी उनके चेले चपाटों ने भी स्वच्छता अभियान में चार चाँद लगा दिये।

तभी पीछे से आवाज आई - ‘हो गया सर हो गया’... और कैमरे शांत हो गये।

सांसद जी ने अपने निजी सहायक को कुछ इशारा किया और चमचमाती विदेशी कार से फुर्र हो गये।

और इस फोटो सेसन में सहभागी सभी मीडिया कर्मी अपना-अपना लिफाफा लेकर न्यूज रुम, प्रिंट रुम की तरफ दौड़ पड़े।
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ग्राम रिहावली, डाक तारौली, 
फतेहाबाद, आगरा, 283111,उ.प्र.

अंग्रेजी अनुवाद (English Translation)

Photo Session / Mukesh Kumar Rishi Verma
Translation By: Dr. Chandresh Kumar Chhatlani

In the early morning, MP sahab had arrived at the main road of the city with gathering of people. As soon as he arrived, the garbage of the Government Garden is scattered on that road. The MP Saheb started sweeping with a long broom. After seeing this, his disciples have also put four moons in the cleanliness campaign.

Then a voice came from behind - 'Done Sir, it is done.' ... and all the cameras went quiet.

The MP Saheb made a few gestures to his personal secretary and gone in the gleaming foreign car.

And all the media workers participating in this photo session took their envelopes and ran towards the news desk room, print room.
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- 3 PA 46, Prabhat Nagar
Sector-5, Hiran Magari
UDAIPUR - 313 002

शुक्रवार, 22 नवंबर 2019

लघुकथा: खबर | मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा जी की व्यंग्य शैली में कही गयी यह रचना एकांगी भी है और एक विशेष विसंगति को दर्शा रही है। यह प्रभावी भी बनी है। शीर्षक पर मेरे अनुसार कुछ और कार्य करने की ज़रूरत है। आइये पढ़ते हैं, मुकेश कुमार ऋषि वर्मा जी की लघुकथा 'खबर'।


मंत्रीजी घंटा बजाकर अपने पूजागृह से एक हाथ लम्बा तिलक लगाकर बाहर आये ही थे कि उनका सहायक हाँफता हुआ उनके सामने आ गया ।

‘अरे! काहे हाँफत हो... आसमान फट गया क्या?’

‘साब जी - साब जी... बड़ा अनर्थ हो गया । जनपद में पुलिस ने बड़ी बर्बरता से बेचारे अनशन पर बैठे किसानों पर लाठीचार्ज किया है और सुनने में आ रहा कि फाइरिंग भी की है ।’

‘तो क्या हुआ? वो तो हमने ही आदेश दिया था ।’

मंत्रीजी का जवाब सुनकर सहायक आश्चर्यचकित रह गया । वो मन ही मन सोच रहा था, ये वही पुलिस है जिसकी गुंडों से मुठभेड़ होती है तो बंदूक से गोली नहीं निकलती मुँह से ही ठाँय-ठाँय की आवाज निकालकर काम चलाना पड़ता है ।

‘सुनो!  ये किसानों वाली न्यूज टीवी पर आ रही है क्या?’ मंत्रीजी ने सहायक से पूछा ।

‘नहीं, किसी भी न्यूज चैनल पर नहीं आ रही सिर्फ सोशल मीडिया पर ही दिखाई दे रही है । लगता है हुजूर ने सभी चैनल वालों का मुँह बंद कर दिया है, इसीलिए पाकिस्तान - पाकिस्तान खेल रहे हैं सभी चैनल वाले ।’ सहायक पिलपिला सा मुँह बनाकर चमचे वाले लहजे में धीरे से बोल गया ।

‘तुमने कुछ कहा’....

‘नहीं...  महाराज जी मैं तो कह रहा था कि गायों को गुड़ खिलाने का समय हो गया है ।’ सहायक बात बनाते हुए अपना बचाव कर गया ।

मंत्रीजी समय का विशेष ध्यान रखते हुए गायों को गुड़ खिलाने के लिए चल पड़े । दोपहर को लाइव और शाम से देर रात तक प्रमुख रही गायों को गुड़ खिलाने की खबर ।

- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 
ग्राम रिहावली, डाक तारौली, 
फतेहाबाद, आगरा, 283111

गुरुवार, 10 अक्तूबर 2019

लघुकथा: जंगल की इज्जत | मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

सारा आदिवासी समुदाय फ़ॉरेस्ट ऑफिसर के अत्याचारों से कराह रहा था । वो जब भी जंगल में राउंड मारने आता, तब ही उसे एक नई लड़की चाहिए होती। जंगल की इज्ज़त खतरे में पड़ गई । इस बार उसकी नजर हिरनो पर पड़ी । हिरनो साँवली जरूर थी, पर उसके जैसा सुंदर - भरा हुआ बदन शायद ही पूरे आदिवासी समुदाय की किसी लड़की का हो । उसकी सुंदरता पर लट्टू होकर ही फिल्मनिर्माता रघुवर कपूर ने उसे अपनी आगामी फिल्म ऑफर की थी, परन्तु हिरनो अपना गाँव नहीं छोड़ना चाहती थी और इसी वजह से उसने रघुवर कपूर का ऑफर ठुकरा दिया । खैर रघुवर कपूर अपना प्रोजेक्ट पूरा करके मुंबई चले गये और जाते-जाते अपना कार्ड दे गये, ताकि जब कभी हिरनो का मन फिरे तो वह सीधे मुंबई चली आये । लेकिन हिरनो का मन कभी फिरा नहीं ।

देर रात चार-पाँच जल्लाद खाकी पहने, नकाब से चेहरा ढके हिरनो की झोपड़ी में कूद गये और उसे जबरन उठाकर फोरेस्ट अॉफीसर के सामने पटक दिया । सारी रात सरकारी गैस्ट हाउस हिरनो की दर्दभरी चीखों से गूंजता रहा । सुबह उसकी लाश झरने के पानी में तैरती हुई देखी गई... ।

पुलिस रिकार्ड के अनुसार, हिरनो जब झरने से पानी लेने गई होगी तब उसका पैर फिसल गया होगा और वो गहरे पानी में चली गई होगी । इसतरह पानी में डूबने से उसकी मृत्यु हो गई । और इसी के साथ हिरनो की फाइल बंद हो गई । न जाने ऐसी कितनी अनगिनत हिरनो सरकारी फाइलों में दबकर दफन हो चुकी हैं । 

लेकिन जंगल की इज्जत के साथ यह खेल आज भी अनवरत चल रहा है और पता नहीं ये कब तक चलता रहेगा... ।

- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 
ग्राम रिहावली, डाक तारौली,
फतेहाबाद, आगरा, 283111

रविवार, 15 सितंबर 2019

लघुकथा: रमधनिया | मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

लघुकथा: रमधनिया

रमधनिया ने ठान लिया था कि वो अपने शराबी - जुआरी पति को आज सबक सिखा कर ही मानेगी | बेचारी रमधनिया मध्यप्रदेश से चलकर आगरा मजदूरी करने आई थी | सुबह से शाम तक खेतों में आलू बीनती तब जाकर प्रतिदिन सौ - सवा सौ रुपये कमा पाती | साथ में दो बेटियाँ भी थी, इसलिए खाने-पीने का खर्च भी ज्यादा था | पति काम तो करता था पर सारी कमाई जुआ - शराब में उढा देता और ऊपर से रमधनिया के कमाये पैसों पर भी हक जमाता |

देररात टुन्न होकर रमधनिया का पति आया तो दोनों में झगड़ा हो गया | झगड़ा इतना बढ़ गया कि झगड़े की खबर ठेकेदार को पता चल गई | उसने तुरन्त सौ नं.  पर सूचना दी, कुछ ही समय बाद सौ नं. की गाड़ी आ गई | पुलिस आने से झगड़ा खत्म हो गया और पुलिस ने दोनों का राजीनामा करा दिया परन्तु राजीनामा के बदले दो हजार रुपए रमधनिया को गंवाने पड़े | वैसे दो हजार बचाने के लिए रमधनिया ने उन पुलिस महाशयों के खूब हाथ-पैर जोडे, लेकिन उन निर्दईयों को तनिक भी तरस नहीं आया | सच भी है वर्दी पहनकर कोई देवता नहीं बन जाता |

रमधनिया अपने तिरपाल के बने झोपड़े में पड़ी-पड़ी सोच रही थी, काश वो अपने शराबी पति से न लड़ती और हजार - पांच सौ उसे दे देती तो कम से कम कुछ पैसे तो बच ही जाते... |

- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
ग्राम रिहावली, डाक तारौली,
फतेहाबाद, आगरा, 283111

सोमवार, 18 मार्च 2019

लघुकथा: मृत्युभोज | मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

रजुआ बीच जंगल में अपनी भेड़-बकरियों को टिटकारी देता हुआ चरा रहा था, कि तभी उसकी नजर सज्जन सिंह पर पड़ गयी । सज्जन सिंह को सभी गाँव वाले दादा कह कर बुलाते थे। स्वभाव से अच्छे थे इसीलिए औरत - मर्द, बूढे - बच्चे सभी बस दादा - दादा की रट लगाये रहते।

पास जाकर रजुआ ने पूछा, “दादा आज अकेले जंगल में और इतनी दूर कैसे आ गये, किसी जड़ी-बूटी की जरूरत आन पड़ी थी क्या? मुझे बोल देते, मैं ले आता।”

दादा ने रजुआ को धीरे से पलट कर देखा और धीमी आवाज में बोले, “बेटा रजुआ तू! कलेऊ लाया है क्या?  दो दिन से यहीं भूखा पड़ा हूँ, घर छोड़ आया हूँ मैं।”

रजुआ ने अपना खाना दादा की तरफ बढ़ाते हुए कहा, “लो दादा खा लो, पर ये बताओ घर क्यों छोड़ा? पाँच-पाँच बेटे हैं, भरा पूरा परिवार है। सब अच्छा क्माते हैं... फिर?”

“बेटा रजुआ, सब अपने-अपने काम में व्यस्त हैं। मुझे परसों बुखार आ गया था, तो मैंने बड़े लड़के से कुछ रूपये दवा के लिए मांगे, उसने दुत्कार कर भगा दिया, उससे छोटे के पास गया तो उसने भी डांट दिया, इस तरह बारी-बारी से सबने मना कर दिया। फिर मैंने सोच वहाँ रहना बेकार है, कोई किसी का नहीं इस दुखिया संसार में और मैं यहाँ मरने जंगल में चला आया... लेकिन मुई भूख!... सहन नहीं होती।” रोते-बिलखते दादा सज्जन सिंह ने रजुआ को अपनी व्यथा सुना दी ।

रजुआ फिर भी मान-मनुहार कर जबरदस्ती दादा को उनके घर छोड़ आया। चार दिन बाद पता चला दादा इस दुनिया में नहीं रहे ।

और ठीक तैरह दिनों के बाद दादा सज्जन सिंह के पांचों लड़कों ने उनका मृत्युभोज (बृह्मभोज) बारह कुन्तल आटे का किया। माल-पुआ, खीर-सब्जी बनाई गई और आसपास के सभी गाँव वालों को भरपेट खाना खिलाया गया - ताकि उनकी आत्मा तृप्त रह सके।

- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 
ग्राम रिहावली डाक तारौली, 
फतेहाबाद, आगरा, 283111