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रविवार, 24 नवंबर 2019

लघुकथा समाचार | अशोक जैन को लघुकथा श्रेष्ठि सम्मान | एनकाउंटर इंडिया


Punjab -Jalandhar  | Sunday, November 24, 2019


जालन्धर (वरुण): अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता-प्राप्त हिन्दी-सेवी साहित्यिक संस्था पंजाब कला साहित्य अकादमी (पंकस अकादमी) रजि. जालन्धर की ओर से 23वां वार्षिक अकादमी अवार्ड वितरण समारोह लायन्स क्लब के सौजन्य से लायन्स क्लब भवन में सम्पन्न हुआ। गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व के उपलक्ष्य में यह समारोह बाबा नानक प्रकाश पर्व को समर्पित किया गया।

समारोह में गुरुद्वारा श्री रामपुर खेड़ा साहिब गढ़दीवाला के संत बाबा सेवा सिंह जी आशीर्वाद देने पहुंचे। विशेष मेहमान के तौर पर विधायक राजेंद्र बेरी, पूर्व मंत्री मनोरंजन कालिया, पूर्व बागवानी मंत्री हिमाचल प्रदेश, ठाकुर सत्य प्रकाश मौजूद थे। वही मुख्य मेहमान के तौर पर एडीजीपी अर्पित शुक्ला, आईजी क्राइम पंजाब प्रवीण कुमार सिन्हा, पुलिस कमिश्नर गुरप्रीत सिंह भुल्लर, डीसी विरेंद्र कुमार शर्मा मौजूद रहे। समारोह के दौरान सुरेश सेठ, सतनाम सिंह माणक, के.के. शर्मा, चेयरमैन सिटी अर्बन को-आप्रेटिव बैंक लिमि., डा. जसदीप सिंह एम.एस., डा. फकीर चन्द शुक्ला विशेष तौर पर शामिल हुए। वाणी विज, पार्षद उमा बेरी, प्रेम लता ठाकुर, सदस्य जिला परिषद कुल्लू, पार्षद अनीता राजा, सोनिका भाटिया, विनोद कालड़ा, रोहिणी मेहरा, रानू सलारिया, मनवीन कौर, डा. डेजी एस. शर्मा, पूजा सुक्रांत एवं सुखमनी भाटिया ने शमां प्रज्वलन की रस्म अदा की।

संस्था के अध्यक्ष सिमर सदोष, निदेशक डा. जगदीप सिंह एवं डा. रमेश कम्बोज ने आए मेहमानोंं का स्वागत किया। संस्था के अध्यक्ष सिमर सदोष ने बताया कि इस वर्ष का आजीवन उपलबि्ध सम्मान यानि लाईफ टाईम अचीवमैंट अवार्ड जयपुर के साहित्यकार एवं ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान के संरक्षक डा. बजरंग लाल सोनी को दिया गया। पंकस अकादमी को सामाजिक धरातल पर विस्तार प्रदान करते हुए इस वर्ष कुछ नये अवार्ड/सम्मान भी घोषित किये गए जिनमें पहली बार स्थापित कृषि कर्मण अवार्ड पयरवरणविद स. दर्शन सिंह रुदाल एवं मलविन्दर कौर रुदाल को दिया गया। पहली बार स्थापित हास्य-व्यंग्य चेतना अवार्ड हिमाचल प्रदेश के प्रख्यात व्यंग्य-लेखक बेदी और कला-श्री अवार्ड अर्शदीप सिंह और राखी सिंह को दिया गया।

प्रतिष्ठाजनक पंकस अकादमी विद्या वाचस्पति एवं भारत गौरव उपाधि सम्मान डा. चितरंजन मित्तल और डा. अनिल पाण्डेय को, विद्या वाचस्पति डा. इन्दु शमर और वीणा विज को, लघुकथा श्रेष्ठि सम्मान हिन्दी लघुकथा-आधारित पत्रिका ‘दृष्टि’ के सम्पादक अशोक जैन को, मानव सेवा रत्न सम्मान भूतपूर्व अध्यक्ष आई.एम.ए. डा. मुकेश गुप्ता और अपाहिज आश्रम के तरसेम कपूर को दिया गया।

पंकस अकादमी के प्रतिष्ठाजनक अकादमी अवार्ड गुरुग्राम के उदय शंकर पंत, अम्बाला के विकेश निझावन, भोपाल की अंजना छलोत्रे, मीडिया शिमला के प्रभारी मोहित प्रेम शर्मा, विजय पुरी, कुंवर राजीव, पंचकूला के लाजपत राय गर्ग और जयपुर के चेतन चौहान को दिया गया। आधी दुनिया पंकस अकादमी अवार्ड शैल-सूत्र नैनीताल की सम्पादक आशा शैली और साहित्य साधना सम्मान आकाशवाणी जालन्धर के सोहन कुमार को दिया गया।
शिरोमणि पत्रकारिता अवार्ड दिव्य हिमाचल नई दिल्ली के ब्यूरो प्रमुख सुशील राजेश और जनता संसार के सम्पादक जतिन्द्र मोहन विग, सुर-संगीत प्रतिभा सम्मान अरुण कपूर (स्वर्गीय) के नाम और तबला-वादक उस्ताद जनाब काले राम जी को, प्रतिष्ठाजनक शिक्षा रत्न सम्मान अमन ब्रोका, सुधीर ब्रोका एवं नीलम सलवान, .के. सलवान को, सहकार शिरोमणि सम्मान दिल्ली के संतोष शमर को, काव्य रत्न सम्मान अमिता सागर, स. बलविन्दर सिंह मन्नी स्मृति सम्मान सोनू त्रेहन एवं जन-सेवा सम्मान डा. मधुरिमा करवल और इंस्पेक्टर पुष्प बाली को दिया  गया।

अकादमी के अध्यक्ष सिमर सदोष ने बताया कि सुदेश कुमार और शिशु शमर शांतल को पहली बार स्थापित सद्भावना सम्मान प्रदान किया गिरा। सिम्मी अरोड़ा, संजय अरोड़ा कानपुर, गुरकीरत कौर बत्तरा, चरणजीत सिंह बत्तरा,  रविन्द्र अरोड़ा खुरजा, सीमा डावर, गौरव डावर, लुधियाना, रोहित बिबलानी एवं मोहित बिबलानी को भी सद्भावना सम्मान दिया गया।


Source:
http://encounterindia.in/dr-bajrang-soni-of-jaipur-received-lifetime-achievement-award-of-pankas

लघुकथा वीडियो: बाढ़ से सुरक्षा | लेखक: नरेंद्र कोहली | वाचन: आयाम मेहता

नरेंद्र कोहली जी द्वारा सृजित व्यवस्थाओं की पोल खोलती लघुकथा 'बाढ़ से सुरक्षा' पाठकों के मस्तिष्क को झकझोरने में सक्षम है। आयाम मेहता जी के वाचन की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। आप स्वयं ही लघुकथा वाचन का बेहतरीन उदाहरण देखिए।

शनिवार, 23 नवंबर 2019

लघुकथा : डेटोनेशन | शेख़़ शहज़ाद उस्मानी

डेटोनेशन अर्थात विस्फोट। 

शेख़़ शहज़ाद उस्मानी जी द्वारा सृजित यह रचना एक प्रयोग सा भी प्रतीत होती है, जिसमें लेखक अलग ही अंदाज में अपने विचार कथानक का सहारा लेकर प्रस्तुत कर रहे हैं। आइये पढ़ते हैं डेटोनेशन:



डेटोनेशन / शेख़़ शहज़ाद उस्मानी  

एक तरफ़ दुश्मन सेना, उसके रोबोट्स और चट्टानों माफ़िक़ प्रशिक्षित जाँबाज़ फ़ुर्तीले कुत्ते थे; तो दूसरी तरफ़ मौत रूपी खाई। विस्फोटकों से युक्त जैकेट पहने, अपनी पत्नियों और कुछ मासूम बच्चों को अपनी ढाल बनाये इस 'कलयुग' का वह ख़ूंखार 'आतंकी' खाई में कूंद गया। 

अपना दुखांत नज़दीक देख वह सुनियोजित व्यवस्थित सुरंग में दौड़ता-हाँफता प्रवेश तो कर गया, लेकिन उसे सुरंग के अंत का पता न था। बंद सुरंग के छोर पर मौत ने दस्तक दी और उसने अपनी जैकेट को डेटोनेट कर अपने ही शरीर के चीथड़े उड़ा दिए। 

ढालों का भी काम तमाम हो चुका था। जाँबाज़ कुत्तों ने अपना एक साथी खो दिया, शेष घायल चिकित्सा के हक़दार हो गए। वह 'आतंकी' नहीं था; 'ईमानदारी' थी। दुश्मन 'सेना' के सैनिक थे - स्वार्थ, लोभ, भ्रष्टाचार, काम-क्रोध, तानाशाही, दानवता, कट्टरता, धन-सम्पत्ति आदि । 'रोबोट्स' थे - उद्योग, विज्ञान और तकनीक; पद, सत्ता, व्यापारी, उद्योगपति, राजनीति और कुख्यात अपराधी। 'पत्नियां' थीं - विभिन्न जाति-धर्म... और मासूम 'बच्चे' थे - धर्मगुरु, बाबा, साधु-संत! 'विस्फोटक' थे - धार्मिक ग्रंथ, उपदेश, नीति-शास्त्र आदि! जाँबाज़ कुत्ते थे - नेता, मंत्री, अधिकारी, पदाधिकारी आदि। 'खाई' थी - समाज, मुल्क या दुनिया.... और वह 'सुरंग' थी - 'दुनियादारी'! 


- शेख़ शहज़ाद उस्मानी 
शिवपुरी (मध्यप्रदेश) 

शुक्रवार, 22 नवंबर 2019

लघुकथा: खबर | मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा जी की व्यंग्य शैली में कही गयी यह रचना एकांगी भी है और एक विशेष विसंगति को दर्शा रही है। यह प्रभावी भी बनी है। शीर्षक पर मेरे अनुसार कुछ और कार्य करने की ज़रूरत है। आइये पढ़ते हैं, मुकेश कुमार ऋषि वर्मा जी की लघुकथा 'खबर'।


मंत्रीजी घंटा बजाकर अपने पूजागृह से एक हाथ लम्बा तिलक लगाकर बाहर आये ही थे कि उनका सहायक हाँफता हुआ उनके सामने आ गया ।

‘अरे! काहे हाँफत हो... आसमान फट गया क्या?’

‘साब जी - साब जी... बड़ा अनर्थ हो गया । जनपद में पुलिस ने बड़ी बर्बरता से बेचारे अनशन पर बैठे किसानों पर लाठीचार्ज किया है और सुनने में आ रहा कि फाइरिंग भी की है ।’

‘तो क्या हुआ? वो तो हमने ही आदेश दिया था ।’

मंत्रीजी का जवाब सुनकर सहायक आश्चर्यचकित रह गया । वो मन ही मन सोच रहा था, ये वही पुलिस है जिसकी गुंडों से मुठभेड़ होती है तो बंदूक से गोली नहीं निकलती मुँह से ही ठाँय-ठाँय की आवाज निकालकर काम चलाना पड़ता है ।

‘सुनो!  ये किसानों वाली न्यूज टीवी पर आ रही है क्या?’ मंत्रीजी ने सहायक से पूछा ।

‘नहीं, किसी भी न्यूज चैनल पर नहीं आ रही सिर्फ सोशल मीडिया पर ही दिखाई दे रही है । लगता है हुजूर ने सभी चैनल वालों का मुँह बंद कर दिया है, इसीलिए पाकिस्तान - पाकिस्तान खेल रहे हैं सभी चैनल वाले ।’ सहायक पिलपिला सा मुँह बनाकर चमचे वाले लहजे में धीरे से बोल गया ।

‘तुमने कुछ कहा’....

‘नहीं...  महाराज जी मैं तो कह रहा था कि गायों को गुड़ खिलाने का समय हो गया है ।’ सहायक बात बनाते हुए अपना बचाव कर गया ।

मंत्रीजी समय का विशेष ध्यान रखते हुए गायों को गुड़ खिलाने के लिए चल पड़े । दोपहर को लाइव और शाम से देर रात तक प्रमुख रही गायों को गुड़ खिलाने की खबर ।

- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 
ग्राम रिहावली, डाक तारौली, 
फतेहाबाद, आगरा, 283111

गुरुवार, 21 नवंबर 2019

पुस्तक समीक्षा | लघुकथा कलश - चतुर्थ महाविशेषांक | बालकृष्ण गुप्ता 'गुरु'

‘लघुकथा कलश’ का चौथा महत्वपूर्ण कदम


लघुकथा के विकासक्रम में ‘लघुकथा कलश’ का चौथा महत्वपूर्ण कदम, ‘रचना प्रक्रिया महाविशेषांक’ अंगद के पैर की भाँति लघुकथा पटल पर जमता दिख रहा है। नजर भी साफ और पक्ष भी निर्विवाद है। लघुकथा जगत में इस पत्रिका की विशिष्ट स्थिति के ठोस कारण भी हैं।

किसी भी बड़े पत्र या पत्रिका में संपादकीय वास्तव में ‘मेरी बात’ के साथ ही पाठकों के लिए सीख भी होती है। योगराज प्रभाकर के संपादकीय में भी कुछ नई, सटीक बातें होती ही हैं, जिन्हें पाठक अपने नजरिए से देखते हैं। इस बार के संपादकीय में गजानन माधव मुक्तिबोध की रचना प्रक्रिया के तीन पड़ावों का उल्लेख गागर में सागर के समान है। संपादक की यह बात- “पिछले कुछ समय से लघुकथा विधा के कुछ विद्वानों के बीच किसी-न-किसी मुद्दे को लेकर, चर्चा के नाम पर बहस मिल रही है। हालाँकि ऐसी चर्चाओं का विधा के प्रचार-प्रसार से दूर-दूर तक संबंध नहीं होता। अक्सर ऐसी हर चर्चा मात्र बतकूचन तथा पर्सनल स्कोर सेटल करने की कयावद मात्र बनकर रह जाती है...” सत्य के साथ कड़वी दवाई भी है, जिस पर रचनाकार मित्रों को गंभीरता से विचार करना चाहिए।


बहरहाल, किसी खास अंक की प्रस्तुति में सामग्री का वर्गीकरण भी अंक को बेहतर बनाता है। लघुकथा कलश रचना प्रक्रिया महाविशेषांक में भी संपादकीय के बाद, विशिष्ट लघुकथाकार और उनकी रचना प्रक्रिया, लघुकथाएँ और उनकी रचना प्रक्रियाएँ, नेपाली लघुकथाएँ और उनकी रचना प्रक्रियाएँ, पुस्तक समीक्षा, समीक्षा-सत्र होने का मतलब है, एक परिपूर्ण पत्रिका का विचारशील संयोजन। यह अंक लघुकथाकारों, पाठकों (समीक्षकों भी) को सम्मानपूर्वक छप्पन भोग के रूप में मिला है। स्वाभाविक तौर पर सभी रचनाकारों ने चूल्हे पर कड़ाही रखकर ही भोग बनाया है, पर सबकी बनाने की विधि कुछ-कुछ अलग है। इसीलिए इनका स्वाद भी विविधतापूर्ण है, जो पत्रिका की एक बड़ी खूबी है।

सभी व्यंजन, सभी पाठकों को प्रिय लगें, संभव नहीं है, पर खाने योग्य तो जरूर लगेंगे। लघुकथाकारों को अपनी लघुकथाओं की रचना प्रक्रिया बताते हुए जो खुशी हुई होगी, पाठकों को भी उस प्रक्रिया को जानकर अच्छा ही लगा है। इस अंक में शामिल चर्चित लघुकथाकारों की लघुकथाएँ और उनकी रचना प्रक्रियाएँ तो विशिष्ट हैं ही, अन्य काफी लघुकथाएँ और उनकी रचना प्रक्रिया भी प्रभावित करती हैं। रचना प्रक्रिया महाविशेषांक की बहुत-सी लघुकथाएँ ऐसी हैं कि पाठक और समीक्षक को कथ्य पसंद आएगा या शैली, या फिर कथ्य और शैली में नवीनता मिलेगी। ऐसी कई लघुकथाएँ हैं जिनके कथ्य और शिल्प दोनों दमदार हैं, इसलिए इनका स्वाद और सुगंध भी अलहदा है। कुछ नाम बताना तो ईमानदारी ही होगी- इनमें सुकेश साहनी की ‘स्कूल’, ‘विजेता’, माधव नागदा की ‘कुणसी बात बताऊँ’, शील कौशिक की ‘छूटा हुआ सामान’, रामेश्वर कम्बोज ‘हिमांशु’ की ‘ऊँचाई’, बलराम अग्रवाल की ‘गोभोजन कथा’, प्रबोध कुमार गोविल की ‘माँ’, अशोक भाटिया की ‘तीसरा चित्र’, योगराज प्रभाकर की ‘तापमान’, कल्पना भट्ट की ‘रेल की पटरियाँ’, लता अग्रवाल की ‘मुहावरा जीवन का’, रवि प्रभाकर की ‘कुकनूस’... लिस्ट आगे भी बन सकती है। नेपाली लघुकथाओं में भी कुछ अत्यंत प्रभावी हैं, जिनमें प्रमुख हैं- खेमराज पोखरेल की, ‘जन्मदाता’, राजन सिलवाल की, ‘चंद्रहार’। ‘आजादी’, ‘इंसान की औलाद’ आदि भी अच्छी लघुकथाएँ हैं।

हिंदी लघुकथाओं से इतर, लघुकथा कलश के संपादकों का सीमावर्ती प्रांत पंजाब की लघुकथाओं से परिचित कराने का प्रयास भी उल्लेखनीय है। संपादक महोदय ने खुद अनुवाद कला का बखूबी उपयोग करते हुए कुछ लघुकथाओं का सार्थक अनुवाद किया है। विशिष्ट लघुकथाकार हरभजन खेमकरणी, ‘चिकना घड़ा’, सरनेम के चक्कर में फँसता आदमी, ‘बहाना’, गेहूँ के साथ घुन पिसता है। ‘पहला कदम’, सतर्क हक के लिए पत्नी दृढ़ता पर न उतर जाए, पति को पहले समझना चाहिए। ‘जागती आँखों का सपना’, सपनों को साकार करने की इच्छाशक्ति दर्शाती सार्थक लघुकथा है। हरजीत राणा की लघुकथा ‘हवस’ बताती है कि आदमी किस कदर होश खो बैठता है, खासतौर पर पैसे और पद का पावर हो तो।

समीक्षा खंड के समीक्षकों ने लघुकथाकारों के दृष्टिकोण पर लघुकथाओं के माध्यम से दृष्टिपात किया है और लघुकथाकारों के विचारों की अपने विचारों के माध्यम से समीक्षा करते हुए तार्किकता पूर्ण ढंग से समालोचन किया है।

संभव है कि कुछ लघुकथाएँ नजर या समझ की चूक से समीक्षा में नहीं आ पाई होंगी। इतनी बड़ी और विस्तारित पत्रिका में कुछेक जगह प्रूफ की चूकें हैं। कहीं-कहीं लघुकथाकार की रचना प्रक्रिया कुछ लंबी है, जिसे वह अपनी लघुकथा के समान ही लघु और सुगठित कर सकता था। पर्याप्त गुणवत्ता और खूबियाँ होने के बावजूद लघुकथा कलश के रचना प्रक्रिया महाविशेषांक को सौ में से पूरे सौ अंक जानबूझकर नहीं दे रहा हूँ। इसके पीछे लघुकथा कलश की उत्तरोत्तर प्रगति की कामना है। इसके कदम लगातार बढ़ते रहें, आगे और चढ़ाई है। लघुकथा कलश अच्छे से और अच्छा, बहुत अच्छा हो इसी कामना के साथ मेरिट के अंक प्रदान कर रहा हूँ।

लघुकथा के सागर में खिलता पुष्प रूपी ‘लघुकथा कलश’ रचना प्रक्रिया महाविशेषांक अपने सौंदर्य, सुवास और उपयोगिता से स्थायी जगह बनाने में सफल होगा, ऐसा मुझे विश्वास है। कुल तीन सौ साठ पृष्ठों में एक सौ उन्तालीस लघुकथाकारों की कुल दो सौ बाईस लघुकथाओं और उनकी रचना प्रक्रियाओं को समेटे यह अंक पिछले अंकों से एक कदम आगे, उल्लेखनीय और संग्रहणीय है। जाहिर है, बेजोड़ होने के चलते लघुकथा कलश के हर नए अंक के सामने अपने ही पिछले अंकों के मुकाबले बेहतर होने की चुनौती होती है, जिस पर यह चौथा महाविशेषांक खरा उतरा है।

- बालकृष्ण गुप्ता ‘गुरु’

बुधवार, 20 नवंबर 2019

लघुकथा वीडियो : चुनौती | लेखक: रामकुमार आत्रेय | स्वर: आयाम मेहता

स्व. श्री रामकुमार आत्रेय जी द्वारा सृजित लघुकथा 'चुनौती' हमारी नदियों की दशा को बताती है। नदियों को स्वच्छ रखने का सन्देश देती यह रचना न केवल पठन बल्कि मनन और मानने योग्य है।