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सोमवार, 6 सितंबर 2021
हिन्दी की चुनिन्दा लघुकथाएँ, खण्ड-1
मधुदीप गुप्ता जी की फेसबुक वॉल से।
योजना: हिन्दी की चुनिन्दा लघुकथाएँ, खण्ड-1
इस योजना के अन्तर्गत हिन्दी की श्रेष्ठ चुनिन्दा लघुकथाओं के 3 या 5 खण्ड सम्पादित करने का विचार है । प्रत्येक खण्ड में 200 लघुकथाएँ शामिल की जायेंगी। एक लघुकथाकार की एक खण्ड में एक ही लघुकथा शामिल की जायेगी । दूसरे खण्ड में उसी लघुकथाकार की अन्य लघुकथा भी ली जा सकती है ।
जो लघुकथाकार इस योजना का हिस्सा बनना चाहते हैं वे अपनी 5 चुनिन्दा लघुकथाएँ मुझे नीचे लिखे पते पर भेज सकते हैं । रचना का अप्रकाशित होना आवश्यक कतई नहीं है । कोई भी साथी अपनी रचना अस्वीकृत होने पर नाराज न हो, इसमें सम्पादक का अपना विवेक ही अन्तिम निर्णय करेगा ।
प्रकाशित संकलन की प्रति मैं लघुकथाकार को लेखकीय प्रति के रूप में नि:शुल्क नहीं दे सकूँगा । यह संकलन नेट पर नि:शुल्क उपलब्ध करवाया जायेगा जैसाकि पड़ाव और पड़ताल के सभी 31 खण्ड करवाये जा चुके हैं । यदि शामिल लघुकथाकारों का पुस्तक लेने का आग्रह ही हुआ तो वह उन्हें उचित मूल्य पर उपलब्ध कराने का प्रयास रहेगा ।
लघुकथाएँ भेजते समय प्रकाशन के लिए अपनी सहमति, मौलिकता विषयक अपना कथन भी भेजना होगा ।
लघुकथाएँ हार्ड कॉपी में रजिस्टर्ड डाक या कोरीयर से भेजें , सॉफ्ट कॉपी में मेल से नहीं । अन्तिम तिथि 30 सितम्बर है ।
कोई भी अन्य जानकारी इसी पोस्ट पर लिखकर प्राप्त की जा सकती है ।
पता ---
मधुदीप, ( दिशा प्रकाशन ),
138/16, ओंकारनगर-बी, त्रिनगर,
दिल्ली-110035
मोबाइल 8130070928
यह शृंखला शकुन्तदीप की स्मृति को समर्पित रहेगी ।
रविवार, 5 सितंबर 2021
लघुकथा: शक्तिहीन | लेखक: डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी | राजस्थान पत्रिका
वह मीठे पानी की नदी थी। अपने रास्ते पर प्रवाहित होकर दूसरी नदियों की तरह ही वह भी समुद्र से जा मिलती थी। एक बार उस नदी की एक मछली भी पानी के साथ-साथ बहते हुए समुद्र में पहुँच गई। वहां जाकर वह परेशान हो गई, समुद्र की एक दूसरी मछली ने उसे देखा तो वह उसके पास गई और पूछा, “क्या बात है, परेशान सी क्यों लग रही हो?”
नदी की मछली ने उत्तर
दिया, “हाँ! मैं परेशान हूँ क्योंकि यह पानी कितना
खारा है, मैं इसमें कैसे जियूंगी?”
समुद्र की मछली ने हँसते
हुए कहा, “पानी का स्वाद तो ऐसा ही होता है।”
“नहीं-नहीं!” नदी की मछली
ने बात काटते हुए उत्तर दिया, “पानी तो मीठा
भी होता है।“
“पानी और मीठा! कहाँ पर?” समुद्र की मछली आश्चर्यचकित थी।
“वहाँ, उस तरफ। वहीं से
मैं आई हूँ।“ कहते हुए नदी की मछली ने नदी की दिशा की ओर इशारा किया।
“अच्छा! चलो चल कर देखते हैं।“ समुद्र की
मछली ने उत्सुकता से कहा।
“हाँ-हाँ चलो, मैं वहीं ज़िंदा रह पाऊंगी, लेकिन क्या तुम मुझे वहां तक ले
चलोगी?“
“हाँ ज़रूर, लेकिन तुम क्यों नहीं तैर पा रही?”
नदी की मछली ने समुद्र की
मछली को थामते हुए उत्तर दिया,
“क्योंकि नदी की धारा के
साथ बहते-बहते मुझमें अब विपरीत धारा में तैरने की शक्ति नहीं बची।“
- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
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यह लघुकथा राजस्थान पत्रिका में भी प्रकाशित हुई है. (11 जुलाई 2021)