डेटोनेशन अर्थात विस्फोट।
शेख़़ शहज़ाद उस्मानी जी द्वारा सृजित यह रचना एक प्रयोग सा भी प्रतीत होती है, जिसमें लेखक अलग ही अंदाज में अपने विचार कथानक का सहारा लेकर प्रस्तुत कर रहे हैं। आइये पढ़ते हैं डेटोनेशन:
डेटोनेशन / शेख़़ शहज़ाद उस्मानी
एक तरफ़ दुश्मन सेना, उसके रोबोट्स और चट्टानों माफ़िक़ प्रशिक्षित जाँबाज़ फ़ुर्तीले कुत्ते थे; तो दूसरी तरफ़ मौत रूपी खाई। विस्फोटकों से युक्त जैकेट पहने, अपनी पत्नियों और कुछ मासूम बच्चों को अपनी ढाल बनाये इस 'कलयुग' का वह ख़ूंखार 'आतंकी' खाई में कूंद गया।
अपना दुखांत नज़दीक देख वह सुनियोजित व्यवस्थित सुरंग में दौड़ता-हाँफता प्रवेश तो कर गया, लेकिन उसे सुरंग के अंत का पता न था। बंद सुरंग के छोर पर मौत ने दस्तक दी और उसने अपनी जैकेट को डेटोनेट कर अपने ही शरीर के चीथड़े उड़ा दिए।
ढालों का भी काम तमाम हो चुका था। जाँबाज़ कुत्तों ने अपना एक साथी खो दिया, शेष घायल चिकित्सा के हक़दार हो गए। वह 'आतंकी' नहीं था; 'ईमानदारी' थी। दुश्मन 'सेना' के सैनिक थे - स्वार्थ, लोभ, भ्रष्टाचार, काम-क्रोध, तानाशाही, दानवता, कट्टरता, धन-सम्पत्ति आदि । 'रोबोट्स' थे - उद्योग, विज्ञान और तकनीक; पद, सत्ता, व्यापारी, उद्योगपति, राजनीति और कुख्यात अपराधी। 'पत्नियां' थीं - विभिन्न जाति-धर्म... और मासूम 'बच्चे' थे - धर्मगुरु, बाबा, साधु-संत! 'विस्फोटक' थे - धार्मिक ग्रंथ, उपदेश, नीति-शास्त्र आदि! जाँबाज़ कुत्ते थे - नेता, मंत्री, अधिकारी, पदाधिकारी आदि। 'खाई' थी - समाज, मुल्क या दुनिया.... और वह 'सुरंग' थी - 'दुनियादारी'!
- शेख़ शहज़ाद उस्मानी
शिवपुरी (मध्यप्रदेश)