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गुरुवार, 27 फ़रवरी 2020

अंतरराष्ट्रीय लघुकथा प्रतियोगिता अपडेट





✍️शब्दों की कोई सीमा नहीं है।
👌एक लघुकथाकार कितनी भी रचनाएं प्रेषित कर सकता है
🤗२४ फरवरी से ४ मार्च तक लगातार भाग लेने वाले प्रतिभागियों को विशेष पुरस्कार।
🙌सभी प्रतिभागियों को रचना प्रेषित करने पर पार्टीसिपेट करने का सर्टिफिकेट दिया जाएगा।
👍रचनाओं को लिंक पर जाकर ही प्रेषित करना है ताकि रचना प्रतियोगिता में शामिल हो सके।
🤝विषय: सामाजिक, सांसारिक, पर्यावरण, देशभक्ति, प्रेरणादायक, शिक्षाप्रद आदि विषयों पर लिख सकते हैं।
✍️भाग लेने के लिए लिंक पर आपका स्वागत है
http://sm-s.in/v8TidJc

सोमवार, 24 फ़रवरी 2020

अंतरराष्ट्रीय लघुकथा प्रतियोगिता


सभी लघुकथाकारों को यह सूचित करते हुए अत्यंत हर्ष है कि स्टोरीमिरर एवं लघुकथा दुनिया के संयुक्त तत्वावधान में एक अंतरराष्ट्रीय लघुकथा प्रतियोगिता का आयोजन प्रस्तावित है। विश्व के सभी देशों के हिंदी लघुकथाकार इस प्रतियोगिता में सादर आमंत्रित हैं। इस प्रतियोगिता में भाग लेने के नियम व शर्ते निम्नानुसार हैं:

नियम व शर्तें
१.      विश्व के सभी देशों के हिंदी लघुकथाकार इस प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं।
२.      एक लघुकथाकार कितनी भी लघुकथाएँ प्रेषित कर सकता है।
३.      लघुकथा स्वरचित हो और स्टोरीमिरर पर पहले से प्रकाशित ना हो। किसी भी दशा में यदि किसी की भी रचना कहीं से भी कॉपी की हुई पाई गई तो वह कानूनी रूप से खुद जिम्मेदार होगा/होगी।
४.      यदि यह पता चलता है कि रचना पहले से ही स्टोरीमिरर पर प्रकाशित हुई है तो आपको रिजेक्ट कर दिया जाएगा।
५.      लघुकथा के साथ लघुकथा के उद्देश्य को भी पांच-छः पंक्तियों में लिखें। यह आवश्यक है कि लघुकथा जिस उद्देश्य को लेकर कही जा रही है, वह लघुकथा को पढ़ते समय स्वतः ही स्पष्ट हो।
६.      विषय लघुकथाकार द्वारा ही निर्धारित किया जाये। हालांकि लघुकथा आज के समय की किसी विसंगति को उजागर करती हो अथवा समसामयिक सन्देश देती हो।
७.      रचना में किसी भी प्रकार की अश्लीलता नहीं होनी चाहिए।
८.      प्रतियोगिता में कोई भी भाग ले सकता है। आयु आदि का बंधन नहीं है।
९.      प्रतियोगिता में भागीदारी पूर्णतः निशुल्क है।
नोट-: कहानी या कविता केवल प्रतियोगिता के लिंक पर ही जाकर प्रेषित की जानी चाहिए।


पुरस्कार
१.  उल्लेखनीय स्थान प्राप्त करने वाली 50 लघु कथाओं का ई-बुक बनाने के साथ-साथ सभी को डीजिटल सर्टिफिकेट प्रदान किया जाएगा।
२.  लगातार १० दिनों तक भाग लेने वाले प्रतिभागी को स्टोरिमिरर की तरफ़ २५० रुपये का गिफ्टवॉउचर दिया जायेगा।
३.   प्रत्येक प्रतिभागी को रचना प्रेषित करने पर प्रशस्ति-पत्र दिया जाएगा।

प्रेषण प्रक्रिया
१.       प्रतियोगिता में अपनी रचनाओं को २४ फरवरी से लेकर ४ मार्च तक सबमिट कर सकते हैं।
२.      २५ मार्च २०२० को इस प्रतियोगिता का परिणाम https://www.storymirror.com पर प्रकाशित किया जाएगा।
३.       सबसे ज्यादा पढ़ी गयी रचनाओं को भी विशेष तौर पर उल्लेखनीय स्थान देने के लिये चुना ज़ायेगा।
४.       चूँकि यह प्रतियोगिता आपकी प्रतिभा को परखने हेतु की जा रही है अतः विषय, शिल्प, शैली आदि की नवीनता को प्राथमिकता दी जायगी।
५.     प्रतियोगिता सोहार्दपूर्ण रहे, यह प्रतिभागियों का भी दायित्व है। किसी भी प्रकार के सन्देह, स्पष्टीकरण अथवा शिकायत होने पर कहीं अन्य वार्तालाप के स्थान पर आयोजकों से निसंकोच संपर्क करें। इस हेतु प्रतियोगिता के समय एवं पश्चात् भी hindi@storymirror.com पर इमेल पर संपर्क किया जा सकता है।

रविवार, 23 फ़रवरी 2020

समीक्षा: लघुकथा संग्रह | आप बीती कुछ जग बीती | लेखक: डॉ. अशोक चतुर्वेदी | समीक्षक: डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा

लघुकथा संग्रह : 
आप बीती कुछ जग बीती
लघुकथाकार : डॉ. अशोक चतुर्वेदी
प्रकाशक : शारदा ऑफसेट प्रा.लि., रायपुर
प्रकाशन वर्ष : 2019
संस्करण : प्रथम
पृष्ठ संख्या : 80
मूल्य : 100

जीवन के विभिन्न रंगों को अपने में समेटे डॉ. अशोक चतुर्वेदी जी की छप्पन लघुकथाओं का एक अनूठा संगम है, यह पुस्तक- 'आप बीती कुछ जग बीती'। इसकी हर कथा संक्षिप्त, मनोरंजक, सार्थक एवं इंसानी स्वभाव के उज्ज्वल पक्ष की पक्षधर है, जो सुधी पाठकों के अंतर्मन को भले-बुरे का एहसास कराती हुई जीवन पथ पर आगे बढ़ने के लिए मार्ग-प्रशस्त करती है। बस ज़रूरत है, तो सिर्फ़ पठन के साथ मनन करते हुए सकारात्मक सोच के साथ उसे अपने व्यवहार में लाने की। 'आप बीती कुछ जग बीती' संग्रह की लघुकथाओं से गुजरते हुए मैंने पाया कि इसमें से अधिकतर लघुकथाएँ भावनात्मक और मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत हैं। लेखक डॉ. अशोक चतुर्वेदी छत्तीसगढ़ राज्य के एक वरिष्ठ अधिकारी हैं, जिन्होंने अपने लगभग दो दशक के दीर्घ प्रशासनिक जीवन में गाँव के अंतिम छोर पर स्थित व्यक्ति से सीधा संपर्क रखा और उनके सुख-दुःख में बहुत
ही आत्मीयता से जुड़ाव रखा।
लघुकथा गद्य साहित्य में अभिव्यक्ति की वह नवीनतम और लोकप्रिय विधा है, जो आकार में छोटी है, परन्तु अपनी पूरी बात कम से कम शब्दों में कहने में पूरी तरह से सक्षम है। यह कवि बिहारीलाल के दोहों की तरह 'देखन में छोटन लगे, घाव करे गंभीर' को चरितार्थ करती है। लेखक डॉ. अशोक चतुर्वेदी जी ने अपनी बात इसी विधा में कहने का सफल प्रयास किया है। डॉ. अशोक चतुर्वेदी जी ने अपनी लघुकथाओं में जीवन के हर क्षेत्र में व्याप्त सामाजिक विद्रूपताओं के अलावा उच्च अधिकारियों द्वारा आम आदमी के शोषण, भ्रष्टाचार, जुगाड़, कथनी- करनी भेद, उच्च वर्ग की सम्पन्नता तथा निम्न वर्ग के संघर्षमय जीवन का बहुत ही सीधे, सरल तथा सजीव रूप से सुन्दर चित्रण किया है। इनके पात्र कहीं भी हवाई या काल्पनिक नहीं, बल्कि अपने आसपास के ही प्रतीत हो रहे हैं। चतुर्वेदी जी की लघुकथाएँ कमोबेश रूप से यथार्थ के बहुआयामी पक्षों को संकेत करती हैं, जिनमें व्यंग्य की व्यंजना तथा अर्थ की दूरगामी व्यंजना का समावेश इस प्रकार होता है कि वहखुले अंत की ओर संकेत करती हैं।
डॉ. अशोक चतुर्वेदी जी ने अपनी लघुकथाओं के लिए विषय का चयन अपने परिवेश से ही किया है। उनकी लघुकथाएँ जिस शिद्दत के साथ आज के यथार्थ को एक रचनात्मक संदर्भ देती हैं, वह उनके सुदीर्घ अनुभव, ज्ञान एवं संवेदना के उचित समायोजन का प्रतिफल प्रतीत होता है। शासकीय सेवा में एक वरिष्ठ पद पर कार्य करते होते हुए भी शासन-प्रशासन की अव्यवस्था एवं विद्रूपताओं को बिना किसी लाग-लपेट के कथा का आधार बनाना लेखक डॉ. अशोक चतुर्वेदी के साहस एवं सामाजिक सरोकारों के प्रति जवाबदेही और स्पष्टवादिता का परिचायक है। यथा, 'जनअदालत' में उन्होंने लिखा है- ''आज फिर शांत बस्तर की खूबसूरत वादियों में, शासन के द्वारा किए जा रहे विकास कार्यों की प्रशंसा करने वाले एक उत्साही नौजवान को मुखबीरी के नाम पर 'जन- अदालत' लगाकर नक्सलियों द्वारा मौत की सजा दी गई। पहले उसकी ऊँगलियों के नाखून निकाल दिए गए फिर ऊँगलियाँ काट दी गईं और कठोर यातना के बाद एक वीभत्स मौत।'' पुलिस अधिकारियों के द्वारा प्रभावशाली एवं साधारण आदमी के एक ही प्रकार के प्रकरण में अपनाए जाने वाले दोहरे व्यवहार, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों मंे आयोजित जन अदालत, गौ-सेवा, अदालती कार्यवाही में देरी, उच्चाधिकारियों के कथनी-करनी में भेद और दोहरे चरित्र पर आधारित अनेक लघुकथाएँ, बहुत ही अच्छी बन पड़ी हैं।
इस संग्रह से गुजरते वक्त मुझे कहीं भी अजीब-सा नहीं लगा। सभी लघुकथाएँ सहज, सरल और जीवन्त लगीं, जिन्हें पढ़ना अपने आप में एक अलग अनुभव प्राप्त करना है। संग्रह की लघुकथाएँ पाठकों के समक्ष कई बड़े प्रश्न भी उठाती हैं। मूर्तिपूजा, जीवहत्या, ईश्वर-अल्लाह, दामिनी: एक प्रश्न, बच्चे का भविष्य, अल्पसंख्यक, आरक्षण, महिला आरक्षण, अमीर कौन गरीब कौन में उठाए गए सवाल ऐसे हैं, जहाँ आकर पाठक बहुत कुछ सोचने पर विवश हो जाता है। यहाँ लेखक ने स्वयं इनके उत्तर नहीं दिए हैं, बल्कि पाठकों के समक्ष ही प्रश्न रख दिए हैं। अब पाठकों को ही उनके उत्तर तलाशने होंगे। यथा- ''क्या हत्या और दंगे ईश्वर या अल्लाह की मर्जी से होते हैं?'' ''प्रश्न बड़ा गंभीर है। कौन है ज़्यादा महत्त्वपूर्ण? शरीर या आत्मा?'' ''पर संसद, मंत्रिमंडल एवं विधानसभाओं में यह प्रावधान कब लागू होगा ? होगा भी कभी?'' यूँ तो सीमित कलेवर वाली लघुकथा में परिवेश के चित्रण की ज्यादा संभावना नहीं रहती,परंतु चतुर्वेदी जी ने अपनी कई लघुकथाओं में बहुत ही सुंदर रूप में परिवेश का चित्रण कर दिया है।
जैसे- बढ़ता ड्राईंगरूम: घटते मानवीय रिश्ते, फ्लैट, मकान, ट्रेन की सीटी के मायने, कब्रिस्तान का सच, स्वतंत्रता क्या है ?, अपहरण, इकलौता, एक नन्ही-सी जान, आँसू, तकदीर का फ़साना। विचारों के प्रवाह, संवेदना की गहराई एवं संवादों की मार्मिकता के कारण डॉ. अशोक चतुर्वेदी की कई लघुकथाएँ बहुत ही अच्छी बन पड़ी हैं। विषयों की विविधता इस बात का सूचक है कि लेखक की नजर हर संवेदना पर टिकी है और उन्होंने हर अनुभूति को शब्दों में पिरोने का प्रयास किया है। संग्रह की लघुकथाओं में उनके मानवीय मूल्यों की झलक दिखाई देती है, जिन्हें पठनोपरांत इनकी सम्प्रेषणीयता पाठक के अंतर्मन की गहराई तक उतर जाती है। यथा- ''सात-आठ वर्षीय बड़े बेटे द्वारा अपनी मृत माँ एवं दुग्धपान करते अनुज को अविरल निहारते रहने की पीड़ा, वेदना।'' डॉ. अशोक चतुर्वेदी जी की लघुकथाएँ पारिवारिक जीवन के बदलते हुए रूपों को सामने लाती हैं, जहाँ रिश्तों में खुरदुरापन ही नहीं वीरानापन भी पसर रहा है। यथा- ''घर में साल में कभी-कभार कोई मेहमान या रिश्तेदार एक-दो दिन के लिए आते हैं।'' एक अन्य लघुकथा में उन्होंने लिखा है- ''एक भाई ने अपने सगे भाई को ही गोली मार दी, पैत्रिक सम्पत्ति हथियाने के लिए।'' चतुर्वेदी जी की अनेक लघुकथाओं में जहाँ भावनात्मक रिश्तों की ज़मीन दरक रही है, वहीं उसके उजले अध्याय भी हैं। यथा- 'मदर्स डे' शीर्षक लघुकथा की ये पंक्तियाँ, ''मेरी माँ के लिए है। मेरे पास सिर्फ़ तीस रुपए हैं। क्या इतने में देंगे ?'' एक अन्य लघुकथा 'इकलौता' में उन्होंने लिखा है- ''बेटा, हम तुझे ज़्यादा चाहते हैं, क्योंकि हम तो दो हैं और तू एक ही है।''


डॉ. अशोक चतुर्वेदी जी की लघुकथाएँ भ्रष्ट सरकारी तंत्र, राजनीतिक कुचक्र और उनमें फँसे एक आम आदमी की पीड़ा की सार्थक अभिव्यक्ति है। ''घटना को बीते कई साल बीत गए। विभाग द्वारा अभी आत्महत्या के लिए प्रेरित करने वाले कारणों एवं जिम्मेदारियों का निर्धारण किया जा रहा है।'' इसी प्रकार एक अन्य लघुकथा में उन्होंने लिखा है- ''अ-सरदार जी बड़े ही विनम्र स्वभाव के थे और भ्रष्ट भी। चाटुकारिता के गुण उनमें कूट-कूट कर भरे थे, जो आज के युग में हर मर्ज की
दवा है।'' डॉ. अशोक चतुर्वेदी जी की लघुकथाएँ वर्तमान सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था में फैले हुए दिखावटी सत्य के ऊपरी आवरण को भेदकर अंदरूनी वास्तविकताओं को चित्रित करती हुई प्रतीत हो रही हैं। उन्होंने अपनी लघुकथाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त मूल्यहीनता, मानवाधिकारों के हनन, बाह्याडंबर, आर्थिक सामाजिक, राजनैतिक, एवं नैतिक विडम्बनाओं पर सीधे-सीधे प्रहार करते हैं। ये लघुकथाएँ जहाँ मानवीय मूल्यों के ह्रास का चित्रण करती हैं, वहीं पाठकों को नए सिरे सेसोचने पर विवश भी कर देती हैं।
डॉ. अशोक चतुर्वेदी जी की भाषा काफी लचीली है, जिसमें वे बातचीत के अंदाज में ही अपनी बात कहते चले गए हैं। सामान्य शब्दों के साथ-साथ उन्होंने कहीं-कहीं भारी भरकम शब्दों का भी प्रयोग किया है, जिनका पर्याय आम बोलचाल के शब्दों में भी उपलब्ध है। यथा- कमोडधारी समाज, विकलित, दुर्दांत, सेवा-सुश्रुशा, मुखबीरी, अ-सरदार आदि। 'आप बीती कुछ जग बीती' की एक और खास बात, जिसका उल्लेख किए बिना बात अधूरी ही रहेगी, वह है- इसकी सुन्दर चित्रकारी। सामान्यतः लघुकथा संकलनों में चित्रों का समावेश नहीं के बराबर होता है, परंतु इस पुस्तक में डॉ. अशोक चतुर्वेदी जी की कल्पना को खूबसूरत चित्रों के माध्यम से जीवन्त बना दिया है- युवा चित्रकार राजेन्द्र सिंह ठाकुर ने। यदि हम यूँ कहें कि चित्रों ने पुस्तक की खूबसूरती में चार चाँद लगा दिए हैं, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। 'आप बीती कुछ जग बीती' अशोक जी की पहली लघुकथा संग्रह है। यदि हम इस संग्रह की लघुकथाओं को लघुकथा की कसौटी पर कसें, तो संभव है कि कई लघुकथाएँ पूरी तरह से खरी नहीं उतरेंगी। इसे लेखक ने अपने आत्मकथ्य में स्वयं स्वीकार भी किया है, परंतु लेखक की प्रस्तुतीकरण एवं भाव-प्रवणता ऐसी है कि इन्हें पढ़कर हमें सहज ही आभास हो जाता है कि उनमें लेखन की अपार क्षमता है। 'आप बीती कुछ जग बीती' न तो पूरी तरह से कहानी संग्रह है, न आत्मकथ्य और न ही लघुकथा संग्रह। इसे एक नई विधा के रूप में देखा जा सकता है, जो आत्मकथ्य शैली में कहानी की रवानगी से शुरू होकर लघुकथा के कलेवर में हमारे समक्ष प्रस्तुत होती है। आशा ही नहीं, मुझे पूरा विश्वास है कि ये सहज, सरल एवं सारगर्भित लघुकथाएँ निश्चित रूप से सुधी पाठकों के मानस पटल पर अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब होंगी और लोगों में खंडित हो रहे मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था जगेगी।

Source:
https://shabdpravah.page/article/aap-beetee-kuchh-jag-beetee-laghukatha-sangrah-/dV230m.html

शनिवार, 22 फ़रवरी 2020

लघुकथा एक ऐसा लाइट हाउस है जो पूरे साहित्य को दिशा प्रदान करता है। | लघुकथा समाचार

पत्रिका समाचार  21 फरवरी 2020

दिल्ली से आए लघुकथाकार बलराम अग्रवाल ने कहा, हम वृद्ध आश्रम की बात करके युवा पीढ़ी को क्या बताना चाहते हैंं? क्या हमारे घर से कोई वृद्ध आश्रम गया है? जब हम अपने अनुभवों को कल्पना के आधार पर ही लिखेंगे तो वह बात गहराई से लोगों तक नहीं पहुंचेगी।


रायपुर द्य फाफाडीह स्थित होटल में राष्ट्रीय लघुकथा का आयोजन किया गया। इसमें डॉ. बलराम अग्रवाल, सुभाष नीरव, गिरीश पंकज,डॉ राजेश श्रीवास्तव, डॉ सुधीर शर्मा, डॉ. मालती बसंत, जया केतकी, साकेत सुमन चतुर्वेदी शामिल हुए। 

संस्था की अध्यक्ष संतोष श्रीवास्तव ने लघुकथा में नारी अस्मिता को लेकर अपनी बात रखते हुए कहा, आज लघुकथा मांग करती है एक ऐसी शक्ति स्वरूपा नारी की जो अपनी अस्मिता और अस्तित्व की रक्षा करती हुई शोषण की शक्तियों से मुठभेड़ करती नजर आए। दिल्ली से आए लघुकथाकार बलराम अग्रवाल ने कहा, हम वृद्ध आश्रम की बात करके युवा पीढ़ी को क्या बताना चाहते हैंं? क्या हमारे घर से कोई वृद्ध आश्रम गया है? जब हम अपने अनुभवों को कल्पना के आधार पर ही लिखेंगे तो वह बात गहराई से लोगों तक नहीं पहुंचेगी। उन्होंने कई लघुकथाओं के उदाहरण देते हुए नारी अस्मिता को लेकर लघुकथाएं लिखना मौजूदा समय की मांग बताया।विशिष्ट अतिथि गिरीश पंकज ने कहा कि लघुकथा एक ऐसा लाइट हाउस है जो पूरे साहित्य को दिशा प्रदान करता है मुख्य अतिथि सुभाष नीरव ने अपने वक्तव्य में लघुकथाओं में नारी अस्मिता को लेकर विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। संस्था की ओर से विभिन्न विधाओं पर पांच पुरस्कार प्रदान किए गए। 

राधा अवधेश स्मृति पुरस्कार-लक्ष्मी यादव, पुष्पा विश्वनाथ स्मृति पुरस्कार -अजय श्रीवास्तव अजेय,हेमंत स्मृति लघुकथा रत्न सम्मान-कांता राय, पांखुरी लांबा सक्सेना स्मृति पुरस्कार-साधना वैद, द्वारका प्रसाद स्मृति साहित्य गरिमा पुरस्कार-अलका अग्रवाल ममता अहार द्वारा शक्ति स्वरूपा नाटक का एकल मंचन के साथ ही 75 कवियों और लघुकथाकारों की कविता व लघुकथा की प्रस्तुति।तीन सत्रों में आयोजित कार्यक्रम का संचालन क्रमश: नीता श्रीवास्तव, रूपेंद्र राज तिवारी और वर्षा रावल ने किया।

Source:
https://www.patrika.com/raipur-news/el-cuento-es-un-faro-que-da-direccin-a-toda-la-literatura-5803798/

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020

साक्षात्कार | लघुकथाकार डॉ. पूरन सिंह का साक्षात्कार | डॉ. पूनम तुषामड़ द्वारा


डॉ. पूरन सिंह का दलित साहित्य में ही नहीं गैर दलित साहित्य में भी में जाना-पहचाना नाम है. डॉ. पूरन सिंह जी ने लघुकथा क्षेत्र में प्रसिद्धि हासिल की है, लेकिन कहानियां भी लिखते हैं. इनकी कई किताबें अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं. डॉ. पूरन सिंह जी का साक्षात्कार डॉ. पूनम तुषामड़ ने विश्व पुस्तक मेला 2020, प्रगति मैदान, नई दिल्ली में कदम प्रकाशन के स्टॉल पर लिया. साक्षात्कार के वीडियो की रिकार्डिंग तथा एडिटिंग मनीषा चौहान व अतुल चौहान ने की है.

Source:
https://www.youtube.com/watch?v=9ocUNpbdss8&feature=youtu.be