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गुरुवार, 3 अक्टूबर 2019

साहित्य संगम संस्थान की 'संगम सवेरा' (मासिक ई पत्रिका) के वर्ष 3 अंक 3 | अक्टूबर 2019 अंक में मेरी दो लघुकथाएं


1)


धर्म-प्रदूषण / डॉ चंद्रेश कुमार छतलानी 

उस विशेष विद्यालय के आखिरी घंटे में शिक्षक ने अपनी सफेद दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए, गिने-चुने विद्यार्थियों से कहा, "काफिरों को खत्म करना ही हमारा मक़सद है, इसके लिये अपनी ज़िन्दगी तक कुर्बान कर देनी पड़े तो पड़े, और कोई भी आदमी या औरत, चाहे वह हमारी ही कौम के ही क्यों न हों, अगर काफिरों का साथ दे रहे हैं तो उन्हें भी खत्म कर देना। ज़्यादा सोचना मत, वरना जन्नत के दरवाज़े तुम्हारे लिये बंद हो सकते हैं, यही हमारे मज़हब की किताबों में लिखा है।"

"लेकिन हमारी किताबों में तो क़ुरबानी पर ज़ोर दिया है, दूसरों का खून बहाने के लिये कहाँ लिखा है?" एक विद्यार्थी ने उत्सुक होकर पूछा।

"लिखा है... बहुत जगहों पर, सात सौ से ज़्यादा बार हर किताब पढ़ चुका हूँ, हर एक हर्फ़ को देख पाता हूँ।" 

"लेकिन यह सब तो काफिरों की किताबों में भी है, खून बहाने का काम वक्त आने पर अपने खानदान और कौम की सलामती के लिए करना चाहिए। चाहे हमारी हो या उनकी, सब किताबें एक ही बात तो कहती हैं..."

"यह सब तूने कहाँ पढ़ लिया?" 

वह विद्यार्थी सिर झुकाये चुपचाप खड़ा रहा, उसके चेहरे पर असंतुष्टि के भाव स्पष्ट थे।

"चल छोड़ सब बातें..." अब उस शिक्षक की आवाज़ में नरमी आ गयी, "तू एक काम कर, अपनी कौम को आगे बढ़ा, घर बसा और सुन, शादीयां काफिरों की बेटियों से ही करना..."

"लेकिन वो तो काफिर हैं, उनकी बेटियों से हम पाक लोग शादी कैसे कर सकते हैं?"

शिक्षक उसके इस सवाल पर चुप रहा, उसके दिमाग़ में यह विचार आ रहा था कि “है तो नहीं लेकिन फिर भी कल मज़हबी किताबों में यह लिखा हुआ बताना है कि, ‘उनके लिखे पर सवाल उठाने वाला नामर्द करार दे दिया जायेगा’।”

2)

विरोध का सच / डॉ .चंद्रेश कुमार छतलानी 
"अंग्रेजी नववर्ष नहीं मनेगा....देश का धर्म नहीं बदलेगा..." जुलूस पूरे जोश में था। देखते ही वह राष्ट्रभक्त समझ गया कि जुलूस का उद्देश्य देशप्रेम और स्वदेशी के प्रति जागरूकता फैलाना है और वह भी उसमें शामिल होकर नारे लगाते हुए चलने लगा।

उसके साथ के दो व्यक्ति बातें कर रहे थे,
"बच्चे को इस वर्ष विद्यालय में प्रवेश दिलाना है। कौनसा ठीक रहेगा?"
"यदि अच्छा भविष्य चाहिये तो शहर के सबसे अच्छे अंग्रेजी स्कूल में दाखिला दिलवा दो।"

उसने उन्हें तिरस्कारपूर्वक देखा और नारे लगाता हुआ आगे बढ़ गया, वहां भी दो व्यक्तियों की बातें सुनीं,
"शाम का प्रोग्राम तो पक्का है?"
"हाँ! मैं स्कॉच लाऊंगा, चाइनीज़ और कोल्डड्रिंक की जिम्मेदारी तुम्हारी।"

उसे क्रोध आ गया, वह और जोर से नारे लगाता हुआ आगे बढ़ गया, वहां उसे फुसफुसाहट सुनाईं दीं,
"बेटी नयी जीन्स की रट लगाये हुए है..."
"तो क्या आजकल के बच्चों को ओल्ड फेशन सलवार-कुर्ता पहनाओगे?"

उत्तर सुनते ही वह हड़बड़ा गया। अब वह सबसे आगे पहुँच गया था, जहाँ खादी पहने एक हिंदी विद्यालय के शाकाहारी प्राचार्य जुलूस की अगुवाई कर रहे थे। वह उनके साथ और अधिक जोश में नारे लगाने लगा। 

तभी प्राचार्य का फ़ोन बजा, एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर के फ़ोन पर वह बात करने लगे। उसने सुना वह कह रहे थे, "हाँ हुज़ूर, सब ठीक है, लेकिन इस बार रुपया नहीं डॉलर चाहिये, बेटे से मिलने अमेरिका जाना है।"

सुनकर वह चुपचाप वहीँ खड़ा हो गया। जुलूस आगे निकल गया, लेकिन उसके मन में नारों की आवाज़ बंद नहीं हो रही थी। उसने अपनी जेब से बुखार की अंग्रेजी दवाई निकाली, उसे कुछ क्षणों तक देखा फिर उसके चेहरे पर मजबूरी के भाव आये और उसने फिर से दवाई अपनी जेब में रख दी।

बुधवार, 2 अक्टूबर 2019

दो पुस्तकें: लघुकथा रचना-प्रक्रिया तथा पल-पल बदलती ज़िन्दगी’ (पंजाबी लघुकथा संग्रह) | योगराज प्रभाकर



वरिष्ठ लघुकथाकार श्री योगराज प्रभाकर  की फेसबुक पोस्ट से 


Yograj Prabhakar is with Ravi Prabhakar.

(1). पुस्तक का नाम: 
लघुकथा रचना-प्रक्रिया
संपादक: योगराज प्रभाकर
पृष्ठ संख्या: 264
आकार: डिमाई
प्रकाशक: देवशीला पब्लिकेशन, पटियाला. 
अंकित मूल्य: 400 रुपये
-
‘लघुकथा रचना-प्रक्रिया’ का विमोचन दिनांक 6 अक्टूबर को सिरसा के आखिल भारतीय लघुकथा सम्मलेन में होगा. यह पुस्तक लघुकथा रचना-प्रक्रिया से सम्बंधित एक परिचर्चा पर आधारित है जिसमे मुझ द्वारा पूछे गए 20 प्रश्नों पर नई व पुरानी पीढ़ी के निम्नलिखित 55 मर्मज्ञों के विशद उत्तर शामिल किए गए है:
डॉ० अनिल शूर 'आज़ाद, डॉ० अनीता राकेश, डॉ० अशोक भाटिया, श्री अशोक वर्मा, सुश्री आभा सिंह, डॉ० उमेश महादोषी, श्री एकदेव अधिकारी, डॉ० कमल चोपड़ा, श्री कमलेश भारतीय, सुश्री कल्पना भट्ट, डॉ० कुँवर प्रेमिल, श्री कुमार नरेंद्र, कृष्णा वर्मा (कनाडा), श्री खेमकरण सोमन, डॉ० चंद्रेश कुमार छतलानी, डॉ० जगदीश कुलरियाँ, डॉ० जसबीर चावला, श्री तारिक असलम तसनीम, श्री त्रिलोक सिंह ठकुरेला, डॉ० धर्मपाल साहिल, डॉ० ध्रुव कुमार, सुश्री पवित्रा अग्रवाल, डॉ० पुरुषोत्तम दुबे, स० प्रताप सिंह सोढी, डॉ० प्रद्युम्न भल्ला, श्री प्रबोध कुमार गोविल, डॉ० बलराम अग्रवाल, श्री बालकृष्ण गुप्ता 'गुरुजी', प्रो० बी.एल आच्छा, श्री भागीरथ परिहार, श्री मधुदीप, श्री माधव नागदा, श्री मार्टिन जॉन, डॉ० योगेन्द्र शुक्ल, श्री रवि प्रभाकर, श्री राजेन्द्रमोहन बंधु त्रिवेदी, डॉ० राधेश्याम भारतीय, स्व० रामकुमार आत्रेय, डॉ० रामकुमार घोटड़, डॉ० रामनिवास मानव, श्री रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, प्रो० रूप देवगुण, सुश्री विभारानी श्रीवास्तव, डॉ० वीरेन्द्र भारद्वाज, डॉ० शील कौशिक, श्री श्यामसुंदर अग्रवाल, डॉ० श्यामसुन्दर दीप्ति, श्री सतीश राठी, डॉ० सतीशराज पुष्करणा, श्री सिद्धेश्वर, श्री सुकेश साहनी, सुश्री सुदर्शन रत्नाकर, श्री सुभाष नीरव, श्री सूर्यकांत नागर व स० हरभजन खेमकरनी.
लघुकथा प्रेमियों के लिए यह पुस्तक मात्र 300 रूपये में उपलब्ध होगी. पुस्तक प्राप्ति हेतु कृपया पे.टी.एम नम्बर 7340772712 पर भुगतान करके मुझे सूचित करें.
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(2). पुस्तक का नाम: 
‘पल-पल बदलती ज़िन्दगी’ (पंजाबी लघुकथा संग्रह) 
मूल लेखक: निरंजन बोहा
हिंदी अनुवाद: योगराज प्रभाकर
पृष्ठ संख्या: 104
आकार: डिमाई
प्रकाशक: देवशीला पब्लिकेशन, पटियाला.
अंकित मूल्य: 150 रुपये
‘पल-पल बदलती ज़िन्दगी’ पंजाबी के मूर्धन्य साहित्यकार निरंजन बोहा द्वारा लघुकथा संग्रह है. इस संग्रह में लेखक की 62 प्रतिनिधि लघुकथाएँ शामिल हैं.
लघुकथा प्रेमियों के लिए यह पुस्तक मात्र 100 रूपये में उपलब्ध होगी. पुस्तक प्राप्ति हेतु कृपया पे.टी.एम नम्बर 7340772712 पर भुगतान करके मुझे सूचित करें.

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समाज्ञा में आज गांधी जयंती पर मेरी एक लघुकथा




सत्याग्रह नहीं सत्यादेश / डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी 

सौलह-सत्रह वर्ष की एक लड़की दौड़ती हुई उस बाग़ में गांधी जी की प्रतिमा के पीछे जा छिपी। कुछ क्षणों तक हाँफने के बाद उसने गांधीजी प्रतिमा की तरफ देखा, लाठी के सहारे खड़े गांधीजी मुस्कुरा रहे थे। अपनी चुन्नी को सीधे करते हुए उसने उसी से अपने चेहरे को ढका और मन ही मन बुदबुदाई, "गांधीजी, पूरे देश को बचाया... आज मुझे भी बचा लो।"

उसका बुदबुदाना था कि गांधीजी की प्रतिमा में जैसे प्राण आ गए और वह प्रतिमा बोली, 
"क्या हुआ बेटी?"

आवाज़ सुनते ही वह घबरा गयी, उसने चारों तरफ नजरें दौड़ाई और देखा कि उस प्रतिमा के होंठ हिल रहे थे, वह आश्चर्यचकित हो उठी, उसी स्थिति में उसने कहा, "कुछ दरिन्दे मेरी इज्ज़त..."

वह आगे नहीं कह पाई, फिर प्रतिमा ने पूछा "कहाँ रहती हो?
"यहीं पास में।" 

"कौन-कौन है घर में?"
"पिताजी, भाई, माँ और मैं।"

"घर से बाहर कितना निकलती हो?"
"बहुत कम, आज महीनों बाद अकेली निकली थी और ये..."

"घर में क्या करती हो?"
"खाना बनाना, सफाई करना, पानी भरना..."

"कुछ खेलती हो?"
"घर के कामों से समय ही नहीं मिलता।"

"क्या तुम से और तुम्हारे भाई से अलग-अलग व्यवहार होता है?"
"वो तो लड़का है इसलिए..."

"कभी मार पड़ती है?"
"बहुत बार, जनम होने से पहले से... मुझे मारना चाहा था... लेकिन बच गयी।" 

"कभी विरोध किया?"
"नहीं..."

"अहिंसात्मक विरोध करो बेटी, कितनी पढ़ी हो?” प्रतिमा के होंठ मुस्कुरा रहे थे।
"आठवीं तक, फिर घरवालों ने नहीं भेजा... अब घर पर ही थोड़ा-बहुत..." 

यह सुनते ही गांधीजी की प्रतिमा के होंठ भींच गए और उसने अपनी लाठी लड़की की तरफ बढ़ा कर कहा,
“इसे लो... पहले पढ़ो... तुम्हें गांधी की नहीं लाठी की ज़रूरत है।"
-0-

विजय 'विभोर' की एक लघुकथा : पसंद अपनी अपनी

पसंद अपनी अपनी / 
विजय 'विभोर'

"अरे मैं अभी अख़बार पढ़ रहा हूँ, तुम्हारी कोई बात नहीं सुन सकता।" अख़बार में फिल्मी कौना पढ़ रहे पतिदेव ने कहा, तो पत्नी रसोई का काम छोड़कर वहीं कमरे में आ गयी।
"क्या इम्पोर्टेन्ट है देखूँ तो सही, जो मेरी बात भी नहीं सुन सकते।"
"मेरी फेवरेट हीरोइन का इंटरव्यू है उसकी आकर्षक फोटो सहित।" पति ने अख़बार में ही नज़रें गड़ाए हुए उत्सुकता पूर्वक कहा।
"मैं भी देखूँ तो सही...." कहते हुए पत्नी ने अख़बार में सेंध मारी। "....अरे वाह, आज तो मेरे भी फेवरेट हीरो का सिक्स पैक्स वाला फोटो छपा है।"
जैसे ही पति के कानों में पत्नी के ये शब्द घुसे पति के दाएँ हाथ में कंपन हुई पत्नी के बाएं गाल पर आवाज़ आयी और अंधेरा-सा छा गया।

मंगलवार, 1 अक्टूबर 2019

पूनम झा की लघुकथा - कमली



कमली / पूनम झा 

"आईये, आईये डाक्टर साहब ।" ठाकुर जी ये कहते हुए उन्हें शयनकक्ष में ले गए जहाँ उनकी पत्नी सुनयना बिस्तर पर लेटी हुई थीं । 
सुनयना रात से ही बुखार से तप रही थी । कमजोरी से खड़ी भी नहीं हो पा रही थी इसीलिए डाक्टर साहब को घर पर ही बुलाया गया है ।
बिस्तर के बगल में कुर्सी पर बैठकर डाक्टर साहब सुनयना की जांच करने लगे । 

"आपको ठंड भी लगती है ?"

"हाँ डाक्टर साहब बहुत ठंड लगती है ।"

तभी डोर बेल बजी । शांता ( कामवाली ) जो वहीं खड़ी थी, घंटी की आवाज सुनकर दरवाजे की तरफ जाने लगी तो सुनयना ने कहा कि "अरे वो कमली आयी होगी । पीछे वाला गेट खोल देना । आंगन की नाली की सफाई करेगी ।"

शांता चली गयी, लेकिन तभी शांता की आवाज आयी "अरे रेsss...........तुम इधर अंदर क्यों जा रही हो ss...........?"

"वो डाक्टर आयल है न ?"

"हाँ  तो ?"

"कोई बीमार हो गईल का ?"

"हाँ ! मेमसाब बीमार हैं ।"

"ओहो ......"

"तुम पीछे चलो । मैं पीछे का गेट खोलती हूँ । नाली साफ करना है ।" शांता उसे अंदर आगे बढने से रोकते हुए बोली ।

"जाई ही ऊ तनी डाक्टर से कुछ कहे के हई । ऊ हमर भतीजा हई न ।"

सुनयना के कानों में सारी बातें साफ-साफ सुनाई दे रही थी ।
उसे याद है जब भी कमली को कुछ देती है तो ऊपर से उसके हाथ पर ऐसे रखती है जिससे स्पर्श नहीं हो या नीचे रख देती है जो उसे वह स्वयं उठा ले ।

इधर डाक्टर साहब उसका नब्ज देख रहे थे कि बुखार है या नहीं ।

सुनयना ने ठाकुर जी को इशारा किया कि कमली को अंदर बुला लें ।

कमली कमरे में आते ही "मेमसाब का होई गवा ?" और डाक्टर की तरफ देखते ही "बबुआ ! बढ़िया दवाई दे द हमार मेमसाब जल्दी से ठीक हो जाई ।"

"हाँ बूआ ! जरूर । बहुत जल्दी ठीक हो जाएंगी  ।"  मुस्कुराते हुए डाक्टर साहब ने कहा ।

"हम तोहार गाड़ी से पहिचान गईली , जे बाबुआ हिंया आयल हई । केतना दिन हो गईली तूं घरे काहे नहीं अयली ?" डाक्टर ( भतीजा ) से मीठी मीठी शिकायत करती हुई कमली बोली ।

सुनयना शांता से "शांता जाओ सबके लिए चाय बनाकर ले आओ " और कमली की तरफ देखते हुए "बैठ जा कमली तू भी चाय पी ले ।"

--
पूनम झा 
कोटा राजस्थान 
मोबाइल वाट्सएप  9414875654
Email: poonamjha14869@gmail.com 

सोमवार, 30 सितंबर 2019

लघुकथा दुनिया ब्लॉग हेतु प्राप्त "ब्लॉगर ऑफ़ द ईयर 2019" का सम्मान मिलने पर मेरा साक्षात्कार


डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी जी 2015 से ब्लॉगिंग कर रहे है। पाठकों की प्रतिक्रियाओं के आधार पर आपको विजेता घोषित किया गया था। पिछले दिनों डॉ. छतलानी जी से साक्षात्कार किया गया था। पेश है साक्षात्कार के प्रमुख अंश-
iBlogger : Blogger of the year 2019 का विजेता का ताज आपको मिला है, जब आपको यह जानकारी मिली तो कैसा लगा?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : ब्लॉगर ऑफ द ईयर 2019 मेरे लिए केवल एक पुरस्कार ही नहीं है वरन सूचना मिलते ही मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि एक स्वप्न साकार सा हुआ। चूँकि यहाँ केवल मैं ही पुरस्कृत नहीं हुआ बल्कि मेरे ब्लॉग को और ब्लॉग से भी बढ़कर उसमें निहित सामग्री उसके विषय ‘लघुकथा’ को यह सम्मान मिला है, इसलिए कुछ संतुष्टि सी भी प्रतीत हुई।
iBlogger : Blogger of the year अवार्ड के लिए सबसे पहले किसे शुक्रिया कहना चाहेंगे?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : सबसे पहले ‘लघुकथा’ विधा को ही धन्यवाद कहूंगा, तत्पश्चात लाइक और कमेंट करने वाले पाठक मित्रों, निर्णायक गणों और iBlogger की पूरी टीम का हृदय से आभार व्यक्त करना चाहूंगा।
iBlogger : क्या आपने नामांकन से पूर्व Blogger of the year 2019 का Winner बनने की कल्पना की थी।
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : जी। नामांकन भरते समय यह कल्पना मस्तिष्क में थी, हालाँकि पहली बार ही भाग लिया था, इसलिए सफल हो भी पाऊँगा, यह संदेह भी कहीं न कहीं था।
iBlogger : आपकी नज़र में सफल ब्लॉगर की क्या खूबियां होनी चाहिए। क्या आप स्वयं को भी सफल ब्लॉगर मानते हैं?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : हालाँकि इसमें विभिन्न मत हो सकते हैं, लेकिन इस पर एक मत होना चाहिए कि किसी भी ब्लॉगर को सर्वप्रथम स्वयं के कार्य से संतुष्टि हो। ब्लॉगर की पहली सफलता, मेरे अनुसार उनके द्वारा लिखे गए ब्लॉग की विषय-वस्तु को सही व्यक्तियों तक पहुंचा पाने में है। ब्लॉग लिखने के पश्चात् उसके कंटेंट्स ब्लॉगर के नहीं बल्कि सामान्य जन के स्वामित्व में हो जाते हैं। तब सही व्यक्तियों तक पहुँचने पर ही न सिर्फ ब्लॉग का बल्कि ब्लॉगर की आत्मा (विचारों) का भी मूल्यांकन होता है और उन विचारों की तीक्ष्णता और मस्तिष्क भेदन क्षमता का भी अनुभव हो पाता है। ब्लॉग के वो कंटेंट्स जो उचित व्यक्तियों के मस्तिष्क में स्थायी निवास करने में सक्षम हैं, निःसंदेह ही पूरी तरह सफल भी हैं।
iBlogger :आपके शुभचिन्तकों और पाठकों नेआपका लघुकथा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान बताया है, आप कितने सहमत है?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : इन दिनों लघुकथा के क्षेत्र में बहुत काम हो रहा है। अन्य सभी के साथ मैं भी प्रयास कर रहा हूँ। यह प्रयास किसी को ठीक लगा तो उनकी भावना मेरे सिर-आँखों पर है। हालाँकि, मेरे अनुसार अभी और भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
iBlogger : लघुकथा के अलावा आप किन विद्याओं में ज्यादा लिखते है?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : मैंने कविताओं, कहानियां, हाइकु, पत्र आदि पर भी हाथ आजमाएं हैं। हालाँकि सबसे प्रिय विधा लघुकथा ही है।
iBlogger : आप ब्लॉगिंग के क्षेत्र मे कैसे आये?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : होश संभालने के साथ ही पढ़ने का शौक रहा था, तब किताबें पढ़ता था। कम्प्यूटर में रुचि होने के कारण मैंने कम्प्यूटर सम्बंधित कार्यों को प्रारम्भ किया। उन्हीं दिनों ब्लॉग के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। तब से लेकर आज तक ब्लॉग्स का मैं नियमित पाठक हूँ। विभिन्न प्रकार के विषयों में रुचि होने के कारण मुझे अपनी पसंद की हर पुस्तक प्राप्त होना मुश्किल था। ब्लॉग ने मेरे पढ़ने के शौक में बहुत सहायता की। मेरी ब्लॉगिंग की यात्रा ब्लॉग्स पढ़ने से प्रारम्भ हुई।
पढ़ने के साथ-साथ लिखने में भी मेरी रुचि बचपन ही से थी, लेकिन इस रुचि को अपनी शैक्षणिक/ सह-शैक्षणिक गतिविधियों, खेलों और तत्पश्चात नौकरी आदि कार्यों में व्यस्तता के कारण उचित मूर्त रूप नहीं दे पाया। हालांकि फिर समय के साथ पुरानी रुचि पुनः जागृत हुई। लघुकथा विधा का अध्ययन करते हुए मुझे यह प्रतीत हुआ कि इस विधा के लेखकों की कमी नहीं, लेकिन जितने लेखक हैं उतने भी पाठक नहीं, जबकि इस विधा के जरिये अपने विचारों को सीधे पाठकों के मस्तिष्क पर चोट करते हुए दिल में प्रवेश करवाया जा सकता है। साहित्य की इस विधा को इसके उचित पाठको तक पहुंचाने हेतु एक ब्लॉग बनाने का विचार आया और उसे तुरंत ही मूर्त रूप दे दिया। यह ब्लॉग लघुकथा से समाज को जोड़ने हेतु एक प्रयास है।
iBlogger :अब तक के ब्लॉगिंग सफर में किसी परेशानी का सामना करना पड़ा? यदि हां तो वह क्या रही?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : मेरे कार्यालयिक कार्यों के कारण ब्लॉग लेखन में कभी-कभी समयाभाव ज़रूर अवरोध की तरह खड़ा हो जाता है। हालाँकि तब गुरुजनों के समर्पण का स्मरण कर स्वयं को प्रोत्साहित कर ब्लॉग के लिए समय निकाल लेता हूँ।
iBlogger : आपकी अब तक कितनी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। क्या उनके बारे में कुछ बतायेंगे?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : अभी तक मेरी कम्प्यूटर विज्ञान की तीन पुस्तकें (मोनोग्राफ) प्रकाशित हुई हैं। इनके अतिरिक्त कुछ साँझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं।
iBlogger : आप वर्तमान में ब्लॉगिंग के अलावा क्या कर रहे है?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : मैं एक विश्वविद्यालय में कम्प्यूटर विज्ञान का शिक्षक हूँ। सॉफ्टवेयर और वेबसाइट निर्माण का कार्य भी करता हूँ, शोध में भी रूचि है। इनके अतिरिक्त कम्पयूटर नेटवर्क, कम्पयूटर सिक्योरिटी, सूचना तकनीक, शोध परियोजना प्रस्ताव बनाने, शोध परियोजना के कार्यान्वयन, सेमिनार/संगोष्ठी आदि के समन्वयन एवं विभिन्न सरकारी परिषदों, समितियों से संबन्धित कार्यों की साथ-साथ कुछ शोध पत्रिकाओं में संपादक के दायित्व का निर्वहन कर रहा हूँ।
iBlogger : क्या आपकी ब्लॉगिंग या लेखन को लेकर भविष्य की कोई योजना है?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : लघुकथा के रचनाकारों के अनुसार लघुकथा 2020 की विधा है, इस सोच के पश्चात भी लघुकथा को साहित्य में उच्च दर्जे पर लाना आवश्यक है। इस ब्लॉग के एक भाग को मैं इतना उन्नत करना चाहता हूँ कि कोई भी शोधार्थी इस ब्लॉग पर आकर लघुकथा संबन्धित बेहतरीन सामग्री पा सके। इसके लिए न केवल शोध पत्र बल्कि शोध ग्रंथ, लेख और शोध आधारित चर्चाओं पर भी काम करना चाहता हूँ। लघुकथा में अभी बहुत अधिक शोध नहीं हुआ है, और नए-नए प्रयोगों की आवश्यकता है। पाठक और लघुकथा से इतर रचनाकार भी किस तरह अधिक से अधिक लघुकथा का पठन कर इसे सम्मान के साथ देखते हुए प्रतिष्ठित मंचों पर शोभायमान करें इस पर भी विचार करते हुए कार्य करना है।
iBlogger : नये ब्लॉगरों के लिए आप क्या कहना चाहेंगे?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : कभी भी निरुत्साहित न हों। कई व्यक्ति हतोत्साहित भी करेंगे, आपके उत्कृष्ट कार्य को नज़रअंदाज़ भी करेंगे, लेकिन जो कुछ भी आप कर रहे हैं, उसे पूरे मन से अपनी संतुष्टि के स्तर तक और बेहतरीन तरीके से करें। यकीन मानिये आप सफल हैं।
एक और बात कहना चाहूंगा कि अपने कार्य का उद्देश्य और किस तरह उसे मूर्त रूप देना है, इसकी एक रूपरेखा ज़रूर तैयार करें। इस रूपरेखा को तैयार करने में पूरा समय दें। तत्पश्चात उसी का अनुसरण करें।
iBlogger :iBlogger और अपने ब्लॉग के सम्मानितपाठकों को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : मेरे लिखे ब्लॉग मेरे विचार हैं, जिन व्यक्तियों के कार्यों को मैंने उद्धृत किया है उनके विचार हैं, लेकिन जो पाठक हैं वे ही ब्लॉग के प्राण हैं। अपनी इस आत्मा तक पहुँचने के लिए मैं स्वाध्याय का प्रयास कर रहा हूँ, मेरी तरह सभी ब्लॉगर करते हैं। पाठकों से निवेदन है कि इस स्वाध्याय में कुछ कमी रह जाए तो किसी भी प्रकार से उसका उल्लेख ज़रूर करें, ताकि वांछित सुधार की तरफ अग्रसर हुआ जा सके।
iBlogger : हमारे लिए आप क्या सुझाव देना चाहेंगे?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : iBlogger के प्रयास अद्वितीय और अनुकरणीय हैं। इन प्रयासों से मुझे भी काफी कुछ नया सीखने को मिला है। इसके जरिये यदि ब्लॉगर्स के लिए ब्लॉग लेखन और पठन सम्बंधित टिप्स भी नियमित रूप से मिलती रहे तो भारतीय ब्लॉग भी अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर उच्च स्थान प्राप्त कर सकते हैं।
iBlogger : अगले वर्ष के लिए होने वाले Blogger of the year 2020 के लिए कोई सुझाव देना चाहेंगे?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : Blogger of the year 2020 के नामांकन प्राप्त करते समय, ब्लॉगर के बारे में जानकारी के साथ यदि ब्लॉग का उद्देश्य, ब्लॉग द्वारा व्यक्ति-समाज को कैसे लाभ प्राप्त हो रहा है इसकी जानकारी भी ली जाए तो मेरे अनुसार बेहतर होना चाहिए।


डॉ. छतलानी जी आपकी सलाह पर जरूर विचार किया जायेगा। आपने iBlogger को अपना कीमती समय दिया, इसके लिए हम आपके तहेदिल से आभारी है।

रविवार, 29 सितंबर 2019

शेख़ शहज़ाद उस्मानी की चंद्रमा और चंद्रयान-2 पर आधारित चार लघुकथाएं

ह़मले और जुमले (लघुकथा)/शेख़ शहज़ाद उस्मानी

चन्द्रमा के एक विशेष क्षेत्र में आकस्मिक सभा जैसा कुछ गोपनीय आयोजन हो रहा था। चंद्रवासियों की किसी सांकेतिक भाषा में लूनर स्ट्राइक या स्ट्रेटजीज़ जैसा विमर्श चल रहा था।

"हम उनको क़ामयाब नहीं होने देंगे! जिनको हमारी बदौलत मुहब्बत के अलंकार मिले, ले-देकर जिनकी रातें हमारे चाँद ने  रौशन कीं चांदनी से, वे ही हमारी ज़मीन पर ही सेंधमारी कर रहे हैं !" चंद्रवासी एलियन नंबर एक ने सभा में अपनी बात रखी।

"वे अब हम में मुहब्बत नहीं, नफ़रत भर रहे हैं.. नफ़रत! क्यों भाई गृहप्रवेश दक्षिण दिशा से करना चाहिए या किसी और से? .. क्या कहता है पृथ्वीवासियों का वास्तुशास्त्र? ... ख़ुद तो अपने धर्मों, धर्मग्रंथों और संस्कृति-संस्कारों को भूलकर अपनी तथाकथित विज्ञान से भरे हुए हैं और अब हम पर थोपने की कोशिश कर रहे हैं!" दूसरे एलियन ने अपना व्यंग्यपूर्ण रोष ज़ाहिर किया।

तभी वरिष्ठ एलियन ने वहाँ की सतह पर ऊपर-नीचे झूलते हुए कहा, "हमारी आध्यात्मिक ताक़त के आगे उनकी वैज्ञानिक ताक़त नहीं चलेगी भाई!  हमने उन मानवों की तरह न तो सर्वशक्तिमान ईश्वर की कोई अवज्ञा की है और न ही उसका उपहास कर उसे कोई चुनौती दी है!"

"इसी वज़ह से तो जन्नत सा सुख भोग रहे हैं! उस पालनहार माफ़िक़ हम भी अदृश्य हैं! न भूख-प्यास की झंझट और न तथाकथित ऑक्सीजन और जल की!" तीसरे एलियन ने चंद्रमा के बदलते गुरुत्व में हल्के-हल्के गोतों का लुत्फ़ उठाते हुए कहा।

"अहंकारी पृथ्वीवासियों के ढेरों यंत्र हमारे संरक्षक ज़ोन में चक्कर पर चक्कर लगा रहे हैं! प्यार-मुहब्बत, दया-करुणा और स्वच्छता की बातें करने वाले हमारे यहां घृणा तुल्य प्रदूषण फैला रहे हैं। उनकी हमारी ज़मीन पर नीयत ख़राब है!" एक और एलियन बोला।

"ये लोग अपनी मेहनत, खोज और आविष्कारों की दलीलें देकर हमारी ज़मीन पर अतिक्रमण करेंगे और फ़िर मालिकाना हक़ के मसलों पर यहाँ भी आपस में लड़ेंगे!"

"सही कहते हो भाई! पता नहीं क्या होगा? अपना हाल पृथ्वी के जम्मू-कश्मीर जैसा होगा, सीरिया-फिलिस्तीन-इज़राइल जैसा या हिरोशिमा-नागासाकी जैसा!" दो एलियन विमर्श में एक-दूसरे से मुख़ातिब हुए।

 वरिष्ठ एलियन ने कहा,  "वे कितनी भी कोशिशें कर लें हमारा पालनहार  हमारे साथ है, ब्रह्मांड के साथी ग्रह-उपग्रह और सौर-मण्डल सब हमारे साथ हैं! बस, सब्र से सब देखते जाओ! उनकी तथाकथित लाँचिंग-वाँचिंग, नेविगेशन और यान-वान सब धरे के धरे रह जायेंगे!"

" ... तो सर, आपका संकेत धरती पर भेजे जाने वाले एस्ट्रोयेड-स्ट्राइक मिशन की ओर है! .. कब तक बचेंगे पृथ्वी वाले। उनको नहीं मालूम कि उनसे भी  बुद्धिमान व शक्तिशाली और भी हैं ब्रह्मांड में! पृथ्वी के साथ मानवों का भी  वजूद जल्द ही समाप्त होगा!" एक अन्य वरिष्ठ एलियन ने भरोसा दिलाया।

" ... लेकिन सर... मैं कुछ और ही चाह रहा हूँ!" एक युवा एलियन उन सब के चारों ओर चक्कर लगाता हुआ बोला, "पृथ्वीवासियों ने हमारे चंद्रमा को बहुत मान दिया है उनके धर्मों और साहित्य-विधाओं में! हमें भी उनकी मुसीबतों को समझ कर उनकी जिज्ञासाओं का आदर करना चाहिए। नफ़रत से काम नहीं चलेगा! .. आने दीजिए उनको हमारी ज़मीन पर! उनकी मंगलकामनाएं पूरी होने दीजिए। यहाँ से मंगल तक जाने दीजिए।"


"सही बात है! यही वक़्त का तक़ाज़ा भी है कि जितने भी सौर-मण्डल, ग्रह-उपग्रह हैं उन सबके रहवासियों के बीच सामंजस्य, प्रेम, दया-करुणा व गुरुत्व आदि ईश्वर की मर्ज़ी मुताबिक़ बना रहे, तो ही बेहतर होगा!" उसके दूसरे युवा साथी ने कहा।

'तथास्तु! ..आमीन!" कुछ ऐसा उन्होंने आपस में सांकेतिक भाषा में कहा और सभा विसर्जित हो गई।

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मेरा सूर्ययान/शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"मम्मी-पापा, दादा-दादी और नाना-नानी सब मुझे अपना चाँद कहते हैं!... और स्कूल में टीचर कहतीं हैं कि एक दिन सूरज की तरह चमकोगे!" नूर का बाल-मन स्वयं के द्वारा दीवार पर चॉक से बनाये गए अपने सूरज की ओर देखकर सोच रहा था। सूरज के गोले के चारों ओर आठ किरणें खींच कर वह रुक गया और  चाँद  और चंद्रयान-2 के समाचारों पर मम्मी-पापा और टीचर जी  से सुनी हुई  बातें सोचने लगा।

"विज्ञान वाली मैडम कह रहीं थीं कि चन्द्रमा पर पानी और जीवन की तलाश की जा रही है! ... सूरज की रौशनी से ही चाँद रात को चमकता दिखता है!" वह फ़िर जानकारियों के जाल में उलझ गया, "चंद्रमा पर गड्ढे हैं! फ़िर मुझे चन्दा क्यों कहते हैं सब के सब? ... मेरा सूरज कौन है? ... लोग सूर्ययान क्यों नहीं भेजते आसमान में?"

उसने चॉक उठाई और स्टूल पर चढ़कर सूर्य के निचले हिस्से में हवाई जहाज़ का आकार बनाने लगा और फ़िर मम्मी को बुलाकर उनसे बोला, "ये है मेरा सूर्ययान! सूरज से सारी रौशनी हमें भेजेगा! ... अंधेरा कभी नहीं रहेगा! ... मैं सूरज सा चमक जाऊंगा न!"

माँ अपने नन्हें जिज्ञासु बेटे के सवालिया व जोशीले चेहरे को देखकर बोली, "हाँ बेटू! तुम अच्छे इंसान बनोगे; अच्छी पढ़ाई-लिखाई करोगे, तो ख़ुदा तुम पर नूर ही नूर बरसायेगा न! सूर्ययान मतलब ज्ञान-विज्ञान!"
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लघुकथा-युग्म ( दो दृश्य : दो लघुकथाएं) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी
पहला दृश्य  : संज्ञान

वह नन्हा बच्चा चॉक से दीवार पर सूरज का रेखाचित्र बना कर स्टूल पर बैठा उसे निहार कर सोच रहा था, "मैं नहीं बदलवाऊंगा अपना नाम। 'सूरज' ही बढ़िया है। सबको रौशनी देता है; टीचर बता रही थीं कि चाँद को भी!"

फ़िर उसने दूसरी तरफ़ चंदा मामा बनाने की सोची; लेकिन अख़बार में छपी चंद्रयान की तस्वीर याद आ गई। ठीक तभी उसे मम्मी-पापा की बातें याद आ गईं।

"नहीं! मैं अपना नाम 'विक्रम' या 'प्रज्ञान' नहीं रखवाऊंगा। वे तो मशीनों के नाम हैं! 'सूरज' ही बढ़िया है! नहीं बदलवाऊंगा! टीचर अपनी फ़्रैंड को बता रहीं थीं कि ये दोनों भटक गये या अटक गए कहीं!"

फ़िर उसने स्टूल पर खड़े होकर सूरज के बगल में भारत का नक्शा बनाने की कोशिश की; जैसा भी बन पाया, उसके ऊपर छोटा सा तिरंगा झंडा उसने बना दिया।

"टीचर कह रहीं थीं कि हमारा देश दुनिया में चमक रहा है! ... सूरज ही चमका रहा होगा न इसे! मेरा नाम कितना अच्छा है! सूरज हूँ मैं!" अपने बनाये दोनों रेखाचित्रों को देखता मुस्कराता हुआ वह स्टूल पर बैठ गया।
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दूसरा दृश्य : सार्थक नाम

"सुनो जी, अब मैंने अपना इरादा बदल लिया है। सूरज का नाम बदलवाने अब उसके स्कूल नहीं जायेंगे!"

"क्यों? इतने दिनों से तो पीछे पड़ीं थीं अपने बेटे का नाम नये ज़माने के नये ट्रेंडी नाम 'विक्रम' या 'प्रज्ञान' रखवाने वास्ते!"

"सुना तो है न तुमने भी चंद्रयान के हिस्सों के बारे में  कि दोनों भटक गए चाँद पर उतरने से पहले ही! 'लैंडर' और 'रोवर' दोनों को पता नहीं कौन से  'रोबर्स' कहीं हाँक ले गये या फ़िर भटक गए या अटक गए कहीं!"

"तुम औरतों को तो बस ऐसी ही बातें सूझती हैं! चंद्रयान मिशन अपनी जगह है! अपनी संतान के लिए अपना मिशन अपनी जगह! सूरज अपने नाम को सार्थक क्यों नहीं कर सकता?"
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शेख़ शहज़ाद उस्मानी
(शिक्षक, रेडियो अनाउंसर, लेखक)
पुत्र: श्री शेख़ रहमतुल्लाह उस्मानी
संतुष्टि अपार्टमेंट्स,
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