सविता मिश्रा जी द्वारा सृजित एक तीक्ष्ण कटाक्ष करती लघुकथा - इज्ज़त
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शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019
लघुकथा वीडियो - जाति - हरीशंकर परसाई
जाति न पूछो व्यभिचार की
यह तो हम में से अधिकतर ने पढ़ा-सुना होगा ही कि, जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान। अर्थात सज्जन व्यक्ति की जाति की बजाय उसके ज्ञान को महत्व देना चाहिए। जैसे मूल्यवान तलवार होती है ना कि म्यान। हालांकि समय बदला, आज की नई पीढ़ी भी जाति के बजाय मानवता को महत्व दे रही है लेकिन फिर भी जाति तो जाति ही है। जाति के नाम पर वोट, जाति पर आरक्षण, जाति के अनुसार संबंध, मित्रता (कटुता भी) आदि को कम करने का प्रयास नहीं किया जा रहा, उल्टे कई जगहों पर बढ़ावा दिया जा रहा है। खैर, परसाई जी ने अपनी लघुकथा जाति में जो कटाक्ष किया है उसमें उन्होने ऐसी मानसिकता को उजागर किया है जो "जाति न पूछो साधु की" के बजाय "जाति न पूछो व्यभिचार की" को भी महत्व देने को तैयार हैं। वेलेंटाइन वीक में आइये सुनते हैं शिखा त्रिपाठी जी के स्वर में लघुकथा जाति।
यह तो हम में से अधिकतर ने पढ़ा-सुना होगा ही कि, जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान। अर्थात सज्जन व्यक्ति की जाति की बजाय उसके ज्ञान को महत्व देना चाहिए। जैसे मूल्यवान तलवार होती है ना कि म्यान। हालांकि समय बदला, आज की नई पीढ़ी भी जाति के बजाय मानवता को महत्व दे रही है लेकिन फिर भी जाति तो जाति ही है। जाति के नाम पर वोट, जाति पर आरक्षण, जाति के अनुसार संबंध, मित्रता (कटुता भी) आदि को कम करने का प्रयास नहीं किया जा रहा, उल्टे कई जगहों पर बढ़ावा दिया जा रहा है। खैर, परसाई जी ने अपनी लघुकथा जाति में जो कटाक्ष किया है उसमें उन्होने ऐसी मानसिकता को उजागर किया है जो "जाति न पूछो साधु की" के बजाय "जाति न पूछो व्यभिचार की" को भी महत्व देने को तैयार हैं। वेलेंटाइन वीक में आइये सुनते हैं शिखा त्रिपाठी जी के स्वर में लघुकथा जाति।
गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019
लघुकथा वीडियो: तेजवीर सिंह 'तेज' जी की लघुकथा "जन्मदिन का केक"
Vibhor विभोर चैनल पर "बोलती लघुकथाएँ" में तेजवीर सिंह 'तेज' जी की लघुकथा "जन्मदिन का केक"
तेजवीर सिंह 'तेज' जी की पहली लघुकथा 13 जुलाई 2015 को ओपन बुक्स ऑनलाइन (OBO) पर प्रकाशित हुई थी। प्रस्तुत लघुकथा "जन्मदिन का केक" में एक बूढ़े पिता की व्यथा को प्रदर्शित किया गया है। बेटा उसे अपनी कोठी में बने आउट हाउस में रखता है, एक शाम कर्नल बेटे के घर में पार्टी चल रही होती है तो बूढ़े पिता को खाना देना ही भूल जाते हैं । अगले दिन अर्दली से पता चलता है की रात को जन्मदिन की पार्टी थी तो स्मृति में उसे अपना जन्मदिन याद आता है, ख़ुशी होती है, लेकिन जैसे ही बूढ़े पिता को पता चलता है कि जन्मदिन की पार्टी तो बेटा अपने कुत्ते की मना रहा था तो उसको मीठा केक भी कड़वा लगने लगता है|
लघुकथा वीडियो: मधुदीप गुप्ता जी की लघुकथा "हिस्से का दूध" और अनिल शूर आज़ाद जी की लघुकथा "डंडा"
Vibhor विभोर यूट्यूब चैनल पर आदरणीय मधुदीप गुप्ता जी के "हिस्से का दूध" और आदरणीय अनिल शूर आज़ाद जी का "डंडा"
मधुदीप गुप्ता जी ने अपनी लघुकथा "हिस्से का दूध" के माध्यम से सामाजिक परिवेश में परिवार के महत्त्व यानि कि एक दूसरे के ख्याल रखने के साथ साथ आने वाले मेहमान की खातिरदारी का भी ख्याल रखने की भारतीय परम्परा को उकेरा है। अनिल शूर आज़ाद जी ने अपनी लघुकथा में "डंडा" शराबी पिता से डरने के बावजूद अभावों को झेलता हुआ बालक पढाई कर रहा है।
मधुदीप गुप्ता जी ने अपनी लघुकथा "हिस्से का दूध" के माध्यम से सामाजिक परिवेश में परिवार के महत्त्व यानि कि एक दूसरे के ख्याल रखने के साथ साथ आने वाले मेहमान की खातिरदारी का भी ख्याल रखने की भारतीय परम्परा को उकेरा है। अनिल शूर आज़ाद जी ने अपनी लघुकथा में "डंडा" शराबी पिता से डरने के बावजूद अभावों को झेलता हुआ बालक पढाई कर रहा है।
बुधवार, 6 फ़रवरी 2019
लघुकथा संग्रह - तैरती है पत्तियाँ - डॉ॰ बलराम अग्रवाल
तैरती हैं पत्तियां: त्वरित पाठकीय टिप्पणी
वरिष्ठ साहित्यकार ओमप्रकाश कश्यप की कलम से
बलराम अग्रवाल के ‘तैरती हैं पत्तियां’ शीर्षक से आए लघुकथा संग्रह का पीला मुखपृष्ठ देखकर लगा कि कवर बनाने में चूक हुई है. पत्तियों का जिक्र है तो कवर को हरियाला होना चाहिए था. लेकिन पहली कहानी पढ़ते ही संशय दूर हो गया. जिन पत्तियों को मनस् में रखकर शीर्षक का गठन किया गया है, वे हरी न होकर अपना जीवन पूरा कर पीली हो, पेड़ से स्वतः छिटक गई पत्तियां हैं. छोटी-सी भूमिका में लेखक ने स्वयं कवित्वमय भाषा में इसका उल्लेख किया है. लेकिन भूमिका से गुजरकर पाठक जैसे ही पहली लघुकथा तक पहुंचता तो उसका रहा-सहा संशय भी गायब हो जाता है. संग्रह की पहली ही लघुकथा ‘समंदर: एक प्रेमकथा’ अद्भुत है. इस लघुकथा में भरपूर जीवन जी चुकी एक दादी है. साथ में है उसकी पोती. दोनों के बीच संवाद है. भरपूर जीवन अनेक लोगों के लिए पहेलीनुमा हो सकता है, लेकिन इस लघुकथा को पढ़ेंगे तो इस पहेली का अर्थ भी समझ में आएगा और पीली हो चुकी पत्तियों के प्लावन का रहस्य भी. यह वह अवस्था है जब आदमी उम्रदराज होकर भी बूढ़ा नहीं होता, पत्तियां पीली होने, डाल से छूट जाने के बाद भी मिट्टी में नहीं मिलतीं, उनमें उल्लास बना रहता है. इस कारण वे जलप्रवाह में प्लावन करती नजर आती हैं. प्लेटो ने इसे जीवन की दार्शनिक अवस्था कहा है. अध्यात्मवादी इसके दूसरे अर्थ भी निकाल सकते हैं, लेकिन मैं बस इतना कहूंगा ‘समंदर: एक प्रेमकथा’ अनुभवसिद्ध कथा है.
अभी संग्रह को पूरा नहीं पढ़ा है. शुरुआत से मात्र पंद्रह-सोलह लघुकथाएं ही पढ़ी हैं. इतनी कहानियों में ‘अपने-अपने आग्रह’, ‘अजंता में एक दिन’, ‘उजालों का मालिक’, ‘इमरान’, ‘अपने-अपने मुहाने’, ‘अपूर्णता का त्रास’ अविस्मरणीय लघुकथाएं हैं. इतनी प्रभावी कि इनका असर कम न हो, इसलिए बाकी को छोड़ देना पड़ा. ‘अपने-अपने मुहाने’, ‘अपूर्णता का त्रास’, ‘उजालों का मालिक’ में कहानीपन के साथ-साथ प्रतीकात्मक भी है, वही इन्हें बेजोड़ बनाती है. प्रतीकात्मकता के बल पर ही किसी एक पात्र का सच पूरे समाज का सच नजर आने लगा है. प्रतीकात्मकता की जरूरत व्यंग्य में भी पड़ती है. मगर इन दिनों वह प्रतीकात्मकता से कटा है. इसलिए वह अवसान की ओर अग्रसर भी है.
बलराम अग्रवाल वरिष्ठ लघुकथाकार हैं. लघुकथा को समर्पित. यूं तो बच्चों के नाटक और बड़ों के लिए कहानियां भी लिखी हैं, लेकिन इन दिनों वे लघुकथा-एक्टीविस्ट की तरह काम कर रहे हैं. अपनी विधा के प्रति ऐसा समर्पण विरलों में ही देखा जाता है....जैसा कि ऊपर बताया गया है, पुस्तक की अभी कुछ ही लघुकथाएं पढ़ी हैं, जैसे-जैसे पुस्तक आगे पढ़ी जाएगी, यह टिप्पणी भी विस्तार लेती जाएगी.
मंगलवार, 5 फ़रवरी 2019
लघुकथा : मैदान से वितान की ओर
सोमवार, 4 फ़रवरी 2019
लघुकथा वीडियो: -- लघुकथा - मित्रता | हरिशंकर परसाई
लघुकथा वीडियो की श्रंखला में प्रस्तुत है हरिशंकर परसाई जी की लघुकथा - मित्रता।
दो विरोधी जब किसी तीसरे के विरोध में उतर आते हैं तो आपस में मित्र बन जाते हैं। सामान्य कार्यालय कर्मचारियों से लेकर देश के बड़े-बड़े राजनीतिक दलों की स्थिति इस एक मिनट से भी कम समय की लघुकथा में परसाई जी ने कह दी है। आइये शिखा त्रिपाठी जी के स्वर में सुनें इसे।
दो विरोधी जब किसी तीसरे के विरोध में उतर आते हैं तो आपस में मित्र बन जाते हैं। सामान्य कार्यालय कर्मचारियों से लेकर देश के बड़े-बड़े राजनीतिक दलों की स्थिति इस एक मिनट से भी कम समय की लघुकथा में परसाई जी ने कह दी है। आइये शिखा त्रिपाठी जी के स्वर में सुनें इसे।
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