सभा ने उसका स्वागत तालियों की गड़गड़ाहट से किया और फिर पूरे सभागार में नीम सन्नाटा पसर गया सिर्फ़ उसे सुनने के लिए।
वह जब भी मंच पर होती तो श्रोता गण बड़ी बेताबी से उसकी बारी आने की प्रतीक्षा करते क्यूँ कि जब वह अपनी रचना लोगों के समक्ष रखती तब संपूर्ण उपस्थिति में भी सन्नाटा अपने पाँव जमा लेता।
उसकी रचना समाज के हर उस पहलू को बे-नक़ाब करती जो त्रासदी,व्यभिचार लालच और नफ़रत से भरी हुई होती।
और लोग उसे साँस रोक कर सुनते शायद वह श्रोता के अंदर छुपे उस इंसान को खरोंच देती जिसे सबने ख़ुद से भी बहुत दूर कर रखा है।
लोग उसे सुनते दाद देते तालियों फूलों से उसका सम्मान बढ़ाते हुए आगे बढ़ जाते और फिर समाज ही उसे एक और तड़पता मौक़ा दे देता ऐसी ही किसी नंगी सच्चाई रचने के लिए और हम बन जाते हैं ऐसे आहत भावों का हिस्सा कभी सहते हुए तो कभी करते हुए।
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