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सोमवार, 11 मार्च 2019

लघुकथा | बदला | अशोक दर्द

कक्षा में हिन्दी की अध्यापिका गीता ने किसी शब्द का उच्चारण अशुद्ध किया तो मैंने टोक दिया। फिर क्या था? उस दिन से उनका पारा मेरे लिए सातवें आसमान पर रहने लगा। यूँ तो मैं स्कूल कैप्टन थी, परन्तु गीता मैडम के लिए मैं उनकी प्रतिद्वंदी बन गयी। मैडम को जब भी मुझे जलील करने का मौका मिलता वह कभी नहीं चूकती। 

स्कूल का वार्षिक समारोह हुआ। बच्चों की ओर से मिस फेयरवेल चुना जाना था। सभी बच्चों ने मेरे नाम की पर्ची लिखकर बक्से में डाली थी। मैडम को पर्ची निकालकर नाम घोषित करने के लिए कहा। मैडम ने पर्ची निकाली और अपनी प्रिय स्टूडेंट का नाम अनाउंस कर दिया। सभी बच्चे मैडम को घूर रहे थे। मैडम ने मेरे नाम की पर्ची फाड़कर फैंक दी थी और संतुष्ट थी कि उन्होने बदला ले लिया है। घोषणा के बाद शांति छा गयी थी, उस सन्नाटे में मेरे मुंह से अनायास निकल गया, 
"मैडम आज फिर आपने अशुद्ध उच्चारण किया है।"

- अशोक दर्द
प्रवास कुटीर ,गाँव व डाकघर बनीखेत, जिला चंबा, हिमाचल प्रदेश

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