पत्रिका समाचार 21 फरवरी 2020
दिल्ली से आए लघुकथाकार बलराम अग्रवाल ने कहा, हम वृद्ध आश्रम की बात करके युवा पीढ़ी को क्या बताना चाहते हैंं? क्या हमारे घर से कोई वृद्ध आश्रम गया है? जब हम अपने अनुभवों को कल्पना के आधार पर ही लिखेंगे तो वह बात गहराई से लोगों तक नहीं पहुंचेगी।
रायपुर द्य फाफाडीह स्थित होटल में राष्ट्रीय लघुकथा का आयोजन किया गया। इसमें डॉ. बलराम अग्रवाल, सुभाष नीरव, गिरीश पंकज,डॉ राजेश श्रीवास्तव, डॉ सुधीर शर्मा, डॉ. मालती बसंत, जया केतकी, साकेत सुमन चतुर्वेदी शामिल हुए।
संस्था की अध्यक्ष संतोष श्रीवास्तव ने लघुकथा में नारी अस्मिता को लेकर अपनी बात रखते हुए कहा, आज लघुकथा मांग करती है एक ऐसी शक्ति स्वरूपा नारी की जो अपनी अस्मिता और अस्तित्व की रक्षा करती हुई शोषण की शक्तियों से मुठभेड़ करती नजर आए। दिल्ली से आए लघुकथाकार बलराम अग्रवाल ने कहा, हम वृद्ध आश्रम की बात करके युवा पीढ़ी को क्या बताना चाहते हैंं? क्या हमारे घर से कोई वृद्ध आश्रम गया है? जब हम अपने अनुभवों को कल्पना के आधार पर ही लिखेंगे तो वह बात गहराई से लोगों तक नहीं पहुंचेगी। उन्होंने कई लघुकथाओं के उदाहरण देते हुए नारी अस्मिता को लेकर लघुकथाएं लिखना मौजूदा समय की मांग बताया।विशिष्ट अतिथि गिरीश पंकज ने कहा कि लघुकथा एक ऐसा लाइट हाउस है जो पूरे साहित्य को दिशा प्रदान करता है मुख्य अतिथि सुभाष नीरव ने अपने वक्तव्य में लघुकथाओं में नारी अस्मिता को लेकर विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। संस्था की ओर से विभिन्न विधाओं पर पांच पुरस्कार प्रदान किए गए।
राधा अवधेश स्मृति पुरस्कार-लक्ष्मी यादव, पुष्पा विश्वनाथ स्मृति पुरस्कार -अजय श्रीवास्तव अजेय,हेमंत स्मृति लघुकथा रत्न सम्मान-कांता राय, पांखुरी लांबा सक्सेना स्मृति पुरस्कार-साधना वैद, द्वारका प्रसाद स्मृति साहित्य गरिमा पुरस्कार-अलका अग्रवाल ममता अहार द्वारा शक्ति स्वरूपा नाटक का एकल मंचन के साथ ही 75 कवियों और लघुकथाकारों की कविता व लघुकथा की प्रस्तुति।तीन सत्रों में आयोजित कार्यक्रम का संचालन क्रमश: नीता श्रीवास्तव, रूपेंद्र राज तिवारी और वर्षा रावल ने किया।
Source:
https://www.patrika.com/raipur-news/el-cuento-es-un-faro-que-da-direccin-a-toda-la-literatura-5803798/
दिल्ली से आए लघुकथाकार बलराम अग्रवाल ने कहा, हम वृद्ध आश्रम की बात करके युवा पीढ़ी को क्या बताना चाहते हैंं? क्या हमारे घर से कोई वृद्ध आश्रम गया है? जब हम अपने अनुभवों को कल्पना के आधार पर ही लिखेंगे तो वह बात गहराई से लोगों तक नहीं पहुंचेगी।
रायपुर द्य फाफाडीह स्थित होटल में राष्ट्रीय लघुकथा का आयोजन किया गया। इसमें डॉ. बलराम अग्रवाल, सुभाष नीरव, गिरीश पंकज,डॉ राजेश श्रीवास्तव, डॉ सुधीर शर्मा, डॉ. मालती बसंत, जया केतकी, साकेत सुमन चतुर्वेदी शामिल हुए।
संस्था की अध्यक्ष संतोष श्रीवास्तव ने लघुकथा में नारी अस्मिता को लेकर अपनी बात रखते हुए कहा, आज लघुकथा मांग करती है एक ऐसी शक्ति स्वरूपा नारी की जो अपनी अस्मिता और अस्तित्व की रक्षा करती हुई शोषण की शक्तियों से मुठभेड़ करती नजर आए। दिल्ली से आए लघुकथाकार बलराम अग्रवाल ने कहा, हम वृद्ध आश्रम की बात करके युवा पीढ़ी को क्या बताना चाहते हैंं? क्या हमारे घर से कोई वृद्ध आश्रम गया है? जब हम अपने अनुभवों को कल्पना के आधार पर ही लिखेंगे तो वह बात गहराई से लोगों तक नहीं पहुंचेगी। उन्होंने कई लघुकथाओं के उदाहरण देते हुए नारी अस्मिता को लेकर लघुकथाएं लिखना मौजूदा समय की मांग बताया।विशिष्ट अतिथि गिरीश पंकज ने कहा कि लघुकथा एक ऐसा लाइट हाउस है जो पूरे साहित्य को दिशा प्रदान करता है मुख्य अतिथि सुभाष नीरव ने अपने वक्तव्य में लघुकथाओं में नारी अस्मिता को लेकर विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। संस्था की ओर से विभिन्न विधाओं पर पांच पुरस्कार प्रदान किए गए।
राधा अवधेश स्मृति पुरस्कार-लक्ष्मी यादव, पुष्पा विश्वनाथ स्मृति पुरस्कार -अजय श्रीवास्तव अजेय,हेमंत स्मृति लघुकथा रत्न सम्मान-कांता राय, पांखुरी लांबा सक्सेना स्मृति पुरस्कार-साधना वैद, द्वारका प्रसाद स्मृति साहित्य गरिमा पुरस्कार-अलका अग्रवाल ममता अहार द्वारा शक्ति स्वरूपा नाटक का एकल मंचन के साथ ही 75 कवियों और लघुकथाकारों की कविता व लघुकथा की प्रस्तुति।तीन सत्रों में आयोजित कार्यक्रम का संचालन क्रमश: नीता श्रीवास्तव, रूपेंद्र राज तिवारी और वर्षा रावल ने किया।
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https://www.patrika.com/raipur-news/el-cuento-es-un-faro-que-da-direccin-a-toda-la-literatura-5803798/
साझा करने के लिए शुक्रिया
जवाब देंहटाएंयदि साहित्य समाज का दर्पण है तो उसमें हर सामाजिक विषय पर बात होना स्वाभाविक है। वृद्धावस्था, और उससे जुड़ी परिस्थितियों, समस्याओं, संस्थाओं पर भी बात होगी ही। समस्या वृद्धाश्रम की कम, उसके बारे में जानकारी के पूर्णाभाव के बावजूद उसके बारे में सुनी-सुनाई बातों पर आधारित मान्यताओं, और कपोल-कल्पनाओं पर रचनाएँ रचने की है। वास्तव में अप्रभावी स्टीरियोटाइप लघुकथाओं की सबसे बड़ी समस्या वही है - अनुभव और प्रामाणिकता का अभाव और कपोल-कल्पना व छद्म-आदर्शवाद का अतिरेक।
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