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मंगलवार, 14 सितंबर 2021

कमज़ोर लघुकथाओं पर एक शोध कार्य पूर्ण


वरिष्ठ व नवोदित लघुकथाकारों के महती सहयोग से 40 कमज़ोर लघुकथाओं पर एक शोध पत्र लिख लिया है। इसे प्रकाशन को अब भेजूंगा। इस हेतु सादर आभार सर्वआदरणीय


अंजली खेर जी, अंजू खरबंदा जी, अनिल नानकराम मकारिया जी भाई, अर्चना तिवारी जी, अर्विना जी, आशीष दलाल जी, उदय श्री ताम्हणे जी, ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश' जी, कनक हरलालका जी, कमल कपूर दी, कविता वर्मा जी, चेतना भाटी जी, जगदीश राय कुलरियाँ जी, डॉ. अंजु लता सिंह जी, डॉ. इंदु गुप्ता जी, डॉ. कुमारसम्भव जोशी जी, डॉ. शैल चन्द्रा जी, डॉ. संध्या तिवारी जी, डॉ. सरला सिंह स्निग्धा जी, पम्मी सिंह ‘तृप्ति’जी, पूनम झा जी, पूनम सिंह जी, प्रतिभा श्रीवास्तव अंश जी, माधव नागदा जी सर, मिन्नी मिश्रा जी, मीरा जैन जी, मृणाल आशुतोष जी, योगराज प्रभाकर जी सर, राहिला आसिफ़ खान जी, वन्दना पुणतांबेकर जी, विरेंदर 'वीर' मेहता भाई जी, शशि बंसल गोयल जी, शील कौशिक जी, शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी, सत्या शर्मा ' कीर्ति ' जी, सारिका भूषण जी, सीमा भाटिया जी, सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा जी।


इस कार्य को अब विश्व भाषा अकादमी द्वारा आगे बढा कर एक ई-पुस्तक प्रकाशन का प्रयास किया जा रहा है। उपरोक्त रचनाकार तो हैं ही, उनके अतरिक्त भी कोई अन्य लघुकथाकार चाहें तो सहर्ष जुड़ सकते हैं, आप सभी का स्वागत है। पूर्ण जानकारी निम्न लिंक पर उपलब्ध है:


 https://www.facebook.com/102898151368935/posts/379098470415567/


- डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी

मंगलवार, 7 सितंबर 2021

फेसबुक समूह साहित्य संवेद में लघुकथा प्रतियोगिता की घोषणा

नमस्कार साथियो,

आपका अपना समूह #साहित्य_संवेद साहित्यिक आयोजन के प्रति सतत कटिबद्ध  है। इसी कड़ी को आगे बढाते हुए एक लघुकथा प्रतियोगिता का आयोजन  सुनिश्चित हुआ है जो कि आम लघुकथा प्रतियोगिताओं से भिन्न है । इसमें प्रतिभागियों को अपनी रचना न भेजकर किसी अन्य लेखक की लघुकथा विस्तृत टिप्पणी के साथ साझा करनी है। प्रतियोगिता को सुचारू बनाने हेतु कुछ नियम निर्धारित किए गए हैं। सभी सदस्यों से अनुरोध है कि प्रतियोगिता को सफल बनाने के लिए दिये गए नियमों का पालन करें।

प्रतियोगिता के नियम इस प्रकार हैं:

1. लघुकथा किसी भी अन्य लघुकथाकार की हो सकती है। ऐसी लघुकथा का चयन हो जो सामान्य से भिन्न हो। कथानक, कथ्य, शिल्प के स्तर पर प्रभावित करे।

2. एक प्रतिभागी अधिकतम दो(एक/दो) प्रविष्टि प्रतियोगिता में भेज सकते हैं।

3.लघुकथा पर अपनी टिप्पणी न्यूनतम 200(अधिकतम की कोई सीमा नहीं है) शब्दों में दें।

कथा के सकारात्मक पक्षों के अतिरिक्त त्रुटियों और  आलोचनात्मक पक्षों पर भी प्रतिभागियों की नज़र जाय, यह अपेक्षा जरूर है। केवल प्रशंसा हेतु यह प्रतियोगिता कतई नहीं है। और केवल कथा की कमियों और त्रुटियों पर भी केंद्रित रहना उचित नहीं है।

4. भाषायी शुद्धता का ध्यान रखें। रचना भेजने से पहले अशुद्धियों को ठीक कर लें। पोस्ट करने के बाद संपादित (एडिट) करना अमान्य होगा।

5. कृपया रचना के शीर्ष में #साहित्य_संवेद_लघुकथा_प्रतियोगिता_सितम्बर_2021 अवश्य अंकित करें।

6. रचनाएं साहित्य संवेद में ही  29 सितम्बर 2021 सुबह 7 बजे से 30सितम्बर

रात 11 बजे तक(भारतीय समयानुसार) पोस्ट करें।

प्रथम तीन प्रविष्टियों को पुरस्कार स्वरूप पुस्तक प्रदान की जाएगी।

* प्रथम पुरस्कार - हिंदी लघुकथा:मर्म की तलाश(सम्पादक:मिथिलेश दीक्षित)+ Chandresh Kumar Chhatlani रचित लघुकथा संग्रह 'बदलते हुए'

*द्वितीय पुरस्कार -लघुकथा:प्रासंगिकता एवं प्रयोजन(सम्पादक:मिथिलेश दीक्षित)

*तृतीय पुरस्कार -लघुकथा:प्रासंगिकता एवं प्रयोजन(सम्पादक:मिथिलेश दीक्षित)

आप सबसे विनम्र निवेदन है कि अपने साथियों की प्रविष्टियों पर अपनी बहुमूल्य  टिप्पणी भी अवश्य दें। एडमिनगण पुरस्कार से पृथक रहकर प्रतियोगिता का हिस्सा बन सकते हैं।

■यह प्रतियोगिता सामान्य से भिन्न है तो वरिष्ठजनों से भी भागीदारी की स्वाभविक अपेक्षा रहेगी।

■■अगर कोई लेखक चाहते हैं कि उनकी रचनाओं पर कोई आलोचनात्मक टिप्पणी न दें तो कमेंट बॉक्स में अथवा इनबॉक्स में सूचित कर सकते हैं।

■■■मित्रों से आग्रह है कि इस सूचना को अपने वाल पर स्थान दें ताकि अधिकाधिक लघुकथाकार इसमें सम्मिलित हो सकें।

■■■■सुझाव का भी स्वागत है।

सधन्यवाद,

दिव्या राकेश शर्मा Vandana Gupta Archana Rai स्वाति कमल उपाध्याय Shobhit Gupta और मृणाल आशुतोष

 





Source:

https://www.facebook.com/groups/437133820382776/?multi_permalinks=1013122789450540&notif_id=1630845272595108&notif_t=feedback_reaction_generic_tagged&ref=notif


सोमवार, 6 सितंबर 2021

‘स्वर्ण जयंती लघुकथाएँ’ | वाचन: श्री उमेश महादोषी | श्री भगीरथ परिहार की ‘दर्द का धुआँ हो जाना’ तथा श्री कुमार गौरव की लघुकथा ‘निष्ठुर’


 

हिन्दी की चुनिन्दा लघुकथाएँ, खण्ड-1

 मधुदीप गुप्ता जी की फेसबुक वॉल से।


योजना: हिन्दी की चुनिन्दा लघुकथाएँ, खण्ड-1


इस योजना के अन्तर्गत हिन्दी की श्रेष्ठ चुनिन्दा लघुकथाओं के 3 या 5 खण्ड सम्पादित करने का विचार है । प्रत्येक खण्ड में 200 लघुकथाएँ शामिल की जायेंगी। एक लघुकथाकार की एक खण्ड में एक ही लघुकथा शामिल की जायेगी । दूसरे खण्ड में उसी लघुकथाकार की अन्य लघुकथा भी ली जा सकती है ।

जो लघुकथाकार इस योजना का हिस्सा बनना चाहते हैं वे अपनी 5 चुनिन्दा लघुकथाएँ मुझे नीचे लिखे पते पर भेज सकते हैं । रचना का अप्रकाशित होना आवश्यक कतई नहीं है । कोई भी साथी अपनी रचना अस्वीकृत होने पर नाराज न हो, इसमें सम्पादक का अपना विवेक ही अन्तिम निर्णय करेगा ।

प्रकाशित संकलन की प्रति मैं लघुकथाकार को लेखकीय प्रति के रूप में नि:शुल्क नहीं दे सकूँगा । यह संकलन नेट पर नि:शुल्क उपलब्ध करवाया जायेगा जैसाकि पड़ाव और पड़ताल के सभी 31 खण्ड करवाये जा चुके हैं । यदि शामिल लघुकथाकारों का पुस्तक लेने का आग्रह ही हुआ तो वह उन्हें उचित मूल्य पर उपलब्ध कराने का प्रयास रहेगा ।

लघुकथाएँ भेजते समय प्रकाशन के लिए अपनी सहमति, मौलिकता विषयक अपना कथन भी भेजना होगा ।

लघुकथाएँ हार्ड कॉपी में रजिस्टर्ड डाक या कोरीयर से भेजें , सॉफ्ट कॉपी में मेल से नहीं । अन्तिम तिथि 30 सितम्बर है ।

कोई भी अन्य जानकारी इसी पोस्ट पर लिखकर प्राप्त की जा सकती है ।

पता ---

मधुदीप, ( दिशा प्रकाशन ),

138/16, ओंकारनगर-बी, त्रिनगर,

दिल्ली-110035

मोबाइल  8130070928

यह शृंखला शकुन्तदीप की स्मृति को समर्पित रहेगी ।

रविवार, 5 सितंबर 2021

लघुकथा: शक्तिहीन | लेखक: डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी | राजस्थान पत्रिका

वह मीठे पानी की नदी थी। अपने रास्ते पर प्रवाहित होकर दूसरी नदियों की तरह ही वह भी समुद्र से जा मिलती थी। एक बार उस नदी की एक मछली भी पानी के साथ-साथ बहते हुए समुद्र में पहुँच गई। वहां जाकर वह परेशान हो गई, समुद्र की एक दूसरी मछली ने उसे देखा तो वह उसके पास गई और पूछा, “क्या बात है, परेशान सी क्यों लग रही हो?

नदी की मछली ने उत्तर दिया, “हाँ! मैं परेशान हूँ क्योंकि यह पानी कितना खारा है, मैं इसमें कैसे जियूंगी?”

समुद्र की मछली ने हँसते हुए कहा, “पानी का स्वाद तो ऐसा ही होता है।”

“नहीं-नहीं!” नदी की मछली ने बात काटते हुए उत्तर दिया, “पानी तो मीठा भी होता है।“

“पानी और मीठा! कहाँ पर?” समुद्र की मछली आश्चर्यचकित थी।

“वहाँ, उस तरफ। वहीं से मैं आई हूँ।“ कहते हुए नदी की मछली ने नदी की दिशा की ओर इशारा किया।

“अच्छा! चलो चल कर देखते हैं।“ समुद्र की मछली ने उत्सुकता से कहा।

“हाँ-हाँ चलो, मैं वहीं ज़िंदा रह पाऊंगी, लेकिन क्या तुम मुझे वहां तक ले चलोगी?“

“हाँ ज़रूर, लेकिन तुम क्यों नहीं तैर पा रही?”

नदी की मछली ने समुद्र की मछली को थामते हुए उत्तर दिया,

“क्योंकि नदी की धारा के साथ बहते-बहते मुझमें अब विपरीत धारा में तैरने की शक्ति नहीं बची।“


- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी 

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यह लघुकथा राजस्थान पत्रिका में भी प्रकाशित हुई है. (11 जुलाई 2021)