नेहा कॉलेज से घर आकर अपना बैग रखकर जैसे ही घूमती है, उसे ऐसा लगा उसके पिता की क्रोध से धधकती आँखें मानों उसे खा ही जायेंगी। वह कुछ समझ पाती कि चटाक-चटाक दो चाँटे उसके गाल पर पड़ गये। वह बदहवास सी खड़ी रह गयी।
शोर सुनकर माँ दौड़ी हुई वहाँ आयी,"अरे क्या हुआ,पागल तो नहीं हो गये हो! लड़की पढ़कर आ रही है और तुम उसे मारने लगे।"
"इसका दुपट्टा देखो, नया है, इसको कहाँ से मिला? जरूर किसी ने इसे ...।" पिता अपने शक की आग में झुलसे जा रहे थे।
"चुप रहो! मेरी लड़की ऐसी नहीं है, ना ही कभी होगी। मेरे खानदान में ऐसा कभी नहीं हुआ है।" नेहा की माँ उसके पिता को झिड़कते हुए बोली।
"माँ मुझे ये दुपट्टा मेरी सहेली ने दिया है। चाहे तो उससे पूछ लो, उसके पास यह फालतू था और उसने मुझे दे दिया।" नेहा ने सारी बात माँ को बता दी।
लेकिन फिर भी घर में पूरे दिन कलह जारी रहा। दूसरे दिन नेहा ने वह दुपट्टा अपनी सहेली को वापस कर दिया और वही पुराना सिला हुआ दुपट्टा ओढ़कर जाने लगी।
डॉ.सरला सिंह
दिल्ली
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-02-2019) को "अपने घर में सम्भल कर रहिए" (चर्चा अंक-3259) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत-बहुत आभार आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी
हटाएंहार्दिक आभार सर ।
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन कुछ बड़ा हो ही गया : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय।
हटाएंAchi .kahani
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