असग़र वजाहत जी का जन्म 5 जुलाई 1946 को फतेहपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम॰ए॰ की और फिर वहीं से पी-एच॰डी॰ की उपाधि भी अर्जित की। पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्च JNU, दिल्ली से किया।
असग़र वजाहत साहब हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कहानीकार एवं सिद्धहस्त नाटककार के रूप में मान्य हैं। आपने कहानी, लघुकथा, नाटक, उपन्यास, यात्रा-वृत्तांत, फिल्म तथा चित्रकला आदि विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण रचनात्मक योगदान किया है। असग़र साहब दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रह चुके हैं।
खाल बदलने पर असग़र वजाहत की दो लघुकथाएं।
1)
बंदर / असग़र वजाहत
एक दिन एक बंदर ने एक आदमी से कहा– “भाई, करोड़ों साल पहले तुम भी बंदर थे। क्यों न आज एक दिन के लिए तुम फिर बंदर बनकर देखो।”
यह सुनकर पहले तो आदमी चकराया, फिर बोला– “चलो ठीक है। एक दिन के लिए मैं बंदर बन जाता हूँ।”
बंदर बोला– “तो तुम अपनी खाल मुझे दे दो। मैं एक दिन के लिए आदमी बन जाता हूँ।” इस पर आदमी तैयार हो गया।
आदमी पेड़ पर चढ़ गया और बंदर ऑफिस चला गया। शाम को बंदर आया और बोला– “भाई, मेरी खाल मुझे लौटा दो। मैं भर पाया।”
आदमी ने कहा– “हज़ारों-लाखों साल मैं आदमी रहा। कुछ सौ साल तो तुम भी रहकर देखो।”
बंदर रोने लगा– “भाई, इतना अत्याचार न करो।” पर आदमी तैयार नहीं हुआ। वह पेड़ की एक डाल से दूसरी, फिर दूसरी से तीसरी, फिर चौथी पर जा पहुँचा और नज़रों से ओझल हो गया। विवश होकर बंदर लौट आया।
और तब से हक़ीक़त में आदमी बंदर है और बंदर आदमी।
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2)
राजा / असग़र वजाहत
उन दिनों शेर और लोमड़ी दोनों का धंधा मंदा पड़ गया था। लोमड़ी किसी से चिकनी-चुपड़ी बातें करती तो लोग समझ जाते कि दाल में कुछ काला है। शेर दहाड़कर किसी जानवर को बुलाता तो वह जल्दी से अपने घर में घुस जाता। ऐसे हालात से तंग आकर एक दिन लोमड़ी और शेर ने सोचा कि आपस में खालें बदल लें। शेर ने लोमड़ी की खाल पहन ली और लोमड़ी ने शेर की खाल।
अब शेर को लोग लोमड़ी समझते और लोमड़ी को शेर। शेर के पास छोटे-मोटे जानवर अपने आप चले आते और शेर उन्हें गड़प जाता।
लोमड़ी को देखकर लोग भागते तो वह चिल्लाती ‘अरे सुनो भाई. . .अरे इधर आना लालाजी. . .बात तो सुनो पंडितजी!’ शेर का यह रंग-ढंग देखकर लोग समझे कि शेर ने कंठी ले ली है। वे शेर, यानी लोमड़ी के पास आ जाते। शेर उनसे मीठी-मीठी बातें करता और बड़े प्यार से गुड़ और घी मांगता। लोग दे देते। खुश होते कि चलो सस्ते छूटे।
एक दिन शेर लोमड़ी के पास आया और बोला, ‘मुझे अपना दरबार करना है। तुम मेरी खाल मुझे वापस कर दो। मैं लोमड़ी की खाल में दरबार कैसे कर सकता हूं?’ लोमड़ी ने उससे कहा, ‘ठीक है, तुम परसों आना।’ शेर चला गया।
लोमड़ी बड़ी चालाक थी। वह अगले ही दिन दरबार में चली गई। सिंहासन पर बैठ गई। राजा बन गई।
दोस्तो, यह कहानी बहुत पुरानी है। आज जो जंगल के राजा हैं वे दरअसल उसी लोमड़ी की संतानें हैं, जो शेर की खाल पहनकर राजा बन गई थी।
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चित्रः साभार गूगल