'पुस्तक चर्चा' कार्यक्रम में वरिष्ठ लेखक चैतन्य त्रिवेदी ने साझा किए दिलचस्प किस्से
इंदौर (नईदुनिया रिपोर्टर)। दशकों पहले जब मैंने लघुकथा लिखनी शुरू कीं, उस वक्त लघुकथा को लेकर इतना उत्साहजनक माहौल नहीं था। ऐसे में उस दौर के लघुकथाकारों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती इस विधा को स्थापित करने की थी। मगर करीब 18 साल पहले जब मेरी लघुकथाओं की किताब 'उल्लास' आई तो जबरदस्त प्रतिसाद मिला। यहां तक कि उस दौर के बड़े कलमकारों में शुमार बलरामजी ने एक प्रतिष्ठित मासिक पत्रिका में उस पर कई पेज की समीक्षा भी लिखी। कुछ लोगों ने उनकी इस कोशिश को बहुत सकारात्मकता से लिया तो कुछ ने ये कहकर ऐतराज भी जताया कि इतनी लंबी समीक्षा तो लंबी कहानियों वाली किताबों को भी नहीं मिलती है। लेकिन इसका सबसे सकारात्मक पक्ष ये रहा कि लघुकथा पर गहन विचार-विमर्श शुरू हो गया और ये देखकर सुकून मिलता है कि अब इस विधा का शुमार सबसे ज्यादा लोकप्रिय साहित्यिक विधाओं में होने लगा है।
ये बात गुरुवार जनवरी 30, 2020 को शहर के वरिष्ठ लेखक चैतन्य त्रिवेदी ने एबी रोड स्थित एक होटल में आयोजित पुस्तक चर्चा कार्यक्रम में कही। अपनी नई किताब 'हवा की अफवाह' का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इसके आने के पहले ही जिस तरह से इसके बारे में पूछ-परख शुरू हो गई थी उससे मुझे यकीन हो गया है कि आने वाला दौर लघुकथा का ही है। दरअसल भीषण व्यस्तता के इस दौर में जब आम से लेकर खास आदमी तक वक्त की बेहद कमी हो चली है। ऐसे में अधिकांश लोग लंबी-लंबी कहानियों और उपन्यासों को पढ़ने के लिए पर्याप्त वक्त नहीं निकाल पाते हैं। इन लोगों के लिए लघुकथा सर्वश्रेष्ठ विकल्प बनकर सामने आ रही है। ये आमजन की व्यथा व्यक्त करने का सशक्त जरिया बन गई है। इसीलिए सोशल मीडिया और इंटरनेट के दौर में भी लघुकथाएं बहुत तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं।
नारी सशक्तिकरण का माध्यम
पिछले कुछ सालों में लेखन के क्षेत्र में महिला कलमकारों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है। उसकी भी एक बड़ी वजह लघुकथा है। क्योंकि इस क्षेत्र में आने वाली नई लेखिकाओं में से अधिकांश ने या तो लघुकथा विधा से अपनी साहित्यिक पारी की शुरुआत की है या फिर आगे चलकर इसे समग्रता से अपनाया है। इस लिहाज से लघुकथा नारी सशक्तिकरण का माध्यम भी बन गई है। मुझे लगता है कि फिलहाल लघुकथा की टक्कर में केवल काव्य विधा है, जिसे लघुकथा की ही तरह महिला और पुरुष कलमकारों ने समान रूप से अपनाया है।
Source:
https://www.naidunia.com/madhya-pradesh/indore-indore-city-5306233
इंदौर (नईदुनिया रिपोर्टर)। दशकों पहले जब मैंने लघुकथा लिखनी शुरू कीं, उस वक्त लघुकथा को लेकर इतना उत्साहजनक माहौल नहीं था। ऐसे में उस दौर के लघुकथाकारों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती इस विधा को स्थापित करने की थी। मगर करीब 18 साल पहले जब मेरी लघुकथाओं की किताब 'उल्लास' आई तो जबरदस्त प्रतिसाद मिला। यहां तक कि उस दौर के बड़े कलमकारों में शुमार बलरामजी ने एक प्रतिष्ठित मासिक पत्रिका में उस पर कई पेज की समीक्षा भी लिखी। कुछ लोगों ने उनकी इस कोशिश को बहुत सकारात्मकता से लिया तो कुछ ने ये कहकर ऐतराज भी जताया कि इतनी लंबी समीक्षा तो लंबी कहानियों वाली किताबों को भी नहीं मिलती है। लेकिन इसका सबसे सकारात्मक पक्ष ये रहा कि लघुकथा पर गहन विचार-विमर्श शुरू हो गया और ये देखकर सुकून मिलता है कि अब इस विधा का शुमार सबसे ज्यादा लोकप्रिय साहित्यिक विधाओं में होने लगा है।
ये बात गुरुवार जनवरी 30, 2020 को शहर के वरिष्ठ लेखक चैतन्य त्रिवेदी ने एबी रोड स्थित एक होटल में आयोजित पुस्तक चर्चा कार्यक्रम में कही। अपनी नई किताब 'हवा की अफवाह' का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इसके आने के पहले ही जिस तरह से इसके बारे में पूछ-परख शुरू हो गई थी उससे मुझे यकीन हो गया है कि आने वाला दौर लघुकथा का ही है। दरअसल भीषण व्यस्तता के इस दौर में जब आम से लेकर खास आदमी तक वक्त की बेहद कमी हो चली है। ऐसे में अधिकांश लोग लंबी-लंबी कहानियों और उपन्यासों को पढ़ने के लिए पर्याप्त वक्त नहीं निकाल पाते हैं। इन लोगों के लिए लघुकथा सर्वश्रेष्ठ विकल्प बनकर सामने आ रही है। ये आमजन की व्यथा व्यक्त करने का सशक्त जरिया बन गई है। इसीलिए सोशल मीडिया और इंटरनेट के दौर में भी लघुकथाएं बहुत तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं।
नारी सशक्तिकरण का माध्यम
पिछले कुछ सालों में लेखन के क्षेत्र में महिला कलमकारों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है। उसकी भी एक बड़ी वजह लघुकथा है। क्योंकि इस क्षेत्र में आने वाली नई लेखिकाओं में से अधिकांश ने या तो लघुकथा विधा से अपनी साहित्यिक पारी की शुरुआत की है या फिर आगे चलकर इसे समग्रता से अपनाया है। इस लिहाज से लघुकथा नारी सशक्तिकरण का माध्यम भी बन गई है। मुझे लगता है कि फिलहाल लघुकथा की टक्कर में केवल काव्य विधा है, जिसे लघुकथा की ही तरह महिला और पुरुष कलमकारों ने समान रूप से अपनाया है।
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https://www.naidunia.com/madhya-pradesh/indore-indore-city-5306233
सटीक लेख
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय।
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