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शनिवार, 4 सितंबर 2021

लघुकथा समाचार: अदारा 'मिनी' की भविष्य की योजनाओं की रूपरेखा

वरिष्ठ लघुकथाकार श्री जगदीश राय कुलरियन की फेसबुक पोस्ट से

अदारा 'मिनी' की भविष्य की योजनाओं की रूपरेखा

ट्राइमेस्टर के संपादक ' मिनी ' परिवार की संक्षिप्त बैठक रविवार 29.8.2021 को बरनाला में की गई, जिसमें डॉ श्याम सुंदर दीप्ति, श्रीमती उषा जी दीपाती, हरभजन सिंह खेमकर्णी, जगदीश राय कुलरियन, भूपेंद्र सिंह मान, एडवोकेट गुरसेवक सिंह रोड़की, बीर इंदर सिंह बनभोरी और कुलविंदर कौशल शामिल हुए । इस बैठक के दौरान निम्न मुद्दों पर चर्चा हुई और आपसी कार्यों का वितरण किया गया ।

1. मिनी कहानी प्रतियोगिता :- कुलविंदर कौशल को अब हरभजन सिंह खेमकर्णी जी के संयोजक के तहत मिनी स्टोरी फोरम पंजाब, अमृतसर द्वारा आयोजित 'मिनी स्टोरी मैच' की जिम्मेदारी दी गई है । बाकी साथी पहले की तरह सहयोग करेंगे । प्रतियोगिता रचनाओं को 30 सितम्बर 2021 तक भेजा जा सकता है । पूर्ण विवरण और नियम जल्द ही साझा किए जाएंगे ।

2. मिनी पत्रिका :- मिनी पत्रिका ने अब रचना के साथ लेखक की फोटो पर फोन नंबर छपवाने का निर्णय लिया है ।

3. विशेष अंक: तिमाही ' मिनी ' का जनवरी-मार्च 2022 अंक ' शिक्षण विश्व संकट पर आधारित होगा । इस संकट के विभिन्न फैलाव और विभिन्न पहलुओं को कवर करने वाली मिनी कहानियां 2021 अक्टूबर 31 तक भेजी जा सकती हैं ।

4. वेबसाइट :- अदारा त्रिमासिक 'मिनी' की वेबसाइट बनाने का निर्णय लिया गया है । इसकी जिम्मेदारी मिनी परिवार के सहायक महेन्द्रपाल मिंडा जी को सौंपी गई है । अक्टूबर 2021 के अंतरराज्यीय / वार्षिक आयोजन में पाठकों को सौंपने का प्रयास किया जाएगा । इस वेबसाइट पर मिनी-स्टोरी से जुड़े सभी मिनी के बिंदुओं, अंतरराज्यीय और त्रिमासिक घटनाओं और शोध पत्रों को पढ़ सकते हैं ।

5. How to Write Mini Story :- इस विषय के तहत स्कूली छात्रों को जोड़ने और गुणवत्तापूर्ण मिनी कहानियों को उन तक पहुंचाने के लिए स्कूल और कॉलेजों को सुलभ किया जाएगा । यह पूरा अवलोकन है और स्कूलों / कॉलेजों में इस विधि कार्यशालाओं को समेकित करने की जिम्मेदारी मिनी परिवार के सहायक बहुपक्षीय लेखक भूपेंद्र सिंह मान जी को सौंपी गई है ।

6. मीडिया समन्वय :- समाचार पत्रों / पत्रिकाओं के संपादकों के साथ समन्वय करने की जिम्मेदारी और इस विधि के प्रचार के लिए मीडिया के समन्वय के बारे में गुणवत्तापूर्ण मिनी कहानियों के बारे में मीडिया को समन्वय बनाने की जिम्मेदारी, पासार और मिनी कहानीकार बीर इंदर बनभौरी जी को सौंपी गई है ।

7. शैक्षणिक संस्थानों के साथ समन्वय: एडवोकेट गुरसेवक सिंह रोड़की को विश्वविद्यालयों और अन्य शिक्षण संस्थानों के माध्यम से मिनी कहानी पद्धतियों के प्रचार और निष्कासन की जिम्मेदारी दी गई है ।

8. पुरस्कार / सम्मान :- अदारा तिमाही मिनी और मिनी कहानी लेखक मंच पंजाब ने अंतरराज्यीय / वार्षिक कार्यक्रम में चार सम्मान देने का फैसला किया है । इन सम्मानों में सर्वश्रेष्ठ मिनी स्टोरी बुक ऑफ द ईयर अवार्ड, मिनी स्टोरी पद्धति से जुड़े आलोचकों, मिनी स्टोरी नए लेखक का सम्मान और पंजाबी मिनी स्टोरी का प्रमोशन, हिंदी लघु कथाकार को सम्मानित किया जाएगा । सम्मान के नाम पर जल्द ही चुनावी पद्धति साझा करेंगे । यह सम्मान मिनी परिवार से जुड़े विभिन्न लेखकों द्वारा अपने असली रिश्तेदारों की याद में दिया जाएगा ।

9. इंटरस्टेट इवेंट: पिंगलवाड़ा अक्टूबर 2021 में अमृतसर में होगा । रजिस्ट्रेशन फीस होगी । कार्यक्रम में भाग लेने वाले लेखकों के लिए 300 घटना का पूरा विवरण जल्द ही साझा किया जाएगा ।

10. आप सभी के सहयोग से ये सभी कार्यक्रम संपन्न होंगे । जिन साथियों को विभिन्न कार्यों की जिम्मेदारी दी गई है उनके सहयोग के लिए हम अन्य सदस्यों को भी जोड़ेंगे ।
आपकी प्रतिक्रिया और सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी ।
पूरा मिनी परिवार

Source
https://www.facebook.com/100000874623660/posts/4610380029001106/

गुरुवार, 2 सितंबर 2021

लघुकथा वीडियो | लघुकथा: फर्क | विष्णु प्रभाकर



उस दिन उसके मन में इच्छा हुई कि भारत और पाक के बीच की सीमारेखा को देखा जाए, जो कभी एक देश था, वह अब दो होकर कैसा लगता है? दो थे तो दोनों एक-दूसरे के प्रति शंकालु थे. दोनों ओर पहरा था. बीच में कुछ भूमि होती है जिस पर किसी का अधिकार नहीं होता. दोनों उस पर खड़े हो सकते हैं. वह वहीं खड़ा था, लेकिन अकेला नहीं था-पत्नी थी और थे अठारह सशस्त्र सैनिक और उनका कमाण्डर भी. दूसरे देश के सैनिकों के सामने वे उसे अकेला कैसे छोड़ सकते थे! इतना ही नहीं, कमाण्डर ने उसके कान में कहा, ‘उधर के सैनिक आपको चाय के लिए बुला सकते हैं, जाइएगा नहीं. पता नहीं क्या हो जाए? आपकी पत्नी साथ में है और फिर कल हमने उनके छह तस्कर मार डाले थे.’

उसने उत्तर दिया, ‘जी नहीं, मैं उधर कैसे जा सकता हूं?’ और मन ही मन कहा-मुझे आप इतना मूर्ख कैसे समझते हैं? मैं इंसान, अपने-पराए में भेद करना मैं जानता हूं. इतना विवेक मुझ में है.

वह यह सब सोच रहा था कि सचमुच उधर के सैनिक वहां आ पहुंचे. रौबीले पठान थे. बड़े तपाक से हाथ मिलाया.

उस दिन ईद थी. उसने उन्हें ‘मुबारकबाद’ कहा. बड़ी गरमजोशी के साथ एक बार फिर हाथ मिलाकर वे बोले, ‘इधर तशरीफ़ लाइए. हम लोगों के साथ एक प्याला चाय पीजिए.’

इसका उत्तर उसके पास तैयार था. अत्यन्त विनम्रता से मुस्कराकर उसने कहा, ‘बहुत-बहुत शुक्रिया. बड़ी ख़ुशी होती आपके साथ बैठकर, लेकिन मुझे आज ही वापस लौटना है और वक़्त बहुत कम है. आज तो माफ़ी चाहता हूं.’

इसी प्रकार शिष्टाचार की कुछ बातें हुई कि पाकिस्तान की ओर से कुलांचें भरता हुआ बकरियों का एक दल, उनके पास से गुज़रा और भारत की सीमा में दाखिल हो गया. एक-साथ सबने उनकी ओर देखा. एक क्षण बाद उसने पूछा, ‘ये आपकी हैं?’

उनमें से एक सैनिक ने गहरी मुस्कराहट के साथ उत्तर दिया, ‘जी हां, जनाब! हमारी हैं. जानवर हैं, फ़र्क़ करना नहीं जानते.’

-- विष्णु प्रभाकर,
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मंगलवार, 31 अगस्त 2021

‘स्वर्ण जयंती लघुकथाएँ’ । अविराम वाणी । वाचन: श्री उमेश महदोषी

 ‘अविरामवाणी’ पर ‘स्वर्ण जयंती लघुकथाएँ’ की तेईसवीं प्रस्तुति

वरिष्ठ लघुकथाकार स्मृतिशेष डॉ.सतीश राज पुष्करणा जी  की लघुकथा ‘बदलते समय के साथ’ और स्मृतिशेष श्री रवि प्रभाकर जी की लघुकथा ‘प्रिज्म’। लघुकथाओं का पाठ श्री उमेश महादोषी जी द्वारा किया गया है।




सोमवार, 30 अगस्त 2021

आज कृष्ण जन्माष्टमी पर एक लघुकथा 'मृत्युदंड' का नेपाली अनुवाद पहिलोपोस्ट पर | लेखक (हिन्दी): डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

 मृत्युदण्ड [लघुकथा सन्दर्भ : कृष्ण जन्माष्टमी]

हजारौं वर्षसम्म नरकको यातना भोगेपछिमात्रै भीष्म र द्रोणाचार्यलाई मुक्ति मिल्यो। छट्पटिँदै दुवै जना नरकको ढोकाबाट बाहिर निस्किनासाथ अगाडि देखे - उभिइरहेका कृष्ण। अचम्म मान्दै भीष्मले सोधे – कन्हैया, तपाईँ यहाँ?


मुसुक्क मुस्काउँदै कृष्णले दुवैलाई ढोगे र भने, 'पितामह- गुरुवर म तपाईँहरु दुवैका लागि आएको हुँ। तपाईँहरुको पापको सजाय पूरा भयो।'


कृष्णको यस्तो भनाईले द्रोणाचार्य विचलित स्वरमा बोले, 'यति धेरै वर्षदेखि हामीले पाप गरेको सुन्दै आयौं। तर यति धेरै अवधि यातना सहनु पर्नेगरी त्यस्तो के पाप गर्‍यौं कन्हैया? के आफ्नो राजाको रक्षा गर्नु पनि… '


'होइन गुरुवर।'


कृष्णले उनलाई बोल्दा बोल्दै रोके।


'केही अरु पापका अतिरिक्त तपाईँ दुवैले एउटा महापाप गर्नुभएको थियो।'


कृष्णले यसो भनिरहँदा भीष्म र द्रोणाचार्य दुवै आश्चर्य भावमा देखिए।


कृष्णले उनीहरुको भाव बुझेरै भने, 'जब त्यत्रो सभामा द्रोपदीको बस्त्र हरण भइरहेको थियो, तपाईँहरु दुवै अग्रज मौन रहनु भयो। उनको शीलको रक्षा गर्नुको साटो चुपो लागेर त्यो अपराध कर्मलाई स्वीकार्नु महापाप थियो।'


सुमधुर शैलीमा कृष्णले बताएपछि भीष्मले टाउको हल्लाउँदै उनका अभिव्यक्तिलाई सहर्ष स्वीकारे। तर, द्रोणाचार्यसँग अझै प्रश्न थियो। उनले सोधे – 'हामीलाई त हाम्रो पापको सजाय मिल्यो। तर हामी दुवैको तपाईँले झुक्याएर हत्या गराउनु भयो। तर तपाईँलाई चाहिँ त्यो अपराधमा ईश्वरले कुनै सजाय दिएनन्। यस्तो किन भयो?'


प्रश्न गम्भीर थियो। कृष्णको अनुहार एकाएक परिवर्तन भयो। त्यो परिवर्तनमा पीडा झल्किन्थ्यो। उनले लामो सास फेरे। आँखा बन्द गरे। उनीहरुको अनुहार हेर्न सकेनन्, अनि फर्किए। पीडा र बेदनासहित उनको बोली फुट्यो।


'तपाईँहरुले जस्तो अपराध गर्नु भएको थियो, अहिले धर्तीमा त्यस्तो अपराध धेरैले गरिरहेका छन्। तर, कुनै पनि बस्त्रहीन द्रोपदीलाई बस्त्र दिन जान म सक्दिनँ।'


कृष्ण द्रोणाचार्य र भीष्मतिर फर्किए। भने, 'गुरुवर-पितामह, के यो दण्ड पर्याप्त छैन? आज पनि तपाईँहरु जस्ता धेरै धर्तीमा जीवित हुनुहुन्छ तर त्यहाँ कृष्ण त मरिसकेको छ नि…'


Source:

https://pahilopost.com/content/20210830112241.html

हिन्दी में मूलकथा 

हज़ारों वर्षों की नारकीय यातनाएं भोगने के बाद भीष्म और द्रोणाचार्य को मुक्ति मिली। दोनों कराहते हुए नर्क के दरवाज़े से बाहर आये ही थे कि सामने कृष्ण को खड़ा देख चौंक उठे, भीष्म ने पूछा, "कन्हैया! पुत्र, तुम यहाँ?"

कृष्ण ने मुस्कुरा कर दोनों के पैर छुए और कहा, "पितामह-गुरुवर आप दोनों को लेने आया हूँ, आप दोनों के पाप का दंड पूर्ण हुआ।"

यह सुनकर द्रोणाचार्य ने विचलित स्वर में कहा, "इतने वर्षों से सुनते आ रहे हैं कि पाप किया, लेकिन ऐसा क्या पाप किया कन्हैया, जो इतनी यातनाओं को सहना पड़ा? क्या अपने राजा की रक्षा करना भी..."

"नहीं गुरुवर।" कृष्ण ने बात काटते हुए कहा, "कुछ अन्य पापों के अतिरिक्त आप दोनों ने एक महापाप किया था। जब भरी सभा में द्रोपदी का वस्त्रहरण हो रहा था, तब आप दोनों अग्रज चुप रहे। स्त्री के शील की रक्षा करने के बजाय चुप रह कर इस कृत्य को स्वीकारना ही महापाप हुआ।"

भीष्म ने सहमति में सिर हिला दिया, लेकिन द्रोणाचार्य ने एक प्रश्न और किया, "हमें तो हमारे पाप का दंड मिल गया, लेकिन हम दोनों की हत्या तुमने छल से करवाई और ईश्वर ने तुम्हें कोई दंड नहीं दिया, ऐसा क्यों?"

सुनते ही कृष्ण के चेहरे पर दर्द आ गया और उन्होंने गहरी सांस भरते हुए अपनी आँखें बंद कर उन दोनों की तरफ अपनी पीठ कर ली फिर भर्राये स्वर में कहा, "जो धर्म की हानि आपने की थी, अब वह धरती पर बहुत व्यक्ति कर रहे हैं, लेकिन किसी वस्त्रहीन द्रोपदी को... वस्त्र देने मैं नहीं जा सकता।"

कृष्ण फिर मुड़े और कहा, "गुरुवर-पितामह, क्या यह दंड पर्याप्त नहीं है कि आप दोनों आज भी बहुत सारे व्यक्तियों में जीवित हैं, लेकिन उनमें कृष्ण मर गया..."

- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

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लघुकथा विडियो - पुतले | हंसवाणी