डॉ. मिथिलेश दीक्षित साहित्य जगत में एक बड़ा नाम है। शिक्षा के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि साहित्य और समाज सेवा में भी आपका उल्लेखनीय योगदान है। हिंदी की तमाम विधाओं में आपका रचना कर्म है। विभिन्न विधाओं में आप की लगभग अस्सी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकीं हैं। हाल ही में इनकी किताब हिंदी लघुकथा स्वरूप और सार्थकता के शीर्षक से सुभदा बुक्स साहिबाबाद से प्रकाशित हुई है, जो हिंदी लघुकथा के पाठकों, लेखकों और शोधार्थियों- विद्याथिर्यों के लिए पठनीय और वंदनीय है। संपादकीय में डॉ.मिथिलेश दीक्षित लिखती हैं- हिंदी साहित्य की गद्यात्मक विधाओं में लघुकथा सबसे चर्चित विधा है। आज के विधागत परिपेक्ष्य में लघुकथा के स्वरूप को देखते हैं, तो लगता है इसके स्वरूप में पर्याप्त परिवर्तन हुआ है, इसका मूल प्रयोजन भी बदल गया है। अब उपदेशात्मक या कोरी काल्पनिक लघुकथाओं में विशेष पत्रों के स्थान पर सामान्य जन का प्रतिनिधित्व करने वाले सामान्य पात्रों का समयगत परिस्थितियों में चित्रण होता है.....और वे आगे लिखतीं हैं..संक्षिप्तता गहन संवेदन, प्रभाव सृष्टि और संप्रेषण क्षमता लघुकथा की विशिष्ट गुण है। "लघुकथाकार का गहन संवेदन जब लघुकथा में समाहित हो जाता है, तब शिल्प में सघनता आ जाती है, भाषा में सहजता और पात्रों में जीवन्तता आ जाती है।"
डॉ.ध्रुव कुमार, अंजू श्रीवास्तव निगम, इंदिरा किसलय, डॉ.कमल चोपड़ा, कल्पना भट्ट, कनक हरलालका, डॉ.गिरीश पंकज, निहाल चंद्र शिवहरे, बी. एल. अच्छा, डॉ,भागीरथ परिहार, मुकेश तिवारी, मीनू खरे, रजनीश दीक्षित, शील कौशिक, डॉ. शैलेश गुप्ता 'वीर' ,डॉ.शोभा जैन, सत्या सिंह, डॉ.स्मिता मिश्रा, डॉ. सुरंगमा यादव, डॉ.सुषमा सिंह, संतोष श्रीवास्तव के बहुत ही शोधपरक लेखों को इस पुस्तक में सम्मिलित किया गया हैं। लेखों में लघुकथा के शिल्प, संवेदना, और लघुकथा के वर्तमान, अतीत और भविष्य पर बड़ी सहजता, सूक्ष्मता और गंभीरता से विमर्श किया गया है। पुस्तक में हिंदी लघुकथा के बारे में डॉक्टर मिथिलेश दीक्षित से डॉ.लता अग्रवाल की बातचीत भी कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर की गई है, जिसमें लघुकथा की प्रासंगिकता, उसकी उपयोगिता, उसका आकार-प्रकार व मर्म, उसमें व्यंग्य तथा शिल्पगत विविधता आदि।प्रसिद्ध साहित्यकार गिरीश पंकज पुस्तक में अपने आलेख में लिखते हैं-" कुछ लेखक लघुकथा को लघु कहानी समझ लेते हैं जिसे अंग्रेजी में 'शॉर्ट स्टोरी' कहते हैं, जबकि वह लघु नहीं पूर्ण विस्तार वाली सुदीर्घ कहानी ही होती है। लघुकथा के नाम पर 500 या 1000 शब्दों वाली भी लघुकथाएं मैंने देखी हैं और चकित हुआ हूं ।ये किसी भी कोण से लघुकथा के मानक में फिट नहीं हो सकती। मेरा अपना मानना है कि लघुकथा 300 शब्दों तक ही सिमट जाएं तो बेहतर है। तभी सही मायने में उसे हम संप्रेषणीय में लघुकथा कहेंगे। अगर वह 500 या उससे अधिक शब्दों तक फैल जाती है तो उसे लघु कहानी के श्रेणी में रखना उचित होगा।"
मिथिलेश जी ने बहुत श्रमसाध्य कार्य किया है, लघुकथा पर कालजयी विमर्श की पहल की है उन्हें हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
पुस्तक- हिंदी लघुकथा स्वरूप और सार्थकता
संपादक- डॉ. मिथिलेश दीक्षित
प्रकाशक-शुभदा बुक्स साहिबाबाद उ.प्र.
मूल्य-300/
पृष्ठ-112 (पेपर बैक)
समीक्षक-सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश-262701
मो-7860600355