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मंगलवार, 11 फ़रवरी 2020

लघुकथा: मेच फिक्सिंग | डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

नीदरलैंड और भारत की पत्रिका अम्स्टेल गंगा (ISSN: 2213-7351) के  जनवरी – मार्च २०२० (अंक २८, वर्ष ९) मेरी एक लघुकथा

लघुकथा 'मेच फिक्सिंग'

“सबूतों और गवाहों के बयानों से यह सिद्ध हो चुका है कि वादी द्वारा की गयी ‘मेच फिक्सिंग’ की शिकायत सत्य है, फिर भी यदि प्रतिवादी अपने पक्ष में कुछ कहना चाहता है तो न्यायालय उसे अपनी बात रखने का अधिकार देता है।” न्यायाधीश ने अंतिम पंक्ति को जोर देते हुए कहा।

“मैं कुछ दिखाना चाहता हूँ।” प्रतिवादी ने कहा

“क्या?”

उसने कुछ चित्र और एक समाचार पत्र न्यायाधीश के सम्मुख रख दिये।
पहला चित्र एक छोटे बच्चे का था, जो अपने माता-पिता के साथ हँस रहा था।

दूसरे चित्र में वो छोटा बच्चा थोड़ा बड़ा हो गया था, और एक विशेष खेल को खेल रहा था।


तीसरे चित्र में वो राष्ट्र के लिए खेल रहा था, और सबसे आगे था।

चौथे चित्र में वो देश के प्रधानमंत्री से सम्मानित हो रहा था।

पांचवे चित्र में उसी के कारण उसके खेल को राष्ट्रीय खेल घोषित किया जा रहा था।

और अंतिम चित्र में वो बहुत बीमार था, उसके आसपास कोई दवाई नहीं थी केवल कई पदक थे।

इसके बाद उसने देश के सबसे बड़े समाचार पत्र का बहुत पुराना अंक प्रस्तुत किया, जिसका मुख्य समाचार था, “दवाइयां न खरीद पाने के कारण हॉकी का जादूगर नहीं रहा।”



न्यायाधीश के हृदय में करुणा जागी लेकिन जैसे ही उसने कानून की देवी की मूर्ती की तरफ देखा, स्वयं की आँखें भी बंद कर ली।
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Source:
अम्स्टेल गंगा

8 टिप्‍पणियां:


  1. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 12 फरवरी 2020 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सही
    सही कहा,.... अंधा कानून...
    चाहे जज को कितनी भी दया आ जाय सच का पता भी चल जाय फिर भी सबूतों और गवाहों के अभाव में हारने वाली टीम हार ही जाती है....
    हृदयस्पर्शी सृजन....।

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  3. वाह! पर जीवन का ये बैलन्स, ये तारतम्य, यही तो जीवन की सबसे बड़ी चुनौती है।।

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