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सोमवार, 30 दिसंबर 2019

समीक्षा: सिलवटें (लघुकथा संकलन) | समीक्षक: वन्दना पुणतांबेकर


सिलवटें (इंदौर लेखिका संघ, इंदौर की प्रस्तुति)
प्रकाशक-रंग प्रकाशन, इंदौर
मूल्य-225 रुपए


विचारों का महकता गुलदस्ता / वन्दना पुणतांबेकर                     
सिलवटें जब मेरे हाथ में आई तो इतनी आकर्षक लगी कि शब्दों में कहना असम्भव है।इतनी सारी लेखिकाओं का लेखन सृजन देखकर मन की भवनाएं भावविभोर हो गई।कई रंगों के विचारों का एक महकता गुलदस्ता हाथों में थामे में महक उठी।यह संकलन इंदौर लेखिका संघ की लेखिकाओं की लघुकथाओं का सांझा संकलन है। इसमें 36 लेखिकाओं ने अपनी लेखनी से कमाल दिखाया है। संकलन की लगभग सभी  लघुकथाएं सारगर्भिता लिए हुए हैं। प्रत्येक लघुकथा अलग-अलग समाजिक परिवेश को दर्शाती है। समाज में व्याप्त विभिन्न विषयों पर लघुकथाओं के माध्यम से लेखिकाओं ने  बखूबी स्पष्ट दृष्टिकोण दर्शाया है। 

वन्दना पुणतांबेकर
यदि किसी विशेष घटना या लघुकथा का जिक्र करें तो  27 वें पेज पर डॉ. सुधा चौहान की  रावण दहल गया बहुत ही संदेशात्मक व प्रेणादायक लगी। इस लघुकथा में समाज के अलग-अलग रूपों की विकृतियों को, रावण के दसो रूपों को लेखिका ने अपनी भावनाओं के माध्यम से एक अलग ही भावना से व्यक्त किया है। समय की गति सचमुच बदल गई है।इस घोर कलयुग में रावण के दसों सिर समाज के गली-गली घर-घर मे इस प्रकार घुलमिल गए हैं कि उन्हें पहचानना मुश्किल है।यदि इस कलयुग में रावण एक बार फिर अवतरित हुआ तो इस समाज के रावणों को देखकर स्वयं ही लज्जित हो जाएगा। कथा में नवें सिर को देखते हुए मन की भावनाएं विचलित हो जाती हैं कि आतंकवाद कभी भी कहीं भी अपने तांडव से समाज, देश को नुकसान पहुंचाता रहता है। लेखिका की सोच और दृष्टिकोण इतना मार्मिक ओर ह्रदयस्पर्शी है कि उन्होंने आमजन के विचारों को छू कर अपने भावों को लघुकथा का रूप दिया। वहीं, अन्य कथाओं में जीवन की सच्चाई है, सोच है, भावनाएं हैं जो पढ़ने के बाद दिल-दिमाग में बहुत समय तक छाई रहती है। पुस्तक की छपाई, शीर्षक आकर्षक है। प्रूफ का गलतियां न के बराबर हैं जिससे लघुकथाएं पढ़ने में एकरसता बनी रहती है।

वन्दना पुणतांबेकर 

1 टिप्पणी:

  1. बहुत-बहुत आभार आदरणीय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी सर।

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