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बुधवार, 29 दिसंबर 2021

फेसबुक समूह साहित्य संवेद व किस्सा कोताह द्वारा आयोजित लघुकथा प्रतियोगिता का परिणाम

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https://www.facebook.com/groups/437133820382776/posts/1086572615438890
साहित्य_संवेद_किस्सा_कोताह_लघुकथा_प्रतियोगिता(आयोजन तिथि: 26-27नवम्बर 2021) के परिणाम के साथ आप सबके समक्ष उपस्थित हूँ।
प्रतियोगिता के समीक्षक-निर्णायक थे वरिष्ठ लघुकथाकार द्वय श्री Pawan Sharma और श्री Ramesh Gautam। आप दोनों विज्ञजनों का हार्दिक आभार।
विजेताओं का चयन मुश्किल भरा रहा। बहुत अच्छा लगा कि प्राप्तांक में कहीं-कहीं टाई का भी मामला रहा। सबसे अच्छी बात कि हम सभी लघुकथाप्रेमियों को अच्छी रचनाएँ पढ़ने को मिलीं।
दोनों निर्णायकों के मत और आयोजन समिति के सहमति के पश्चात विजेताओं का चयन इस प्रकार है। आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। आप सभी अपना पूरा पता पिन कोड के साथ और मोबाइल नंबर मुझे मेसेंजर पर भेज दें ताकि आपको पुरस्कृत पुस्तक भेजी जा सके।
प्रथम पुरस्कार(हलाहल: भारती दाधीच ) और
द्वितीय पुरस्कार(केंचुल: Saurabh Vachaspati )
को भवभूति मिश्र रचित लघुकथा संग्रह 'बची-खुची सम्पत्ति'+ मधुदीप संपादित #पड़ाव_पड़ताल का कोई एक खण्ड+ संतोष सुपेकर Santosh Supekar सम्पादित 'उत्कंठा के चलते'

तृतीय पुरस्कार(विस्तृत आकार : Jyotsana Singh )
विजेता को भवभूति मिश्र रचित लघुकथा संग्रह 'बची-खुची सम्पत्ति'+मधुदीप संपादित #पड़ाव_पड़ताल का कोई एक खण्ड

प्रोत्साहन पुरस्कार(तवायफ सभा: Chandresh Kumar Chhatlani एवं वक्त: Sandhya Tiwari )
भवभूति मिश्र रचित लघुकथा संग्रह 'बची-खुची सम्पत्ति'

विदित है कि प्रथम तीन विजेता रचनाओं का प्रकाशन #किस्सा_कोताह पत्रिका में किया जाएगा और प्रथम पांच विजेताओ को डिजिटल सर्टिफिकेट प्रदान किये जायेंगे।

श्री पवन शर्मा द्वारा लघुकथा एवं प्रतियोगिता में आई रचनाओं पर समीक्षकीय टिप्पणी:
"साहित्य संवेद किस्सा कोताह’ लघुकथा प्रतियोगिता"
मार्ग प्रशस्त करती समकालीन हिंदी लघुकथा
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•पवन शर्मा

लघुकथा पूर्णतः बौद्धिक लेखन है, जिसमें हमारे आसपास फैली व्याप्त विसंगतियों को उजागर कर पाठकों के सामने लाने का प्रयास किया जाता है। अनेक अवधारणाओं के बावजूद समकालीन हिंदी लघुकथा हिंदी साहित्य के प्रति अपना मार्ग प्रशस्त करती है।
आज की लघुकथाओं ने बदलते दौर में भी अपनी अस्मिता और गरिमा को बचाए रखा है। आज की लघुकथाओं ने मानवीय मूल्यों को बचाए रखा है, जो पाठकों का लगातार पीछा करते रहते हैं। सटीक, यथार्थपरक, संवेदनशील विषयों पर लिखी गई लघुकथाएं पाठक के मन मस्तिष्क पर अंकित रहती हैं। ऐसी ही लघुकथाएं दीर्घकालिक रहती हैं।
"लघुकथा जो न रिपोर्टिंग, न वक्तव्य, न संस्मरण और न दृश्यग्राफ है, बल्कि गद्य साहित्य में कथा विधा की सशक्त लघु आकारीय विधा है, जो वर्तमान की जमीन पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में कथा तत्वों को अपने में समाहित करती है।"
-लघुकथा में मौलिकता का समावेश हो। संक्षिप्तता हो। जीवन के एक ही पक्ष का सफल उद्घाटन हो। तीव्र गति से अपने लक्ष्य की ओर बढ़े। अनुभूतियों का सफल चित्रण हो। जिज्ञासा एवं कौतूहल का समावेश हो। प्रभाव और संवेदना की अन्विती हो। भाषा एवं शैली सरल हो। शीर्षक विषय के अनुकूल और छोटे हों। हिन्दी की अन्य विधाओं की तुलना में लघुकथा का आकार लघु होने के कारण पाठकों के बहुत नजदीक है। अपनी विधागत गुणों के दृष्टि से भी लघुकथा स्थापित हुई है। नि:संदेह लघुकथा मानव मूल्यों को तलाशने और तराशने का कार्य करती है। कठिन विरोधों के बावजूद भी साहित्य को एक गति प्रदान की है। विगत कई वर्षों से अनेक लेखक लघुकथा लेखन की ओर अग्रसर हुए हैं और अपने गम्भीर लघुकथा लेखन से अपना एक स्थान बनाया है। जिसमें नवीन भाषा, कथ्य, शिल्प देखने को मिले हैं। अनकों पत्र पत्रिकाओं ने लघुकथा के विकास में अपना अहम् योगदान दिया है।
‘साहित्य संवेद किस्सा कोताह’ लघुकथा प्रतियोगिता के लिए मुझे 73 लघुकथाएं प्राप्त हुईं। अद्योपांत लघुकथाओं को पढ़ने के बाद मुझे लगा कि बहुत सी लघुकथाएं जल्दबाजी में लिखी गई हैं। कथानक, शिल्प अच्छे हैं, पर लघुकथाओं में जो प्रभाव मिलना चाहिए, वो नहीं मिल पाया। कारण एक ही समझ में आया कि लघुकथा को लिखने के बाद गंभीरतापूर्वक उसे पढ़ने और परिमार्जित करने की आवश्यकता नहीं हुई, जबकि लेखक अपनी लिखी रचना को जितनी बार स्वयं पढ़ेगा, उतनी बार उसमें परिमार्जन की गुंजाइश रहती है, रचना तपकर कुंदन की तरह निखरेगी। लेखन में ‘क्वांटिटी’ के स्थान पर ‘क्वालिटी’ पर ध्यान देने की आवश्यकता होनी चाहिए, फिर भी बहुत सी लघुकथाएं अच्छी और प्रभावशाली हैं, जो पाठक को सहज रूप में आकृष्ट करती हैं और मन मस्तिष्क पर अपनी छाप छोड़ जाती हैं| बहरहाल, लघुकथा प्रतियोगिता में अच्छी और बेहतरीन लघुकथाएं पढ़ने को मिली हैं| सभी सम्मानित लघुकथाकारों को हार्दिक
बधाई
और शुभकामनाएं|
लघुकथा प्रतियोगिता हेतु प्राप्त लघुकथाओं में से तेजवीर सिंह Tej Veer Singh
की लघुकथा ‘पराभव’ राजनीति को आगे बढ़ाने और किसी को गिराने की परंपरा सालों साल से चलती आ रही है। अपनी राजनीतिक परंपरा में अपनी शाख बचाने एवं विकल्प् खोजती संवाद शैली में लिखी गई लघुकथा अद्भुत है। संवादों के एक एक शब्द पठनीय है। गहरे भाव की इस लघुकथा का अंत सोचने पर मजबूर करता है।
डॉ.रंजना जायसवाल की लघुकथा ‘भेड़िया’ कम शब्दों में लिखी गई मनुष्य के अंदर के भेड़ियेपन को दर्शाती है। ऐसे कुछ भेडिय़े शहरी संस्कृति में पले बड़े क्यों न हों। आखिर भेडिय़ा गांवों में ही तो घुसते हैं। भेडिय़ा को केन्द्र में रखकर लिखी गई लघुकथा प्रभाव डालती है।
सौरभ वाचस्पति ने लघुकथा ‘कैंचुल’ में जिस विषय को चुना है, वो पुराना जरूर है पर उन्होंने अपनी लघुकथा में उस चहरे को प्रस्तुत किया है। जो दया बाबू के चेहरे रूप में समाज में देखने को मिलता है। ऐसे लोगों की कैंचुल उतारने में राधा जैसी गांव की महिलाएं सक्षम हैं और उसे उतार फैंकने में परहेज नहीं करतीं।
सीमा व्यास की लघुकथा ‘रुकना या ठहरना’ में जीवन की भाग दौड़ में जीवन निकला जा रहा है, को भली प्रकार से दर्शाया गया है। दो पल भी जीवन को ठहरने का समय नहीं है। कम शब्दों में लिखी गई लघुकथा में स्वयं को ही तय करना होगा कि रुकना है या ठहरना।
रजनीश दीक्षित Rajnish Dixit की लघुकथा ‘इंसाफ’ प्रतीकात्मक शैली में लिखी गई लघुकथा है, जो प्रतीको के सहारे ही आगे बढ़ती है। मानवता डरी हुई और सहमी हुई है। विषय अलग है। भाषा एवं संवाद अच्छे हैं ।
नेहा अग्रवाल नेह Neha Agarwal Neh ने अपनी लघुकथा ‘फड़फड़ाते हुऐ पन्ने ’ में मॉं-बेटी के बीच के प्रेम को बेहद अनूठे और बेहतर ढंग से दर्शाया है। लघुकथा प्रभावकारी है। लघुकथा का अंत प्रभावित करता है।
शेख शहजाद उस्मांनी Sheikh Shahzad Usmani की लघुकथा ‘बूस्टर डोज’ कम शब्दों की व्यापारिक स्पर्धा इंगित करती और आपदा में अवसर तलाशती एक अच्छी लघुकथा है। जो समसामयिक और विश्वव्यापी समस्या को उजागर करती है।
चन्द्रेश कुमार छतलानी की लघुकथा ‘तवायफ सभा’ दकियानूसी विचारों आडंबर लिए, रीति रिवाजों में जकड़ी तवायफ की लघुकथा है| जिसके माध्यम से वह तवायफ तवायफ सभा में अदृश्य हथकड़ियों की ओर इशारा करती बेहतर लघुकथा है।
ज्योत्स्ना सिंह की लघुकथा ‘विस्तृत आकार’ संवेदना के स्तर पर एक अच्छी लघुकथा है। जीवन जीने में मेहनत का अंत सुखद ही होता है इसका उदाहरण निरखु के रूप में लघुकथा में उपस्थित है।
स्त्री जीवन पर लिखी गई मधु जैन
की लघुकथा ‘आकार से निराकार’ एक अच्छी लघुकथा है। एक स्त्री अपनी परंपरा का निर्वाह किस तरह से करती है, ये बात लघुकथा में बेहतर ढंग से दर्शाया गया है | लघुकथा का शीर्षक अत्यंत प्रभावित करता है।
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श्री रमेश गौतम द्वारा लघुकथा एवं प्रतियोगिता में आई रचनाओं पर की समीक्षकीय टिप्पणी:

साहित्य संवेद किस्सा कोताह लघुकथा प्रतियोगिता के संयोजक द्वारा प्रेषित लघुकथाओं को पढ़कर प्रतियोगिता हेतु श्रेष्ठता क्रम में लघुकथाओं का चयन करना एक कठिन अनुभव रहा। किस लघुकथा को कम अंक दिए जाएं, इसका निर्णय कर पाना बहुत ही मुश्किल था क्योंकि सभी लोग लघुकथाकारों ने अपनी ओर से उत्कृष्ट रचनाएं भेजीं किंतु जहाँ प्रतियोगिता की बात हो तो प्रत्येक प्रतियोगिता में कुछ मानक निर्धारित किए जाते हैं और उन्हीं के आधार पर रचनाओं का चयन किया जाता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए तथा लघुकथा के कथ्य एवं शिल्प को मानक मानकर उनका मूल्यांकन किया गया। इस आधार पर ही श्रेष्ठ लघुकथाएं चयनित की गई हैं जिनमें अंकों का अंतर बहुत कम है फिर भी कथ्य की नव्यता को मुख्य आधार मानकर लघुकथा की श्रेष्ठता सूची बनाई गई है। विजयी लघुकथाकारों को बधाई के साथ सभी लघुकथाकारों से यह भी कहना है कि लघुकथा के कथ्य में नवीनता होने के साथ-साथ शिल्प को ध्यान में रखना भी अनिवार्य है। कुछ भी लिख देने से लघुकथा नहीं बनती है, ना ही कहानी को छोटा करने से लघुकथा बनती है। लघुकथा एक स्वतंत्र, सशक्त एवं संपूर्ण विधा है।
इस प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाली लघुकथा 'हलाहल'(भारती दधीच) अपने कथ्य की नवीनता के आधार पर ध्यान आकृष्ट करती है क्योंकि ऐसे ऐसे विमर्श पर केंद्रित है जो हमें सजग करता है कि लैंगिक विकलांगता के साथ जन्म देने वालों बच्चों के प्रति हीनता बोध से मुक्ति होनी चाहिए ना कि इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कर उनका सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिए। लघुकथा 'वक्त'(सन्ध्या तिवारी) करोना काल की भयावहता को मार्मिक ढंग से हमारे समक्ष प्रस्तुत करती है। इस लघुकथा ने करोना काल के इस कटु यथार्थ को उजागर किया है कि महामारी ने सारी मानवीय संवेदनाओं को मृतप्राय कर दिया। लघुकथा का कथ्य संवेदनहीनता पर प्रश्नचिह्न लगाता है।
ज्योत्स्ना सिंह की 'विस्तृत आकार' मानवीय संवेदनाओं को आंदोलित करता है।
कल्पना मिश्रा की लघुकथा 'मनौती' दो बेटों के बीच तिरस्कृत मां की पीड़ा को नए ढंग से व्यक्त करती है। 'न्योछावर' बच्चों की खुशी को सर्वोपरि मानकर स्वार्थ से परे होकर परिवार में माता-पिता की सोच को ऊंचाई देती है। चंद्रेश छतलानी की 'तवायफ सभा' वेश्याओं के उजले पक्ष को प्रस्तुत करने का प्रयास करती है साथ ही देश और समाज की चिंता को भी रेखांकित करती है।
सौरभ वाचस्पति की 'केंचुल' स्त्रियों के संबंध में समाज के वितरित सोच पर प्रहार करती है।
शर्मिला चौहान Sharmila Chouhan की 'लाइलाज मर्ज' वर्तमान अस्पतालों में व्यवसायिक मानसिकता इस सीमा तक पसर चुकी है कि रोगी के मर जाने के बाद भी उसे वेंटिलेटर पर डाले रखते हैं और अधिक से अधिक बिल बनाने की कुत्सित प्रवृत्ति की ओर संकेत करती है। पुष्पा जोशी की 'लाल साड़ी गोटे वाली' समय पर काम न आने पर अपराध बोध से ग्रसित मनोभावों को चित्रित करती है। Poonam Katriar की 'आदिम स्पृहा' आज के युवाओं की अकेले रहने की सोच, भटकाव एवं स्वछंद मनोवृत्ति को दर्शाते हुए उसका सकारात्मक समाधान प्रस्तुत करती है। इसी तरह अन्य लघुकथाएँ भी अपने कथ्य की नवीनता से इस बात के लिए आश्वस्त करती हैं कि लघुकथा के क्षेत्र में सक्रियता बढ़ी है जो कि भविष्य के लिए आशान्वित करती है। सभी लघुकथाकारों को बहुत-बहुत बधाई।
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सधन्यवाद

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