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रविवार, 6 नवंबर 2022

लीला तिवानी की पांच लघुकथाएँ

लीला तिवानी जी इन दिनों अपनी लघुकथाओं के कारण चर्चित हो रही हैं। आपने हिंदी में एम.ए., एम.एड. किया है। कई वर्षों तक हिंदी अध्यापन के पश्चात अब रिटायर्ड हो हिंदी साहित्य सेवा में रत हैं। आपके दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत हो चुके हैं और हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। तिवानी जी की रचनाऍं अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। नवभारत टाइम्स के अपना ब्लॉग "रसलीला'' में अब तक 3345 रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। आइए पढ़ते हैं लीला तिवानी जी की पांच लघुकथाएँ:


1. काम बोलता है!
"सर, मैं रोहित बोल रहा हूं.''
"सब खैरियत तो है न! इतनी देर रात गए फोन कर रहे हो?''
"सर एक ख़ास बात करनी थी.'' रोहित ने हिचकते हुए कहा.
"बोलो, बोलो.'' बॉस ने उसे आश्वस्त किया.
"सर, मैंने सुना है आप रोहन को तरक्की देने वाले हैं!''
"तो!''
"सर, आप पता नहीं जानते हैं या नहीं, एक तो काम का बहुत ढीला है, दूसरे आपकी बुराई भी बहुत करता है!''
"चलो अच्छा हुआ तुमने बता दिया! मुझे तो पता ही नहीं था! मैं तो उसे डिप्टी चेयरमैन बनाने वाला था! तुम क्या चाहते हो?'' 
"सर, आप अगर मुझे कंसीडर करें तो!...'' आगे वह बोल नहीं पाया.
"अच्छा, सोचता हूं. कल ऑफिस में मिलते हैं.'' बॉस ने फोन रख दिया.''
खुशी के मारे रोहित का मन बल्लियों उछलने लगा! अब पता चलेगा बेटे को, मुझे सिखाता था.
लकदक सूट-बूट चढ़ाए वह ऑफिस की सीढ़ियां चढ़ रहा था कि चपरासी ने उसे बॉस के बुलावे का संदेश दिया.
अपनी सीट पर रोहित ने ब्रीफकेस रखा, एक बार फिर अपने सूट-बूट पर नजर डाली और चल दिया बॉस का दरवाजा खटखटाने.
"आओ-आओ रोहित, मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था. ये लो अपना इनाम!'' बॉस ने एक लिफाफा पकड़ाते हुए कहा. 
"थैंक्यू-थैंक्यू'' कहते हुए रोहित बिना लिफाफा खोलकर देखे ही चल पड़ा.
"ओहो! ये क्या हुआ? रोहन को प्रोमोशन और मुझे डिमोशन!''
उल्टे पांव चलते हुए उसने बॉस का दरवाजा खटखटाया.
"येस, अंदर आओ.'' सुनकर वह अंदर आया.
"सर...'' लिफाफे की ओर इशारा करते हुए वह इतना ही कह पाया!
"मिस्टर रोहित, बॉस की नजर बोलती है, मातहत का काम बोलता है! आप अपनी सीट (औकात) पर जा सकते हैं.'' 
काम की तरह रोहित की नजर भी नीची हो गई थी.
 -०-

2. "सिर काट दो!''
"ममा आज हमारी मैम ने अलग-अलग विषयों पर कल कोई कहानी सुनाने का गृह कार्य दिया है. मुझे लालच का विषय दिया गया है, ममा प्लीज़ कोई कहानी सुना दो न!'' कविश ने निहोरा लिया.
"अरे ये काम तो दादी मां बड़े शौक से कर देंगी, उन्हें ढेरों कहानियां आती हैं.''
लालच पर कहानी! तो सुनो.
"दीनू बहुत ही दीन अवस्था में था. वह गुजारे के लिए हमेशा परेशान रहता था. 
एक दिन उसकी चिंतित अवस्था देखते हुए एक साधु बाबा ने उसे एक थाली दी, जिससे रात को कोई एक चीज मांगकर ढक कर रखना था, सुबह मनचाही चीज मिल जाएगी. पर एक से अधिक चीजें मांग लीं तो सब कुछ गायब हो जाएगा और थाली भी. 
घर आकर उसने खुशी से पत्नी को बताया, वह भी बहुत खुश हुई. उस रात उसने सोने की मोहरें मांगीं, उन्हें सुबह मिल गईं. 
फिर एक रात उसने महल, फिर दासी, फिर नौकर-चाकर सब कुछ एक-एक करके मांग लिया, तो अगले दिन उसे मन चाही चीज़ मिल जाती थी. गरीबी की जगह अब उनकी अमीरी का ठिकाना नहीं था. 
एक रात को दीनू घर नहीं आ पाया. उसकी लालची पत्नी ने थाली से एक से अधिक चीजें मांग लीं और थाली ढककर सो गई. 
अगले दिन सुबह जब दीनू घर आया तो वहां न महल था, न नौकर-चाकर. उसकी पत्नी उसी पहले वाली टूटी-फूटी झोंपड़ी में दुःखी हालत में बैठी थी. सब चीजें भी गायब हो गईं और थाली भी.''
"इसका मतलब लालच रूपी राक्षस का सिर काट देना चाहिए न दादी मां!'' 
अगले दिन कविश ने दादी मां की तरह चटखारे लेकर कक्षा में कहानी सुनाई. उसके कहानी सुनाने के अंदाज़ से सभी बच्चे भी खुश हुए और मैम भी. कहानी खत्म होते ही सभी बच्चे एक साथ बोल उठे- 
"लालच रूपी राक्षस का सिर काट दो!''
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3. दीये रोशन हो उठे! 
“तीन दिवालियां आईं और गईं प्रियतम, तुम न आए. कब आओगे? तुम्हारे बिना दिवाली तो क्या हर दिन सूना-सूना लगता है.” पांचवीं पास बिटानी देवी चिट्ठी लिख रही थी.
“दहेज में मुझे जो भैंस मिली था, जानते हो न कितना दूध देती है! तुम्हारे सामने ही डेयरी का काम शुरु किया था, अब काम परवान चढ़ गया है. अब 16 गायें और 11 भैसें हैं, जिनसे हर दिन 100 से 120 लीटर दूध मिलता है. दूध सारा बिक जाता है, पैसे भी खूब आ रहे हैं, पर उन पैसों का क्या करूं. मेरा खाने-हंडाने वाला तो परदेस बैठा है!” आंखों से आंसू लुढ़ककर प्रियतम के पास पहुंचने वाले थे!
“पप्पू छः का हो लिया मुन्नी पांच की हो ली, दोनों बार-बार पूछते हैं कि पापा कब आएंगे?”
“आज फिर मूंग बने थे. पप्पू तुम पर गया है. दही में मूंग डालकर चटखारे लेकर खाता है. तुम्हारे बिना मूंग क्या कोई भी चीज नहीं भाती!”
“और क्या कहूं! बच्चों के लिए जो कुछ बनता है, हलक के नीचे उतार लेती हूं, अपने लिए अलग से कुछ बनाने का मन ही नहीं करता! बस एक बार तुम आ जाओ, हमारा हर दिन होली होगा, हर रात दिवाली.”
“मैं ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हूं, इसलिए कविताई तो लिख नहीं पाऊंगी, इसी को कविताई भी समझ लेना और मेरे मन की बात भी! आज बस इतना ही.
तुम्हारे आने की आस में,
तुम्हारी बिटानी
दिवाली के एक महीना पहले मोलू को यह खत मिला था, उसका मन भी बिटानी के पास पहुंचने को बेताब था, पर उसने खत का कोई जवाब नहीं दिया.
दीपावली की सांझ को उदास-सी बिटानी दीये जला रही थी. तभी भैंस पगुरा उठी, बच्चे “पापा आ गए, पापा आ गए!” कहकर शोर मचाने लगे.
बिटानी का मन-कमल खिल गया, दीये रोशन हो उठे!
-०-

4. दो बूंद पानी
“कम्मो, कहीं से दो बूंद पानी लादे, प्यास से जान जा रही है.” मां ने बेटी से कहा.
“प्यास को भी हम पर तरस भी नहीं आता, पता है कि पानी नहीं है तो प्यास लगती ही क्यों है?” कम्मो और क्या कह सकती थी. रीते बरतन लेकर पानी की तलाश में चल पड़ी.
जहां-जहां पानी मिलने की आस थी, वह गई. कहीं भी पानी की बूंद तक न दिखाई दी.
“पिछले साल बारिश जो बहुत कम हुई, पानी आए कहां से!” वह खुद से ही बतियाने लगी.
“अरी कम्मो, तू तो खुद से ही बतियाने लग रही है, क्या बात है?” बिम्मो भी रीते बरतन लिए उसके साथ हो ली.
“क्या करें जीजी! अम्मा प्यास के मारे मरी जा रही हैं, यहां पानी के दर्शन ही नहीं हो रहे.”
“ठहर, ये ले पानी!” बिम्मो ने अंटी से पानी की छोटी बोतल निकालकर कम्मो को दे दी, “जा तू अम्मा जी को पानी पिलाकर आ, ये कलसिया मुझे दे दे. पानी मिलेगा तो मैं भर दूंगी.”
बोतल लेकर कम्मो भागी, बिम्मो को धन्यवाद कहने का टेम भी नहीं था. अम्मा की जान का सवाल जो था!
“ले अम्मा, पानी पी ले.”
“जींवदी रह मेरी बच्ची.” गट-गट पानी गटगने के बाद अम्मा के दिल से आशीर्वाद की धारा बह निकली.
“ब‍िन पानी सब सून… गंभीर जल संकट से जूझ रहा गुजरात, तस्‍वीरें करा देंगी एहसास” एक लड़के की साइकिल पर रेडियो बोल रहा था.
“हम तो खुद ही प्यास की मूरत बनी हुई हैं, हमें ही देख लो.” कम्मो भागती जा रही थी.
“माननीयों की आंखों का पानी सूखने का नतीजा है दांडीची का जल संकट, अब आयोग के नोटिस से कुछ हो पाएगा?” जोर-जोर से भोंपू बोल रहा था.
“हमारी आंखों का पानी भी सूखने लग गया है. पहले तो कभी आंसू से ही खुद को तर कर लेते थे, भले ही वह तरावट खारी होती थी. अब तो तरसते-तरसते ही वह तरावट भी तरसने लग गई है.”
“महाराष्‍ट्र के एक गांव में महिलाएं जान जोखिम में डालकर थोड़े-से पानी के लिए 50 फीट गहरे कुएं में उतरने तक को मजबूर हो जाती हैं.” मुए भोंपू को आज ही सब कुछ बोलना था!
“पिछले बरस ऐसे ही तो गांव से चाची जी के मरने की खबर आई थी!” चाची जी के प्यार को याद कर कम्मो उदास हो गई थी.
”और वो लच्छो, वो तो सादी के दो दिनां बाद ही ससुराल से भाग आई थी. सुबह-सुबह रीती कलसी लेकर पहाड़ पर चढ़ना और फिर दिन चढ़े आधी कलसी लेकर पहाड़ से उतरना क्या आसान था! छोरी का सादी का सौक ही उतर गया.”
“आज तो पानी मिलने की उम्मीद ही नहीं है.” बिम्मो रीते बरतन लेकर दूर से आती हुई दिखी.
“क्या हुआ बिम्मो?”
“वो पाइप ही रिसने लाग गया था, जिससे पानी मिलवे था.” फूटे भाग्य की तरह मुश्किल से बिम्मो के बोल फूटे.
“बिम्मो वो पाइप नहीं, हमारी किस्मत ही रिस रही होगी! चल रीते बरतन लेकर ही घरवालों को मुंह दिखाएंगे. तूने तो जरा-सा पानी भी अम्मा जी के लिए दे दिया!”
“अरे अम्मा जी जैसे लोगन के आसीर्वाद से हम बिन पानी के भी जिंदा हैं! और सुन ये बरतन रीते नहीं हैं. इनमें हमारी आस है, हमारी प्यास है, फिर भी हम नहीं निरास हैं”
“इन बर्तनों में, भाईचारे की भावना, ममता की मिठाई, मेहनत की मलाई, खुशी की खुराक भी तो है! नहीं तो तू अम्मा जी के लिए पानी क्यों देती!”
“चल-चल, अब तो सूखे टिक्कड़ के बिना ही सोना पड़ेगा. सूखे टिक्कड़ भी दो बूंद पानी की जरूरत होती है न!”
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लीला तिवानी
नई दिल्ली

5. श्री गणेश
"बिटिया, सारे घर में ए. सी.लगे हुए हैं, उनको छोड़कर तुम यहां बाहर गर्मी में क्यों बैठी हुई हो?'' इकलौती बिटिया सलोनी को ढूंढते हुए पिता ने उसे देखते ही पूछा.
"पापा, इस दीवार पर माली काका ने सूरज की जो तस्वीर बनाई है, वह मुझे कुछ सोचने का इशारा-सा करती हुई लग रही है, इसलिए जब मुझे कुछ सोचना होता है, मैं यहीं आकर बैठ जाती हूं.''
"इस समय क्या सोच रही हो?''
"पापा, आप शिक्षित व्यक्ति हैं न!''
"हां बिटिया, पर ऐसा क्यों पूछ रही हो?''
"पापा, आपने कल मुझे फ्रेडरिक डगलस की प्रेरक कहानी सुनाई थी, जिसमें फ्रेडरिक डगलस ने कहा था, कि "शिक्षित व्यक्ति में दुनिया बदलने की ताकत होती है.”
"हां बिटिया, यह बात सत्य भी है.''
"तो आप सच्चे शिक्षित व्यक्ति नहीं हैं क्या?''
"तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा है!'' पापा का आश्चर्यचकित होना स्वाभाविक ही था.
"कल आपके पास बिल्डिंग बनवाने के लिए जो व्यक्ति आया था, आप उसे बता रहे थे- ”देखिए, आपकी बिल्डिंग में भी ऐसा ही प्रबंध होगा, जैसा हमारे घर में है. बारिश के पानी को इकट्ठा करने के लिए दो प्लांट लगेंगे. उनमें से एक नहाने-कपड़े धोने के लिए होगा, दूसरा पानी पीने और भोजन पकाने के लिए. रसोईघर का सारा पानी आपकी लॉन और सब्जी-भाजी की क्यारियों में जाएगा. इससे एक तो पानी का बिल कम आएगा, दूसरे पर्यावरण की सुरक्षा के साथ देश-सेवा भी हो जाएगी.''
"हां बिटिया, यह तो मैंने कहा था.''
"पापा यह सब तो आप कमाने के लिए कह रहे थे न! कमाने के लिए तो एक अशिक्षित व्यक्ति भी बहुत कुछ करता है, आपने अपने पड़ोसियों को यह सब बताने के लिए कुछ किया?''
"सच कह रही हो बिटिया, यह बात तो मुझे कभी सूझी ही नहीं. चलो अंदर चलते हैं और पड़ोसियों को फोन करके आज ही मीटिंग बुलाते हैं और समाज में बदलाव का काम शुरु करते हैं.''
बदलाव का श्री गणेश हो चुका था.
-०-
लीला तिवानी
नई दिल्ली

मंगलवार, 11 अक्टूबर 2022

लघुकथा अनुवाद | हिंदी से अंग्रेज़ी

Bone of Ravana | Author: Suresh Saurabh | Translator: Aryan Chaudhary


"Uff... oh mother..." As soon as the doctor lifted his leg, he groaned loudly. "Well, how did this happen?" the doctor asked.

"Ravana was falling down. Along with many other people, I also ran to get his bones. Somewhere there was an open drain of the municipality. In that hustle and bustle of the crowd, my foot went into the drain."

The doctor, looking at him with burning eyes, said, "There has been a fracture. Don't go again to pick up Ravana's bones; otherwise your family members will come to collect your bones. Raise your feet now. I want to inject. Then the first raw plaster will be installed, and after three days, the solid one. "

He raised his leg and the doctor injected, which he could not bear and started screaming again, "Uff... oh mother..."

"No, no oh mother... yell out, Oh Ravana, ho Ravana. "The bones of Ravana will do good. "

Now he closed his eyes in great pain. With closed eyes, he could now see the terrible Ravana of wood, which was marching cruelly towards him. Slowly, Ravana was getting into it. He was breaking his knuckles. The pain was increasing...

His doctor was installing raw plaster.

-०-

Translated by - Aryan Chaudhary

Vill.Jhaupur post Londonpur Gola Lakhimpur kheri 

Uttar Pradesh (262802)

Email - aryan612006@gmail.com

मूल हिंदी में यह लघुकथा


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सोमवार, 10 अक्टूबर 2022

क्षितिज का अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन

श्री सतीश राठी की फेसबुक वॉल से

9 अक्टूबर 2022 शरद पूर्णिमा के दिन क्षितिज का अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन बहुत अच्छे तरीके से संपन्न हो गया। इस महत्वपूर्ण आयोजन की अध्यक्षता दूरदर्शन के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक श्री राजशेखर व्यास के द्वारा की गई तथा साहित्य अकादमी भोपाल के निदेशक श्री विकास दवे मुख्य अतिथि रहे। इस आयोजन में लघुकथा विधा पर उसकी भाषा पर उसके शिल्प पर उसकी अभिव्यक्ति पर निरंतर विभिन्न सत्रों के भीतर चर्चा की गई और परिचर्चा भी रखी गई। 23 लघुकथाओं पर श्री नंदकिशोर बर्बे के एवं श्री सतीश श्रोती के निर्देशन में पथिक ग्रुप के द्वारा सफल मंचन का कार्यक्रम किया गया ।सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस आयोजन में 21 पुस्तकों का लोकार्पण किया गया जिनमें क्षितिज पत्रिका का लघुकथा समालोचना अंक भी शामिल रहा। आयोजन में 15 लघुकथाकारों को, साहित्यकारों ,को पत्रकारों को विभिन्न सम्मानों से सम्मानित किया गया। लघुकथा में स्त्री लेखन पर एक विशेष सत्र आयोजन में समाहित किया गया। समाज के विभिन्न वर्गों के महत्वपूर्ण व्यक्ति इस आयोजन में सम्मानित किए गए। सर्वश्री सूर्यकांत नागर, बलराम अग्रवाल ,भागीरथ परिहार, जितेंद्र जीतू ,पवन शर्मा, शील कौशिक, डॉक्टर मुक्ता, अंतरा करवड़े, कांता राय ,वसुधा गाडगिल, ज्योति जैन, गरिमा दुबे पुरुषोत्तम दुबे ,घनश्याम मैथिल अमृत, गोकुल सोनी ने विभिन्न विषयों पर अपने विचार अभिव्यक्त किए। श्री भागीरथ को लघुकथा शिखर सम्मान से सम्मानित किया गया। जितेंद्र जीतू को लघुकथा समालोचना सम्मान से, पवन शर्मा को लघुकथा समग्र सम्मान से एवं रश्मि चौधरी को लघुकथा नवलेखन सम्मान से सम्मानित किया गया। सर्वश्री बृजेश कानूनगो प्रदीप नवीन दिलीप जैन चक्रपाणि दत्त मिश्र को साहित्य रत्न सम्मान दिए गए। इनके अतिरिक्त श्री कीर्ति राणा को साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान अनुराग पनवेल को मानव सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया। लघुकथा पाठ के सत्र में श्री संतोष सुपेकर की अध्यक्षता और दिलीप जैन के विशेष आतिथ्य में लघुकथाकारों के द्वारा लघुकथा पाठ किया गया। इस सत्र का संचालन विनीता शर्मा सुरेश रायकवार के द्वारा किया गया।प्रारंभिक सत्र का संचालन अंतरा करवड़े एवं ज्योति जैन ने किया तथा आभार सुरेश रायकवार के द्वारा माना गया। सीमा व्यास के द्वारा लघुकथा मंचन के सत्र का संचालन किया गया प्रतिभागियों को मोमेंटो और सम्मान पत्र से सम्मानित भी किया गया। समस्त सत्रों का अंत में संस्था के सचिव दीपक गिरकर के द्वारा आभार माना गया। संस्था के विभिन्न सदस्यों के द्वारा आयोजन के नेपथ्य में बहुत सारी जिम्मेदारियों का निर्वहन किया गया।



विस्तृत परिवेदन

"मानवीय स्तर पर अपील करने वाली रचना स्मृति में बनी रहती है।"भगीरथ 

"जो रचना विचार के स्तर पर, बुद्धि के स्तर पर और मानवीय स्तर पर ज्यादा अपील करती है वहीं रचना आपकी स्मृति में हमेशा बनी रहती है। श्री सुकेश साहनी ने अलग - अलग विषय पर अलग - अलग शिल्प में लघुकथाएं लिखी हैं। जो रचनाकार प्रयोगात्मक लघुकथाएं लिखते हैं वे अलग - अलग शिल्प में लिखते हैं। कमल चोपड़ा की लघुकथाओं का शिल्प करीब करीब एक जैसा रहता है। रचनाकार को यह देखना है कि उसकी रचना पाठक के मन में, बुद्धि में प्रवेश कर रही है या नहीं। किसी भी लघुकथाकार की सभी लघुकथाएं उत्कृष्ट नहीं हो सकती हैं। कुछ लघुकथाएं उत्कृष्ट होगी, कुछ निम्न स्तर की होगी और कुछ अच्छी होगी।"  यह विचार श्री भगीरथ ने *लघुकथा विधा में सौन्दर्य दृष्टि एवं भाषा शिल्प* विषय पर अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि
'कल्पना का सौन्दर्य देखना हो तो असगर वजाहत की  शाह आलम की रुहें  की लघुकथाएं पढ़नी होगी। किसी भी विधा में शिल्प के अलावा भाषा भी एक प्रमुख तत्व है। लघुकथाकार संध्या तिवारी की भाषा मुग्ध करती है।'
उल्लेखनीय है कि प्रति वर्ष की तरह इस वर्ष भी क्षितिज संस्था ने एक दिवसीय अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन इंदौर शहर में किया है। इस महत्वपूर्ण आयोजन की अध्यक्षता दूरदर्शन के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक श्री राजशेखर व्यास के द्वारा की गई तथा साहित्य अकादमी भोपाल के निदेशक श्री विकास दवे मुख्य अतिथि रहे।प्रारंभिक सत्र का संचालन अंतरा करवड़े एवं ज्योति जैन ने किया तथा आभार सुरेश रायकवार के द्वारा माना गया। 
इस आयोजन में लघुकथा विधा पर उसकी भाषा पर उसके शिल्प पर उसकी अभिव्यक्ति पर निरंतर विभिन्न सत्रों के भीतर चर्चा की गई और परिचर्चा भी रखी गई। 23 लघुकथाओं पर श्री नंदकिशोर बर्वे के एवं श्री सतीश श्रोती के निर्देशन में 'पथिक' ग्रुप के द्वारा सफल मंचन का कार्यक्रम किया गया ।सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस आयोजन में 21 पुस्तकों का लोकार्पण किया गया जिनमें क्षितिज पत्रिका का 'लघुकथा समालोचना अंक' भी शामिल रहा। आयोजन में 15 लघुकथाकारों को, साहित्यकारों ,को पत्रकारों को विभिन्न सम्मानों से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम की एक विशेषता यह भी रही कि क्षितिज द्वारा आयोजित की गई अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता के निर्णय में सम्मानित 15 लघुकथा कारों को सम्मानित किया गया। प्रतियोगिता की संयोजिका डॉ वसुधा गाडगिल द्वारा निर्णयों की घोषणा करते हुए अतिथियों के हाथों से विजेताओं को मोमेंटो प्रदान करवाने का काम किया।
 'लघुकथा विधा एवं स्त्री लेखन की दृष्टि' विषय पर एक विशेष सत्र आयोजन में समाहित किया गया। इस सत्र की अध्यक्षता शील कौशिक के द्वारा की गई इस सत्र में ज्योति जैन, कांता राय, अंतरा करवड़े, वसुधा गाडगिल द्वारा चर्चा की गई ।इस सत्र का संचालन अंजना चक्रपाणि मिश्र के द्वारा किया गया।  लघुकथा विधा में सौंदर्य दृष्टि एवं भाषा शिल्प सत्र की अध्यक्षता श्री भगीरथ ने की। इस सत्र में श्री जितेंद्र जीतू एवं पवन शर्मा के व्याख्यान हुए सत्र का संचालन यशोधरा भटनागर के द्वारा किया गया। सांस्कृतिक एवं भौगोलिक मापदंडों से प्रभावित होता लघुकथा का शिल्प। इस विषय पर आयोजित चर्चा सत्र में डॉक्टर पुरुषोत्तम दुबे के द्वारा अध्यक्षता की गई। घनश्याम मैथिल अमृत गोकुल सोनी एवं गरिमा दुबे के द्वारा सत्र में विचार रखे गए। इस सत्र का संचालन अदितिसिंह भदोरिया के द्वारा किया गया।
 सर्वश्री सूर्यकांत नागर, बलराम अग्रवाल ,भागीरथ परिहार, जितेंद्र जीतू ,पवन शर्मा, शील कौशिक, डॉक्टर मुक्ता, अंतरा करवड़े, कांता राय ,वसुधा गाडगिल, ज्योति जैन, गरिमा दुबे पुरुषोत्तम दुबे ,घनश्याम मैथिल अमृत, गोकुल सोनी ने विभिन्न विषयों पर अपने विचार अभिव्यक्त किए। श्री भागीरथ को लघुकथा शिखर सम्मान से सम्मानित किया गया। जितेंद्र जीतू को लघुकथा समालोचना सम्मान से, पवन शर्मा को लघुकथा समग्र सम्मान से एवं रश्मि चौधरी को लघुकथा नवलेखन सम्मान से सम्मानित किया गया। श्री विकास दवे को साहित्य भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया। राजशेखर व्यास को राष्ट्र गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया।सर्वश्री बृजेश कानूनगो ,प्रदीप नवीन, दिलीप जैन, चंद्रा सायता, चक्रपाणि दत्त मिश्र को साहित्य रत्न सम्मान दिए गए। इनके अतिरिक्त श्री कीर्ति राणा को साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान, अनुराग पनवेल को मानव सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया। प्रदीप नवीन को गीत गुंजन सम्मान से सम्मानित किया गया। डॉक्टर मुक्ता एवं शील कौशिक को क्षितिज एवं चरणसिंह अमी फाउंडेशन द्वारा कथा सम्मान एवं लघुकथा सम्मान से सम्मानित किया गया। लघुकथा पाठ के सत्र में श्री संतोष सुपेकर की अध्यक्षता और दिलीप जैन के विशेष आतिथ्य में लघुकथाकारों के द्वारा लघुकथा पाठ किया गया।  इस सत्र का संचालन विनीता शर्मा सुरेश रायकवार के द्वारा किया गया। सीमा व्यास के द्वारा लघुकथा मंचन के सत्र का संचालन किया गया प्रतिभागियों को मोमेंटो और सम्मान पत्र से सम्मानित भी किया गया। विभिन्न सत्रों में डॉ दीपा व्यास एवं विजय जोशी शीतांशु द्वारा  शोध पत्र पढ़े गए।समस्त सत्रों का अंत में संस्था के सचिव दीपक गिरकर के द्वारा आभार माना गया। संस्था के विभिन्न सदस्यों के द्वारा आयोजन के नेपथ्य में बहुत सारी जिम्मेदारियों का निर्वहन किया गया।
शरद पूर्णिमा के दिन क्षितिज का यह आयोजन शरद पूर्णिमा के चांद की तरह अमृत रस वर्षा करने वाला रहा।

गुरुवार, 1 सितंबर 2022

लघुकथा मर्मज्ञ श्री अनिल मकारिया द्वारा लघुकथा संग्रह हाल-ए-वक्त पर एक टिप्पणी

श्रीयुत अनिल मकारिया उन लघुकथाकारों में से हैं जो गहराई में जाकर अपनी स्वयं की रचना का आकलन करने में सक्षम हैं। भाषा और शिल्प पर उनकी बड़ी पकड़ है।

अतएव,जब वे एक पाठक और समीक्षक बन किसी रचना का आकलन करते हैं तो उस रचना के रचनाकार के मोजों से लेकर टोपी तक खुद के पैरों से लेकर सिर तक फिट कर लेते हैं और अपने बाकमाल अंदाज़ में बहुत अच्छी समिक्षीय टिप्पणी से रचनाओं को दर्शा देते हैं।

उपरोक्त बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं प्रतीत होगी,जब आप इस पोस्ट में उनके द्वारा की गई एक लघुकथा 'मुर्दों के सम्प्रदाय' की निम्न समीक्षा पढ़ेंगे।

- चन्द्रेश कुमार छतलानी

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 पढ़ते-पढ़ते लघुकथा संग्रह 'हाल-ए-वक्त' / अनिल मकारिया

'हाल-ए-वक्त' लघुकथा संग्रह में दर्ज बेहतरीन लघुकथाओं में से एक है 'मुर्दों के सम्प्रदाय', यह लघुकथा पिता-पुत्र संवाद में छिपे प्रतीकों द्वारा प्रस्तुत होती है। इस लघुकथा को अगर संवाद-दर-संवाद, चबा-चबाकर पढ़ा जाए तो लेखक के प्रतीक गढ़ने की प्रतिभा एवं क्षमता का नायाब प्रदर्शन पाठक के समक्ष नमूदार होता है। जब पाठक ज़ेहन में यह लघुकथा खुल जाती है, तब इस लघुकथा का शीर्षक 'मुर्दों के संप्रदाय' पाठक को अजीब नहीं बल्कि मौजूं लगने लगता है। यह लघुकथा राजनीति विमर्श संबंधित कथ्य लिए हुए, प्रतीकों के सटीक इस्तेमाल और अलहदा निर्वहन के लिए पहचानी जाएगी। इस लघुकथा को खोलने के लिए हमें इसके संवादों में छुपी हुई प्रतिध्वनियों को सुनना होगा। इस लघुकथा का प्रथम संवाद बेटे द्वारा पिता से पूछा गया प्रश्न है,

//पापा, हम इस दुकान से ही मटन क्यों लेते हैं? हमारे घर के पास वाली दुकान से क्यों नहीं?// मानो कोई मतदान योग्य हुआ नौजवान बेटा अपने अनुभवी पिता से पूछ रहा हो।

प्रतिध्वनि: हम किसी खास पार्टी को ही वोट क्यों देते हैं ? दूसरी पार्टी को क्यों नहीं ?

लघुकथा में पिता का उत्तर आता है,

//क्योंकि हम हिन्दू हैं, हम झटके का माँस खाते हैं और घर के पास वाली दुकान हलाल की है, वहाँ का माँस मुसलमान खाते हैं।// जाती-धर्म की राजनीति से प्रभावित पिता के अनुभव का उत्तर पाठक मन में कुछ यूँ प्रतिध्वनित होता है,

प्रतिध्वनि: हम हिन्दू हैं इसलिए उस खास पार्टी को ही वोट देते हैं क्योंकि वह हिन्दू हित की बात करती है और क्योंकि दूसरी पार्टी मुस्लिम तुष्टिकरण की बात करती है तो उसे वोट भी मुस्लिम ही करते हैं।

जब बेटा दोनों दुकानों (पार्टीयों) का अंतर पूछता है तो पिता अनमने उत्तर दे ही देते हैं,

//बकरे को काटने के तरीके का अंतर है...//

प्रतिध्वनि: पार्टियों के मतदाता को लुभाने के तरीके एवं आश्वासनों का अंतर है।

बेटा शव को हिन्दूओं द्वारा जलाने और मुसलमान द्वारा दफनाने का उदाहरण देकर समझने की तस्दीक करना चाहता है और यह उदाहरण सुनकर पिता मुस्कुराकर उत्तर देते हैं।

//हाँ बेटे, बिल्कुल वैसे ही।//

प्रतिध्वनि: मज़हब के आधार पर हुए चुनाव में जीते कोई भी, जनाजा तो लोकतंत्र का ही निकलता है।

बाद में बेटे द्वारा यह पूछना की //कैसे पता चलता है कि बकरा हिन्दू है या मुसलमान ?// साफ प्रतिध्वनित करता है,

'कैसे पता चलेगा कि जनता (बकरे) ने वाकई सही नुमाइंदा (कसाई) चुना है ?'

अब पिता किसी खास पार्टी के प्रति अपने प्रेम को ताक में रखकर, एक ऐसी बात अपने बेटे से कहता है जो इस लघुकथा की पंचलाइन भी है और लघुकथा के कथ्य को भी पाठकों के समक्ष स्पष्ट कर देती है।

//बकरा गंवार-सा जानवर... जीते-जी नहीं//

प्रतिध्वनि: जनता बकरे के समान है और पार्टियां कसाइयों की भाँति, मतदान के बाद चाहे जनादेश किसी भी ओर झुका हो, सच तो यह है कि जनता रूपी गंवार बकरा, किसी न किसी पार्टी (कसाई ) के हाथों कटकर (पांच साल के लिए शासक चुनकर) अपनी जान गंवा चुका होता है।

चंद्रेश जी के इस संग्रह में कुछ लघुकथाएँ पाठकों के दिमाग को व्यस्त रखती हैं और नए नजरियों से पढ़ने पर विवश करती हैं। कई पाठकों का कहना है कि लघुकथा को उस अंदाज से प्रस्तुत ही क्यों करना, जिसे समझने के लिए दिमाग को मेहनत करनी पड़े ? 

और मुझे लगता है कि लघुकथा को प्रस्तुत ही इस अंदाज से करना चाहिए कि दिलोदिमाग उसे खोलने में व्यस्त हो जाये क्योंकि यह व्यस्तता ही हमें विचारों के नए आयामों की ओर लेकर जाती है, नए कथ्य-कथानकों की ओर आकर्षित करती है।

इस संग्रह के शुरुआती पन्नों में दर्ज लघुकथाओं में से 'E=MC × शून्य' लघुकथा का कथानक अगर अतिशयोक्तिपूर्ण लगता है तो 'कटती हुई हवा' का कथानक उतना ही मार्मिक एवं शानदार है। 'वही पुरानी तकनीक' लघुकथा भूख जैसे सार्वभौमिक विषय पर लिखी बेजोड़ कृति है, इस लघुकथा की अंतिम पंक्ति हृदय विदारक बयान प्रस्तुत करती है। 'पत्ता परिवर्तन' लघुकथा में प्रतीकों का कमजोर प्रस्तुतिकरण हुआ महसूस होता है। 'एक बिखरता टुकड़ा' के संवादों में बेहतरी की गुंजाइश बनी हुई है। 'संस्कार' लघुकथा अगर किसी फिल्म की मानिंद लगती है तो 'भटकना बेहतर' पुराने कथ्य-कथानक की निष्प्रभ प्रस्तुति है। 'गूंगा कुछ तो करता है' लघुकथा सोशल साइट्स पर राजनीतिक टिप्पणियों पर मची घमासान की मुस्कुराती हुई शानदार अभिव्यक्ति है।

(क्रमश:) 

#Anil_Makariya 



लघुकथा संग्रह : हाल-ए-वक्त

लेखक : चंद्रेश कुमार छतलानी

प्रकाशक : हिमांशु पब्लिकेशन्स

मूल्य : ₹ २५०

पृष्ठ : ९०



रविवार, 21 अगस्त 2022

क्षितिज अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन 2022


दिनांक 9 अक्टूबर 2022 रविवार

श्री मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति टैगोर मार्ग इंदौर

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देश के समस्त लघुकथाकारों को यह सूचना देते हुए  प्रसन्नता है कि , प्रत्येक वर्ष की तरह  इस वर्ष भी क्षितिज संस्था, इंदौर द्वारा श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति, इंदौर में  अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन 2022 दिनांक 9 अक्टूबर 2022 रविवार के पूरे दिन, सिर्फ एक दिवसीय स्वरूप में आयोजित किया जा रहा है । इसमें देश भर से प्रमुख लघुकथाकार शामिल होंगे और कई सम्मान भी प्रदान किए जाएंगे ।देश के समस्त लघुकथाकारों से निवेदन है कि इसमें उपस्थित होकर अपनी सहभागिता प्रदान करें। 

 पंजीयन शुल्क  प्रतिभागियों के लिए 500/- रुपए रखा गया है। कृपया पंजीयन शुल्क क्षितिज के खाते में जमा करें। खाते का विवरण निम्नानुसार है : 

एकाउंट विवरण --

Name of a/c -- KSHITIJ

Name of Bank -- UCO BANK

A/C No. -- 25300110044292

IFSC -- UCBA0002530

Branch -- ANNAPURNA ROAD, INDORE


पंजीयन हेतु क्षितिज के कोषाध्यक्ष श्री सुरेश रायकवार से संपर्क करें। श्री सुरेश रायकवार का मोबाइल नंबर 8818838007 है।

आयोजन में नाश्ता भोजन आदि की व्यवस्था रहेगी। बाहर के प्रतिभागियों को अपने आने जाने और आवास की व्यवस्था स्वयं करना होगी। इससे संबंधित अन्य सूचनाएं बीच में समय-समय पर प्रेषित कर दी जाएंगी । पूरा विश्वास है कि सदैव की तरह इस बार भी आप इस आयोजन में शामिल होकर आपकी गरिमामय उपस्थिति से गौरवान्वित करेंगे।


भवदीय 

सतीश राठी

अध्यक्ष क्षितिज 

दीपक गिरकर 

सचिव क्षितिज

इंदौर

संपर्क 

94250 67204

 94250 67036