आज फेसबुक पर वरिष्ठ लघुकथाकार डॉ. बलराम अग्रवाल जी ने स्त्री के सशक्त रूप की एक अद्भुत लघुकथा साझा की। डॉ. संतोष श्रीवास्तव जी द्वारा सृजित यह लघुकथा एक स्त्री के चार रूप दिखाने में सक्षम है। पहला रूप वह स्त्री अपने शराबी पति से रोज़ मार खाती एक अबला का, दूसरा रूप अपने बच्चों का पालन-पोषण कर रही माँ अन्नपूर्णा सरीखी, तीसरा रूप जो इसमें बताया गया वह यह है कि वह किसी की दया पर ज़िंदा नहीं रहना चाहती और चौथा रूप जिस पर इस लघुकथा का शीर्षक टिका' है वह है - अंदर ही अंदर स्वयं को जलाती हुई एक स्त्री अब स्वतंत्रता की हवा में सांस ले पा रही है।
शराबी पति-मारपीट-खुद घर चलाना आदि पुराने विषय हैं लेकिन एक अर्थहीन पति की पत्नी की बजाय वह विधवा स्वयं को पहले से ठीक महसूस कर रही है, यहाँ लेखिका ने लघुकथा में जो शब्द कहे हैं कि "भोत चुभता था ताई मंगलसूत्र!", यह पढ़ते ही ना केवल दिल से आह बल्कि लेखिका के लेखन कौशल से वाह भी बरबस निकल जाता है।
- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
अद्भुत पंच पंक्ति लिए यह लघुकथा श्रेष्ठ हिन्दी लघुकथाओं में से एक है। आइए पढ़ते हैं:
झोपड़पट्टी के नजदीक समाज-सेविका मनोरमा की गाड़ी रुकी । गाड़ी को बच्चों ने घेर लिया। खबर हर एक झोपड़ी तक पहुँच गई… “मनोरमा ताई आई हैं।"
औरतें झोपड़ियों से निकल उनके संग-संग चलने लगीं।
"भोत बुरा हुआ ताई । मंदा का मरद नाले मेइच मर गया ।"
"भोत दारु पियेला था । पाँव फिसल गया नाले में।"
वे मंदा के झोपड़े के सामने खड़ी हो गईं । मंदा चूल्हे पर भात पका रही थी। बच्चे थाली लिए बैठे थे।
"कैसी है मंदा । आज मैं तेरे ही लिए आई हूँ। तेरे पति के मरने की खबर सुनकर। देख शहर के बड़े सेठ जी ने तेरे लिए मदद भेजी है। फैक्ट्री में काम भी दिला दूंगी तुझे ।" कहते हुए उन्होंने रुपयों से भरा लिफाफा उसकी ओर बढ़ाया ।
मंदा खड़ी हुई। उनके पैर छुए।
"भोत दया है आपकी ताई, पर मेरे को मदद नईं चईए। कमाती न मैं। बिल्डिंग में झाड़ू-पोछा-बर्तन करके ।"
"हाँ, पर उतने में तेरा गुजारा कैसे होगा। तीन बच्चे हैं तेरे। पति की कमाई भी तो...... ।"
"अच्छे से होगा ताई। पहले भी होता था न। मरद तो अपनी कमाई दारू में उड़ा देता था। उल्टा रोज मारता था मुझको। आधी-आधी रात तक गाली गलौज, उठा-पटक। एक रात भी चैन से नहीं सोई।"
वे मंदा के चेहरे पर पीड़ा की रेखाएं स्पष्ट देख रहीं थीं।
सहसा मंदा ने बेटी को आवाज दी :
"रे छन्नो, ताई के लिए गिलास में लिमका ला। बड़ी बॉटल मंगाई है ताई। बच्चे तरस गए थे।… तीनों की किताब-कॉपी भी खरीद ली। मंगलसूत्र बेचकर।" मंदा उनके नजदीक आकर फुसफुसाई, "भोत चुभता था ताई मंगलसूत्र!"
शराबी पति-मारपीट-खुद घर चलाना आदि पुराने विषय हैं लेकिन एक अर्थहीन पति की पत्नी की बजाय वह विधवा स्वयं को पहले से ठीक महसूस कर रही है, यहाँ लेखिका ने लघुकथा में जो शब्द कहे हैं कि "भोत चुभता था ताई मंगलसूत्र!", यह पढ़ते ही ना केवल दिल से आह बल्कि लेखिका के लेखन कौशल से वाह भी बरबस निकल जाता है।
- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
अद्भुत पंच पंक्ति लिए यह लघुकथा श्रेष्ठ हिन्दी लघुकथाओं में से एक है। आइए पढ़ते हैं:
मंगलसूत्र
झोपड़पट्टी के नजदीक समाज-सेविका मनोरमा की गाड़ी रुकी । गाड़ी को बच्चों ने घेर लिया। खबर हर एक झोपड़ी तक पहुँच गई… “मनोरमा ताई आई हैं।"
औरतें झोपड़ियों से निकल उनके संग-संग चलने लगीं।
"भोत बुरा हुआ ताई । मंदा का मरद नाले मेइच मर गया ।"
"भोत दारु पियेला था । पाँव फिसल गया नाले में।"
वे मंदा के झोपड़े के सामने खड़ी हो गईं । मंदा चूल्हे पर भात पका रही थी। बच्चे थाली लिए बैठे थे।
"कैसी है मंदा । आज मैं तेरे ही लिए आई हूँ। तेरे पति के मरने की खबर सुनकर। देख शहर के बड़े सेठ जी ने तेरे लिए मदद भेजी है। फैक्ट्री में काम भी दिला दूंगी तुझे ।" कहते हुए उन्होंने रुपयों से भरा लिफाफा उसकी ओर बढ़ाया ।
मंदा खड़ी हुई। उनके पैर छुए।
"भोत दया है आपकी ताई, पर मेरे को मदद नईं चईए। कमाती न मैं। बिल्डिंग में झाड़ू-पोछा-बर्तन करके ।"
"हाँ, पर उतने में तेरा गुजारा कैसे होगा। तीन बच्चे हैं तेरे। पति की कमाई भी तो...... ।"
"अच्छे से होगा ताई। पहले भी होता था न। मरद तो अपनी कमाई दारू में उड़ा देता था। उल्टा रोज मारता था मुझको। आधी-आधी रात तक गाली गलौज, उठा-पटक। एक रात भी चैन से नहीं सोई।"
वे मंदा के चेहरे पर पीड़ा की रेखाएं स्पष्ट देख रहीं थीं।
सहसा मंदा ने बेटी को आवाज दी :
"रे छन्नो, ताई के लिए गिलास में लिमका ला। बड़ी बॉटल मंगाई है ताई। बच्चे तरस गए थे।… तीनों की किताब-कॉपी भी खरीद ली। मंगलसूत्र बेचकर।" मंदा उनके नजदीक आकर फुसफुसाई, "भोत चुभता था ताई मंगलसूत्र!"
बहुत खूबसूरत पंक्तियां
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