"छोटे–बड़े सपने" वरिष्ठ लघुकथाकार रामेश्वर काम्बोज हिमांशु द्वारा रचित एक मार्मिक लघुकथा है। इस रचना में लेखक तीन बच्चों के माध्यम में समाज में फैली हुई आर्थिक असामानता को दर्शाने में पूर्णतः सफल हैं। एक विशिष्ट शैली में रचित इस रचना में तीनों बच्चे यूं तो अलग-अलग वर्गों से संबन्धित हैं और अपनी-अपनी बात रखते हैं। ये तीनों बच्चे एक साथ खेल रहे हैं। एक धनाढ्य सेठ, दूसरा बाबू का तो तीसरा एक रिक्शेवाले का बच्चा है। हालांकि अपने से काफी कमतर वर्ग के बच्चों के साथ अपने बच्चे का खेलना माता-पिता पसंद नहीं करते। किसी धनाढ्य सेठ का बेटा एक भूखे बच्चे के साथ खेल रहा है - यह लेखक की कल्पना उस समाज को लेकर है जहां उंच-नीच ना हो और यह बात आज के समाज के अनुसार केवल बच्चों को लेकर ही दर्शाई जा सकती है।
हालांकि तीनों बच्चों के रहन-सहन में अंतर के साथ उनके विकसित होते मस्तिष्क को भी लघुकथाकार ने दर्शाने का प्रयास किया है, जो कि लघुकथा सुनने के बाद चिंतन से अनुभव हो सकता है। बच्चों की सहज बातों से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे बच्चे जब भी बड़े होंगे तो उनकी मानसिकता कैसी हो चुकी होगी और तब अमीरी-गरीबी की खाई पाटना उनके लिए बच्चों के खेल जितना आसान नहीं होगा।
लेखक ने पात्रों के नामकरण भी बहुत सोच-समझ कर किए हैं। सेठ गणेशी लाल, नारायण बाबू और जोखू रिक्शे वाला। तीनों के बच्चे अपने–अपने सपनों के बारे में बताते है। सेठ के बेटे का सपना है–दूर नदी-पहाड़ पार कर घूमने जाना, वहीं बाबू का बेटा सपना देखता है कि वह बहुत तेज स्कूटर चला रहा, अंत में रिक्शे वाले का बेटा नमक और प्याज के साथ भरपेट खाना खाने का स्वप्न देखता रहा है और वह अपने सपने को बेहतरीन बताता है क्योंकि वह खुद भूखा है। सेठ का बेटा घूमता ही रहता है उसका यह सपना पूरा होना कोई बड़ी बात नहीं, बाबू का बेटा तेज़ स्कूटर चला सकता है लेकिन कहीं प्रतिबंध है उसके लिए स्कूटर चलाना मनोरंजन है लेकिन रिक्शेवाले का बेटा भूखा है। लेखक ने एक भूखे के स्वप्न के समक्ष बाकी के दोनों सपने बेकार बताए हैं। इस पर एक कहावत याद आ रही है कि किसी भूखे से पूछो कि दो और दो क्या होते हैं तो वह उत्तर देगा "चार रोटी" लघुकथा का अंत न केवल मार्मिक है बल्कि पाठकों को कल्पनालोक से बाहर निकालते हुए यथार्थ की पथरीली ज़मीन पर बिछे काँटों की चुभन का अहसास भी करा देता है।
आइये सुनते हैं रामेश्वर काम्बोज हिमांशु जी की लघुकथा छोटे-बड़े सपने शैफाली गुप्ता के स्वर में:
- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
हालांकि तीनों बच्चों के रहन-सहन में अंतर के साथ उनके विकसित होते मस्तिष्क को भी लघुकथाकार ने दर्शाने का प्रयास किया है, जो कि लघुकथा सुनने के बाद चिंतन से अनुभव हो सकता है। बच्चों की सहज बातों से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे बच्चे जब भी बड़े होंगे तो उनकी मानसिकता कैसी हो चुकी होगी और तब अमीरी-गरीबी की खाई पाटना उनके लिए बच्चों के खेल जितना आसान नहीं होगा।
लेखक ने पात्रों के नामकरण भी बहुत सोच-समझ कर किए हैं। सेठ गणेशी लाल, नारायण बाबू और जोखू रिक्शे वाला। तीनों के बच्चे अपने–अपने सपनों के बारे में बताते है। सेठ के बेटे का सपना है–दूर नदी-पहाड़ पार कर घूमने जाना, वहीं बाबू का बेटा सपना देखता है कि वह बहुत तेज स्कूटर चला रहा, अंत में रिक्शे वाले का बेटा नमक और प्याज के साथ भरपेट खाना खाने का स्वप्न देखता रहा है और वह अपने सपने को बेहतरीन बताता है क्योंकि वह खुद भूखा है। सेठ का बेटा घूमता ही रहता है उसका यह सपना पूरा होना कोई बड़ी बात नहीं, बाबू का बेटा तेज़ स्कूटर चला सकता है लेकिन कहीं प्रतिबंध है उसके लिए स्कूटर चलाना मनोरंजन है लेकिन रिक्शेवाले का बेटा भूखा है। लेखक ने एक भूखे के स्वप्न के समक्ष बाकी के दोनों सपने बेकार बताए हैं। इस पर एक कहावत याद आ रही है कि किसी भूखे से पूछो कि दो और दो क्या होते हैं तो वह उत्तर देगा "चार रोटी" लघुकथा का अंत न केवल मार्मिक है बल्कि पाठकों को कल्पनालोक से बाहर निकालते हुए यथार्थ की पथरीली ज़मीन पर बिछे काँटों की चुभन का अहसास भी करा देता है।
आइये सुनते हैं रामेश्वर काम्बोज हिमांशु जी की लघुकथा छोटे-बड़े सपने शैफाली गुप्ता के स्वर में:
- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
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