साहित्य से नई पीढ़ी को परिचित करवाने के लिए साहित्य की विभिन्न विधाएँ विद्यार्थियों को पाठ्क्रम के अंतर्गत पढ़ाई जाती हैं। इसी उपक्रम में अब साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा लघुकथा को भी मान्य विधा के रूप में स्वीकृत करते हुए विश्वविद्यालयों में लघुकथा को लघुकथा की पूर्ण पुस्तक के रूप में पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। अभी तक छुटपुट लघुकथाओं का उपयोग पाठ्यक्रम में होता आया है, लेकिन यह पहली बार ही हुआ है कि, लघुकथा की पूरी पुस्तकों को उसी तरह पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है जिस तरह से कविता और कहानी की पुस्तकें पाठ्यक्रम में शामिल होती आई हैं।
इस वर्ष के बी.बी.ए. एवम बी.ए. के प्रथम वर्ष के पाठ्यक्रम में दो लघुकथा संकलन पढ़ाये जा रहे हैं। कथाकार बलराम द्वारा संपादित इन दोनों ही संकलनों, 'लघुकथा लहरी' व 'छोटी बड़ी कथाएँ', का रशियन कल्चरल अकादमी में भव्य लोकार्पण किया गया ।
यह बहुत ही हर्ष का विषय है कि अब लघुकथा भी अपनी सशक्तता के कारण एक विधा के रूप में पाठ्यक्रम में शामिल हो गई है और आशा है कि आने वाले समय में अन्य विश्वविद्यालयों में भी लघुकथा की और पुस्तकें पाठ्यक्रम में शामिल की जायेंगी। कथाकार बलराम द्वारा संपादित लघुकथा की इन पुस्तकों को राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा प्रकाशित किया गया है।
इन पुस्तकों में लघुकथाओं के पुरोधा भारतेंदु हरिश्चन्द्र, प्रेमचंद, विष्णु प्रभाकर, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, हरिशंकर परसाई आदि के साथ वर्तमान लघुकथाकार चित्रा मुद्गल, सुकेश साहनी, रामेश्वर कम्बोज हिमांशु, बलराम, मधुदीप गुप्ता, अशोक भाटिया, अशोक जैन, सुभाष नीरव, सूर्यकांत नागर, सतीश राठी, राकेश शर्मा, चैतन्य त्रिवेदी, चेतना भाटी, अंतरा करवड़े, अनघा जोगलेकर आदि की लघुकथाएँ शामिल हैं।
भारतेंदु हरिश्चंद्र के काल से ही लघुकथा लेखन आरंभ हो चुका था परन्तु पिछले 40-45 वर्षों से लघुकथा पर गहन शोध कार्य एवम निरंतर लेखन शुरू हो चुका है। वर्तमान में मुख्यतः पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश आदि में लघुकथा पर विशेष कार्य किया जा रहा है। गत वर्ष इंदौर में 'क्षितिज' संस्था द्वारा अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन का भव्य आयोजन किया गया। क्षितिज संस्था पिछले 36 वर्षों से लघुकथा विधा के विकास के लिए सतत कार्यरत रही है। गत वर्ष सिरसा में भी लघुकथा सम्मेलन का सफल आयोजन किया गया। कान्ता राय के नेतृत्व में भोपाल लघुकथा शोधकेंद्र भी सक्रियता से लघुकथा के विकास में कार्यरत है।
इसी कड़ी में श्याम सुंदर अग्रवाल के सम्पादन में पंजाब से प्रकाशित पत्रिका 'मिन्नी', सतीश राठी के सम्पादन में 'क्षितिज', अशोक जैन के सम्पादन में 'दृष्टि', योगराज प्रभाकर के सम्पादन में 'लघुकथा कलश', मधुदीप गुप्ता की लघुकथा पुस्तक श्रृंखला 'पड़ाव और पड़ताल' व स्वयं कथाकार बलराम का लघुकथा को एक विधा के रूप में प्रतिष्ठित कराने में विशेष योगदान रहा है। श्री बलराम के संपादन में अभी तक लघुकथा कोश, लघुकथा विश्वकोश और लघुकथा के लिए ढेर सारी पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। उन्हीं के सतत प्रयासों ने आज लघुकथा को इस स्थान पर लाकर विराजित कर दिया है।
इसी कड़ी में श्याम सुंदर अग्रवाल के सम्पादन में पंजाब से प्रकाशित पत्रिका 'मिन्नी', सतीश राठी के सम्पादन में 'क्षितिज', अशोक जैन के सम्पादन में 'दृष्टि', योगराज प्रभाकर के सम्पादन में 'लघुकथा कलश', मधुदीप गुप्ता की लघुकथा पुस्तक श्रृंखला 'पड़ाव और पड़ताल' व स्वयं कथाकार बलराम का लघुकथा को एक विधा के रूप में प्रतिष्ठित कराने में विशेष योगदान रहा है। श्री बलराम के संपादन में अभी तक लघुकथा कोश, लघुकथा विश्वकोश और लघुकथा के लिए ढेर सारी पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। उन्हीं के सतत प्रयासों ने आज लघुकथा को इस स्थान पर लाकर विराजित कर दिया है।
अनघा जोगलेकर